Ramu Raja bana रामू राजा बना पर कैसे बना ? बिरजू एक सीधा सरल किसान था उसके एक पुत्र था जिसका नाम उसने बड़े प्यार से रामू रखा था। रामू जब ५ वर्ष का ही था तभी उसकी माँ उसे छोड़कर चल दी। लोगों के जिद करने पर जैस तैसे बिरजू अपनी दूसरी शादी के लिए तैयार हो गया। वैस उसकी इच्छा दूसरी शादी करने के लिए बिल्कुल नहीं थी। मोहल्ले के लोगों ने उसकी दूसरी शादी के बाद कहा विरजू अब तो तुम्हारी नई पत्नी भी आ गई है, तुम दोनों को ही रामू की हर प्रकार से परवरिश करनी है।
बिरजू लोगों की बातों को सुनकर बड़ी ही लापरवाही से कह देता “अरे, आप लोग इस बात की बिलकुल परवाह न करें, रामू तो हमारा बहुत लाड़ला बेटा है, हम उसे किसी बात की कमी नहीं होने देंगे ।” बिरज की शादी हुए अभी केवल एक माह का समय ही गजरा था, कि रामू के ऊपर उसकी दूसरी माँ ने कामकाज की जारी जिम्मेदारी डाल दी यहाँ तक कि बाहर का काम तो वह करता ही, लेकिन घर का खाना भी उसी से बनवाया जाता था।
एक दिन की बात है रामू ने रसोई घर में दाल, रोटी बनाई और वह अपनी माँ से बोला माँ, जल्दी से आ जाओ और भोजन कर लो, माँ ने सुना तो वह तुरन्त रसोई घर में आ गई। रामू ने थाली परोसी और जैसे ही उसने भगोने से दाल परोसी ज्यों ही कुछ दाल छिटक कर नई माँ की साड़ी पर गिर पड़ी। दाल का गिरना था कि एक दम रामू की माँ उसे मारने लगी ।
वह उससे बोली जा निकल जा यहाँ से कहीं भी जा किसी कुए में भी गिर जा मुझे तेरी जरुरत नहीं क्यों मेरी जान खा रहा है उसी वक्त नई माँ ने राम को घर से बाहर निकाल दिया । रामू को जब घर से निकाला जा रहा था, उस समय बिरजू खेत पर काम करने गया था । घर से निकलने के बाद रामू काफी परेशान और दुखी था । वह सोचने लगा कि आखिर कहां जाएं तभी उसके मन में पता नहीं क्या सूझा वह जगल की तरफ चल दिया । वह लगातार चलता जा रहा था, उस जंगल की ओर जहां शेर चीते और भी खुंखार जानवरों का डर था ।
कुछ देर चलने के बाद उसे एक नदी दिखाई दी जहाँ वह कुछ देर के लिए बैठ गया उसे बड़े जोरों की भूख लगी थी। उसने आसपास देखा तो नदी के किनारे एक आम का पेड़ दिखलायी दिया आम के पेड़ पर पके हुए आम लगे थे रामू ने पेड़ पर चढ़कर कुछ आम तोड़े और खाए । इस तरह उसका पेट भर गया ।
इसके बाद रामू आगे बढ़ा आगे बढ़ने पर उसे कुटिया दिखाई दी, कुटिया में एक साधु महात्मा ध्यान मे बैठे थे । रामू ने महाराज का ध्यान भंग करना उचित नहीं समझा और वह वहीं कुटिया पर रुक गया उसने कहा में कटिया की सफाई की और गोबर से लीपकर पूरी को सुन्दर बना डाला।
थोड़ी देर में महात्मा जी का ध्यान भंग हुआ उन्होंने जब अपने सामने एक छोटे से बालक को देखा तो वे उसी बोले बेटे तुम कौन हो, और कहाँ से आए हो रामू ने दोनो हाथ जोडकर महात्मा को प्रणाम किया और बोला बाबा मेरे पिताजी ने अपनी दूसरी शादी कर ली है और मेरी नई माँ ने मुझे मारा-पीटा और घर से निकाल दिया मैं जंगल-जगल भटक रहा हूँ । ऐसा कहते हुए रामू फूट-फूट कर रोने लगा।
महात्मा जी ने रामू को अपने पास बिठाकर चुप किया और बोले बेटा तुम बिलकुल परेशान मत हो, सब ठीक हो जाएगा महात्मा जी की बात सुनकर रामू बोला बाबा ! मुझ तो आप अपनी कटिया में ही रख लीजिए आप जो आज्ञा देगे मैं उस मानूगा। महात्मा जी ने रामू की बात मान ली लेकिन उन्होंने उससे कहा कि तुम्हें प्रतिदिन “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” मंत्र का सात दिन तक पाठ करना पड़ेगा।
दूसरे दिन से ही रामू ने पाठ करना शुरु कर दिया, यंत्र जाप करते हुए सात दिन की जगह आठ दिन व्यतीत हो गए। आठवें दिन महात्मा जी उससे बोले तुम केवल तीन बातों का हमेशा ध्यान रखना, पहली बात यह है कि प्रत्येक माँ-बहिन को अपनी माँ-बहिन समझो, दूसरी बात अपने मालिक का काम सच्चे मन से करना और आखिरी बात यह है कि जहाँ सत्संग या भजन कीर्तन हो रहा हो वहां जरुर जाना ।
इसके बाद महात्मा जी उससे बोले बेटे ! अब तुम उत्तर दिशा की ओर जाओ कुछ दूर चलने के बाद तुम्हें एक नगर मिलेगा. तुम वहाँ के राजा के पास जाना और राजा से निवेदन करना कि वह तुम्हें अपने यहाँ कोई नौकरी दे दे राजा तुम्हें फौरन नौकरी पर रख लेगा।
महात्मा जी की बात मानकर रामू उत्तर दिशा तरफ चल दिया आगे चलने पर उसे एक सुन्दर सा नगर मिला उस नगर के राजा के पास वह पहुंचा और उसने नौकरी के लिए प्रार्थना की राजा ने रामू को फौरन अपने यहाँ नौकरी पर रख लिया । रामू राजा की पुत्री राजकुमारी चम्पा की देखभाल के लिए उसके साथ अक्सर रहने लगा। राजकुमारी के कोई भाई नहीं था रामू जैसा सरल हृदय वाला व्यक्ति पाकर उसे अपना भाई मान लिया दोनों में बड़ा ही स्नेह था।
एक दिन की बात है कि राजकुमारी उसको बड़े प्यार से एक कटोरी में खीर लेकर अपने भाई रामू को खिलाने लगी इतने में ही राजा अपने कुछ काम से वहां से गुजरे उन्होंने जब राजकुमारी द्वारा अपने नौकर रामू को खीर खिलाते हुए देखा तो वे एकदम गुस्से में आग बबूला हो गये। उस समय तो उन्होने कुछ नहीं कहा और गुस्से में भरे हुए चले गये ।
इधर राजा ने मन ही मन रामू को जान से मारने की सोच ली। उसने एक भयानक उपाय सोच लिया। राजा ने अपने बगीचे के माली से यह कह डाला कि जो व्यक्ति सुबह ४ बजे बगीचे से फलों की पूड़िया लेने आए उसे तुम जान से मार डालना माली ने राजा की बात मान ली। दूसरे दिन राजा ने रामू से कहा रामू तुम्हें सुबह ४ बजे बगीचे से फूलों की पुड़िया लाना है क्योंकि हमारे यहाँ राज दरबार में एक विशेष पूजा होती रामू बोला जी महाराज मैं सुबह ही बगीचे से फूलों की पुडिया ले आऊगा आप चिन्ता न करें।
इधर राजा के मंत्री के घर उनकी पत्नी प्रदोष रखती थी व्रत के कारण मंत्री और उनकी पत्नी उस दिन जल्दी ही जाग गए मंत्री की पत्नी बोली अभी तक अपना माली फूलों की पुड़िया नहीं लाया है जबकि ५ बजे मदिर चलना है मंत्री ने अपनी पत्नी की बात सुनकर कहा अरे ! तुम माली इन्तजार क्यों करती हो मैं अभी राजा के बगीचे से अच्छे अच्छे फूल तोड़कर लाता हूँ लगभग ४ तो बज ही गए है। ऐसा कहकर मंत्री जी राजा के बगीचे की ओर चले गए बाग में पहुचकर उन्होंने अभी फूल तोड़ना शुरु ही किया था कि पीछे से बगीचे के माली ने तलवार से मंत्री का सर कलम कर दिया अंधेरे में वह मत्री को देख भी न पाया।
सुबह ५ बजे के बाद रामू फूलों की पुड़िया लेकर भागते भागते राजा के पास पहुचा । राजा ने जब रामू को जीवित देखा तो वह एकदम चक्कर में पड़ गया। वह रामू से बोला-मैंने तो तुम्हें चार बजे फूलों की पुड़िया लाने के लिए कहा था तुम्हें देर कहाँ लगी। रामू माफी माँगते हुए हाथ जोड़कर बोला हुजूर ! मुझ माफ करिये । एक जगह रास्ते में मदिर में भजन कीर्तन चल रहा है मैं कुछ देर वहाँ सब लोगों के बीच सत्संग में बैठ गया। राजा रामू को डांट ही रहे थे तभी मंत्री की पत्नी रोती चिल्लाती राजा के पास आई। महाराज ! मेरे पति को बगीचे में किसी ने मार डाला।
महाराज सुनकर एकदम आश्चर्य चकित रह गये उनके चेहरे पर हवाइयाँ सी उड़ने लगी। राजा ने सोचा कि मैंने ही रामू को मारने के लिए माली से कहा था उसने तो मंत्री को ही मार डाला। राजा ने माली को दरबार में पेश होने का हुक्म दिया। माली डरता-सहमता राज दरबार में उपस्थित हुआ। राजा ने जब उससे पूछा -क्यों माली तुमने मंत्री जी को क्यों मार डाला ।
पहले तो माली कुछ कहने में सकुचाया लेकिन जब जान पर बन आई तो वह खुलकर कहने लगा हजूर ! आपने ही तो कहा था कि सुबह ४ बजे कोई भी व्यक्ति फूल लेने आए तो उसे जान से मार डालना । मैंने तो आपकी आज्ञा का ही पालन किया है। माली की बात सुनकर सभी राज दरबारी मंत्री की पत्नी और रामू एकदम से आश्चर्य चकित रह गए ।
यह देखकर राजा के होश उड़ गए। अब तो उसके सामने एक अजीब ही समस्या आ खड़ी हुई क्योंकि वह स्वय ही मंत्री की हत्या के लिए दोषी था । वह अपने माली को भी कुछ दण्ड नहीं दे सकता था । वह अपने मंत्री को भी कुछ दण्ड नहीं दे सकता था । क्योंकि माली ने तो राजा का नौकर होने के कारण आज्ञा का पालन ही किया सभी दरबारी आपस में कानाफूसी करने लगे कि राजा ने बिना बात अपने मंत्री को मरवा दिया। सभी अलग-अलग तरह-तरह की अटकलें लगा रहे थे।
तभी राजा ने राज पुरोहित से कहा, पुरोहित जी ! मेरे मंत्री की हत्या हो गई है और मेरे माली ने उसकी हत्या की है मैं इसे क्या दण्ड दू, अपनी राय बतलाए। राजपुरोहित जी हाथ जोड़कर नम्रता से बोले महाराज क्षमा करें। माली तो इस हत्या के लिए कतई दोषी नहीं है। उसने तो आज्ञा का पालन किया है। आपने ही अपने मंत्री को मरवाने की आज्ञा उसे दी थी। ऐसी स्थिति में आप ही दोषी हैं।
सजा तो आपको ही मिलना चाहिए पुरोहित की बात सुनकर सभी दरबारी उठकर अपने घर चले । राजा भी गुम्से से आग बबूला हो गया लेकिन राज पुरोहित से कुछ न कह सका । राजा को मौन देखकर राजपुरोहित ने भी प्रश्न किया । राजन.. आपने अपने मंत्री को किस बात पर मारने की आज्ञा दी। राजा कुछ देर मौन रहा फिर बोला पुरोहित जी मैंने विश्वासी मंत्री को मरवाने की कतई आज्ञा नहीं दी थी। पूरोहित ने राजा से प्रश्न किया फिर माली ने आपके सामने क्यों कहा कि आपने आज्ञा दी थी।
राज पुरोहित जी की बात सुनकर राजा को अपने मन की बात कहनी पड़ी वह बोला पूरोहित जी मैंने ही अपनी पुत्री को गलत समझा वह एक दिन रामू को अपने हाथों से खीर खिला रही थी और मैंने दूर से देख कर समझा कि रामू और मेरी पुत्री में प्रेमालाप चल रहा है जो मुझे कतई पसंद नहीं आया कि एक मामूली व्यक्ति मेरी पुत्री के साथ ऐसा व्यवहार करें मैंने फौरन निर्णय किया कि रामू को किसी प्रकार मरवाया जाय।
यह सुनते ही दरबार में खडा हुआ रामू महाराज के सामने जाकर बोला महाराज आप मेरी जान भले ही ले लें लेकिन राजकुमारी जी एवं मेरे बीच गलत सम्बंधों का कोई अर्थ न लगाऐ, राजकुमारी जी मेरे लिए श्रद्धेय हैं और मेरी बहिन हैं आपने दूर से हम भाई बहिन का प्यार देखकर ऐसा गलत कैसे सोच लिया ?
रामू की बात सुनकर राजा चुप था राजा के मौन को देख राजपुरोहित ही बोले महाराज कभी कभी सामने देखी हुई बात भी गलत होती है आपने भाई बहिन के प्यार को नहीं समझा । राजकुमारी तो किसी को भी भाई बना सकती हैं उसके लिए क्या ऊच, क्या नीच । आपने इसी भेदभाव के कारण अपने मंत्री को मरवा डाला । अत: दोषी तो आप ही हैं।