Homeबुन्देलखण्ड का शौर्यआल्हाखण्डBundi Ki Ladai- Kathanak  बूंदी की लड़ाई -कथानक

Bundi Ki Ladai- Kathanak  बूंदी की लड़ाई -कथानक

बंगाल के कामरू राज्य के बूंदीगढ़ से राजा गंगाधर राव की पुत्री कुसुमा का विवाह लाखन से करने के  लिये Bundi Ki Ladai- Kathanak हुई। महोबावाले वीरों ने गंगाधर के सारे सैनिकों को मार गिराया। फिर तो गंगाधर को कन्यादान करना पड़ा और कुसुमा को पूरे दान-दहेज के साथ विदा करवाया।

बूंदी की लड़ाई लाखन राणा का विवाह

एक दिन बंगाल के कामरू राज्य के बूंदीगढ़ से राजा गंगाधर राव की पुत्री कुसुमा का टीका लेकर राजकुमार जवाहर सिंह कन्नौज पहुँचे। इससे पूर्व दिल्ली, पथरीगढ़, बौरीगढ़ होकर आए थे। किसी राजा ने उनका टीका स्वीकार नहीं किया था। जयचंद ने भी बंगाल का नाम सुनते ही टीका लेने से इनकार कर दिया।

सभी का कारण एक ही था कि बंगाल जादू के लिए प्रसिद्ध है। जान-बूझकर मधुमक्खियों के छत्ते में कोई हाथ नहीं देना चाहता। राजा जयचंद ने इनकार किया तो ऊदल ने कहा, “टीका आया है। लाखन सुंदर है, जवान है, कुँवारा है, फिर टीका स्वीकार न करना हमारी राजपूती शान का अपमान है।”

जयचंद ने कहा, “ऊदल यदि अपने बल पर चाहे तो टीका स्वीकार कर ले।” ऊदल ने लाखन का टीका स्वीकार कर लिया। पंडित को बुलवाकर टीका चढ़ा दिया गया। महलों में मंगलाचार होने लगे। विवाह फाल्गुन में होना तय करके जवाहर सिंह लौट गए। निश्चित किया गया समय जल्दी ही बीत जाता है।

फाल्गुन की शिव त्रयोदशी का मुहूर्त निकला था। अपने व्यवहारी राजाओं की बरात लेकर आल्हा बूंदी जा पहुँचे। बूंदी के राजा गंगाधर को सूचना देने के लिए ऐपन वारी (ब्याह की पीली चिट्ठी) लेकर रूपन को भेजा गया। गंगाधर के दरबार में पहुँचकर रूपन ने पत्र सौंपा और अपना नेग माँगा।

उसका नेग ही था तलवारबाजी। दरबार के बत्तीस क्षत्रियों को घंटों तलवार चलाकर मौत के घाट उतार दिया। राजा गंगाधर डर गए। उन्होंने बल के मुकाबले छल को प्रबल माना। अपने दोनों पुत्रों (जवाहर सिंह तथा मोती सिंह) को भेजकर अकेले लाखन को ही मंडप में भेजने को कहा, वह भी बिना शस्त्रों के।

आल्हा ने कहा, “हमारा रिवाज है कि अकेला दूल्हा कहीं नहीं जाता, अतः उसके साथ एक नेगी अवश्य जाएगा।” आल्हा ने नेगी की जगह ऊदल को भेज दिया। महल के द्वार पर पहुँचकर राजकुमारों ने कहा, “मंडप में शस्त्र लेकर प्रवेश नहीं कर सकते।

” अतः उनके शस्त्र उतरवाकर रख लिये। मंडप में पहुँचकर पूजन कराने के स्थान पर दोनों भाइयों (जवाहर और मोती सिंह) ने तलवारें खींच लीं, अंदर और भी क्षत्रिय छिपे थे, सब इन दोनों निहत्थे वीरों पर टूट पड़े। दोनों ने निहत्थे ही बहुत देर तक मुकाबला किया। थाली, लोटा आदि से ही अपना बचाव और वार किया। फिर धोखे से ही दोनों को बाँध लिया गया। बाँधकर खंदक (गहरी खाई) में फेंक दिया गया।

यह सूचना राजकुमारी कुसुमा को मिली तो उसे अच्छा नहीं लगा। वह रेशम की डोरी लेकर आधी रात को गई। उन्हें निकालने के लिए डोरी लटकाई तथा भोजन भी करने का आग्रह किया। ऊदल ने कुसुमा को समझाया कि हम चोरी से निकलने के पक्ष में नहीं। यह हमारी शान के विरुद्ध है। यदि तुम कुछ कर सकती हो तो यह सूचना आल्हा के पास पहुँचा दो।

कुसुमा ने सवेरा होते ही पत्र लिखकर फूलों की डलिया में छिपाकर अपनी मालिन के द्वारा आल्हा के पास भेज दिया। मालिन पूछताछ करके आल्हा के तंबू में पहुँची। पत्र पढ़कर आल्हा ने उसे पुरस्कार दिया और कुसुमा को भरोसा रखने का आश्वासन दिया।

आल्हा ने सभी सैनिकों को तुरंत रण के लिए तैयार होने का आदेश दिया। हाथी चढ़नेवाले अपने हाथियों पर चढ़ गए। कुछ घोड़ों पर सवार हो गए। सबने अपने-अपने हथियार सँभाल लिये। उधर जवाहर सिंह और मोती सिंह ने भी अपनी सेना को तैयार कर लिया। जल्दी ही दोनों सेनाएँ आमने-सामने पहुंच गई। आल्हा ने मोती से कहा कि तुमने गंगाजली कसम खाने के बाद भी धोखा किया। अब मैं बूंदी को तहस-नहस कर दूंगा।

मोती सिंह ने बातों का जवाब तोपों के गोले दागकर दिया। आल्हा ने भी तोपों के जवाब में तोपें चलवा दीं। लग रहा था गोले नहीं, ओले बरस रहे थे। गोलियाँ ऐसे चल रही थीं, जैसे वर्षा की मोटी बूंदें। गोले-गोलियों के बाद भाले और तलवारें चलीं। लाशें गिरने लगीं; खून की नदियाँ बहने लगीं, तब आल्हा ने जाकर भगवती अंबिका का यज्ञ किया।

भगवती से यह प्रार्थना की कि आज हम पर मुसीबत पड़ी है। यदि लाखन का ब्याह नहीं करवा पाए तो जग में हँसाई होगी। देवी की आभा ने कहा, “सिरसा से मलखान को बुलवाओ तथा महोबे से ब्रह्मानंद को बुलवा लो। उन दोनों के आने पर ही लाखन का विवाह होगा।”

देवी के आदेशानुसार आल्हा ने मलखान और ब्रह्मानंद को पत्र लिखे और एक तेज गतिवाले धामन को रवाना कर दिया। धामन महोबे पहुँचा और ब्रह्मानंद को पत्र दिया तो पत्र पढ़कर उसकी प्रतिक्रिया यही थी कि जब तो माता मल्हना ने इतना प्रयास किया, पर आल्हा रुके नहीं, अब मैं भी क्यों जाऊँ? धामन (पत्रवाहक) फिर सिरसा गया। मलखान को पत्र मिला तो उसका भी मन दुःखी हुआ। उसने भी यही सोचा कि तब तो हमारी बात मानी नहीं, महोबे से निकले थे तो सिरसा में रह जाते। अब भुगतो अकेले ही।

तभी मलखान की पत्नी गजमोतिन आ गई। मलखान ने जब उसे बताया कि पत्र आया है। ऊदल और लाखन दोनों बंदी बनाकर खंदक में डाल दिए हैं। आल्हा की सेना भी मर-कट गई है। उन्होंने सहायता के लिए बुलाया है। तब रानी गजमोतिन ने कहा, “सोचने का समय नहीं है। आप बिना एक पल की देर किए तुरंत जाओ।

रानी ने याद दिलाया कि जब तुम भी खंदक में पड़े थे, तो ऊदल ने ही तुम्हारी जान बचाई थी। जरा सी देर के कारण ऊदल मारे गए तो सारी जिंदगी पछताते रहोगे।” गजमोतिन रानी की बात मलखान की समझ में आ गई और अपनी फौज को तैयार होने का आदेश दिया।

सिरसा से चला तो महोबा पहुँचा। उसने यही बातें ब्रह्मानंद को समझाई तो उसने भी बूंदी जाने की तैयारी कर ली। दोनों माता मल्हना का आशीर्वाद लेने पहुँचे। माता ने दोनों को विजय का आशीर्वाद देकर विदा किया। उधर आल्हा ने ढेवा से विचार-विमर्श किया कि सेना का तीन चौथाई भाग समाप्त हो गया।

एक चौथाई को भी कटवा दें और यहीं हम भी खप जाएँ। दूसरा विकल्प है कि लौट जाएँ तथा फिर नई कुमुक लाकर आक्रमण करें। मलखान और ब्रह्मानंद तो आए नहीं। फिर यही तय हुआ कि लौट ही चलें। अतः सेना को वापसी रुख करने का आदेश दे दिया।

थोड़ी ही दूर चले तो उधर से बड़ी भारी सेना को आता देखा। आल्हा ने ढेवा को आक्रमण का आदेश दिया ही था, तभी किसी ने मलखान के पहुंचने की सूचना दी। ढेवा ने तुरंत आदेश रुकवाया और आल्हा को सूचित किया। फिर थोड़ी ही देर बाद ब्रह्मा और मलखान पहुँच गए। दोनों ने आल्हा को प्रणाम किया। आल्हा ने दोनों को गले लगाया। अब युद्ध की नीति इस प्रकार बनाई गई।

बूंदी पर उत्तर की ओर से ढेवा को आक्रमण के लिए मोरचा लगाने को कहा। जब बूंदी की फौजें आगे बढ़े तो आप धीरे-धीरे पीछे हटते जाना। उधर दक्षिण से मलखान की फौज आगे बढ़ेगी। इसी युद्ध नीति से काम लिया। बूंदी के जवाहर सिंह और मोती सिंह दोनों भाई उत्तर की ओर युद्ध को निकले। युद्ध शुरू हो गया था।

तय नीति के अनुसार ढेवा ने अपनी सेना पीछे हटाई तो बूंदी की फौजें आगे बढ़ गई। दूसरी ओर दक्षिणी फाटक को मलखान ने तोपों की मार से तोड़ दिया और किले में प्रवेश कर गए। रंगमहल से रानी आई तो बोली, “महिला पर वार मत करना।”

मलखान ने भी कहा, “आप मेरी माता हैं। आपको मैं कोई नुकसान नहीं पहुंचा सकता। आप केवल यह बतला दो कि ऊदल और लाखन कहाँ कैद हैं?” रानी ने बता दिया कि महल के नीचे ही एक खंदक है, उसी में दोनों पड़े हैं, उन्हें जल्दी निकाल लो। मलखान ने वहाँ पहुँचकर सभी पहरेदारों को मार गिराया।

ऊदल से बोले, “भैया निकल आओ। मैं और ब्रह्मानंद महोबा से आ गए हैं।” ऊदल ने देखा, शरीर बँधा है और घायल है, बाहर कैसे आएँ? मलखान ने अपने विवाह की याद दिलाई और ऊदल को अपना बल याद दिलाया। तब ऊदल ने जोर लगाया और बंधन तोड़कर बाहर आ गए।

ऊदल ने ब्रह्मानंद को प्रणाम किया। फिर चारों गले मिले। लाखन काशरीर बहुत घायल था, अतः पालकी में दोनों को (ऊदल और लाखन) बिठाकर डेरे के लिए रवाना कर दिया। वहाँ दोनों की मलहम-पट्टी कर दी गई। अब पश्चिम से सैयद और पूरब से ब्रह्मानंद ने आक्रमण किया। मलखान तो दक्षिण से भीतर घुस ही चुके थे। बूंदी को चारों दिशाओं से घेर लिया।

ब्रह्मानंद के सामने मोती सिंह पहुँचा। मोती सिंह ने तीर चलाया, ब्रह्मा बचा गया। फिर मोती ने तलवार का वार किया। ब्रह्मा ने ढाल अड़ा दी। मोती की तलवार टूट गई। ब्रह्मा ने आगे बढ़कर मोती को गिराया और बंदी बना लिया। जवाहर ने मोती को बंधन में देखा तो आगे बढ़कर ब्रह्मा पर वार कर दिया। तभी मलखान बीच में आ गए। जवाहर ने मलखान पर तलवार का वार किया। ढाल अड़ाकर उसने रोकी तो तलवार की मठ हाथ में रह गई। मलखान ने ढाल की मार से गिराकर जवाहर सिंह को बंदी बना लिया।

दोनों बेटे भी बंदी बना लिये गए तो गंगाधर राजा ने हाथी आगे बढ़ाया। अब वह मलखान पर जादू चलाने लगा। जादू मलखान पर कोई असर नहीं कर रहा था, तब मलखान ने स्वयं कहा, “पुष्य नक्षत्र में जन्मा हूँ, मेरी कुंडली में बारहवें घर पर बृहस्पति है, जादू मुझ पर असर नहीं करता।”

फिर मलखान ने आल्हा से कहा कि राजा गंगाधर से तुम भिड़ जाओ। आल्हा ने अपना हाथी बढ़ाया और गंगाधर को ललकारा। गंगाधर ने भाला मारा, आल्हा ने दाएँ हटकर चोट बचा ली। फिर गंगाधर ने आल्हा के हौदे की रस्सी काट दी, पर आल्हा गिरने से बच गए। अब आल्हा ने गंगाधर को बाँध लिया।

गंगाधर ने तब खुशामद करते हुए कहा, “महोबेवाले बनाफर सब वीर हैं, तुम्हारा कोई मुकाबला नहीं। अब मेरे दोनों लड़कों को रिहा कर दो, मैं अभी अपनी पुत्री की भाँवर डलवा दूंगा।” गंगाधर की बात मानकर वीर मलखान ने दोनों मोती और जवाहर को छोड़ दिया।

गंगाधर को भी आजाद कर दिया। गंगाधर ने पंडित को बुलवाकर मंडप में चौक पुरवाया। मोती- जवाहर बेटों को बुलाकर कहा कि कमरों में शूरवीर बुलाकर छिपा दो। फिर महोबावालों को बुलवा लो। जैसे ही आ जाएँ, दरवाजे बंद करके सबके सिर कटवा दो।

मोती ने जाकर बरात में राजा जयचंद से मुलाकात की और घर-घर के लोगों को मंडप में चलने को कहा। वहाँ सब तैयारी हो चुकी थी। लाखन के पास कुसुमा को भी बिठा दिया। पंडित ने गौरी-गणेश पुजवाए। अचानक गंगाधर ने कोई संकेत किया और छिपे सैनिक निकल आए।

चारों ओर से मारा-मारी होने लगी। महोबावाले वीरों ने सारे सैनिकों को मार गिराया। फिर तो गंगाधर को कन्यादान करना पड़ा। विधिवत् भाँवर पड़ गई, पर विदा तो हम साल बाद करेंगे, परंतु रानी ने आग्रह कर के कुसुमा को पूरे दान-दहेज के साथ विदा करवाया।

इसके पश्चात् भोजन करवाकर लाखन को मोहनमाला पहनाकर विदा कर दिया। बरात डोला लेकर चली और कन्नौज पहुँची। महलों में समाचार भेज दिया। स्वागत की तैयारियाँ पहले ही हो गई। मंगलगान होने लगे। रानी तिलका ने आरता करके लाखन और कुसुमा का स्वागत किया। ब्रह्मा और मलखान विदा लेकर महोबा और सिरसा को चले गए। आल्हा, ऊदल और ढेवा अपनी नगरी को चले गए। इस प्रकार लाखन राणा का विवाह लाखों में एक ही हुआ।

 

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