Udal Ka Haran- Kathanak  ऊदल का हरण- कथानक

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Udal Ka Haran- Kathanak में नटिनी सोफिया ने ऊदल का हरण  कर उसे  तोता बना दिया और विवाह का दबाव बनाने लगी लेकिन उदल ने बात नही  मानी तब सोनवां चील बनकर उदल को छुडा कर  लाती है । जेठ  का दशहरा आने से पहले ही गंगाजी के हर घाट पर मेला लगता है। बिठूर में भी मेला लगा। रानी सुनवां ने मेला जाते यात्रियों को देखा तो मेला जाने की सोची।

ऊदल का हरणजादू की लडाई

ऊदल को बुलाकर गंगाजी में डुबकी मारने का विचार किया। ऊदल ने कहा, “यदि आल्हा भैया आज्ञा देंगे तो अवश्य चलूँगा।” आल्हा ने ऊदल को पहले तो मना ही किया, फिर किसी से झगड़ा न करने का भरोसा दिया तो अनुमति दे दी। सुनवां और फुलवा दोनों तैयार हो गई।

जगनिक और फौज को साथ लेकर बिठूर पहुँच गए। वहाँ रेती में अपना डेरा डाल दिया। पास ही सोफिया नाम की नटनी का भी डेरा था। वह तमाशा करती हुई ऊदल के डेरे तक आ गई। तमाशा देखकर सब प्रसन्न हुए। नटनी ने सुनवां को गहनों से लदा देखा था। सवेरे स्नान को गए तो सुनवां ने सारे गहने डिब्बे में सँभालकर रख दिए।

स्नान करके अपना डेरा उठवाकर महोबे को वापस चल दिए। महोबा पहुँचने से पहले जमना तीर पहुँचकर सुनवां को पता लगा कि गहनों का डिब्बा नहीं है। ऊदल को बताया तो ऊदल ने कहा, “मैं वापस जाकर मेले में तलाश करवाता हूँ।” जगनिक को कहा, “तुम सबको लेकर महोबे लौटो।” जगनिक सुनवां और फुलवा को साथ लेकर महोबा चला गया।

इधर ऊदल अब बिठूर पहुँचा तो मेला उठ रहा था। केवल सोफिया नटनी का डेरा वहाँ बचा था। ऊदल ने नटनी से अपने आने का कारण बताया। वह क्यों बताती कि गहनों का डिब्बा उसी ने जादू से चुरा लिया है। उसने कहा, “सारे नट गंगा में जाल डालकर पानी छान लें तो डिब्बा मिल जाएगा। तुम मेरे साथ चौसर खेलो।

ऊदल चौसर खेलने लगा। डिब्बा तो न मिलना था, न मिला। ऊदल का साहस नहीं हुआ कि बिना डिब्बा तलाश किए महोबे कैसे जाए? नटनी तो जादूगरनी थी, उसने ऊदल को तोता बना लिया और अपने साथ ले गई। वह रात को उसे मर्द बना लेती और सुबह फिर तोता बनाकर पेड़ पर टाँग देती।

सोफिया ने विवाह का प्रस्ताव रखा तो ऊदल ने नहीं माना। क्षत्रिय चोरी से विवाह नहीं करते। तुम मुझे छोड़ दो तो मैं बरात लाकर तुम्हें ब्याहकर ले जाऊँगा। नटनी को यह मंजूर नहीं था। नटनी दिल्ली पहुँची। राजा पृथ्वीराज को अपना खेल दिखाया। खुश हो जाने पर राजा से धन नहीं, शरण माँगी-“महाराज! मैंने ऊदल को तोता बना लिया है।

आप मुझे अपने राज्य में शरण दे दो तो मैं इससे विवाह कर लूंगी।” पृथ्वीराज ने इससे साफ इनकार कर दिया। कहा, “आल्हा से मैं वैर मोल नहीं ले सकता। तुम्हारे लिए मैं अपने राज्य को नष्ट नहीं करवा सकता।”

फिर वह और कई राजाओं के पास गई, परंतु किसी ने उसको शरण नहीं दी। बिना अपने लाभ के कोई जोखिम में जान डालें भी तो क्यों? अतः वह दूर झारखंड में चली गई। जंगल में ही डेरे लगा लिये। दिन में पेड़ पर तोते का पिंजरा टँगा रहता और रात को इनसान बन जाता ऊदल।

जादू के कारण वह इतना अशक्त हो गया था कि रात को भी भाग नहीं सकता था। न उसे यह अंदाज था कि वह कहाँ है? महोबे में ऊदल के गायब होने की चर्चा होने लगी। शुरू में इसे छिपाया जा रहा था, क्योंकि ऊदल नहीं है, यह जानकर शत्रु आक्रमण भी कर सकते थे।

सुनवां ने चारों ओर गुप्तचर भेजे, परंतु कोई सफलता नहीं मिली। तब सुनवा स्वयं जादू से चील बनकर खोजती फिरी। झारखंड के जंगल में इमली के पेड़ पर एक पिंजरे में तोता देखा तो सुनवां ने पहचान लिया। पेड़ की चोटी पर बैठकर सुनवां ने सारा माजरा देखा। नटनी ने उसे मनुष्य बनाया, चौसर खेली। बार-बार ब्याह करने का आग्रह किया।

खुदा का नाम लेने को कहा, पर ऊदल ने साफ इनकार कर दिया। न इस तरह ब्याह करूँगा, न खुदा का नाम लूँगा। मैं राम का नाम लेता हूँ और वही मेरा बेड़ा पार करेंगे। सुनवां समझ गई कि ऊदल का कुछ भी नहीं बिगड़ा, पर वह जादू के आगे विवश है। सुबह होने से पहले ऊदल को फिर तोता बनाकर पिंजरे में डाल दिया और पिंजरा इमली के पेड़ पर टाँग दिया।

नटनी सो गई तो सुनवां ने चोंच में पिंजरा उठाया और लेकर उड़ चली। एक अन्य वन में जाकर सुनवां ने उसे मनुष्य बनाया और पूछा, “तुमने इतनी मार-पीट सही, पर न तो खुदा का नाम लिया और न उस नटनी पर हाथ उठाया।” ऊदल ने कहा, “स्त्री पर हाथ उठाने से क्षत्रिय धर्म नष्ट हो जाता और खुदा का नाम लेने से राम नाम का भरोसा मिट जाता।”

सुनवां बोली, “तो ठीक है, अब मेरे साथ महोबे चलो।” परंतु ऊदल को यह भी स्वीकार नहीं। वह बोला, “मैं इस प्रकार चोरी से भागकर नहीं जा सकता। आप आल्हा को जाकर सारा हाल बताएँ। वह फौज लेकर आए और इस नटनी के साथियों को मार भगाए।

देवी के प्रभाव से इस नटनी का जाद भी समाप्त कर दे। तब मैं चलँगा।” सनवां भरोसा देकर चली गई। आल्हा को जब सारा हाल सुनाया गया तो वह जगनिक, इंदल को साथ लेकर सेना सहित चल पड़े। सुनवां आगे-आगे रास्ता दिखा रही थी। तब सुनवां फिर चील बनकर गई और इमली के पेड़ से पिंजरा उठाकर डेरे में ले आई। ऊदल को देखकर आल्हा प्रसन्न हुए। ऊदल ने चरण छूकर प्रणाम किया। आल्हा ने ऊदल के धर्म-पालन की प्रशंसा की।

उधर फौज आई देखकर सोफिया नटनी ने अपने भाई सहुआ को बुलवा लिया। नौ हजार नट हथियार लेकर मुकाबले को खड़े हो गए। तब ऊदल के संकेत पर आल्हा ने तोपें चलवा दीं। तोपों के गोलों से नटों के चीथड़े उड़ने लगे। गोलियाँ चलीं और बाण भी चले। एक हजार नट कुछ समय में ही मारे गए तो सहुआ घबरा गया। फिर तलवार चलने लगी।

सोभिया ने जादू से आग बरसा दी। सिपाही जलने लगे। फिर सुनवां ने अपने जादू से पानी बरसा दिया। इस प्रकार जादू में भी अपनी हार देखकर सोफिया नटिनी घबराई। सोफिया के हर जादू की काट सुनवां के पास थी। सुनवां ने अब नरसिंह और भैरोंवाली चौकी बैठाई और नटों पर ऐसा जादू मारा कि नट भाग निकले।

सोफिया तब सुनवां पर झपट पड़ी। दोनों गुत्थमगुत्था होने लगीं। तभी इंदल वहाँ पहुँच गया। इंदल ने घोड़े से उतरकर छुरी से नटिनी का जूड़ा काट लिया। जूड़ा कटते ही उसकी जादुई शक्ति बेकार हो गई। सोफिया छूटकर भागी तो झुन्नागढ़ अपने शहर की ओर गई। आल्हा भी फौजें लेकर झुन्नागढ़ पहुँचे। वहाँ के राजा ने लश्कर देखा तो अपना हरकारा भेजकर पता किया।

लौटकर उसने बताया कि महोबे की फौज बाग में डेरा डाले पड़ी है। सेनापति हीरा-मोती भेंट लेकर आल्हा के पास पहुँचे। भेंट देकर पूछा, “कहाँ की तैयारी है?” तब आल्हा ने सोफिया नटनी की सारी घटना सुनाई। राजा ने उनका स्वागत किया। अगले दिन आल्हा लश्कर के साथ महोबे को चल दिए। महोबे में ऊदल के आने पर खुशियाँ मनाई गई। ऊदल सबसे मिले और आनंद मनाया।

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