पथरीकोट के राजा ज्वाला सिंह महोबे की रानी सुनवां को जादू से उठवा लेता है और उसे अपनी रानी बनाना चाहता था फिर महोबे वालों ने आक्र्मण किया Pathrikot ki Ladai जीत ली।
कभी-कभी बड़े भी बच्चों की तरह हठ पकड़ लेते हैं। रानी सुनवां ने जिद ही पकड़ ली कि कन्नौज के बाग लखेरा में ही झूलने जाना है। सास-ससुर और पति के मना करने पर भी नहीं मानी। सासू दिवला ने ऊदल से कहा, परंतु वह पहले इंदल के अपहरण में ही भारी परेशान हुआ था, अतः वह भी तैयार नहीं हुआ। ताला सैयद आल्हा के पिता का साथी था। वह तैयार हो गया और रानी सुनवां को बाग लखेरा में झूला झुलाने ले गया।
वहाँ पथरिया कोट का राजा ज्वाला सिंह भी आया हुआ था। उसने रानी सुनवां के शरीर की चमक देखी तो हैरान हो गया; जाकर उसने विवाह का प्रस्ताव रखा। रानी ने बताया कि न वह कुँआरी है और न किसी कमजोर गरीब की पत्नी। मेरे पति आल्हा को पता चला तो तेरी खाल में भुस भरवा देंगे। ज्वाला सिंह ने जादू की पुडिया भी फेंकी, परंतु सुनवां स्वयं जादू की माहिर थी। तब ताला सैयद वहाँ आ पहुँचा। ज्वाला सिंह तुरंत गायब हो गया।
अपने पथरीकोट में जाकर वह उदास होकर बिस्तर पर पड़ गया। किसी को कुछ नहीं बतलाया, पर मठ में चंडी की पूजा की, हवन किया तथा अपनी बलि देने को कटार निकाल ली। चंडी माता ने पूछा तो उसने बताया कि मुझे सुनवां किसी भी तरह अपने घर लानी है। देवी ने काम पूर्ण होने का भरोसा दिया। आधी रात को देवी अपने गणों के साथ गई और रानी सुनवां को पलंग सहित उठवा लाई। प्रात:काल महलों में तलाश मची। कहीं खोज-खबर नहीं लगी तो ऊदल को भेजा गया। छह महीने तक उसने भी सब उपाय किए, परंतु पता नहीं चला।
उधर रानी की जब आँख खुली तो वह अपने को अनजान जगह में पाकर दुःखी हुई। तभी ज्वाला सिंह की बेटी सुआपंखिनी जल का लोटा लेकर आई। सुनवां को समझाने लगी। आप बिल्कुल चिंता न करें। जैसे आल्हा महोबावाले, ऐसे ही ज्वाला सिंह पथरीकोटवाले। रानी सुनवां ने उसे डाँटकर भगाया और कहा, मैं तुझे ही अपने बेटे के लिए ब्याहकर ले जाऊँगी। ज्वाला सिंह रानी सुनवां के पास आया तो रानी ने खूब खरी-खोटी सुनाई। फिर कहा कि सात महीने तक मेरा तुम्हारा नाता बहन-भाई का रहेगा। अगर सात मास तक मैं आजाद नहीं हो सकी तो मैं तुम्हें स्वामी स्वीकार कर लूँगी।
राजा को लगा पता लगने का या आजाद होने का तो सवाल ही नहीं उठता, अतः शर्त मान ली। बाँदी ने सलाह दी, रानी के पास चार गिद्धनी रहती थीं। उनको भेजकर ही खोज करवा सकती हैं। गिद्धनी चारों दिशाओं में भेज दी गई। एक गिद्धनी की दृष्टि में रानी आ गई और उसने आल्हा को जाकर सारी घटना बताई कि कैसे देवी उसे उठाकर ले गई, परंतु आल्हा ने कहा, “चलो ठीक हुआ। मेरी ओर से रानी मर चुकी। उसके लिए मैं अपने सैनिकों को क्यों मरवाऊँ?”
ऊदल ने आल्हा को कहा, “यह महोबा की इज्जत का सवाल है। सुनवां स्वयं तो नहीं गई, देवी लेकर गई। हमें हर कुर्बानी देकर भाभी को लाना ही होगा।” ताल्हन सैयद के समझाने के बाद आल्हा ने फौज को तैयार होने को कहा और मित्र राजाओं को बुलाने को पत्र भेज दिए। अंततः पथरीकोट पर महोबेवाले चढ़ आए। आल्हा ने ज्वाला सिंह को संदेश भेजा कि रानी सुनवां को डोला सहित हमारे पास भेज दो, नहीं तो ईट-से-ईंट बजा दी जाएगी।
ज्वाला सिंह ने बड़े पुत्र हाथीराम को आक्रमण करने भेज दिया। तोप चलीं, बंदूकें चलीं और फिर तलवारें चलीं। ज्वाला सिंह की फौजें लगातार कट-कटकर गिरने लगीं। ऊदल और इंदल ने भारी मार मचाई। ज्वाला सिंह फिर देवी के मठ में जाकर रोया। चंडी ने जादू की पुडिया दे दी और महोबा के बनाफर सब पत्थर बना दिए। इंदल बचकर कन्नौज पहुँच गया और बाकी सब पत्थर बन गए।
कन्नौजी जयचंद और लाखन बनाफरों के घरों पर जबरन कब्जा करने लगे। इंदल ने जाकर मलखे को सूचित किया। मलखान अपनी विशाल सेना लेकर आया। लाखन और जयचंद को ललकारा। दोनों ने मलखान का लोहा माना। मलखे फिर अमर गुरु के पास गए। मलखान तीन दिन तक एक पाँव पर खड़ा रहा और अपना सिर काटने के लिए तैयार हो गया तो गुरु अमरनाथ ने कारण पूछा। मलखे ने सारी बात बताई। उन्होंने चंडी को प्रसन्न करने को कहा, साथ ही गुरु अमरनाथ ने अपनी सारी विद्या मलखान को दे दी। मलखान ने गुरु अमर की विद्या से जादू फेंके और सब, जो पत्थर हो गए थे, जीवित हो गए। हाथी, घोड़े, मनुष्य सब जीवित हो गए।
उसी समय चंडी भी वहाँ पहुँच गई और ज्वाला सिंह से पुत्र सूबेसिंह की बलि माँगी। राजा ने कहा, “माते! सौ-दो सौ बकरे, घोड़े, हाथी की बलि ले लो, परंतु पुत्र की बलि नहीं दे सकूँगा।” चंडी कुपित हो गई और चली गई। फिर मलखान ने चंडी का स्मरण किया। चंडी बोली, ज्वाला सिंह ने वादा करके भेंट नहीं दी। अब मैं पहले भेंट लूँगी, तब कार्य करूँगी। इंदल से कहा कि तुम अपनी भेंट दे दो। इंदल तुरंत ही तैयार हो गया। इसे उसने अपना सौभाग्य माना कि अपने परिवार तथा राज्य के लिए उसकी भेंट देवी ने स्वीकार की है।
इंदल पूजा करके भेंट देने के लिए तलवार निकालकर खड़ा हो गया। ज्यों ही तलवार चलाई, माता ने हाथ पकड़ लिया और कार्यसिद्ध होने का वरदान दिया। मलखान ने ज्वालासिंह को पत्र लिखा। अब भी युद्ध करना चाहो तो मैदान में आ जाओ। ज्वालासिंह की फौज एक बार फिर युद्ध करने आ गई। दोनों बेटों सहित ज्वालासिंह रण में भिड़ गया। उसके सब सैनिक खप गए। चाचा ताल्हन सैयद, आल्हा, ऊदल, ढेवा, इंदल सब मलखान के साथ खड़े दिखाई दिए।
ज्वालासिंह की सेना भाग खड़ी हुई। तब राजा ज्वालासिंह ने हाथ जोड़कर क्षमा-याचना की और माना कि बनाफरों का कोई मुकाबला नहीं। राजा और उसके दोनों बेटे हाथीराम और सूबेसिंह को कैद से मुक्त कर दिया। एक डोला रानी सुनवां का तथा दूसरा अपनी पुत्री सुआपंखिनी का आल्हा को सौंप दिया। महोबे जाकर इंदल का सुआपंखिनी से विधिवत् विवाह किया गया।