Syncretist Culture
भारतीय संस्कृति Indian Culture की सबसे बड़ी विशेषता है इसका समन्वयवाद Coordinationism। ऐतिहासिक कालक्रम में अनेक सभ्य व बर्बर कबीलों ने भी भारत की सीमाएं लांघ कर यहां प्रवेश किया, चाहे वे आक्रान्ता के रूप में आए या व्यापारी के रूप में, यहां के सामाजिक ताने-बाने में अपनी संस्कृति की छाप छोड़ी और स्वयं इसमें विलीन हो गए। भारतीय संस्कृति ने उनकी सांस्कृतिक उपलब्धियों को अपनाकर कर सबको अपने में समाहित कर लिया और हजारों वर्ष पुरानी इस Samanvayvadi Sanskriti (Coordinationism Culture)का निरन्तर विकास किया।
भारतीय संस्कृति के निर्माण में विभिन्न जातियों का अत्यंत विविध, व्यापक और गहन योगदान रहा है। विश्व संस्कृति को भारत ने जितना दिया है, उतना संभवतः किसी अन्य अकेले राष्ट्र ने नहीं दिया। लेकिन विभिन्न संस्कृतियों की विशेषताओं को आत्मसात भी किया है, चाहे ऑस्ट्रिक, सुमेरी, असुरी, आर्य, ईरानी, यूनानी, शक, कुषाण, आभीरी, गुर्जरी, हूण, इस्लामी और यूरोपीय, प्रायः सभी ने भारत को विचारों का एक नया समुच्चय प्रदान किया है ।
यह सच है कि जातियों और राष्ट्र की संस्कृतियों पर बड़े बड़े धार्मिक आन्दोलनों का असर पड़ा है। एक ओर इस संस्कृति का मूल आर्यों से पूर्व मोहनजोदारो आदि की सभ्यता तथा द्रविड़ों की महान सभ्यता तक पहुंचता है। दूसरी ओर इस संस्कृति पर आर्यों की बहुत गहरी छाप है, जो भारत में मध्य एशिया से आए थे। पीछे चलकर यह संस्कृति उत्तर पश्चिम से आने वाले तथा फिर समुद्र की राह से पश्चिम से आने वाले लोगों से बार-बार प्रभावित हुई।
इस प्रकार हमारी संस्कृति ने धीरे-धीरे बढ़कर अपना आकार ग्रहण किया। इस संस्कृति में समन्वयन तथा नए उपकरणों को पचाकर आत्मसात करने की अद्भुत योग्यता थी। जब तक इसका यह गुण शेष रहा , यह संस्कृति जीवित और गतिशील रही। लेकिन बाद में सामन्तों और मठाधीशों के निहित स्वार्थ और प्रतिद्वन्द्विता के कारण इसकी गतिशीलता जाती रही, जिससे यह जड़ हो गई और उसके सारे पहलू कमजोर पड़ गए।
भारत के समग्र इतिहास में हम दो परस्पर विरोधी और प्रतिद्वन्द्वी शक्तियों को काम करते देखते हैं। एक तो वह शक्ति है, जो बाहरी उपकरणों को पचाकर समन्वय और सामंजस्य पैदा करने की कोशिश करती है और दूसरी वह जो विभाजन को प्रोत्साहन देती है, जो एक बात को दूसरी से अलग करने की प्रवृत्ति बढ़ाती है।
इस समन्वयवादी संस्कृति Coordinationism Culture के विकास में अनेक प्रजातियों और उनकी संस्कृतियों का संगम रहा है। ईसा पूर्व की दूसरी सहस्राब्दि के मध्य में आक्रमण कर विजय प्राप्त करने वाले आर्य कबीलों का भारतीय सभ्यता पर तीव्र प्रभाव पड़ा। इन्होंने अपने शत्रुओं को दस्यु, अनासा (चपटी नाक वाले), अदेववादी, यज्ञ विरहित, लिंग पूजक तथा दास जैसी उपाधियां दीं। किन्तु शीघ्र ही आर्यों के सामाजिक ढांचे में द्रविड़ सभ्यता के प्रभाव से तेजी से परिवर्तन हुआ। कालान्तर में हम देखते हैं कि आर्यों ने सिन्धु सभ्यता की अनेक विशेषताओं को अपना लिया।
इस देश में एक के बाद एक कम से कम ग्यारह प्रजातियों के आगमन और समागम का प्रमाण मिलता है।…..नीग्रो, ऑस्ट्रिक, द्रविड़, आर्य, यूनानी, यूची, शक, आभीर, हूण, मंगोल और मुस्लिम आक्रमण के पूर्व आने वाले तुर्क इन सभी जातियों के लोग कई झुण्डों में इस देश में आए और हिन्दू समाज में दाखिल होकर सब के सब उसके अंग हो गए।
कर्मकांड की जटिलता और बहुलता एवं ब्राह्मण वर्ग के सामाजिक जीवन पर हावी हो जाने के कारण तत्कालीन धार्मिक परंपराओं के भीतर से ही उसके विरुद्ध एक प्रचंड सांस्कृतिक विद्रोह उठा, जिसे एक प्रकार से शास्त्रीय परंपराओं के विरुद्ध लोक परंपराओं का विद्रोह भी कहा जा सकता है। इस विद्रोह ने धार्मिक उपासना का सरलीकरण किया। वेदों की सर्वाच्चता को नकारा, धार्मिक भाषा के रूप में संस्कृत के स्थान पर जनभाषाओं को महत्व दिया।
वेदों की सत्ता को नकारने के कारण इन्हें नास्तिक परंपरा भी कहा जाता हैं। इनमें बौद्ध और जैन धर्म प्रमुख हैं। कालान्तर में ब्राह्मण परंपरा ने बुद्ध को अवतार मान लिया और धीरे-धीरे बौद्ध धर्म भी कुछ नये देवरूपों और स्मारकों का योगदान दे कर ब्राह्मण परंपरा में ही समा गया।
उत्तरी क्षेत्र की भौगोलिक दुर्गमता के कारण आर्यों के बाद बाहर से आव्रजन immigration करने वाले लोग इस्लाम की तरह की किसी विशिष्ट धार्मिक परंपरा से जुड़े नहीं थे और वे कालान्तर में भारतीय संस्कृति में ही विलीन हो गये।
सिथियन और हूण तथा उसके बाद भारत आने वाली कुछ अन्य जातियों के लोग राजपूतों की शाखाओं में शामिल हो गए। इस सम्मिलन से एक ओर विचारों और सिद्धांतों में उसने उदार होने का दावा किया, तो दूसरी ओर जाति प्रथा, छुआछूत जैसी कुप्रथाओं के चलते संकीर्णता में भी वृद्धि हुई।
इस प्रकार न केवल मध्य एशिया के खानाबदोशों ने , जिनके पास अपनी कोई सामाजिक व्यवस्था या सभ्यता न थी, भारत में प्रवेश किया और भारतीय जीवन को प्रभावित किया, ईसाई जीवन दर्शन और विश्वासों वाले लोग भी आए और इस देश में बस गए।