मलय मंगलाचरण
तब भी तुम थे, अब भी तुम हो, तुम ही होगे,
मेरे जीवन के, उपवन के मधुक्षण, मलय मंगलाचरण ॥
ओ अलभ्य तुम मिले हुए सच सब सपने ,
आंगरु , नंदन बन गया , हुए चिरसुख अपने ।
मौन मुखर हो गये , बन उच्छ्वास छंद ,
सांसे चौपाई बनीं , बना जीवन प्रबंध ॥
अथ भी थे तुम , गति तुम हो , इति भी होगे ,
मेरे सर्जन के , गायन के अलिखित अर्पण , उदय मंगलाचरण ॥
तुम मिले कि जैसे किरण सुमन को विहँसाये ,
वन को मधुरित , मरुस्थल को पावन सरसाये ।
जैसे वीणा को मृदुल गति भरी छुँँअन मिले ,
ज्यों नीर भरे दृग में सपनों का कमल खिले ।
भावन थे तुम , सोहन तुम हो , मोहन होगे ,
मनवृन्दावन के कण-कण संग मधुरास रमण, प्रणय मंगलाचरण ॥
तुम जनम-जनम के पल-पल के साथी मेरे ।
साथी तुलसी अर्चन , संजावाती , फेरे ॥
तुम सांस-सांस में गुथे , रच गये अंग-अंग ,
तुमसे जीवन-धन दीपित , शोभित राग- रंग ॥
सत्य थे तुम , सुन्दर हो तुम , शिव भी होगे ,
मेरे पूजन के , वंदन के , मंत्रित सुमिरण , अभय मंगलाचरण ॥
स्वर- स्वर में गुजित सुनी तुम्हारी विरुदावलि ,
शब्दों में खोजा तुम्हें रच गई गीतांजलि ।
कल्पना कहाँ तुम सा मृदुरूप सँजोपाती ,
तुम बिन सुंदरता संज्ञा नहीं कही जाती ॥
अनुपम थे तुम , अप्रतिम तुम हो , प्रियतम होंगे ।
मेरे अंकन के , चित्रण के बिम्बित दर्पण , विलय मंगलाचरण ॥
तुमसे बँधकर हो गया सुमन सा मुक्त ह्रदय ,
तेरी लहरों में डूब हुआ तट से परिचय ।
तुम तक सीमित की दृष्टि , असीमित हुआ विदित ,
मैं तुममें जितना छिपा हुआ उतना प्रकटित ॥
दर्शन थे तुम , दर्शन तुम हो , दर्शन होगे ।
चेतन, चिंतन के चितवन के परिचित सुवरण, विनय मंगलाचरण ॥