Homeकविता संग्रहkai Jab Tumauren Ne Bhayete कै जब तुमौरें नें भयेते

kai Jab Tumauren Ne Bhayete कै जब तुमौरें नें भयेते

हमाये बब्बा हमौंरों सें
बताउत रयेते
कै जब तुमौरें नें भयेते
kai Jab Tumauren Ne Bhayete
भडया घरों के घुआदार
किबरा टारकें घुस गयेते
उखरी- मूसर- जांते -कुनैता
घिनौची पै रखी गुन्ड-गड़ई
अरगनी पै टंगै उन्ना
उठा लै गयेते
कुठिया-बन्डा -खौंडिया
मिटा गयेते
मदुलिया- डहरिया -परछिया
फोर गयते

सिटबट्टा खां पता नैंयां
कै जगां सें टोर गयते
छट्टा की चंदो छोर लै गयेते
थान पेसे  
मरे से पडेरू सार में छोड़ गयेते
जब तुमौरें नें भयेते

मंझले कक्का खां बांध गयते मठ-भंमना सें
डुकरिया के तिदांने खां
कई दिना सें चक्कर दयेंते
पौंर में परी बिन्दो फुगा के कनफूल-टोड़ल
सोऊत में मस्कईं उतार लयेते

जाड़े के दिनों में बड़ेदा
हार में बसबे खौं चले गयते
हम तौ कौंड़े पै बैठे कौंड़े की आगी तापत रयेते
बे तौ का पता कै दिना के
बज्जुर के भुकयाने रयते,
सो जुन्डी की रोटी
चनों की भाजी
अरिया में रखी
तसलिया की कड़ी,
सींके पे टंगी हड़िया कौ
महेरो खा गयेते
जब तुमौरें नें भयेते

हमरे बब्बा हमसें कत्ते
पेलऊं के ऐंसे नें रत्ते
जित्ती कत्ते सांची कत्ते
इत्ती लबरी नें बोलत्ते
जबै अंगीठी-कौड़ै -कंड़ा
घर-घर में सिलगत्ते
अधरत्ता लौ किसा सुनत्ते
सुगा-परेबा-गौरैया से
एक डार बैठत्ते
हमरे बब्बा हमसें कत्ते

हरों सें खेती जबै करत्ते
बखरों सें बखरत्ते
काकुन-कमनी कुदवा-कुटकी
मोटे अन्न बिबत्ते
कुदई खब्बत्ती, मठा पिब्बत्ते
सौ-सौ साल जियत्ते
देशी अन्न -हवा -पानी सें
बूढ़े ज्वान लगत्ते    
हमरे बब्बा हमसें कत्ते

सेंमी सूरन -कुम्हड़ा- सकला
धीमी आंच चुरत्ते
आलू -भटा- टमाटर -भेड़ा
कंड़ो के अगरों भरत्ते 
धनियां- मिर्ची खड़े मशाले
सिलबट्टों सें जबै बट्टत्ते
सौंधे स्वाद लगत्ते
जबै हतै ने पिसे मशाले
चाऊमीन-पिज्जा उर डोंसा
आंतों खौं नें जबै डसत्ते ?
हमरे बब्बा हमसें कत्ते

जेठ़मास की तपीं दुपरियां
कांस-कसौरीं जे फरकत्ते
सन -सुतरी ऊर सूत- अमारी
ढेरों सें ढेरत्ते
नहना- गिरमा -सींके -चकवा
इनसें जबै बनत्ते
खटियन में खटखल बिलमत्ते
चीलर ख़ूब फरत्ते
हमरे बब्बा हमसें कत्ते

भडया जैंसई अबै घुसत सो ?
भड़या ऊंसई जबै घुसत्ते!
अब के सांकर -कुन्दा टोरत
तब के घुगा- दार टारत्ते !!
बन्दूकें नें हती जबै सो
दोई- हथ्थौगल लट्ठ पुजत्ते
हमरे बब्बा हमसें कत्ते
kai Jab Tumauren Ne Bhayete

             आलेख -गणेश राय दमोह

ऊंट बिलाईया ले गई 

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