Homeबुन्देलखण्ड का सहित्यबुन्देलखण्ड की लोक कथाएंRani Phoolvati रानी फूलवती -बुन्देली लोक कथा 

Rani Phoolvati रानी फूलवती -बुन्देली लोक कथा 

फिर बो समय आ गओ राजकुमार रानी फूलवती Rani Phoolvati को लेंकें राजधानी पौंच गए । कुमार के आबे पे राजा ने बड़ी खुशी मनाई। मोचायने की तैयारी होन लगी। बिलहरा राज के राजा के चार लरका हते वे चारई सियाने हो गयेते मनो अबै तक उनकों ब्याव नें भवतो । तालनपुर बारे राजा की चार बिटियाँ हतीं मनो उनके सोई ब्याव नें भयेते, जब राजा की रानियों ने उनें नाब धरो तो वे दोई राजा मोंड़ी- मोंड़ों के ब्याव की चिन्ता करन लगे । दोई तरफ सें नाऊ-बामन लरका लरकी देखवे चले ।

बिलेरा और तालनपुर के नाऊ एक नदिया पै मिले सो पैलें तो चीन- चिनार भई फिर काम-धाम के बारे में बातें भई । पता परी कै दोई ब्याव के काम सें निकरे हैं। एक लरका ढूढ़वे तो दूसरो बिटियाँ ढूढवे । बिटिया बारे ने दूसरे नऊ से पूँछ तनक जा तो बताव कै लरका कैसे का हैं? नाऊ बोलो अच्छे सुन्दर, सुशील हैं, हमाये राजा के चारई लरका ।

दूसरे नाऊ ने पूछी कै तुम बताव कें बिटिया कैसी हैं ? ऊ नाऊ ने बिटियों की भौत तारीफ करी। जब एक दूसरे का जानकारी मिली तो रिस्तदारी की बात चल परी औ आखिरकार पक्की सोई हो गई। एकई मड़वा तरें चार भाँवरे परने हतीं । वे दोई अपने-अपने घरे लौटे और अपने-अपने मालक खों पूरो बन्नाभेद बता दओ | दोई राजा प्रसन्न हते कें चलो एकई घर में रिस्तेदारी हो गई ।

अब भैया जब बरात चलन लगी तो राजा को हल्को लरका बोलो कै दादा सबरेई बरात में जेहें तो घर को रखेंहे? अरकऊँ कहो तो मैं रूको जातहों । राजा ने सोची कै जा तो सोची नईयां ? बड़ो लरका बोलो कै हम रूके जातहैं, छत्रियन में फैटा – कटारी सें भाँउर पर जात है सो पर जैहै । राजा खाँ बड़े कुँवर की बात माननें परीं वे घरे रूक गये और सबरी बरात चली गई।

भैया राजों की बरात आये सो ओमें सबई किसम के आदमी हते, हाँती, घोरा, बग्गियें, म्यानें, पालकीं। एक सें एक राजा रजवाड़े आयेते । बराती किसम – किसम की पगड़ी बांदें, हो हगा, बाजे-गाजे, बेड़नी, रण्डी, सबई कछू हतो ऊ बरात में। निशान घूमें फौज – फाँटे लाव-लश्गर मशालची, तोपची, गोलंदाज सबई कछू हतो ऊ बरात में । बरात के चलबे के पेंलें बड़े कुँवर ने राजा सें कई हती कै बरात नागताल पै नें ठैरैयो ई बात को ध्यान राखियो ।

चलत-चलत जब दिन डूबो सो बारात एक जगा ठैराई गई, रात बसेरो करकें बरात चली अर दिन डूबे तक तालनपुर पौंच गई। उतै के राजा ने बरात कों स्वागत-सत्कार करों सबकें मन एक बात आई कै बरात में तो तीन दूला हैं चौथो का नयीं आव? होत करत बरात लई गई, टीका भओ और जब चौथे दूला की बात चली तो राजा ने कै दई कें बड़े कुँवर खों घर की रखवारी के लाने छोड़ आये हैं, उनकी फैटा-कटारी सें भांउर परहें। राजा की बात सुनकें उनके समदी सोच में पर गये कै कहूँ दूला में कौनऊ बंग तो नैयां ?

उने  सबने समजा-बुजा दओ कें तुम अपने मन में शंका नें करो बड़े कुँवर तो सबसें अच्छे हैं। उतै राजा की बड़ी बेटी के मन में शक हो गई कै ऐसो काये हो रओ है? कहूं कौनऊ बंग-भौरी नें होय? आखिरकार एक मड़वा में चारई की भाँवरें परीं भौत अच्छो ब्याव भओ । बरात की विदा हो गई। बरात चली सो चलत – चलत जब दिन डूबो सो बरात रूक गई । जहाँ बरात रूकी वो ‘नागताल’ हतो, कौनऊं खों खबरई ने हती कें बड़े कुँवर ने इतें रूकवे खों मना करीती । अब सब दिनां की मजल करकें सबरे बराती हार गयेते सो जैसेई परे सो सबरों खों गिहरी नींद आ गई।

अब भैया ऊ नागताल पै बासुकी नाग रत हतो । रात को जब पैलो पहरो लगो तो नाग उठकें उतै आ गओं, ओने पूंछी के बरात में कौनऊ जग रओं है कें सबरे सो गये ? सब तो सो गयेते मनों बड़ी बहू चिन्ता में परींती वे जग रईतीं, सो वे बोली कै हमज ग रये हैं । फिर दूसरे पहर में नाग आये उनने फिर बई बात दुहराई उनकी बात कों बड़ी बहू ने बोई जबाव दऔं ।

होत करत चार पहर बीते चौथे पहर में नाग ने बाँसरी बजाई सो उतै हजारों साँप आ गये, उन साँपों ने पूरी बरात घेर लई, बड़े नागराज ने अपनो फन फैलाकें बरात के ऊपर छत्तर सो तान दओ। इत्ते साँपों को ऐरो सुनकें बरात जाग गई सब देखकें घबरा उठे, उनने देखो तो वे सोई अगवका गये कें अबका करें? उने बड़े कुँवर की बात ध्यान में आई मनो अब का करते । भई मान्स होंय तों उनसे लगे-झगड़ो । अब साँपों को का कर सकत वे भी हजारों साँप ?

राजा की ऐसी हालत देखकें नागराज बोले देखो राजा तुम अपने मन में कौनऊ सोच फिकर न करों हाँ हमाई एक शरत है कै तुम हमाये थान पै रूके हो सो हमाव डाँड़ देने पर है, हमाव डाँड़ देव अर राजी खुशी से जाव । राजा नें पूंछी के का डाँड़ देने परहें? नागराज बोले कि तुमाव जेठो लरका अर जेठी बहू हमें दे देव अर तुम अपनी बरात राजीखुशी सें लै जाव ।

राजा नें सोच समज कें नागराज से कई अवै हमाव बड़ो लरका नैंया वो तो घरे है। तुम हमें छै मईना की मुहलत देव तो हम अपने दोई बेटा बहु तुमाये सामने हाजर कर देंहें। नागराज ने राजा की बात मानकें अपनो घेरा हटा दओं । राजा ने सबेरे बरातियन सें कई कै भैया हरो ई बात की चरचा अपन खों कहूँ नई करने में घर में नें बाहर, अगर बड़े कुँवर खों पता चली तो अच्छो नें हुइये सो हमायी तुम सब जनों से हाँत जोरे की विनती है । पूरी बरात बारों ने राजा खों भरोसो दओ कें मालक जा बात कहूँ कोऊ खों पता न परहें। फिर बरात अपने नगर खों चली।

इते बड़े कुँवर बरात की अगवानी के लाने घोड़ा पै सवार होकें चले । गाँव के बाहर बरात की अगवानी कर ब्याव के सब हालचाल जानें। बड़ी बहू को उनकी दास-दासियों ने बता दई के जेई आँय बड़े कुँवर बड़ी बहू उनें देखकें भौत खुश भई । बड़ी बहू के मन में एक चिन्ता तो सबसे बड़ी हती कै छै मईना के बीतवे पै हमें नागराज खों सौंप दओ जेहें । बड़े लरका ने देखो के पिता कछु उदास से हैं, कुँवर ने पिता से पूंछ आप काय उदास दिख रये हैं?

राजा ने कई के बेटा तुम बरात में ने हते सो मन में बेचैनी सी रई आई। राजा की बात सुनके कुँवर के मन खों संतोषी ने भई। ऊनें सब बरातियों सें पूंछी मनों कोऊ ने कछु न बतायी। बड़े कुँवर के मन में जों खटका लगोंतो सो वे रात में अपने घोड़ा पै सवार होकैं पूरे नगर में निकरे सबके घरों में जानकारी लव चाही मनों कोऊ सें कछु ने मिलो।

चलत-चलत कुँवर एक धोबी के घर से निकरे उतै कछु बरात की चरचा हो रईती । धोबिन ने पूंछी के बरात कों हाल बताव तो धोबी बोलो कै और तो सब ठीक रओ मनो एक बात खराब भई। धोबन ने पूंछी कें का बात भई ? मनो धोबी कछु ने बोलो, धोबन ने फिर पूंछी तो धोबी बोलो के देखों हमें राजा साहब ने मना करी है कि जा बात कोऊ सें नई कैने है। धोबिन केन लगी कें अब तो बतानेई परहें। धोबी ने कई के तोखों हमारो कौल कें कोऊ से कछु न कईये, धोबिन ने गंगा की सों कौल खाइ कि कोऊ से कछु न कैहें ।

धोबी बोलो कि नागताल पै राजा नागराज वासुकी सें वचन हार आये हैं कै छै मईना बाद वे उने बड़े लरका, बड़ी बहू सौंप देंहें ईसे ई बात को सबखो रंज है, अब तुमई बताव के छै मईना की उनकी उमर रै गई अरे नागराज खों कछु तो सोचने हती। धोबी की बातें कुँवर ने सुनी तो कुँवर राजा की उदासी को कारन जान गये । दूसरे दिनां उनने घोरा सजवाकें अर ऊकी पीठ पै हाँत फेरकें कई-

घोड़ा तोरे भरोसें गर्जत हों, तेंई मतायी तेंई बाप।
मोरे ऊपर बिपदा परी, साँकरे में होव सहाय जू।।
घोरा बोलो : लै भग जैहों इन्द्रासन खों, फोर पतालें जाऊँ ।

कुँवर बोले- घोरा तोरो भलो हो जाय, नें ले जैये इन्द्रासन खों, ने फोर पताले जाब।
अबै तो लै चल नागताल खों, देखों कैसो बासुकी नाग, दो-दो बातें ऊँसे कर लऊँ, करज से अदा हो जाऊँ।

कुँवर नागताल पै पौंच गये । उतै पौचकें नागराज खों टेरो। नाग ने उत्तर ने दव। ऊँने दूसरी बार टेरो तो नागराज बायरे आके बोलो तुम को, हमसें का काम आ परो ? कुँवर बोले कै हमाये पिता से तुमने हमें माँगो हतो सो हम आ गये । नागराज बोले कै आज नई बुलाव, छै मईना के बाद की बात हती । कुँवर बोले कै हम तो आजई आ गये। बासुकी नागराज ने कई अगर कऊं तुम राजा रनधीर सींग की बेटी फूलवती खों ले आहो तों हम तुमें छोड़ देहें ।

नागराज की बात सुनकें कुँवर घोरा पै बैठकें तुरत उत्तराखण्ड के राजा की तरफ चल परे। चलत-चलत उनें एक आदमी गैल में परो दिखनों बो तला के जरों परो हतो मनों प्यास – प्यास चिगा रवोतो। कुँवर ने ऊके पास जाकें पूंछी कि काय भैया तुम तला के इत्ते पास परे हो और पानी-पानी चिगा रये ? उठकें काय नई पानी पी लेत हो? ई पै बो बोलो कै भैया में अलाल ठैरो ईसें प्यासों मर रओ हों, ऐसे भैया तुमई हमें पानी पिला देव । कुँवर ने घोरा सें उतरकें ऊखों पानी पिया दव। पानी पीकें बो आदमी खूबई खुश भव ।

ईके बाद ऊने कुँवर सें पूंछी कै तुम किते जा रये हो? कुँवर ने कई कै हम फूलवती खाँ लेबे जा रये हैं । तो अलाल केन लगो कै तुम हमें अपने संगे ले चलो हम तुमाय भौत कामें आहें । कुँवर हँसके बोलो कै तुम हमाय का काम आहो, तुम तो खुदई अलाल हों हमें तुमाई उल्टी सेवा और करने परहें । पर अलाल कुँवर के पीछेई पर गव और कहन लगोकैं हम तुमाये भौतई काम में आहें, कुँवर ने ऊकी बात में दम देखी तो ऊखाँ घोरा पै बैठा लब।

वे तनक आँगे गये हते कै आँगे एक आदमी परो मिलो, बो आदमी आकाश की तरपै देख रोबतो। कुँवर ने पूंछी काये भैया का देख रये हो? बो केन लगो के हमने एक बाज खों तीर मारो हे ओर लग सोई गव है बाज नेंचे आ रओ है सो हम ऊखाँ देख रये हैं। तनक में बाज आन गिरो। ऊ आदमी ने कुँवर से पूंछी के अपन कहां जात हो?

कुँवर बोले हम फूलवती खाँ लेवे जा रये हैं, आदमी बोलो हमें अपने संगे लै लव । कुँवर आँगे चले तो का देखत हैं के एक आदमी बामी में घुसो है और नीचें की तरफ कछु देख रओ है। कुँवर ने ऊँसें पूंछी कें काय भैया का देख रये हो ? ऊ आदमी ने कई कें पाताल में राजा बली जग्ग कर रये हैं सो बोई आ देख रये । राजकुँवर ने पूंछी इतें से कैसे दिखा रव ? बो बोलो तुम आकें देख लेव। कुँवर ने उतरकें देखों तो साँचऊ में दई – देवतों की पंगत चल रयी हती, पंगत में पारस पूरी भई तो उसें राजा बली ने कई कें भोजन शुरू करबे के पैलें पृथ्वी लोक के जो चार आदमी हमें देख रयेंहें उने भी भोजन पौंचा देब हमाये जग्ग में वे सोई शामिल हो गये ।

उतै भोजन आ गओतो सो चारईयों ने भोजन करो अर आंगे चल परे । चलत-चलत आंगे एक नदिया मिली कुँवर ने देखी के नदी की ढ़ीं पट परी ओमें से चिटियें निकरी बे बऊन लगीं । कुँवर ने देखों के हजारों चिटियें मर रईहैं इने बचाव चईये सो कुँवर ने उतरकें माटी के ढेला जो पानी में गिरेते उन्हें उठाकें ऊपर फेंकन लगे, उनने मुतकी लो चिटियों को बचा लव । चिटियों ने कुँवर खों भोत दुआ दई और उनसें बोलीं कै तुम कबऊ मुसीबत में परो तो हमें होम लगा दियो हम तुमाये जरों पौच जेंहें ।

फिर भैया चारई जने आगे बढ़े और राजा रनधीर सिंग के राज में पौच गये। फाटक पें एक सिपाई मिलो ओनें पूंछी काय भैया तुमाव कैसों आवो भव ? कुँवर बोले- कै हम राजा के कुँवर हैं, फूलवती के संगे ब्याव करावे आये हैं । सिपाईनें उने एक कोठा में ठैरा दओं और कई कें राजा खों खबर कर आयें। राजा ने पाँवनो खाँ प्रेम सें बुलाकर भोजन करवाये, घोरा खों दाने-पानी को इन्तजाम करवा दओं। फिर राजा पानदान लेकें आ गये, उनसे पूंछी कै कहाँ से आयेहों, कुँवर ने बताई कें हम बिलेरा बारे राजा के कुँवर हैं ।

कुँवर की बात सुनकें राजा बोले कैं देखों हम अपनी बेटी को ब्याव तो एक शरत पै करहें कै पैलें तुम जो सामने लोहे के खम्भा है ईखां ये लकड़ी की कुलारी सें एकई बेर में काट देब, अगर खम्भा काट पाये तो हम अपनी बेटी फूलवती को तुमसें ब्याव करा देंहें। हाँ जो खम्भा एक बेर मेई कट जाय । राजकुमार सोस में पर गये ।

अलाल बोलो भैया अबै तो सो रओ उठत भुन्सरा काट लियो, कुँवर बोले कै लोहे कों खम्मा अर लकड़ियां की कुल्हाड़ी भलां कैसे कटहै? अलाल बोलो देखो भैया राजा की बेटी के सोने के बार हें अरकऊं कौनऊ उनको एकई बार (केश) टोर ल्याहें ओखों खम्मा पें बांद दैहे फिर ओई जगा जहाँ बार बंदो हैजा कुलारी मारहें तो जो लोहे को खम्भा कट जैहें ।

कुँवर बोले कें बेटी के बार लेबे केंसे जाय? अलाल बोलो कै बो काम हम कर लेबी कुँवर ने कई कें अबई उनके बार लै आब अलाल ने कई कें बेटी अबै जग रई हैं जब सो जाय तो ले आँहें। कछु समय निकरबे के बाद अलाल ने राजा की बेटी के सतखण्डा महल में जाकें ऊँके मूड़ के बाल लै आव, फिर कुँवर सें कई कै तुम लोहे के खम्भा में आपने हांत से जो बार बाँदो उतई कुलारी से चोट मार दियो सो तुमाव काम बन जेहें ।

जैसे तैसे भैया भन्सारों भओ कुँवर ने राजा खाँ बुलाये । राजा के आवे पै कुँवर ने लकरी की कुलारी उठाई अर सूद मिलाकें खम्भा पैं मार दई सो खम्मा दो टुकरा में कट गव। राजा खाँ बड़ो अचरज भव फिर अलाल ने राजा से कई के मालक अब तो जल्दी सें भाँवरे परवा देव । राजा ने कई कै एक शरत और पूरी करने परहें?

कुँवर ने पूंछी कै का करने पर है? तो राजा बोलो के एक खेत में पाँच मन राई बई है सो ओखाँ रातभर में बनीकैं हमाई बेटी के पलका के नेचें रखकें रास लगा देव। कुँवर ने हामीं भर दई। उनने चिटियों खाँ होम लगाव सो बे सारी चिटियाँ जिने कुँवर ने नदिया में मर बचाओतो आ गईं। कुँवर नें कई कै तुमें रात भर में खेत की गई बीनने है अर राजा की बेटी के पलका के नेंचे इकट्ठी करने है।

चिटियों ने राई बीनकें पलका के तरें रख दई । भुन्सरा राजा ने देखो कै कुँवर ने तो दूसरो काम भी साँचऊ में कर दबहे । अब राजा ने ओसें कई के हमायी बेटी की मौर अर पनैयाँ इतै से हजारों कोस दूर उज्जैन में धरीं हैं सो बे मंगवा देव, रात भर में लियाहो तो भुन्सरा भाँवर पार देहें। कुँवर ने हामी भर दई । अलाल मौर पनैया लैबे उज्जैन गये सो भैया लौटत में वे एक पेड़ के नेंचे सो रये अब अलाल तो हतेई । कुँवर ने अपने संगी से पूंछी के तुमें खूबई दूर को दिखत हैं, सो देखकें बताव कै अलाल कहाँ है?

ऊने देखके कई कै बो मौर पनैया तो लियाब हें मनो गैल में एक पेड़ के नेंचे सो गओ हैं। ऊ पेड़ के नेंचें एक साँप उतर रओ है, सो मोखों ऐसो लगत हें कै ऊ साँप ने अलाल खों काट लब तो सबरो काम नसा जेहें। कुँवर ने अपने दूसरे साथी सें कई के तुम जहाँ सें जे बतायें उते तीर मारो सो बो साँप मर जैहें। ओ तीरंदाज ने दूसरे के बतावे पै तीर मार दओ तीर साँप खाँ लगो वो साँप तीर लगवे सें अलाल के ऊपरे गिरो सो ऊकी नींद खुल गई, बो उठकें सूदो चल परो अर सबेरे बड़े भोर में मौर पनैयाँ लैके आ गओ ।

राजा के सबरे काम हो गयेते सो उनने अपनी बेटी की भाँवरें कुंवर सें परवा दईं। कुँवर छै मईना तक उतै रये फिर अपने तीनई साथियों के साथ और फूलवती के संगे नागताल पै पौचे। उतै जाकें कुँवर ने नागराज खाँ टेरो नागराज बासुकी बायरे आये सो कुँवर ने कई कें हम फूलवती खां लै आये हैं सो इने लै लेब, कुँवर की बातें सुनके फूलवती रोऊन लगी, उनके रोये सें किसम-किसम के फूल झरन लगे। नागराज नें कुँवर सें कई के हम तुमाई बहादुरी से भोतई प्रसन्न भये हमसे जो कछु माँगने होय से माँगलेब।  

कुँवर ने कई कै हमें फूलवती दै देव अर तुमाई जो शरत हती कें राजा को बड़ो लरका और बड़ी बहू लेबें की सो ऊ शर्त खों छोड़ देव । बासुकी बोले कें बेटा हमने तुमाई दोई बातों खों खुशी-खुशी मान लई अब तुम जा सकत हो । कुँवर, फूलवती और अपने साथियों के संगे उतेसें वापस आ गये और अपने राज में लौट आये। उनके आबै से सबईजनों खाँ बड़ी खुशी भई ।

हाँती दाँत की ककई लई, गोरी ऊँछे लछारे बार। बार-बार मुतियाँ गुहें, मिडियों कें हीरा लाल । हीरा दमके रे छाती पै, जैसे ऊगे दूसरे भान । ऐसें सजीं मानो उर्वशी, इन्द्र अखाड़े खों जाय। दोई रानियों और कुँवर कौं मचायने भओ । पूरे राज में खुशी मनाई गई । बे सब आनंदी से रैन लगे। जैसे बे मिले, उसई सब मिलें ।

 

बुन्देलखण्ड का लमटेरा 

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Bundeli Jhalak: The Cultural Archive of Bundelkhand. Bundeli Jhalak Tries to Preserve and Promote the Folk Art and Culture of Bundelkhand and to reach out to all the masses so that the basic, Cultural and Aesthetic values and concepts related to Art and Culture can be kept alive in the public mind.
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