सबसे पहले Sabhyata Aur Sanskriti Me Antar समझना बहुत जरूरी है । मनुष्य तीन स्तरों पर जीता और व्यवहार करता है- भौतिक, मानसिक और आध्यात्मिक। जबकि सामाजिक और राजनीतिक रूप से जीवन जीने के उत्तरोत्तर उत्तम तरीकों को तथा चारों ओर की प्रकृति के बेहतर उपयोग को ’सभ्यता’ कहा जा सकता है और जब एक व्यक्ति की बुद्धि और अंतरात्मा के गहन स्तरों की अभिव्यक्ति होती है, तब उसे संस्कृति कहा जा सकता है। सभ्यता से मनुष्य के भौतिक क्षेत्र की प्रगति सूचित होती है, जबकि संस्कृति से मानसिक क्षेत्र की।
मनुष्य की जिज्ञासा का परिणाम धर्म और दर्शन हैं। सौन्दर्य की खोज करते हुए वह संगीत, साहित्य, मूर्ति, चित्र, वास्तु आदि अनेक कलाओं व शिल्पों को उन्नत करता है। सामाजिक और राजनीतिक संगठनों का निर्माण करता है। इस प्रकार मानसिक क्षेत्र में उन्नति की सूचक उसकी प्रत्येक सम्यक कृति संस्कृति का अंग बनती है। इसमें प्रमुख रूप से धर्म, दर्शन, सभी ज्ञान विज्ञानों व कलाओं, सामाजिक तथा राजनीतिक संस्थाओं और प्रथाओं का समावेश होता है।
1 – सभ्यता को मापना सरल है, क्योंकि उसका सम्बन्ध वस्तुओं की भौतिक उपयोगिता से है। पर संस्कृति को नहीं, क्योंकि प्रत्येक समाज की अपनी मूल्य व्यवस्था होती है। मूल्यों में भिन्नता के कारण कोई ऐसा सर्वमान्य पैमाना नहीं जिसके आधार किसी संस्कृति को मापा जा सके और एक की तुलना में दूसरी को अच्छी या बुरी कहा जा सके।
2 – सभ्यता उन्नतिशील है और वह एक दिशा में उस समय तक निरन्तर प्रगति करती है, जब तक उसके मार्ग में कोई बाधा न आए। आविष्कारों और नई खोजों के कारण सभ्यता में कई नए तत्व जुड़े हैं और पहले की अपेक्षा वह अधिक समृद्ध है। किन्तु संस्कृति के बारे में यह बात नहीं कही जा सकती।
3 – एक समाज से दूसरे समाज में सभ्यता का हस्तांतरण बिना किसी परिवर्तन के किया जा सकता है, किन्तु संस्कृति का नहीं। उदाहरण के लिए रेल, वायुयान, मोटर, टाइपराइटर, कम्प्यूटर, उत्पादन की मशीनें आदि का एक समाज से दूसरे समाज में यथावत हस्तांतरण हो सकता है, परंतु एक समाज के रीति-रिवाजों, धर्म, दर्शन, मूल्यों, कला, विचारों और विश्वासों को बिल्कुल उसी रूप में हस्तांतरित नहीं किया जा सकता। उनमें थोड़ा.बहुत परिवर्तन आ जाता है।
4 – सभ्यता साधन है और संस्कृति साध्य। उदाहरणार्थ कला एवं संगीत हमें मानसिक शान्ति एवं आनन्द प्रदान करते हैं तो इन्हें प्राप्त करने के लिए हम कई उपकरणों व वाद्य यंत्रों का प्रयोग करते हैं जो सभ्यता के अंग हैं।
5 – सभ्यता का संबन्ध जीवन की भौतिक वस्तुओं से है, जो मानव के बाह्य जीवन और व्यवहार से संबन्धित हैं। इस कारण इसमें परिवर्तन और सुधार संस्कृति की अपेक्षा सरल है। संस्कृति का संबन्ध मानव के आन्तरिक गुणों, विचारों, विश्वासों, मूल्यों, भावनाओं एवं आदर्शों से है। अतः कठिन परिश्रम के बिना संस्कृति में परिवर्तन एवं सुधार संभव नहीं है। सभ्यता की भांति संस्कृति में प्रतिस्पर्धा नहीं पाई जाती। सभ्यता यह बताती है कि हमारे पास क्या है, जबकि संस्कृति यह बताती है कि हम क्या हैं।
6 – सभ्यता मूर्त है, जबकि संस्कृति अमूर्त है।