Chhatrasal Mahabali Natak छत्रसाल महाबली नाटक

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महाराज छत्रसाल के जीवन के एक अंश पर आधारित Chhatrasal Mahabali Natak बताता है की वे कैसे महान बने, वे कैसे आदर्श राजा बने । जीवन संघर्ष कथा मे मानवीय भावनाओं का अलग ही महत्व होता है । एक राजा अपने प्रजा के प्रति अपने पालक पिता के प्रति कितना जिम्मेदार होता है इस  एकांकी नाटक के माध्यम से दिखाने का प्रयास किया गया है ।

                         पात्र परिचय छत्रसाल

छत्रसालबुन्देलखण्ड की मेड़ धरवे बारे पन्ना नरेश।
महाबली

बुरए दिनन में छत्रसाल को उनकी धरोहर लौटावे वारे एक वृद्ध तेली।
पैरेदार – महाराजा छत्रसाल के राजमहल कौ रक्षक द्वारपाल
नट-नटी – नाटक की भूमिका प्रस्तुत करकें नाटक खौं गति दैबे वारे सूत्रधार।
सिपाई दो – महाराज छत्रसाल के अंगरक्षक।
(नेपथ्य में संगीत की धुन बजत है, ईके सँगइ सूत्रधार (नट, नटी) मंच पै प्रवेश करत हैं, नट के हाँतन में कीर्तिध्वज औ नटीके हाँतन में फूल-माला है। दोई मंच पै पैले में ही रखे गमला के पास पौचत हैं, नट गमला में कीर्तिध्वज रुपाउत है, नटी के हाँतन सें फूल-माला लैकें ध्वज पै चढ़ाउत है। दोई जनै ध्वज खाँ औ बाद में दर्शकन खों बंदन करत हैं।)
नट – आप सबई देखवे वारन खों प्रणाम।
नटी हिन्दुअन खाँ रामराम, औ मुसलमानन खों सलाम।
नट आज को जौ नाटक आप सबई के नाम।
नटी ई नाटक के नायक छत्रसाल ते बड़े महान।
नट बे बुन्देलखण्ड की ते शान।
नटी बे हिन्दू मुसलमान सबई खों ते प्यारे।
नट उन्ने अनेक जुद्ध लरे पै कबहूँ संघर्ष में नइँ हारे।
नटी – उनके बारे में प्राणनाथ द्वारा आशीष दऔ गौ तौ कै
छत्ता तोरे राज में, धक धक धरती होय। जित जित घोड़ा मुख करे, तित तित फत्ते होय।।
नट – उनके बारे में जा लोकोक्ति मशहूर है
इत जमुना उत नर्मदा, इत चम्बल उत टोंस। छत्रसाल सों लरन की, रही न काहू होंस।।
नटी – ऐसे चम्पत के लाल की,
नाट – नटी दोई – जिनने उठाई भूषण की पालकी, आरती करें बुन्देला छत्रसाल की।

(जब नट नटी जे बातें कर रए ते, तबई मंच के छोर पै ध्वज के पास महाराज छत्रसाल कौ बड़ो छायाचित्र दो जनें आकें स्थापित करत हैं, जाके ऊपर लिखो है ‘छत्रसाल महाबली करियो सब भली भली।’ ईके संगइ नेपथ्य में महाराज छत्रसाल की आरती होबो सुरू होत है, नट-नटी ईके बोलन पै नाचत हैं) आरती-छत्ता तेरे राज में धक धक धरती होय।

‘छ’ से छाया सुजन पै करते, ‘त्र’ से त्राता हितकारी। ‘सा’ से साहस शक्ति सूरमा, ‘ल’ से लड़ी लड़ाई भारी। पन्ना तपोभूमि अति सुन्दर, छटा छबीली मनुहारी। रघुकुल तिलक भानुकुल भूषन वीर बुन्देला बलधारी। कृष्ण, मोहम्मद, देवचंद, प्राणनाथ, छत्रसाल। इन पंचन को जो भजै, काज करै तत्काल।

(आरती होबे के बाद नट-नटी मंच के छोर पै प्रणाम करत भऐ खड़े हो जात हैं, ईके साथइ नेपथ्य सें रमतूला बजत है औ उद्घोष होत है)

सावधान, सावधान ‘बुन्देलखण्ड केशरी’ छत्रसाल महाबली पधार रए हैं।

(महाराज छत्रसाल मंच पै प्रवेश करत हैं उनके संगै उनके दोऊ सिपाई हैं, महाराज आज लिखी अपनी कविता दर्शकन खों सुनाउत हैं)

लाख घटै कुल साख न छाँड़िये, वस्त्र फटै प्रभु औरइ दइहै। द्रव्य घटै घटता नहिं मानिये, दइहै न कोऊ पै लोक हँसइहै। भूप छता जल राशि को तैरबौ, कौनहुं बेर किनारे लगइहै। हिम्मत छोड़े तें किम्मत जाएगी, जाएगो काल कलंक न जइहै।

(छंद सुनाबे के बाद महाराज ऊ कागज खों मंच के किनारे जर रई ज्योति के सामने समर्पित करत हैं फिर पास खड़े सिपाइयन से कहत हैं)

छत्रसाल – आज हम अपने फौजदारन से मिलो चाहत हैं, सो व्यवस्था करी जाय।
सिपाई – हुकम महाराज कौ।

(छत्रसाल औ सिपाई मंच सें चले जात हैं। नट आगे बढ़कें स्वगत बातें करत है)
नाट – छत्रसाल महाबली करियो सब भली भली। 
नाटी – अबै तुमने कही छत्रसाल महाबली करियो सब भली भली। हमने इतै के स्यानिन के मुँह से सोउ एई सुनी, सो ईको मतलब का भओ।
नट बात तो तुमनें पते की कई औ आज हम एई को नाटक सबखाँ दिखाबे सियान जा रये।
नटी दिखावे के पैलें कछू बता देओ तो भौत अच्छी रैहे।
नट बात ऐसी है, कै अपने महाराज छत्रसाल के पिता चम्पराय औ माता लालकुँवर इनें नन्नों सो छोड़कें स्वर्ग सिधार गये ते, तबै अपने महाराज छत्रसाल ‘छत्तू राजा’ कहाउत ते, तबै इनें महाबली तेली अपने संगे लै गये।
नटी जे महाबली को आएँ?
नट – महाबली जाति के तेली ते और छत्तूराजा के नाना के गाँव के ते, जे महाराज चम्पराय के खास विश्वासपात्र ते। इनईं नें छत्रसाल महाराज खाँ उनके बुरए दिनन में, उनईं की नन्ना जू के धरे कछु गानें-गुरिया लौटा कें भारी मदद करौं एई सें छत्रसाल नें अपनों जुद्ध कौ शुभारम्भ कर पाओ तौ। जा मान लो के अगर महाबली न होते तो छत्तूराजा, महाराज छत्रसाल नइँ बन पाते।
नटी – फिर महाबली कौ का भओ?
नट ओई नाटक हम दिखाबे जा रए।
(नट-नटी प्रणाम करत भए मंच से चले जाते हैं, धीमी संगीत धुन के संगै एक बूढौ व्यक्ति (महाबली) मंच पै आउत है, चारउ तरपी देखकै प्रसन्न होत है)
महाबली – वाह छत्तूराजा तुमनें तो पूरी द्वारका बसा लई, जे सुन्दर बाग, बगीचा, महल, अटारी, भगवान के मंदिर ऐसो लगत के द्वारका में आ गये। धन्य हैं हमारे चम्पतराय और माता लालकुँवर जिननें ऐसे सपूत खों जनम दओ। आज वे स्वर्ग से देखकें कितै खुसी हो रए हुइय। (महाबली जब चीजन खौं देख मैं प्रसन्न होत हैं, एई समय पैरेदार उतै आउत)
पैरेदार – को हौ तुम? औ इतै महलन के नेंगर (पास) का कर रए?
महाबली – हमाओ नाम महाबली है, हम अपने छत्तूराजा सें मिलबे आये।
पैरेदार – कौन छत्तूराजा?
महाबली – एई तुम्हाये छत्रसाल, हमाए छत्तूराजा कहाए, हम उनके मम्मा लगत।
पैरेदार – (हँसत भए) तौ तुम महाराज के मम्मा कहाये।

महाबली – ईमें हँसबे की का बात । तुम तौ उनके पास खबर कर दो कै हम मिलबे आये।
पैरेदार – अब वे ऐंसें नइँ मिलत उनके मिलबे की बेरा होत, काल दरबार में आइयो।
महाबली – तुम उनलौ जाहिरी तौ करौ जाकें।
पैरेदार – हम उनके पास खबर नइँ भेज सकत, राजदरबार के कायदे कानून होत, तुम सकारें आइयो सो मिलवा दैवी।
महाबली – अकेलें हम रात काँ काटबी, परदेसी आदमी, हमाओ उनसे मिलबौ भौतऊ जरूरी आय। (महाबली पैरेदार से बात करत होत हैं एइ समै महाराज छत्रसाल अपने दो सिपाइयन के संगै उतै आउत हैं। महाबली की नजर उन पै परत है,तब वे पुकारत भए स्वर में प्रसन्नता सें कात।)

महाबली – अरे छत्तू राजा

(छत्रसाल अपने बचपने कौ नाँव सुनकें ठिठक जात हैं, फिर नाम लेबे वारे को पैचानबे की कोसिस करत हैं फिर जैसे पैचानों होय प्रसन्नता से आँगें बढ़त हैं)
छत्रसाल – अरे मम्मा! तुम काँ सें भूल परे?

(छत्रसाल महाबली खाँ अपनी छाती से लगाउत हैं। ऊ संकोच करत)
छत्रसाल – ऐसें नइँ मम्माँ हमें और कसकें अपनी छाती में चिपका लेव ।
(छत्रसाल कों भावविभोर होंकें हृदै सें लगा लेत हैं, उनकी आँखें भर आउतीं हैं, फिर अलग होकें आँसू पोंछत भओ कहत)
महाबली – बेटा छत्तू! हमाए कुँवर! जे आँखें तुमें देखवे के लानें तरस गईं।
छत्रसाल – हम तुमाई छाती से चिपक के सोबे के लानें तरस गए। चलो पैलाँ हाँत मौं धो लो, अपनी बहुअँन से मिल लो फिर दरबार होत रहे। (छत्रसाल महाबली के संगै चले जात हैं नट-नटी फिर आउत)
नट – महाराज छत्रसाल नें महाबली को ऐसो स्वागत सत्कार करौ, जैसें कृष्ण भगवान ने सुदामा कौ करो तो।
नटी महाराज ने करो सो करो, रानियन ने भी उनकी सेवा में कसर नइँ छोरी।
नट औ आँगें का भओ? बो दिखावे के लाने हम फिर से महाराज छत्रसाल और महाबली खों आपसे मिलवा रए। (नट, नटी मंच से जात है, छत्रसाल-महाबली औ उनके सिपाई मंच पै आउत हैं)
छत्रसाल – और मम्माँ कछू कमी तौ नइँ रै गई सेवा में। 
महाबली – नइँ बेटा छत्तू हमाई आत्मा भौतउ प्रसन्न है।
छत्रसाल – औ कौनऊँ बात मन में होय सो कैब में सँकोच नइँ करियो।
महाबली – हमनें सुनी है तुम कविताई सोउ करत, हमैं इतने दिनाँ मैलन में रत हो गये, हमें लगत है तुमाई कविता सुनिये।
छत्रसाल – लेव, नेकी और पूँछ-पूँछ । हम अबइँ सुनायें दइत।
रैयत सब राजी रहै ताजी रहै सिपाय। छत्रसाल ता राज कौ बार न बाँको जाय।।
महाबली – वाह ! का उमदा बात गई, कितनी नीति की बात है ई दोहा में। बेटा तुम जुग जुग जियो, नेकी की राह पै चलौ, प्रजा खों पालौ और देश की सेवा करौ। हमाओ ऐई कहबौ है औ बेटा भौत दिनाँ हो गये रत अब हमाओ जाबे को मन है।
छत्रसाल – ऐसें कैसें, अबै तौ हमें बोधइ नइ लगो।
महाबली – बहुत रै लओ, अब तो घर-गाँव की याद आउन लगी।
छत्रसाल – मम्मा हम जाँनियत हैं, कै आज हम जो कछू हैं आपइ की दई बिद्या के कारन, हमाओ मन है कै हम आपखों गुरुदच्छना दैकै खुद खों धन्य करें। हम सोच रए के आपखों कौनउ जागीर लगा दइ जाय।
महाबली – बेटा हम नदी किनारे के रूख कहाये, जागीर लैकै का करबी।
छत्रसाल – तो आप जौन हुकुम करौ।
महाबली – अब हमैं कछू नइँ चानें, तुमने कै दइ सो हमें सब कछु मिल गओ औ जौन फिर तुमाओ है वो सब हमाओइ तौ आय।
छत्रसाल – ऐसो नइँ मम्मा बिना गुरुदच्छना दयें हम उरिन कैसें होबी, कछू न कछू तौ कहनई परै।
महाबली – अगर जेई बात है, तो फिर ऐसो करौ के अपने नाँव के सँगे हमाओ नावं सोउ चलाव।
छत्रसाल – (कछू सोचत भए) ठीक है फिर आज से हम छत्रसाल महाबली भये। आपने तो अपनों नाँव हमै दै दओ।
महाबली – छत्रसाल महाबली की जय हो।
छत्रसाल – आप हमाए ऊपर ऐसइ प्रेम बनायें राखियो।
महाबली – छत्रसाल महाबली करियो सब भली भली।
सिपाई – छत्रसाल महाबली करियो सब भली भली
(छत्रसाल औ महाबली सिपाइयन के संगै मंच से चले जात हैं नट-नटी आउत हैं)
नटी – जैसी हमनें दिखाई, जैसी हमनें जानी।
नट- वैसें भी बे महाबली हते, बुन्देलखण्ड की शान हते।
नटी बहुत उदार हते, विद्वान हते।
नट  – आज भी हमाए बुन्देलखण्ड में किसान, व्यापारी, मजदूर सब अपनो काम शुरू करबे के पैले कात हैं ‘छत्रसाल महाबली करियो सब भली भली।’
नटी – जो आप सबई अपनो कल्यान चाउत हो, ऊँची सान चाउत हौ, तौ हमाये संगै कहौ ‘छत्रसाल महाबली करियो सब भली भली।’ (सबइ दोहरात भए नट-नटी दर्शकन खों प्रणाम कर ध्वज उठा संगीत की धुन के संगै मंच से प्रस्थान करत हैं)

आलेख – डॉ. सुरेश पराग देवेन्द्र नगर (पन्ना)

बुन्देली झलक (बुन्देलखण्ड की लोक कला, संस्कृति और साहित्य)

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