सबसे बोलें मीठी बानी, थोड़ी है ज़िदगानी।
येई बानी हाथी चढ़बावै, येई उतारै पानी।
येई बानी सुरलोक पठावै, येई नरक निशानी।
येई बानी सें तरैं ईसुरी, बडे़-बडे़ मुनि ज्ञानी।
जग में जौलो राम जिवावै, जे बातें बरकावै।
हाथ-पांव दृग-दांत बतीसऊ, सदा ओई तन रावै।
रिन ग्रेही ना बने काऊ को, ना घर बनों मिटावें।
इतनी बातें रहें ईसुरी, कुलै दाग ना आवे ।
भज मन राम सिया भगवानें, संग कछु नहिं जाने।
धन सम्पत्त सब माल खजानों, रेजै ए ई ठिकाने।
भाई बन्धु अरु कुटुम्ब कबीला, जे स्वारथ सब जाने।
कैंड़ा कैसो छोर ईसुरी, हंसा हुए रवाने।
जीवन की नश्वरता को प्रतिपादित करते हुए महाकवि ईसुरी ने कहा है कि ये मनुष्य तू क्या ये तेरा- ये मेरा के चक्कर में पड़ा हुआ भटक रहा है। इस जीवन का कोई अस्तित्व नहीं है, आज है तो कल नहीं है, तू इस संसार के मोह चाल को त्याग दे, ये सब क्षण भंगुर है।