आधी रात के सन्नाटे में Sone Ki Chidiya आती है और सोने का शरीफा ले जाती है । सोने की चिड़िया कहाँ से आती है ? एक राजा था जिसे बगीचे का बड़ा शौक था। वह दूर-दूर देशों से अच्छे -अच्छे फल-फूलों के पौधे मंगाकर अपने बगीचे में लगवाता था। उसके बाग में एक सोने के सीताफल का पेड़ था। इस पेड़ के पौधों को उसने लाखों रूपया खर्च करके सिंहलद्वीप की रानी पद्मिनी के बाग से मंगवाया था।
उसमें एक पेढ में सोने के सीताफल फला करते थे। जब उसके फलने का मौसम आता, तब राजा बगीचे में सख्त पहरा बैठा देता और बाग का माली भी खूब सावधानी रखता। परन्तु जब फल पकने लगते, तब फलों की चोरी शुरू हो जाती और एक-एक फल रोज रात को कोई आकर ले जाता। राजा बड़ा हैरान था। उसने बाग के माली को बुलाकर और कड़ा पहरा रखने के लिये कहा। इतने पर भी जब फलों की चोरी नहीं रुकी, तब उसने शहर में मुनादी पिटवा दी कि जो कोई चोर को पकड़ेगा उसे बहुत-सा इनाम दिया जायेगा।
पहले दिन बड़े राजकुमार ने बाग की रखवाली करने के लिये राजा से आज्ञा मांगी। राजा ने आज्ञा दे दी। राजकुमार बड़ी शान के साथ बगीचे में पहुँचा और हाथ में नंगी तलवार लेकर टहलने लगा। जब रात कुछ अधिक हुई, तब वह थोड़ा आराम करने के लिये पलंग पर लेट गया। लेटा कि उसे नींद आ गई और सबेरा हो गया। जब उसने उठकर देखा तो मालूम हुआ कि एक फल चोरी चला गया है।
राजकुमार अपना-सा मुँह लेकर घर लौट आया। अगले दिन दूसरा राजकुमार बाग की रखवाली के लिये गया। वह भी अपने बड़े भाई से कुछ कम न था। बाग में जाकर गांजे की दम लगाई और रात भर नशे में मस्त पड़े रहे। हर रात की तरह आज भी एक फल चोरी चला गया। तीसरे दिन तीसरे भाई को भी बाग की रखवाली की इच्छा हुई, परन्तु उसकी भी वही गति हुई।
चौथे दिन राजकुमार ने पिता के पास जाकर बाग की रखवाली की आज्ञा मांगी। राजा ने कहा-‘बड़ों-बड़ों की करतूत तो देख ली। तुम विचारे क्या कर सकोगे!’ कुमार ने नम्रता के साथ कहा-‘पिताजी, मुझे भी तो एक दिन का अवसर दीजिये। मैं भी प्रयत्न कर देखूँ। राजा ने आज्ञा दे दी। राजकुमार खुश हुआ। वह दिन भर सोता रहा और रात होते ही तीर-कमान हाथ में लेकर बाग में जा पहुँचा और सावधानी के साथ रखवाली करने लगा।
आधी रात के बाद उसे कुछ आहट सुनाई दी। उसने सीताफल के झाड़ की ओर ज्यों ही अपनी नजर डाली, तो क्या देखता है कि एक बहुत सुन्दर सोने का पक्षी सीताफल की डाल पर बैठा अपनी सोने की चोंच से फल तोड़ने की कोशिश कर रहा है। राजकुमार ने झट ताक कर एक तीर मारा।
उस तीर से पक्षी को तो चोट नहीं लगी, पर उसका एक पंख टूटकर नीचे आ गिरा। पक्षी उड़ गया। राजकुमार ने सबेरे वह पंख राजा के सामने रखकर रात का सब हाल कह सुनाया। उस पंख को देखकर सबको बड़ा आश्चर्य हुआ। मन्त्रियों ने पंख की जांच करके कहा-‘महाराज, इस एक पंख की लाखों कीमत है। यदि पूरा पक्षी मिल जाय तो वह राज्य की सबसे कीमती चीज होगी।’
तब राजा ने ऐलान किया-‘जो कोई उस सोने के पक्षी को लाकर देगा, उसे मैं अपना आधा राज्य दे दूंगा । जब बड़े राजकुमार ने सुना कि उसके छोटे भाई ने रात को चोर का पता लगा लिया है, तो उसे बड़ा दुःख हुआ। वह सोचने लगा कि जो काम मुझसे न हो सका, वह छोटे कुमार ने कर दिखाया।
अब यदि मैं राजा की इच्छानुसार सोने की चिड़िया पकड़कर न ला सकूँगा तो मेरे लिए बड़ी लज्जा की बात होगी। यह सोचकर राजा की आज्ञा ले बड़ा राजकुमार सोने के पक्षी की खोज में बाहर निकला। चलते-चलते वह संध्या समय एक ऐसे नगर में जा पहुँचा, जहाँ आमने-सामने दो सरायें बनी हुई थीं। एक मैली कुचैली और दूसरी साफ-सुथरी। राजकुमार अच्छी सराय में जाकर ठहर गया। लेकिन वहाँ उसे इतना आराम और सुख मिला कि जिस काम के लिये वह आया था उसे बिलकुल भूल गया।
सराय में रहते-रहते राजकुमार को कई महीने बीत गए। इधर जब बहुत दिनों तक बड़े राजकुमार सोने के पक्षी को लेकर नहीं लौटा तो दूसरा भाई पक्षी को खोजने के लिये राजा से आज्ञा लेकर चल दिया और अपने बड़े भाई के समान वह भी उसी सराय में जाकर ठहरा और वहाँ के सुख-भोगों में पड़कर सोने के पक्षी की बात भूल गया। कुछ दिनों के बाद तीसरा राजकुमार भी निकला और उसकी भी यही दशा हुई।
सबसे पीछे छोटा राजकुमार राजा की आज्ञा लेकर चला। चलते-चलते वह एक नगर में जा पहुँचा। वहाँ देखता क्या है कि एक सुन्दर जवान आदमी को चार सिपाही हथकड़ी डाले हुए लिए जा रहे हैं। पूछने पर मालूम हुआ कि वह एक प्रसिद्ध डाकू है और उसने कई वर्षों से डाँके डाल-डालकर लोगों को हैरान कर रक्खा है। इस बार बड़ी मुश्किल से पकड़ा गया है और राजा ने उसे शूली पर चढ़ाने का हुक्म दिया है। इसी से वे सिपाही उसे शूली पर चढ़ाने के लिये ले जा रहे हैं।
यह सुनकर छोटे राजकुमार को डाकू पर बड़ी दया आई। उसने सोचा कि आदमी बहादुर दिखता है। बच गया तो सम्भव है आगे जाकर सुधर-जाय। ऐसा सोच राजकुमार ने सिपाहियों से कहा-‘भाई, तुम लोग थोड़ा ठहर जाओ तो मैं राजा के पास जाकर इस बिचारे आदमी को बचाने का उपाय कर देखूँ।’ सिपाही भले आदमी थे। उन्होंने बात मानली। राजकुमार सीधा राजा के पास पहुँचा और उनसे डाकू को छोड़ने की प्रार्थना की। राजा ने तुरन्त ही सिपाहियों को भेजकर डाकू को बुलाया। उसके आने पर राजा ने कहा-‘बलराज, मैं तुम्हें इस राजकुमार के कहने से छोड़ देता हूँ। पर देखो, आयन्दा कभी कोई बुरा काम न करना।’
बलराज ने कृतज्ञता से सिर झुकाया और चला गया। वह सोचने लगा यह राजकुमार कहाँ से आया और इसने मेरी जान बचाने के लिये क्यों इतनी कोशिश की? जो हो, जिसने मेरी जान बचाई है उसकी कुछ-न-कुछ, भलाई तो मुझे भी करनी ही चाहिये। ऐसा सोचकर वह राजकुमार के आने की राह देखने लगा।
जब राजकुमार आया तो वह उसके पैरों पर गिर पड़ा। राजकुमार ने उसे उठाकर छाती से लगाते हुये कहा-‘देखो बलराज, महाराज ने तुम्हें छोड़ दिया है। अब कभी कोई खोटा काम मत करना। अब तुम अपने घर जाओ और मैं भी अपने काम के लिये जाता हूँ। बलराज ने कहा-‘राजकुमार, मैं तुम्हारे उपकार का बदला इस जनम में नहीं चुका सकूँगा। मेरी इच्छा है कुछ दिन साथ रह तुम्हारी सेवा करूँ।
राजकुमार ने पूछा-‘तुम मेरी क्या सेवा करोगे, बलराज!’ बलराज ने कहा-‘पहले यह बताओ कि तुम इस समय कहाँ और किस काम के लिये जा रहे हो? तब राजकुमार ने सारा हाल सुना दिया। कहा-‘मैं सोने की चिड़िया की खोज में निकला हूँ।
बलराज बोला-कुमार, तुम बहुत बुरे काम में फँस गए हो। सोने की चिड़िया मिलना कोई आसान बात नहीं है। मुझे इस चिड़िया का पता मालूम है। चलो, मैं तुम्हारे साथ चलता हूँ। यदि तुम मेरी बताई रीति से काम लोगे तो तुम्हें सोने की चिड़िया अवश्य ही मिल जायेगी। परन्तु इस काम में बड़ी सावधानी चाहिये। जरा भी चूके कि मुसीबत में पड़ जाओगे।’ ऐसा कहकर दोनों आगे बढ़े।
चलते-चलते कुछ दिनों में दोनों उसी शहर में पहुँचे जहाँ सोने का पक्षी था। शहर में पैर रखते ही बलराज ने कहा-‘देखो कुमार, तुम इस रास्ते से आगे चले जाओ। कुछ दूर पर तुम्हें एक राजमहल दिखाई देगा। वहाँ पहरे वाले सिपाही तुम्हें सोते मिलेंगे। निर्भय होकर तुम महल में घुस जाना।
भीतर जाने पर एक कमरे में तुम्हें वही सोने का पक्षी बाँस के पिंजरे में बैठा हुआ दिखाई देगा। उस पिंजरे को उतार कर तुम फौरन ही मेरे पास भाग आना। उस पक्षी के पास तुमको एक सोने का खाली पिंजरा भी टंगा हुआ दिखाई देगा। परन्तु खबरदार, उस पिंजरे के लोभ में न पड़ना। जो तुम उस पिंजरे को छुओगे तो आफत में फँस जाओगे।
बलराज की बातें सुनकर राजकुमार महल के भीतर चला गया। देखा तो सचमुच सोने का पक्षी बाँस के पिंजरे में टंगा हुआ था। पास ही में एक खाली सोने का पिंजरा भी टंगा था। राजकुमार सोचने लगा कि सोने के पक्षी के लिये तो सोने का ही पिंजरा चाहिये। वह पक्षी को निकालकर सोने के पिंजरे में रखने लगा। लेकिन ज्यों ही उसके शरीर से राजकुमार का हाथ छुआ कि पक्षी ‘चीं-चीं’ करने लगा। उसी समय पहरे वाले जाग उठे और उन्होंने राजकुमार को पकड़ लिया।
दूसरे दिन सबेरे सिपाहियों ने राजकुमार को राजा के सामने खड़ा करके कहा-‘सरकार, यह आदमी रात को सोने का पक्षी चुराते हुए पकड़ा गया है। इसके लिये क्या आज्ञा है?’ राजा ने कहा-चोर को मिलनी तो शूली ही चाहिये, परन्तु यदि यह मुझे सोने का घोड़ा ला देगा तो मैं इसके अपराध को क्षमा कर दूँगा और सोने का पक्षी इनाम में दे दूँगा।
राजकुमार ने सोने का घोड़ा ले आने का वायदा किया। राजा ने उसे छोड़ दिया। कुमार वहाँ से आया और शहर के बाहर बलराज से मिला। राजकुमार के मुँह से सब हाल सुनकर बलराज ने कहा-‘देखो कुमार, मैंने तुम से पहले ही कह दिया था कि सोने के पिंजरे के लोभ में न पड़ना। परन्तु तुम माने नहीं। अब आगे ऐसी भूल न करना। मुझे सोने के घोड़े का भी पता है। मेरे साथ चले आओ।
यह कहकर बलराज आगे-आगे चलने लगा। राजकुमार भी उसके पीछे हो लिया। कुछ दिन चलते-चलते दोनों वहाँ जा पहुँचे जहाँ सोने का घोड़ा था। बलराज ने कहा-‘देखो, इस नगर के राजा के अस्तबल में सोने का घोड़ा बंधा है। सोने के घोड़े के पास ही दो जीनें टंगी है। एक सोने की, दूसरी चमड़े की। तुम चमड़े की जीन कसकर घोड़ा ले आना और भूलकर भी सोने की जीन के लोभ में न पड़ना, नहीं तो पहले की तरह मुसीबत में पड़ोगे।
राजकुमार ने अस्तबल में जाकर देखा एक बहुत सुन्दर सोने का घोड़ा बंधा हुआ है और उसके पास सोने और चमड़े की दो जीने टंगी हैं। राजकुमार सोचने लगा कि सोने के घोड़े पर चमड़े की जीन क्या कसूँ? जैसा घोड़ा वैसी ही जीन। यह सोचकर उसने सोने की जीन उठाकर घोड़े की पीठ पर रखी। जीन रखते ही घोड़ा जोर से हिनहिना उठा। सब पहरे वाले जाग उठे और उन्होंने चोर-चोर कहकर राजकुमार को पकड़ लिया।
दूसरे दिन सबेरे राजकुमार राजा के सामने पेश हुआ। राजा ने कहा-‘चोर को फांसी पर लटकाया जाना चाहिये, परन्तु वह सोने के केश वाली कन्या ला दे, तो मैं उसकी सजा माफ कर दूँगा और उसे अपना सोने का घोड़ा भी इनाम में दे दूँगा।
राजकुमार सोने के केश वाली कन्या की खोज में निकला। रास्ते में बलराज बैठा-बैठा राह देख ही रहा था। राजकुमार के मुँह से सब समाचार सुनकर उसने राजकुमार को फिर समझाकर कहा-‘देखो कुमार, तुम जब तक मेरा कहना न मानोगे, तब तक नये-नये झगड़े में फँसते ही जाओगे। अब आगे ऐसी भूल न करना।
यह कह दोनों चल पड़े। चलते-चलते दोनों सोने के केश वाली कन्या के नगर में जा पहुँचे। उस समय रात अधिक बीत गई थी। बलराज ने कहा-‘कुमार इसी नगर के राजा के यहाँ सोने के केश वाली कन्या है। इस समय सब पहरे वाले गहरी नींद में सोए हुए हैं। तुम निर्भय होकर भीतर महल में चले जाओ।
राजकन्या आधी रात के समय, स्नान करती है। वह इस समय तुमको स्नान-घर में मिलेगी। तुम चुपचाप जाकर मुँह से एक शब्द कहे बिना उसके केश पकड़ लेना। ज्यों ही तुम उसके केश पकड़ लोगे, वह तुम्हारे वश में हो जायेगी और तुम्हारे पीछे-पीछे चली आयेगी। तुम उसको लेकर तुरन्त मेरे पास चले आना। देखो, उसकी बातों में आकर उसे माता-पिता से विदा लेने के लिये न जाने देना। नहीं तो मुसीबत में पड़े बिना न रहोगे।
राजकुमार ने महल में जाकर स्नान करते समय राजकन्या के केश पकड़ लिए। राजकन्या उसी समय कपड़े बदल कर राजकुमार के साथ चलने को तैयार हो गई। लेकिन चलते समय उसने कहा-‘कुमार, अब तो मैं तुम्हारी हो ही चुकी, परन्तु चलते समय मुझे अपने माता-पिता से विदा ले आने दो। आज की बिछुड़ी न जाने फिर कब मिलूँगी!’ राजकन्या के कहने का राजकुमार पर कुछ ऐसा प्रभाव पड़ा कि उसने उसे अपने माता-पिता से मिल आने की आज्ञा दे दी। ज्यों ही राजकन्या राजा के पास पहुँची, राजा ने सिपाहियों को भेजकर राजकुमार को गिरफ्तार करा लिया।
सबेरे राजकुमार राजा के सामने लाया गया। राजा ने कहा-‘देखो, तुम जैसे चोरों को मिलना तो प्राणदण्ड ही चाहिये, परन्तु मेरे महल के सामने पहाड़ पड़ता है जो मेरी आँखों में हमेशा खटका करता है। यदि तुम इस पहाड़ को खोदकर फेंक दोगे तो मैं तुम्हारा अपराध क्षमा कर दूँगा और यह सोने के केश वाली राजकन्या भी तुम्हें दे दूँगा।
राजकुमार ने सोचा यह तो बड़ा कठिन काम है। इतने बड़े पहाड़ को मैं अकेला कैसे खोद सकूँगा? परन्तु उसने अपने साथी बलराज के भरोसे यह काम स्वीकार कर लिया। राजकुमार जाकर पहाड़ खोदने लगा। बलराज भी उसका पता लगाता हुआ वहाँ पहुँचा और बड़ी सफाई से वह पहाड़ी खोदकर फेंक दिया।
पहाड़ को धरती से मिला हुआ देखकर राजा बहुत प्रसन्न हुआ। उसने राजकुमार के साथ अपनी कन्या विदा कर दी। राजकुमार सोने के केशवाली कन्या को लेकर चला। रास्ते में बलराज से भेंट हुई। उसने कहा-‘कुमार, जो तुम मेरी बताई रीति से काम करोगे तो तुमको सोने के केशवाली कन्या के साथ, सोने का घोड़ा और सोने की चिड़िया तीनों चीजें मिल जायेगी!’
राजकुमार ने कहाअच्छा बताओ बलराज, तुम जो कुछ कहोगे, वही करूँगा। बलराज बोला- ‘पहले राजकन्या को सोने के घोड़े के मालिक को दे आओ। ऐसा करने से वह तुम्हें सोने का घोड़ा दे देगा। घोड़ा पाते ही तुम उस पर सवार होकर एक-एक से विदा मांगना। सबसे पीछे राजकन्या से विदा मांगना। उसी अवसर पर राजकन्या अपने हाथ आगे बढ़ा देगी और तुम झट उसे अपने घोड़े पर बिठाकर घोड़ा छोड़ देना।
इस सोने के घोड़े के बराबर दौड़ने वाला पृथ्वी पर दूसरा कोई घोड़ा नहीं है। बाद में तुम सोने के पक्षी के मालिक के पास जाना। राजकन्या को लेकर मैं गाँव के बाहर बैठूँगा। तुम राजा के पास जाकर घोड़ा देने की बात कहना, पर घोड़े से नीचे न उतरना। राजा सोने का घोड़ा देखकर तुमको सोने की चिड़िया दे देगा। तुम सोने की चिड़िया को लेते ही घोड़ा दौड़ा देना और मेरे पास आ जाना। इस उपाय से तुम्हें तीनों चीजें मिल जायेंगी।
बलराज के कहे अनुसार राजकुमार ने काम किया और वह तीनों चीजें लेकर अपने देश को लौटा। राजकुमार अपने साथी बलराज और राजकन्या के साथ चला आ रहा था। रास्ते में रात को वे लोग एक बावड़ी के किनारे ठहर गए। राजकुमार और राजकन्या तो सो रही, परन्तु बलराज को नींद न आई। उसे चिंता थी कि सोने का घोड़ा मैदान में बंधा है और सोने के पक्षी का पिंजरा पेड़ की डाल में टंगा है। कहीं कोई चोर आकर न ले जाय। यह सोच कर वह रात भर जागता ही रहा।
आधी रात के समय वह क्या देखता है कि बावड़ी में से एक भयंकर काला नाग निकला। वह एक मणि लिए हुए था। उसका उजाला चारों ओर दूर-दूर तक फैल गया। नाग उस मणि को बावड़ी के पास रखकर दूर चला गया। बलराज ने सोचा, मणि तो बहुत सुन्दर है। साँप को मारकर इसे राजकुमार को भेंट करना चाहिये। वह तीर-कमान लेकर बैठ गया। थोड़ी देर बाद जब साँप लौटा और मणि के पास आया तो बलराज ने एक तीर तान कर उसके फन में मारा। बेचारा साँप वहीं ढेर हो गया। बलराज ने मणि उठाकर अपने पास रख ली।
सबेरे बलराज ने राजकुमार से कहा-‘कुमार, तुम कुछ समय यहीं ठहरना। मैं इस बावड़ी के भीतर घुसता हूँ। जब तक मैं वहाँ से न लौटूँ तब तक तुम कहीं जाना मत और इन तीनों चीजों की रक्षा करना।’ इतना कहकर बलराज बावड़ी में घुसा। मणि उसके पास थी। ज्यों-ज्यों वह नीचे उतरता जाता था, त्यों-त्यों मणि के प्रभाव से पानी नीचे को चलता जाता था। अन्त में उसे एक दरवाजा दिखाई दिया।
वह उस रास्ते में भीतर घुस गया। कुछ दूर तक सुरंग के रास्ते से चलने के बाद वह देखता क्या है कि एक सुन्दर बगीचा है। उसके बीच में एक आलीशान महल बना हुआ है। वह निर्भय होकर उसी महल में चला गया। वहाँ जाकर उसने देखा कि एक सोलह बरस की अत्यन्त रूपवती सुन्दरी सोने के सिंहासन पर बैठी है और दासियाँ उसकी सेवा कर रही हैं। यह तमाशा देखकर बलराज चकित रह गया।
इतने में उस लड़की की निगाह इस पर पड़ी। वह बोली-‘मुसाफिर, तुम कौन हो और यहाँ कैसे आए? यदि तुम्हें अपनी जान बचानी है तो इसी समय यहाँ से भाग जाओ। मेरा बाप आ जायेगा तो तुम्हें जिंदा नहीं छोड़ेगा।
बलराज ने मुसकरा कर कहा-‘सुन्दरी, मुझे किसी का भय नहीं है। तुम मेरे लिए तनिक भी चिन्ता मत करो। पर यह तो बताओ कि तुम्हारा बाप है कौन? मैं उसका नाम जानना चाहता हूँ। सुन्दरी बोली- मैं नागराज की कन्या हूँ। मेरे पिता बहुत क्रोधी हैं। उनके जीते-जी कोई आज तक इस गुफा में नहीं आ सका है। मुझे आश्चर्य है कि आज तुम यहाँ आ कैसे गये?
बलराज-‘सुन्दरी, तुम्हारा कहना सच है नागराज के होते इस गुफा में कोई नहीं आ सकता था। परन्तु मैं उन्हें मारकर ही यहाँ आ सका हूँ। यह देखो मणि।’ ऐसा कहकर बलराज ने अपनी जेब से निकाल कर मणि दिखला दी।
मणि देखते ही सुन्दरी को अपने पिता के मारे जाने का निश्चय हो गया। वह विलाप करके रोने लगी। बलराज ने उसे समझाते हुए कहा-‘सुन्दरी, अब रोने से क्या लाभ ? जो होना था सो हो चुका। लेकिन सुनो, मैं तुम्हें एक शुभ समाचार सुनाता हूँ। बाहर बावड़ी पर एक सुन्दर राजकुमार ठहरा हुआ है। यदि तुम कहो तो मैं उसे बुला लाऊँ। उसे देखते ही तुम खुश हो जाओगी। मैं चाहता हूँ कि तुम दोनों का विवाह हो जाय।
नागकन्या ने राजकुमार को ले आने की अनुमति दे दी। बलराज राजकुमार और सोने के केशवाली कन्या को लेकर अन्दर आया। राजकुमार की सुन्दरता देखकर नागकन्या मोहित हो गई और उसने उसके साथ विवाह करने का निश्चय कर लिया। अब सब लोग आनन्द के साथ वहाँ रहने लगे। सोने के केशवाली कन्या और नागकन्या दोनों में परस्पर बड़ा प्रेम हो गया। दोनों दिन रात साथ-साथ रहती थीं और एक-दूसरे का संग छोड़ना उन्हें पसंद नहीं था!
एक दिन बलराज ने कहा- कुमार, मुझे घर छोड़े बहुत दिन हो गए। अब मुझे चार दिन की छुट्टी दे दो। मैं अपने बाल-बच्चों को एक बार देख आऊँ। परन्तु जब तक मैं वहाँ से लौट न आऊँ, तुम इस बावड़ी से बाहर न निकलना। बाहर निकले तो मुसीबत में पड़ जाओगे। इतना कहकर बलराज चला गया। जाते समय वह राजकुमार को मणि देता गया।
बावड़ी में रहते-रहते जब राजकुमार की तबियत ऊब गई तो एक दिन उसने अपना सोने का घोड़ा कसा और उस पर सवार होकर बाहर घूमने के लिये निकला। आते समय नागकन्या से कहता आया कि देखो, मैं अपना जी बहलाने के लिये बाहर घूमने जाता हूँ। तुम चिन्ता न करना। थोड़ी देर में लौट आऊँगा।
इतना कहकर राजकुमार चला गया। जंगल में घूमते-घूमते वह एक वृक्ष की शीतल छाया में बैठ गया। बैठते ही उसे नींद आ गई। राजकुमार की जेब में मणि रखी हुई थी। सोते समय वह खसक कर नीचे जमीन पर आ गिरी। इतने में एक लकड़हारा वहाँ से निकला और राजकुमार को सोता हुआ देख मणि लेकर चलता बना।
इधर जब राजकुमार की नींद खुली तो मणि को पास में न देखकर वह घबड़ा कर यहाँ-वहाँ देखने लगा। मणि खो जाने से वह हक्का-बक्का हो गया। थोड़ी देरबाद अपने घोड़े पर बैठकर उस आदमी के पैर के निशान देखता हुआ उसी ओर को चला गया।
जब शाम होने को आई और राजकुमार वापिस नहीं लौटा तो दोनों कुमारियाँ बावड़ी के बाहर आकर उसे खोजने लगी। इतने में एक मुसाफिर जो देखने में कोई बड़ा आदमी मालूम पड़ता था, घोड़ा दौड़ाता हुआ उधर से निकला। उसे देखते ही दोनों कुमारियाँ भाग कर बावड़ी में जा छिपी।
भागते समय नागकुमारी की एक जूती बाहर पड़ी रह गई। उस जूती को देख कर मुसाफिर घोड़े पर से उतरा और उसकी सुन्दरता को देखकर मन ही मन कहने लगा-‘वाह, जिसके पैर की जूती इतनी सुन्दर है वह स्वयं न जाने कितनी सुन्दर होगी! कुछ भी हो अब मैं इसके साथ शादी किए बिना न रहूँगा।
यह मुसाफिर इस देश के राजा का लड़का था। उसकी राजधानी इस बावड़ी से कुछ ही कोस की दूरी पर थी। उस दिन से वह बावड़ी वाली दोनों सुन्दरियों के पाने की तलाश में रहने लगा।
एक दिन वह एक स्त्री का भेष बनाकर उस बावड़ी पर गया और वहाँ बैठकर जोर-जोर से रोने लगा। रोने की आवाज भीतर बावड़ी में पहुँची। उसे सुनकर सोने के केश वाली कन्या बोली-‘देखो तो बहन, बाहर कोई स्त्री डाहें मार-मारकर रो रही है। मालूम होता है उस बेचारी पर कोई बड़ा दुःख आ पड़ा है। यदि हम उसका दुःख दूर कर सकें तो इससे बढ़कर आनन्द की बात अपने लिए क्या हो सकती है। चलो, हम दोनों बाहर चलकर उसके दुःख का कारण पूछे।
नागकन्या ने जबाब दिया-‘बहन, तुम सच कहती हो। दुखियों का दुःख दूर करने में बड़ा आनन्द मिलता है। परन्तु बाहर जाने का नतीजा तो तुम देख ही चुकी हो। राजकुमार अभी तक वापिस नहीं आए। इससे न-जाने क्यों बाहर जाने में मेरा जी घबड़ाता है।’ परन्तु सोने के केश वाली कन्या नहीं मानी।
दोनों कुमारियाँ बावड़ी के ऊपर गईं और उस स्त्री से उसके दुःख का कारण पूछने लगीं। नागकन्या कुछ दूरी पर थी, पर सोने के केश वाली कन्या उस स्त्री के बिलकुल पास बैठकर उसे धीरज दे रही थी। अवसर जानकर राजकुमार ने अपना असली रूप प्रकट करके उसका हाथ पकड़ लिया। नागकन्या तुरन्त भागकर बावड़ी में घुस गई और सोने के केश वाली कन्या को राजकुमार अपने घोड़े पर बिठाकर अपनी राजधानी को ले गया।
इधर चार दिन पूरे होते ही बलराज आ गया। राजकुमार और राजकन्या के खो जाने का समाचार सुनकर उसे दुःख हुआ। उसने नागकन्या को धीरज बंधाते हुए कहा-‘मैं अभी उनका पता लगाए लाता हूँ। तुम चिन्ता न करो। इतना कहकर बलराज बावड़ी के बाहर निकल गया।
पता लगाते-लगाते वह उसी शहर में जा पहुँचा जहाँ का राजकुमार सोने के केश वाली कन्या को चुरा ले गया था। वहाँ उसे राजकुमार भी मिल गया। दोनों मित्र बड़े प्रेम से मिले। राजकुमार ने कहा-‘बलराज, मेरी मणि चोरी चली गई थी। आज तीन-चार दिन खोज करने के बाद एक लकड़हारे के पास मिली है।
यह इसे बेचने के लिये बाजार लिए जाता था। मैंने पाँच रुपये देकर उससे खरीद ली।’ बलराज ने कहा-‘खोई चीज मिल गई, इसकी मुझे खुशी है। परन्तु तुम्हारे पीछे एक बड़ा अनर्थ हो गया। कोई बदमाश सोने के केश वाली कन्या को चुरा ले गया है। मुझे पता लग गया है कि वह इसी शहर के राजमहल में है। तुम मणि लेकर बावड़ी में चलो। वहाँ और कोई उपद्रव खड़ा न हो जाय। मैं आज ही रात को राजकन्या को लेकर तुम्हारे पास पहुँच जाऊँगा।
ऐसा कहकर बलराज साधु का भेष बनाकर राजमहल के बाहर जा खड़ा हुआ और हाथ की रेखाएँ देखकर लोगों के दुःख-सुख की बातें बताने लगा। दिन भर शहर के स्त्री-पुरुषों की भीड़ लगी रही। रात को राजमहल की स्त्रियाँ भी आई। साथ में वह सोने के केश वाली कन्या भी थी। वह बलराज को देखते ही पहचान गई। उसके मन में धीरज बंधा। हाथ दिखा-दिखाकर सब स्त्रियाँ चली गई।
आधी रात के समय जब सब लोग सो गए तो राजकन्या उठी और बलराज के पास आकर कहने लगी-‘चलो, इसी समय भाग चलो। अभी सब पहरे वाले सो रहे हैं।’ बलराज उसे अपने कंधे पर बिठाकर भाग आया और रातों-रात बावड़ी में आ पहुँचा।
बावड़ी में आकर बलराज ने कहा-‘कुमार, अब यहाँ रहना ठीक नहीं है। चलो, इसी समय अपने देश चलने की तैयारी करो।’ राजकुमार दोनों कुमारियों और बलराज को लेकर चल दिया और सबेरा होते-होते उस नगर में आ पहुँचा जहाँ उसने बलराज को शूली से बचाया था।
बलराज बोला- राजकुमार, अब मुझे विदा दो। मैं अपने घर जाता हूँ। किन्तु जाते समय दो बातें कहे जाता हूँ। एक तो अब तुम किसी फाँसी वाले अपराधी को न छुड़ाना और दूसरे रास्ते में किसी कुएँ के किनारे पर मत सोना। अगर मेरी इन दोनों बातों को मानोगे तो तुम कुशलपूर्वक घर पहुँच जाओगे। नहीं तो तुम फिर मुसीबत में पड़ोगे।’ ऐसा कहकर बलराज अपने घर चला गया।
राजकुमार दोनों कुमारियों को साथ लिए आगे बढ़ा। आगे चलकर देखता क्या है कि उसके तीनों भाईयों को सिपाही हथकड़ी डाले लिए जा रहे हैं। पूछने पर मालूम हुआ कि ये चोर है। फाँसी पर चढ़ाने के लिये भेजे जा रहे हैं। अपने भाईयों को मुसीबत में देख छोटे कुमार को बहुत दुःख हुआ। उसे बलराज की बात याद थी, परन्तु वह सोचने लगा कि मैं अपने भाईयों को न बचाऊँ, यह कैसे हो सकता है?
फिर जो विपत्ति आना हो, वह भले ही आये। ऐसा सोच कर उसने दोनों कुमारियों से कहा-‘तुम थेाड़ी देर इस पेड़ के नीचे बैठो। मैं अभी आता हूँ। घोड़े और पक्षी पर निगाह रखना। मुझे इस नगर के राजा से मिलना है।’ ऐसा कहकर राजकुमार राजा के पास पहुँचा। राजा उसे पहचान गया। आदर के साथ बैठाकर पूछा- कहो राजकुमार, कहाँ से आ रहे हो? मेरे योग्य कोई कार्य हो तो बताओ?
राजकुमार ने अपनी जेब से मणि निकालकर राजा के सामने रखते हुये कहा-‘महाराज, यह आपकी भेंट है। मैं देश-विदेश घूमता हुआ इधर आ रहा हूँ। सोचा, महाराज के दर्शन करता चलूँ। हाँ, एक काम भी है। आपकी आज्ञा से जो तीन कैदी फाँसी पर चढ़ाने के लिए ले जा रहे हैं, वे मेरे भाई है। यदि महाराज की दया हो जाये और उनका अपराध क्षमा कर दिया जाये तो मैं उन्हें अपने साथ देश लेता जाऊँ।
राजा मणि को पाकर बहुत प्रसन्न था। उसने सोचा राजकुमार ने मुझे इतनी कीमती वस्तु भेंट दी है कि लाखों रूपया और सैकड़ों आदमी उस पर निछावर हो सकते हैं। इसलिये राजकुमार के भाईयों को छोड़ देना चाहिये। राजा ने तीनों कैदियों को छुड़वा दिया और राजकुमार अपने तीनों भाईयों को साथ लेकर अपने शहर को चल पड़ा।
जब तीनों भाईयों ने देखा कि छोटा कुमार सोने का पक्षी ही नहीं, वरन् सोने का घोड़ा और सोने के केश वाली दो कन्याएँ ले आया है, तब तो उनको बड़ी जलन हुई। वे आपस में कुछ काना- फूँसी करते हुए चलने लगे। रात को वे लोग एक कुएँ के किनारे सो रहे। आधी रात के समय तीनों भाईयों ने सलाह करके छोटे कुमार को उठाकर कुएँ में पटक दिया और सोने का घोड़ा, सोने का पक्षी और दोनों कुमारियों को लेकर चल पड़े।
दूसरे दिन वे लोग घर आ पहुँचे और राजा के सामने उन सब चीजों को पेश करते हुये कहने लगे-पिताजी, इन चीजों को खोजने में हम तीनों को बड़ी-बड़ी, मुसीबतें उठानी पड़ी हैं।
सोने का पक्षी और सोने का घोड़ा पाकर राजा बहुत प्रसन्न हुआ। नगर के सब लोग राजकुमारों की प्रशंसा करने लगे। परन्तु सोने का पक्षी उदास रहता था। वहाँ कभी आनन्द से चहकता नहीं था। घोड़ा भी घास-दाना नहीं खाता था और दोनों राजकुमारियों की तबियत भी गिरी रहती थी। वे किसी से कुछ बात ही नहीं करती थीं।
इधर बलराज ने मन में सोचा कि राजकुमार राजी-खुशी घर पहुँच गया या नहीं, एक बार अपनी आँखों से देख आना चाहिये। वह चला और रास्ते में उसी कुएँ के पास से निकला तो उसे किसी आदमी के कराहने की आवाज सुनाई दी। उसने कुएँ में झांककर देखा तो पता चला कि राजकुमार पड़ा हुआ है। वह समझ गया कि कुमार ने उसका कहना नहीं माना। इसी से उसकी यह दशा हुई।
बलराज ने तुरन्त ही उसे बाहर निकाला और पूछा-‘कहो कुमार, तुम्हारा यह हाल कैसे हुआ? कुमार ने सारा हाल सुना दिया। बलराज राजकुमार को लेकर उसके घर पहुँचा। छोटे पुत्र को आया देख उसके माँ-बाप को बड़ी खुशी हुई। पर तीनों भाईयों को काटो तो खून नहीं। वे सोचने लगे कि कुमार के लौट आने से तो बड़ा बुरा हुआ। अब सारा भेद खुल जायेगा और उन लोगों की बड़ी बुरी दशा होगी।
छोटे कुमार के आते ही सोने का पक्षी चहकने लगा। घोड़ा दाना खाने लगा और दोनों राजकन्याएँ भी हँसने लगीं। बलराज ने राजा को सब हाल कह सुनाया। सुनकर राजा बहुत प्रसन्न हुआ। उसने अपने तीनों पुत्रों को देश निकाला दिया और छोटे कुमार को राजतिलक करके एक दिन अच्छे मुहूर्त में दोनों कुमारियों के साथ राजकुमार का विवाह कर दिया।