किस्सा सी झूठी न बात सी मीठी। घड़ी घड़ी कौ विश्राम, को जाने सीताराम। न कहय बाले को दोष, न सुनय बाले का दोष। दोष तो वहय जौन किस्सा बनाकर खड़ी किहिस और दोष उसी का भी नहीं। । शक्कर को घोड़ा सकल पारे के लगाम। छोड़ दो दरिया के बीच, चला जाय छमाछम छमाछम। इस पार घोड़ा, उस पार घास। न घास घोड़ा को खाय, न घोड़ा घास को खाय। जों इन बातन का झूठी जाने तो राजा को डॉड़ देय। कहता तो ठीक पर सुनता सावधान चाहिए। लड़का उस जगह पर पहुँचा तो रानी को न देखकर हैरान रह गया और वह पागल-सा इधर-उधर भटकने लगा, बस यही रटा करता था, हाय। मेरी Ujbasa Rani , हाय। मेरी उजवासा रानी, तू कहा चली गयी। . . . . .।
ऐसें -ऐसें एक रहय राजा एक रहय रानी। राजा ने कहा, होय न होय रानी हम भी पुण्य का कोई काम करें। रानी ने कहा, ठीक है। राजा ने कहा, होय न होय एक कुंआ खुदवा ले। रानी ने कहा, ठीक है। राजा ने कुंआ खुदवाया परन्तु उसमे पानी नहीं निकला। राजा पंडितों के पास गये और उनसे कहा कि पंडित जी हमने साठ हाथ गहरा कुंआ खुदवाया फिर भी पानी नहीं निकला।
तब पंडित जी बोले, सुनो राजा, तुम आस-पास डुग्गी पिटवा दो (एलान करवा दो) कि जो भी इस कुंआ को सोने-चादी से भर देगा, तो मैं उसके साथ अपनी लड़की की शादी करूँगा। इससे तुम्हें अपनी लड़के के लिए वर नहीं ढूँढना पड़ेगा, वह स्वयं वर ढूंढ लेगी तथा कुंआ भी भर जायेगा। राजा ने कहा, ठीके है, मेरे दोनों काम बन जायेंगे तथा उससे ऐसी ही डुग्गी पिटवा दी।
राजा की लड़की अटारी (महल का ऊपरी खण्ड) में बेठकर देखा करती थी। बड़े-बड़े राजा-महाराजा आये, उन्होंने अपना सारा सोना- चांदी कुंये में डाल दिया फिर भी कुंआ नही भरा और वह राजा सब सोना-चांदी कुंये से निकाल कर अपने घर में रख लेता था।
एक बार किसी राजा का लड़का आया, वह प्यासा था। वह उसी कुंये की तरफ जाने लगा तो मालिन उसे देखकर बोली कि बेटा कंहा जा रहे हो। तो लड़का बोला, मुझे प्यास लगी है, मै पानी पीने कुएं में जा रहा हूँ। तो मालिन बोली, बेटा, लो पानी तुम मेरे पास से पी लो, उस कुएं में पानी नहीं है। लेकिन लड़के ने कहा, क्यो माँ, उसमें पानी क्यों नहीं है? मैं जाकर देख आऊ उसमें पानी क्यों नहीं है?
तब उस मालिन ने उसे सारी कहानी बताई कि इसलिए इसमें पानी नहीं है और शर्त भी बतायी। तब वह लड़का कुएं के पास गया तो राजा की लड़की वहॉ आकर तुरन्त बोली, क्या देख रहे हो, कुंआँ देखने आये, तुम्हें कुंआँ भरना है? लड़के ने कहा, हाँ हम कुंआँ भर देंगे। तब लड़की ने उसे एक अंगूठी दी और कहा, लो इसे ले लो और अँगुली में पहन लो और जब कुंआँ न भरे तो यह अंगूठी उतारकर डाल देना और जब कुंआँ भर जाये तो अंगूठी फिर निकाल कर पहन लेना।
अब अपने घर जाकर धन सम्पत्ति ले आओ। लड़की ने लड़के को पसंद कर लिया था, इसलिए उसने अंगूठी उस लड़के को दे दिया। क्योंकि उसके अलावा कुंआँ को कोई नहीं भर सकता था।अब लड़का अपने घर जाकर सारा सोना चॉदी ले आया और कुंआँ में डाल दिया, फिर भी कुंआँ थोड़ा सा खाली रह गया। अब लड़के का ध्यान अपने हाथ की तरफ गया, उसने आँगूठी उतारी और कुंआँ में डाल दी, कुंआँ भर गया।
उसने अंगूठी निकालकर फिर से पहन लिया, कुआ वैसे ही भरा रहा। अब राजा के पास खबर पहुँची कि आपका कुओं भर गया है तो राजा आये और शादी का इन्तजाम किया और कुंए का सारा सोना-चॉदी अपने यहाँ रखा।
अब शादी के समय जब लड़की की मा लड़की की चोटियों गूँथ रही थी तो उसने सोचा कि लड़का तो अपने घर से सारा सोना-चाँदी ले आया है, अब इन्हें हम विदा करेंगे तो ये क्या खायेंगे। अत: उसने यही सोचकर लड़की की चोटी में दो अशर्फियाँ भी गुँथ दी कि अपना दोनों इसे बेचकर कुछ खा-पी लेंगे और लड़की को विदा कर दिया।
चलते-चलते वे दोनों काफी दूर निकल आये, तब एक जगह लड़की ने अपने पति से कहा, राजा जी, मुझे भूख लगी है। लड़का बोला, यहाँ क्या रखा है, जो कुछ भी था, सब कुछ तो मैने तुम्हारे माता-पिता को दे आया, अब कुछ नहीं है मेरे पास। तब लड़की को अशर्फियाँ याद आई जो उसकी चोटी में गुँथी थी। उसने एक अशर्फी निकालकर राजा (लड़के) को दिया और कहा, लीजिए, जो चाहे आप ले आये, मैं बनाऊँगी खिलाऊँगी।
तब राजा ने सोचा कि यहाँ जंगल में बनाने-खाने से अच्छा है, कहीं से मिठाई ले आऊं, तो दोनो लोग खा लें। वह मिठाई लेने चला गया, जब वह एक दुकान पर पहुँचा तो वहाँ एक डायन औरत रहती थी। उसने एक लड़के को पकड़ रखा था और उसे बार-बार चुटकी काट लेती थी, जिससे वह बालक रोने लगता था। तो राजा ने पूछा, दादी बालक को काहे रुला रही हो? तो उसने कहा, ऐसे ही रो रहा है। इसके बाद फिर उसने बच्चे के चुटकी काट ली, जिससे वह फिर रोने लगा।
तब राजा ने फिर टोका कि ऐ बुढ़िया, क्यों लड़के को रुला रही हो? तब बुढ़िया बोली कि लगता है यह आपकी अंगूठी को मचल रहा है। राजा ने कहा, इतना छोटा बच्चा ओँगूठी जानता है और उसने गुस्से में उसे अंगूठी उतारकर दे दी कि ले बच्चे को अंगूठी दे दे। अब वह बुढ़िया वहाँ से चली आयी, बच्चे को छोड़ दिया और अंगूठी लेकर रानी (लड़की) के पास आकर बोली कि बिटिया (लड़की)
तुम यहाँ कहाँ बैठी हो, घर चलो, मैं तुम्हारी मौसी हूँ, देखो बेटा ने मुझे अँगूठी देकर भेजा है कि जाओ, लिवा लाओ। अब लड़की ने जब अपनी अंगूठी देखी तो वह विश्वास करके उसके साथ चल दी।
अब वह बुढ़िया उस लड़की को लेकर दूसरे राजा के यहाँ पहुँच गयी। वह जोड़ में जोड़ मिलाया करती थी, क्योंकि उसे ऐसा करने से आधा राज- पाट मिल रहा था और वह उस लड़की को उस दूसरे राजा के पास छोड़ आयी। इस प्रकार वह लड़की चंगुल में फंस गयी। उधर वह लड़का उस जगह पर पहुँचा तो रानी को न देखकर हैरान रह गया और वह पागल-सा इधर-उधर भटकने लगा, बस यही रटा करता था, हाय। मेरी उजवासा रानी, हाय। मेरी उजवासा रानी, तू कहा चली गयी।
इधर उस लड़की ने नये राजा से कहा कि राजा, मैं तुम्हारे पास ऐसे नहीं रहूँगी। राजा ने कहा, फिर कैसे रहोगी? तो लड़की बोली, मेरी एक शर्त है कि आप पहले अपना पूरा महल तोड़वाकर नया महल बनवाये, तब मैं आपके पास रहूँगी। तब राजा ने महल तोड़वा डाला और नया महल बनवाया। अब महल में सिर्फ छपाई (प्लास्टर) होने को शेष था, महल के छत पर बालू पड़ी थी।
एक दिन रानी छत पर घूम रही थी तो उधर से वही लड़का हाय मेरी उजवासा रानी, हाय मेरी उजवासा रानी कहता हुआ निकला, तब रानी ने उसे देखकर थोड़ी सी बालू उठाकर उसके ऊपर फेंका, जिससे उसने ऊपर की ओर देखा तो रानी बोली, चुप रहना, तुम रात को चुपचाप रस्सा और घोड़ा लेकर आ जाना चुपके से उतर आऊँगी। यह सब बातें एक दूसरा काना राजा सुन रहा था। अतः उससे पहले ही वहीं काना राजा चस्मा (एनक) लगाकर आ गया। रानी ने समझा वहीं आया हैं और वह उतरकर घोड़े पर सवार होकर चल दी।
जब रानी ने घर जाकर शक्ल देखी तब वह पहचान गई कि फिर धोखा मिला। अब वह वहाँ से निकलने का उपाय सोचने लगी। अत: उसने उस काने से कहा कि राजा मैं नशा-पत्ती करती हूँ, मुझे भांग चाहिए। राजा ने कहा ठीक है, मैं ला रहा हूँ और वह उसे घर में बंद करके चला गया और भांग लेकर आया। रानी ने उससे कहा कि इसके दो गोले बनाओ। काने राजा ने उसके दो गोले बनाये। तब रानी बोली, अच्छा पहले एक गोली तुम खाओ।
राजा एक गोली खा गया। तब रानी ने कहा, अच्छा राजा तुम मेरे पति हो,इसलिए अब एक गोली मेरे हाथ से खाओ और काना राजा इन्कार न कर सका और दूसरी गोली भी खा गया। अब उसे नशा ज्यादा हो गया और वह सो गया। जब सो गया तो रानी ने उसके सारे कपड़े उतारे और उसके कपड़े खुद पहन लिए। अपने कपड़े उसके ऊपर डाल दिया और तीर -कंमान लेकर, घोड़ा में बैठकर चल दी ।
चलते-चलते उसे एक लड़का मिला, वह लड़का चिड़िया मार रहा था। रानी ने उससे पूछा कि ये क्या कर रहे हो? तो उसने कहा कि अरे भाई। मैं चिड़िया मार रहा हूँ। तब वह मर्दाने भेष में सजी रानी ने कहा कि लाओ, मैं मारे देता हूँ और तीर-कमान से चिड़िया मार दी। तब उस लड़के ने प्रसंशा की और कहा, दोस्त चलो तुम, आज मेरे घर चलो।
इस प्रकार रानी उसके घर गयी और खाना-पीना हुआ और उससे कहा, दोस्त तुम्हारे घर में यदि कोई कमरा खाली हो तो मुझे उसके चाबी दे दो, में उसी में लेटूँगा और घोड़ा भी बाधूँगा।
लड़के ने कहा, हाँ है तथा उसे कमरे की चाबी दे दिया और वह घोड़ा लेकर कमरे में चली गयी। अब थोड़ी देर बाद घर की औरतें आपस में बातचीत करने लगी कि होय न होय, यह लड़की है, केवल वेषभूषा मर्दों की धारण किए है। कितना अच्छा हो, अपने लाला (लड़के) की शादी इसके साथ हो जाय। जब रानी ने ये सब सुना तो वह वहाँ से चुपचाप ताला खोलकर, घोड़े में सवार होकर चली गयी।
चलते-चलते उसे एक बूढ़िया मिली जो आटा पीस रही थी और रोती जा रही थी। तब उसने पूछा कि ऐ बुढ़िया, तुम रो क्यों रही हो? तो बुढ़िया बोली कि आज मेरे लाला (लड़के) की दानव मारने की बारी है और मेरा लड़का है नहीं। सिपाही आयेंगे तो मैं क्या जबाब दूँगी। तब उस रानी ने कहा कि ठीक है, कह देना कि यही मेरा लड़का है, क्योंकि रानी मर्दाने वेशभूषा में थी। बुढ़िया बोली ठीक है और उसने अपना घोड़ा बॉध दिया।
अब बुढ़िया अन्दर चली गयी, कुछ देर बाद सिपाही आये तो बोले कि ऐ बुढ़िया, तेरा लड़का कहाँ है? बुढ़िया ने कहा, साहब यही है मेरा लड़का। सिपाहियों ने उससे कहा, ऐ, जाओ राजा का हुकुम है, दानव मार के लाओ। सो उसने अपना तीर- कमान उठाया, घोड़ा लिया और दानव को मारने चल पड़ी वहाँ एक पेड़ पर चढ़कर बैठ गयी।
अब जब दानव आया तो तुरन्त उसे मार दिया और उसके नाक कान काट कर घर ले आयी। अब गाँव के सभी लड़कों ने देखा कि आज दानव अच्छा सो रहा है, उन सभी ने पत्थर मारना शुरू किया परन्तु वह हिला-डुला भी नही। तब वे सब उसके पास आये और सोचा हम भी इस दानव को मार लें और सबने मिलकर उसके ऊपर उछलना-कूदना शुरू किया। अब सब राजा के यहाँ पहुँचकर कहने लगे, हमने मारा दानव, हमने मारा दानव।
तब राजा बोले, ठीक है, अच्छा सब लोग बैठो और राजा ने अपने सिपाहियों को उसी बुढ़िया के यहाँ भेजा कि जाओ, उस बढ़िया के लड़के को लिवा कर ले आओ। सिपाही आई ओर उस लड़के अर्थात मर्दाना वेष में रानी को लिवा ले गये। अब राजा ने उससे पूछा, तुमने दानव को मारा? तो उसने रूमाल में बंधे दानव के नाक-कान दिखलाये। राजा ने उसे शाबासी दी और कहा, मैं तुम्हारे साथ अपनी लड़की की शादी करूँगा।
मर्दाना वेषधारी रानी ने सोचा, अब क्या हो? खैर किसी तरह उसका टीका-चढाव सब कुछ हो गया और जब भावरें पड़ने का नम्बर आया तो उसने खूब बहाना बनाया कि मेरा पेट दर्द कर रहा है, मेरी तवियत सही नहीं है। राजा ने उसे दवा वगैरा देने को कहा, लेकिन उसने कहा, नहीं, मैं कुछ नहीं खाऊँगा। तब राजा ने सोचा, चलो हटाओ, टीका-शादी तो हो गयी है न पड़ने दो भाँवरें , क्या हुआ। अब राजा ने उन्हें बिदा कर दिया और कहारों से कहा कि ऐ कहारों ,इनको ले जाओ और जहाँ ये कहें वही रोक देना।
चारों कहार डोला लेकर चल दिए। जब एक जंगल मिला तो दूल्हा बनी रानी ने कहा, ऐ कहारो, यही पर डोला रख दो। कहारों ने डोला रख दिया और दोनों उतर गये। वही पर तुरन्त महल बनवाया और सिपाहियों का पहरा लगा दिया। जब सिपाही वगैरह लग गये तो एक दिन दूल्हा बनी रानी ने कहा, ऐ सिपाहियो, जाओ, चार बेवकूफों को पकड़ लाओ।
अब सिपाही परेशान कि चार बेवकूफ कैसे मिलें, किसी को बेवकूफ कैसे कहा जाय, उसे कैसे पहचाना जाय? कुछ देर बाद सिपाहियों को चार लोग अंट-संट बकते हुए मिले। सिपाहियों ने सोचा कि लगता है ये ही बेवकूफ हैं, क्योंकि अंट-संट बक रहे हैं। अत: वे उन चारों को पकड़ ले गये और राजा (मर्दानी वेषधारी रानी) के सामने प्रस्तुत किया।
उसने कहा कि ठीक है, एक बास का डंडा तोड़ लाओ और इन दो के खूब मार लगाओ। जिनमे से पहला कह रहा था ‘झूठ घाट का पिलाव, न जाने कहाँ चली गयी’ और दूसरा कह रहा था, ‘भेष- करै मर्दाना , मैं भड़वा न पहचाना’ इन दोनों को पिटवा कर भगा दिया गया। अब तीसरा जो कह रहा था, ‘दो दिन की कसर रह गयी, न जाने किधर चली गयी’, उसे व्याह करके लायी गयी रानी को दे दिया और चौथा बचा जो खुद उसी उजबासा रानी का पति था,जिसके साथ वह प्रेम से रहने लगी। किस्सा रही सो हो गयी।