बुन्देलखण्ड मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में Rani Kamlapati का महल आज भी मौजूद है। भले ही इस महल की दीवारें जीर्णशीर्ण हो गई हों, लेकिन छोटी झील के ऊपर बना यह महल रानी कमलापति की यादों को आज भी ताजा कर देता है।
रानी कमलापति का महल भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के अधीन है। इस महल के बारे में बताया जाता है कि यह महल परमार राजा भोज द्वारा भोपाल ताल के पूर्वी प्राचीन बांध के ऊपर बनाया गया है, जो भोज पाल के नाम से भी जाना जाता है।
जल जौहर करने वाली वीरांगना रानी कमलापति
कौन थीं रानी कमलापति
आखिर रानी कमलापति कौन थीं और इतिहास में उनका क्या स्थान दर्ज है। पर भारतीय जनमानस के मस्तिष्क पटल पर क्यों नही अंकित हो पाया चिंता का विषय है. इतिहास के पन्नों को पलट का देखा जाय तो स्पष्ठ होता है कि 1600 से सन् 1715 तक गिन्नौरगढ़ किले पर गोंड राजाओं का आधिपत्य रहा,उनका राज्य रहा।
भोपाल पर भी उन्हीं का शासन था। गोंड राजा निज़ाम शाह की सात पत्नियां थीं, जिनमें कमलापति सबसे अधिक सुंदर थीं। रानी कमलापति भोपाल की अंतिम गोंड आदिवासी और हिंदू रानी रहीं और अपनी इज्जत, अपनी आन- बान –शान की रक्षा के लिए जल समाधि ले ली थी।
16 वीं सदी में सलकनपुर जिला सीहोर रियासत के राजा कृपाल सिंह सरौतिया थे। उनके शासन काल में वहां की प्रजा बहुत ही खुश और संपन्न थी। उनके यहां एक अति सुंदर कन्या का जन्म हुआ। वह बचपन से ही कमल के समान बहुत सुंदर थी।
उसकी सुंदरता को देखते हुए उसका नाम कमलापति रखा गया। वह बचपन से ही बहुत बुद्धिमान और साहसी थी। कमलापति को घुड़सवारी, मल्लयुद्ध, तीर-कमान चलाने में महारत हासिल थी। वह कुशल प्रशिक्षण से अनेक कलाओं में पारंगत होकर सेनापति बनी।
वह अपने पिता के सैन्य बल के साथ और अपने महिला साथी दल के साथ युद्धों में शत्रुओं से लोहा लेती थी। उस समय पड़ोसी राज्य अकसर खेत, खलिहान, धन-सम्पत्ति लूटने के लिए आक्रमण किया करते थे और सलकनपुर राज्य की देख-रेख करने की पूरी जिम्मेदारी राजा कृपाल सिंह सरौतिया और उनकी पुत्री राजकुमारी कमलापति की थी, जो आक्रमणकारियों से लोहा लेकर अपने राज्य की रक्षा करती रही।
राजकुमारी कमलापति धीरे-धीरे बड़ी होने लगी और उसकी सुंदरता की चर्चा चारों दिशाओं में होने लगी। इसी सलकनपुर राज्य में बाड़ी किले के जमींदार का लड़का चैन सिंह जो राजा कृपाल सिंह सरौतिया का भांजा लगता था, वह राजकुमारी कमलापति से विवाह करने की इच्छा रखता था। लेकिन उस छोटे से गांव के जमींदार से राजकुमारी कमलापति ने शादी करने से मना कर दिया।
16वीं सदी में भोपाल से 55 किलोमीटर दूर 750 गांवों को मिलाकर गिन्नौरगढ़ राज्य बनाया गया, जो देहलावाड़ी के पास आता है। इसके राजा सुराज सिंह शाह (सलाम) थे। इनके पुत्र निजामशाह थे, जो बहुत साहसी, निडर तथा हर कार्य-क्षेत्र में निपुण थे। उन्हीं से रानी कमलापति का विवाह सम्पन्न हुआ। उनको एक पुत्र की प्राप्ति भी हुई जिसका नाम नवल शाह था।
कमलापति के पति निजाम शाह की हत्या
कमलापति के पति निजाम शाह के खाने में जहर मिलवा कर उसकी हत्या कर दी। उसके बाद आलम शाह लगातार षड्यंत्र रचना रहता था। उससे रानी और उनके बेटे को भी खतरा था। ऐसे में रानी कमलापति अपने बेटे नवल शाह को गिन्नौरगढ़ से भोपाल स्थित रानी कमलापति महल ले आईं. रानी कमलापति अपने पति की मौत का बदला लेना चाहती थीं। लेकिन दिक्कत ये थी कि उनके पास न तो फौज थी और न ही पैसे थे।
पति की हत्या का बदला
कुछ दिन भोपाल में समय बिताने के बाद रानी कमलापति को पता चला कि भोपाल की सीमा के पास कुछ अफगानी आकर रूके हुए हैं, जिन्होंने जगदीशपुर (इस्लाम नगर) पर आक्रमण कर उसे अपने कब्जे में ले लिया था। इन अफगानों का सरदार मोहम्मद खान था, जो पैसा लेकर किसी की तरफ से भी युद्ध लड़ता था। लोक मान्यता है कि रानी कमलापति ने मोहम्मद खान को एक लाख मुहरें देकर चैनसिंह पर हमला करने को कहा।
मोहम्मद खान ने गिन्नौरगढ़ के किले पर हमला कर दिया जिसमें चैनसिंह मारा गया और किले को हड़प लिया गया। रानी कमलापति को अपने छोटे बेटे की परवरिश की चिंता थी इसीलिए उन्होंने मोहम्मद खान के इस कदम पर कोई आपत्ति नहीं जताई। मोहम्मद खान लालच बढता गया और अब सम्पूर्ण भोपाल की रियासत पर कब्जा करना चाहता था। उसने रानी कमलापति को अपने हरम में शामिल होने और शादी करने का प्रस्ताव रखा।
वह रानी को अपने हरम में रखना चाहता था। मोहम्मद खान के इस नापाक इरादे को देखते हुए रानी कमलापति का 14 वर्षीय बेटा नवल शाह अपने 100 लड़ाकों के साथ लाल घाटी में युद्ध करने चला गया। इस घमासान युद्ध में मोहम्मद खान ने नवल शाह को मार दिया। इस स्थान पर इतना खून बहा कि यहाँ की जमीन लाल हो गई और इसी कारण इसे लाल घाटी कहा जाने लगा।
रानी कमलापति ने विषम परिस्थति को देखते हुए अपनी इज्जत को बचाने के लिए बड़े तालाब बांध का संकरा रास्ता खुलवाया जिससे बड़े तालाब का पानी रिसकर दूसरी तरफ आने लगा। इसे आज छोटा तालाब के रूप में जाना जाता हैं। इसमें रानी कमलापति ने महल की समस्त धन-दौलत, जेवरात, आभूषण डालकर स्वयं जल-समाधि ले ली।
मोहम्मद खान जब तक अपनी सेना को साथ लेकर लाल घाटी से इस किले तक पहुंचा उतनी देर में सब कुछ खत्म हो गया था। दोस्त मोहम्मद खान को न रानी कमलापति मिली और न ही धन-दौलत। जीते जी उन्होंने भोपाल पर परधर्मी को नहीं बैठने दिया। स्रोतों के अनुसार रानी कमलापति ने सन् 1723 में अपनी जीवन-लीला खत्म की थी।