Vidrohi Nawab Ali Bahadur Dwitiya विद्रोही नवाब अली बहादुर द्वितीय 

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भारत में सन 1857-59  में ब्रिटिश सरकार के खिलाफ जन आन्दोलन (विद्रोह) हुआ जिसमें दक्षिण यमुना कछार की जनता, राजा एवं  नवाबों ने बहुत बड़ी भूमिका अदा की। इस क्षेत्र का ‘पश्चिमी छोर झाँसी की रानी लक्ष्मी बाई संभाले हुई थी तो पूर्वी छोर बाँदा का Vidrohi Nawab Ali Bahadur Dwitiya संभाले हुये थे । नवाब तात्या टोपे के बहुत करीबी साथी थे ।

नबाब साहब, तात्या टोपे के  साथ नवम्बर सन 1857  तक राजपूताना, बुन्देलखण्ड, सिन्धिया की रियासती में इसी अभियान में जुड़े रहे थे । इसी क्षेत्र में 1840-42 में जैतपुर

के महाराजा पारीक्षत के नेतृत्व में अंग्रेज सरकार के विरुद्ध विद्रोह हुआ और उसके बाद उनकी रानी गजमाला ने 1857  के विद्रोह में अग्रजों के छक्के छुड़ाकर अपने राज्य के अतिरिक्त दमोह व सिमरिया पर भी कब्जा कर लिया।

जालौन राजा की वंशजा ताई बाई ने तो जालौन आने के लिए तांत्या टोपे को आमंत्रण दिया तथा उसकी जन व धन से मदद की । बांदा के नवाब अली बहादुर (द्वितीय) के विद्रोही हो जाने के पूर्व नवाब की अग्रेज सरकार सराहना करती थी किन्तु सरकार उनकी सुविधाओं को कम करती जाती थी तथा उनके अन्दरूनी मामलों में भी ब्रिटिश सरकार की दखलनदाजी कम न थी । इन बातों से बांदा के नवाब अली बहादुर (द्वितीय) अग्रेजी शासन के खिलाफ होते जा रहे थे और जैसे ही उनको जनता का सहयोग मिला तो वह क्रान्ति में कूद पड़े ।

बांदा के Vidrohi Nawab Ali Bahadur Dwitiya को इस विद्रोह में बुन्देलखण्ड के अनेक राजाओं के अतिरिक्त पेशवा, सिन्धिया का भी समर्थन मिला था, यहाँ तक कि आरा से दानापुर की बागी पल्टन बाबू कुँवर सिंह के नेतृत्व में बांदा आ पहंची थी। कर्वी के पेशवा ने तो उसकी यथोचित आर्थिक तथा भौतिक मदद करने में अपने को ही समर्पित कर दिया था।

बांदा के भूतपूर्व नवाब जूल्फिकार अली को चार लाख रुपया वार्षिक पेन्शन मिलती थी और उसी पर उन्हे  गुजारा करना पड़ता था । जिसमें उसे अपनी पैदल सेना, सवार तथा तोपखाने एवं अन्य अमले का व्यय वहन करना पड़ता था। उनके  मरने के बाद उसके पुत्र अली बहादुर को “नवाब बांदा’ की उपाधि से वंचित कर दिया गया और सेना में भी कटौती कर दी गई । गनीमत यही रही कि उन्हे कोर्ट-कचहरी में उपस्थित न होने की छूट दे दी गई थी।

पहले तो नवाव को 15  तोपों की सलामी दी जाती थी जबकि जुल्फ़िार अली को 11  तोपों की सलामी पर रह जाना पड़ा और उसके पुत्र अलीबहादुर  को तो उससे भी वंचित कर दिया गया। केवल उसे २५ सवार तथा पैदल सैनिकों की एक कम्पनी रखने की अनुमति ही दी गई। यही नहीं, उनसे  यह भी कहा गया कि वह धीरे-धीरे “नवाब की छावनी” की भूमि सरकार के सुपुर्द कर दें ।

इन सभी कारणों ने नवाब अलीबहादुर के जख्मों पर नमक का काम किया। उनकी भावनाओं पर उस समय और करारी चोट पड़ी जबकि उसके पुत्र-जन्म के अवसर पर अंग्रेज अधिकारियों ने व्यावहारिक रस्म अदायगी भी नहीं बरती।

उत्तर पश्चिमी प्रान्त के लेफ्टीनेन्ट गवर्नर ने सरकार को मई 1856  में लिखा कि “नवाब बांदा इस समय ग्यारह लाख रुपये के कर्जे में डूबा हुआ है और यह कर्जा दिन ब दिन बढ़ता जा रहा है । उसने नवाब को सलाह दी कि वह अपने अयोग्य कामदार विलायत हुसेन को निकाल दे और इमदाद अली बेग जो प्रबन्ध कार्य में अच्छा साबित होगा उसे रख लें जिससे  कर्जा भी घटता जावेगा।

नवाब ने इमदाद अली बेग को रख तो लिया लेकिन कुछ दिन बाद जनवरी 1857 में उसे अलग कर दिया। लेफ्टीनेन्ट गर्वनर के समझाने पर भी नवाब ने इमदाद अली बेग को पुनः नौकर पर नहीं रखा । इस पर लेफ्टीनेन्ट गर्वनर नराज हो गया और उसने सरकार से अनुरोध किया कि नवाब को उस सुविधा से वंचित कर दिया जाये जिसके तहत नवाव को कोर्ट कचहरी में उपस्थित होने से छूट दी गई थी।

इमदाद अली बेग ने नवाब के बिना पूछे उसके तोपखाने में मोहनदास को रख लिया । लेकिन नवाब के बाबू ने उसका नाम अमले की सूची में से काट दिया। इस पर इमदाद अली बेग बहुत बिगड़ा । लेकिन नवाब क्या कर सकता था क्यों कि कलेक्टर ने तो नवाब के आदमी विलायत हुसेन को अलग कर दिया था । किसी तरह से नवाब ने विलायत हुसेन को अपने पास ही रखा कलेक्टर के अनुरोध पर भी नवाब ने विलायत हुसेन को अलग नहीं किया।

इमदाद अली बेग अक्सर नवाब की माँ से अच्छा व्यवहार नहीं करता था और जब कभी माँ से कठोर शब्द भी बोल देता था जो न तो नवाब को और न ही उसकी मां को पसन्द था। नवाब ने कलेक्टर से भी शिकायत की तो कलेक्टर ने उसकी शिकायत पर कोई ध्यान नहीं दिया। नवाब ने फिर अंग्रेज-उच्च-अधिकारियों के कान में यह बात डाली तो उन्होंने बताया कि नवाब की बदइन्तजामी के कारण मिर्जा इमदाद अली बेग को कामदार बनाया गया है ।

उसके बाद नवाब की माता ने कलेक्टर को आश्वासन दिया कि नवाब दो माह के अन्दर ऋण चुकता कर देगा। यदि समय पर ऋण नहीं चकाया जा सका तो कलेक्टर किसी भी व्यक्ति को कामदार बना सकता है । लेकिन वह कर्ज नहीं छुका सका और मिर्जा इमदाद अली बेग से ही नवाब को काम लेना पड़ा।

फिर तो बाकायदे इमदाद अली को नियुक्ति पत्र दिया गया और उस पर कलेक्टर ने पुष्टि की । धीरे-धीरे नवाब तथा कलेक्टर में दोस्ती बढ़ने लगी लेकिन मन  की बातें अलग ही रहीं । 26  मई 1857  को कलेक्टर ने नवाव को अपने यहाँ आमन्त्रित किया। रात का समय था। नवाब कलेक्टर के बंगले मे पहुँचे वहीं पर जज साहब के अलावा अन्य दो और सज्जन पहले से ही मौजूद थे।

कलेक्टर थोड़ी देर बाद नवाब को तथा मिर्जा इमदाद अली बेग को एक कमरे में ले गया वहां कलेक्टर ने कानपुर में उपद्रव हो जाने की सूचना दी तथा नवाब से एक विश्वसनीय व्यक्ति की मांग की जो कि कलेक्टर का एक गुप्त पत्र ले जाकर जनलर को दे दे  । नबाब ने अपने विश्वसनीय आदमी काशी को यह काम दिया। तत्पश्चात कलेक्टर ने बाइबिल की तथा नवाब ने कुरान की शपथ लेकर मित्रता का हाथ बढ़ाया था।

बाँदा में विद्रोह हो जाने पर, नवाब के रहन सहन के बारे में, बांदा के कलेक्टर मिस्टर मेन ने सन 1857  में लिखा, मैं बांदा नवाब का दिल से बहुत विश्वास करता हूं । वह अपनी युवावस्था से ही अंग्रेज समाज से बहत घुलमिल गये  है। वह खेल कूद तथा व्यायाम के बहत शौकीन है, रायफल तथा पिस्तौल से अच्छा निशाना लगाते  है और घुड़सवारी में तो दक्ष है ही।

उसके पास बड़ी अच्छी अश्व शाला है, अच्छा अमला है, चालीस हजार पौण्ड पेन्शन के रूप में पाता है तब भी उसमें निर्णय लेने तथा बुद्धिमत्ता की कमी है। वह तो अपनी बेगमों, रायफलों, घोड़ों आदि की अधिक चिन्ता रखता है । वह आराम तलब आदमियों के हाथों का खिलौना है और आम जनता के पेचीदा मामलों को सुलझाने में वह असमर्थ रहता है, इन्ही आराम तलब आदमियों को सलाह पर उसके कार्यों का दारोमदार है ।

विद्रोह के समय तो वे यह भी नहीं सोचते थे कि क्या कभी ब्रिटिश शासन पुनः स्थापित हो सकेगा । नवाब ने अपने पुराने अमलों को फिर से नौकर रख लिया, उसने सरकारी कोष से अठारह हजार रुपया मंगाकर अपने काम में लगा लिये और अब वह अपनी फौज तैयार कर रहा है तथा उसने तोपों की ढलाई शुरू कर दी है ।

आधार-
1 – राष्ट्रीय अभिलेखागार-पालीटिकल लेटर्स फ्राम कोर्ट । कोट, जुलाई से दिसम्बर 1850 , अनुक्रमांक 5 ., पत्र दिनांक 3-7-1850 पृष्ठ 433।
2 – राष्ट्रीय अभिलेखागार-कन्सलटेशन 38-73 एवं के डब्लू  दिनांक 12-6-1857 , पोलीटिकल. पश्चिमोत्तर प्रान्त सरकार की ओर से भारत सरकार के नाम पत्र संख्या 345 दिनाँक 15-5-1858 ।
3 – राष्ट्रीय अभिलेखागार- कन्सलटेशन 205  दिनांक 26-1-1858
पालीटिकल- दुर्गाप्रसाद का बयान 15-11- 1857।
4 – राष्ट्रीय अभिलेखागार-पोलीटिकल प्रोसीडिंग्ज 30-12-1856 । अनुक्रमांक 16  नवाब अलीबहादुर का कथन
5 – रिवोल्ट इन सेन्ट्रल इण्डिया पृष्ठ 175- 6
6 – राष्ट्रीय अभिलेखागार-उपरोक्त 6 अनुसार
7 – राष्ट्रीय अभिलेखागार-कन्सलटेशन 278 -6  दिनांक 16-11-1858 पोलीटिकल गवर्नर जनरल के एजेण्ट की ओर से भारत सरकार के नाम पत्र संख्या 510  दिनांक 30-10-1858 ।

बुन्देली झलक (बुन्देलखण्ड की लोक कला, संस्कृति और साहित्य)

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