Homeबुन्देलखण्ड का इतिहास -गोरेलाल तिवारीBundelkhand Me Vidroh Ke Karan बुन्देलखण्ड में विद्रोह के कारण

Bundelkhand Me Vidroh Ke Karan बुन्देलखण्ड में विद्रोह के कारण

अंग्रेजी शासन काल में Bundelkhand Me Vidroh Ke Karan कई थे जिनमे  सती प्रथा को बन्द करने के लिए सरकार ने कानून  बनाया जिसे प्रजा ने अपनी धार्मिक भावना के प्रतिकूल समझा । ये सब बातें छोटों तथा वड़ों को भड़काने वाली थीं। मिलिट्री के देशी सिपाही भी यह सहन न कर सके। उन्हें कारतूसों में चर्बी मिश्रण की बातें बताई जाने लगीं। वे भी भड़कने लगे। रियाया से कहा जाने लगा कि कमसरिया द्वारा प्रदान किया जाने वाला ही गेहूं का आटा खरीदा जाय ।

उत्तरी भारत के प्रान्तों एवं राज्यों में ही नहीं, अपितु बुन्देलखण्ड के राज्यों एवं अंग्रेज शासित जिलों में भी अंग्रेजी शासन के प्रति विरोध होने लगा । 1842  में बुन्देलखण्ड के बुंदेला राजाओं एवं लोधी राजाओं नें जैततुर के राजा पारीछत के मार्गदर्शन में, विद्रोह कर ही दिया था किन्तु  बगौरा की घमासान लड़ाई में उन्हें पराजय का मुंह देखना पड़ा।

अंग्रेजी शासन के प्रति विरोध बराबर बना रहा जो 1857  के विद्रोह में परिणित हो गया। उत्तर में अवध की नवाबी तथा दक्षिण में भोंसले के पतन से बुन्देलखंड के राजा, जागीरदार, लम्बरदार, मालगुजार आदि अप्रसन्न थे । अंग्रेजों ने भूमिकर काफी बढ़ा दिया और वह कर नगद रुपयों में किसानों को जमा करना पड़ता था। यही नही , किसानों पर और भी विपदा आ पडी , भूमि के बेचने, गिरवी  रखने आदि के लिए स्टाम्प पर, रजिस्ट्री करानी  पड़ती थी। यह उन पर अतिरिक्त भार पड़ता था।

रियाया से कहा जाने लगा कि कमसरिया द्वारा प्रदान किया जाने वाला ही गेहूं का आटा खरीदा जाय । एक अफवाह यह भी फैली कि उक्त गेहूं के आटे में सूअर तथा गाय की हडिडयों का मिश्रण है। यह बात मुसलमानों और हिन्दुओं को चुभने लगी । अंग्रेजी शासन के खिलाफ धीरे- धीरे आन्दोलन के स्वर तेज होने लगे।

फकीर और साधुओं के जरिये जनता में अग्रेजी सरकार के तौर तरीकों के खिलाफ प्रचार होने लगा, चौकीदारों के जरिये संदेशों  का लन्दन टाइम्स का विशेष प्रतिनिधि श्री विलियम हवार्ड रुसेल जो 1857 के गदर के समय भारत में मौजूद था उसने इस क्रान्ति के विषय में लिखा है।

“यह एक ऐसा युद्ध था जिसमें लोग अपने धर्म के नाम पर अपनी कौम के नाम पर बदला लेने के लिए उठे थे । उस युद्ध में समूचे राष्ट्र ने अपने ऊपर से विदेशियों के जुए को अपनी गर्दन से फेंक कर सब जगह देशी नरेशों की पूरी सत्ता ओर देशी धर्मों का पूरा अधिकार फिर से कायम करने का संकल्प लिया था। इस प्रकार से प्रतीत होता है कि पहले से ही राजा नवाब आदि पूर्व नियोजित क्रान्ति की ओर अग्रसर थे।

आधार –
1 – चार्ल्स बाल-हिस्ट्री आफ इण्डियन म्युटिनी, एक्टैक्स 5, कमिश्नर सागर डिवीजन की ओर से पश्चिमोत्तर प्रान्त सरकार के नाम पत्र संख्या 68 दिनांक 5-3-1857 ।
2 –  कैन्टन पी०जी० स्काट-पर्सनल ने रेटिव्ज आफ द इसकेप फ्राम नौगांव। टू बांदा डायरी दिनांक 9 अगस्त 1857 मेजर जनरल रिचर्ट हिल्टन ‘दि इण्डियन म्युटिनी, पृष्ठ 22।
3 – सुन्दरलाल- भारत में अंग्रेजी राज पृष्ठ 819।

बुन्देली झलक (बुन्देलखण्ड की लोक कला, संस्कृति और साहित्य)

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