Indal Ka Vivah- Kathanak इंदल का विवाह- कथानक  

Photo of author

By admin

उन दिनों राजाओं में बिना युद्ध के बेटी ब्याहना कमजोरी मानी जाती थी, जबकि हारकर विवाह करने में वे अपनी मान-प्रतिष्ठा समझते थे। Indal Ka Vivah के पहले भीषण लडाई हुई जिसमे राजा अभिनंदन की हार हुई। इंदल की बरात भी बलख पहुँच गई तो सूचना के लिए फिर रूपन वारी को भेजा। जैसा कि उनका रिवाज ही था। रूपन को दरबार में बैठे सात भाइयों ने घेर लिया। उसने भी घंटों तलवार चलाई और सबको चकमा देकर अपने डेरे में वापस आ गया।

इधर राजा

अभिनंदन ने अपने सातों पुत्रों को आदेश दिया कि बरात के डेरे पर आक्रमण करो। हथियार और माल सब लूट लो। सातों ने फौज तैयार कर ली। उधर मलखान भी सावधान था। उसने भी सेना को युद्ध के लिए तैयार कर लिया। दोनों तरफ से तोपें चलने लगीं। धड़ाधड़ गोले बरस रहे थे। हाथी, घोड़े और पैदल गोले के प्रहार से गिर रहे थे। हाथी के गोला लगता तो चिंघाड़ता हुआ भागता। घोड़ा चारों पैरों से वहीं बैठ जाता और पैदल सैनिक के तो चीथड़े उड़ जाते।

आखिर दोनों सेनाएँ आमने-सामने आ गईं, फिर तो भयंकर तलवारें चलीं। हजारों सैनिकों की लाशें रणभूमि में बिछ गई। अभिनंदन के सैनिक जान बचाकर भागने लगे। तब अभिनंदन मलखान के सामने आकर बोले, “क्या इरादा है तुम्हारा, हमारे राज्य पर क्यों आक्रमण किया?” तब मलखान ने राजा अभिनंदन को चित्रलेखा द्वारा इंदल को तोता बनाने की घटना सुनाई। फिर कहा, “बरात तो तुम्हारी बेटी ने बुलाई है। हम इंदल की भाँवर डाले बिना यहाँ से नहीं जाएँगे।” यह सुनकर अभिनंदन ने अपने सातों बेटे बुला लिये और मलखान से जोरदार युद्ध होने लगा।

मलखान ने तभी रूपना वारी को ऊदल को बुलाने भेजा। रूपन बिना विलंब किए ऊदल के पास पहुंचे। ऊदल तो प्रतीक्षा ही कर रहा था, साथ में मकरंदी भी चला। अपनी सेना लेकर तुरंत पहुँचे, किंतु पहले मठिया में देवी की पूजा करके आशीर्वाद लेना नहीं भूले। मकरंद, कांतामल और ऊदल ने रणक्षेत्र में पहुँचकर भारी मार मचाई। आल्हा ने कहा, “यह वीर तो बहुत तेज है।” तब मलखान ने बताया, “दादा! तुम्हारी नजर धोखा खा रही है। ऊदल को पहचान नहीं रहे?” तब आल्हा ने तीर-कमान छोड़कर ऊदल को छाती से लगा लिया।

तब ऊदल ने कहा, “तुम्हारी बुद्धि को क्या हो गया था, जो मेरा विश्वास नहीं किया।” आल्हा बोले, “मामा माहिल ने गंगाजी की कसम खाकर कहा था कि मेरे सामने ऊदल ने इंदल का सिर काटा था।” आल्हा ने अपनी गलती पर बहुत पछतावा किया तथा कहा कि उरई में जाकर माहिल को इस झूठ की सजा देंगे। ऊदल फिर अपने वैदुल घोड़े पर सवार हुआ तथा भारी तलवार चलाई।

अभिनंदन के पुत्र हंसामनि पर वार करना ही चाहता था, तब तक मलखान से कहा, “हंसामनि को मारना मत। यह चित्रलेखा का भाई है।” ऊदल ने उसे हौदे से गिराकर बंदी बना लिया। फिर मोहन, सुक्खा आदि सातों बेटे ज्यों ही आगे आए, त्यों ही बाँध लिये गए।

अभिनंदन ने अपना हाथी आगे बढ़ाया तो चौंडा पंडित उससे भिड़ गया। अभिनंदन ने चोट बचा ली। तभी मकरंदी ने अपना घोड़ा आगे अड़ा दिया। ऊदल और ढेवा भी साथ आ गए। आल्हा और मलखान भी वहीं आ डटे। अभिनंदन और आल्हा, दोनों के पास पहुंच गए। आल्हा ने तब पंचशावद हाथी की जंजीर खोलकर सूंड़ में पकड़ा दी।

हाथी ने जब जंजीर घुमाई तो अभिनंदन के सिपाही भागने लगे। जो जंजीर की चपेट में आ जाता, वह तो जीवित बच ही नहीं पाता था। हाथी ने हौदे को गिरा दिया और अभिनंदन को भी आल्हा ने बंदी बना लिया। सातों बेटे बाँधे जा चुके थे, जैसे ही राजा अभिनंदन बंधन में आए, रूपन ने जीत का डंका बजवा दिया।

आल्हा ने इंदल को बुलवा लिया। पंडित चूड़ामणि को भी बुलवाया और विवाह के लिए शुभ घड़ी दिखवाई। पंडित चूड़ामणि ने पंचांग खोलकर बताया कि इस समय शुभ मुहूर्त चल रहा है, जल्दी भाँवर डलवा लेनी चाहिए। आल्हा ने चारों नेगी और सब परिवारीजनों को बुलवाया। राजमहल में भाँवर की तैयारी का समाचार भिजवा दिया। राजा अभिनंदन ने कहा, “आप सब प्रकार से योग्य हैं। मेरी और सातों बेटों की कैद से रिहाई करवा दें तो हम ब्याह का कार्य खुशी से पूर्ण करेंगे।” ऊदल ने सभी को छुड़वा दिया।

पंडित ने मंडप छवाया और वेदी रचाई। विधि-विधान से फेरे डलवाए गए। राजा ने कन्यादान किया। ऊदल ने सभी नेगियों तथा पंडित को दक्षिणा दी। फिर बेटी विदा करने की बात, माता ने चित्रलेखा को गले मिलकर विदा किया। सखियाँ भी गले मिलीं। पालकी में बहू जैसे ही बैठी, ऊदल ने 12 तोले सोने के मोतियोंवाले हार को तोड़कर लुटा दिया। बरात विदा होकर चल पड़ी।

पहले झुन्नागढ़ रुके, फिर महोबे के लिए चले। महोबे में रूपन से सूचना पाकर सब तैयारियाँ पहले ही कर ली गई थीं। रानी मल्हना ने नवेली बहू का स्वागत किया। दिवला और तिलवा के भी दोनों दूल्हा-दुलहन ने चरण स्पर्श किए। रानी सुनवां ने अपने बहू-बेटों का स्वागत करके दान-दक्षिणा जी भरकर बाँटी। घर-घर में मंगलाचार होने लगे। इंदल का ब्याह संपन्न हुआ। आल्हा-ऊदल पुनः प्रेम से रहने लगे।

Leave a Comment

error: Content is protected !!