Chalatan Parat Paijana Chhamke चलतन परत पैजना छमके, पांवन गोरी धन के

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चलतन परत पैजना छमके, पांवन गोरी धन के।
सुनतन रोम-रोम उठ आवत, धीरज रहत न तनके।
छूटे फिरत गैल-खोरन में, ये सुख्तार मदन के।
करवे जोग भोग कुछ नाते, लुट गए बालापन के।
ईसुर कौन कसाइन डारे, जे ककरा कसकन के।

श्रृँगार रस में ऋतु वर्णन का भी बड़ा महत्त्वपूर्ण स्थान है। अनेक कवियों से ऋतुराज वसन्त का अपनी रचनाओं में बड़ी सुन्दरता के साथ वर्णन किया है। वसंत के आगमन पर मानव मन में जो उत्साह, हर्ष और गुदगुदी उठती है, उसकी मनोहारी रागात्मक अभिव्यक्ति ईसुरी की फागों में झलकती है। एक किशोरी की अभिलाषाओं का चित्रण ईसुरी ने बडी बारीकी से किया है।

ये दिन गौने के कब आवें, जब हम ससुरे जावें।
बारे बलम लिवौआ होकें, डोला संग सजावें।
गा-गा गुइयां गांठ जोर के, दोरे लौ पौंचावें।
हाते लगा सास ननदी के, चरनन सीस नवावें।
ईसुर कबै फलाने जू की, दुलहिन टेर कहावें।

 महाकवि ईसुरी की इस फाग में बुन्देली लोक जीवन की कुछ प्रथाओं की सुन्दर झलक देखने को मिलती है। संयोग श्रृँगार में उज्ज्वल भविष्य की कल्पनाओं का संजोना, शामिल करना बड़े हुनर का काम होता है। जब कवि नायिका के मन में उठने वाली उमंगों, मन में आने वाली सुखद हिलोरों की कल्पना करता है तो उसके साज श्रृँगार एवं सहायक उपक्रम चार चांद लगा देते हैं।

जैसे- उपरोक्त फाग में नायिका सोचती है- पति डोला सजाकर साथ लायेगा, मैं उसमें बैठकर ससुराल जाऊँगी, विदा के समय नायक के साथ गाँठ बाँधकर सखी-सहेलियाँ द्वारे तक पहुँचाने आयेंगी। ससुराल पहुँच कर लोकाचार होंगे, जिनमें द्वार पर पहुँचकर हत्ता (तेल और हल्दी के लेप में हथेलियाँ डुबोकर द्वार के दोनों और भित्ति पर छाप लगाना) लगाकर सास और ननद के चरणों में शीश झुकाकर गृह प्रवेश करेगी। नायिका को सबसे सुखद अनुभूति तब होती है, जब उसे फलाने की दुल्हिन कहकर पुकारा जाता है (नायक का नाम लेकर नायिका को उसकी पत्नी के रूप में सम्बोधित किया जाना।

बुन्देली संस्कृति में में नारियाँ अपने पति का नाम नहीं लेती है। इस फलाने जू शब्द में हिन्दुस्तानी नारी के शील और सौजन्य की बड़ी मनोहारी अभिव्यक्ति होती है। महाकवि ईसुरी उस बालिका की मनोदशा का सुन्दर चित्रण कर बुन्देली लोकमूल्यों की झलक देकर बुन्देली साहित्य में अपना नाम स्वर्ण अक्षरों में लिख गए है। यहाँ ईसुरी की उन फागों का उल्लेख करना अत्यधिक प्रासंगिक है, जिनके द्वारा वे ग्रामीण नारियों के श्रृँगार का वर्णन कर लोकाभूषणों, गहनों तथा वस्त्र सज्जा के माध्यम से श्रंगार को जीवटता प्रदान करते है।

महाकवि ईसुरी की संयोग शृंगारिक फागें 

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