Pariyan Ko Khel परियँन कौ खेल-बुन्देली लोक कथा

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By admin

हवा में लठठ घाले सें आम नईं गिरत कभऊँ -कभऊँ हवा में लठठ घाले सें Pariyan Ko Khel दिखा जात? एक गाँव में एक भौतई सूदे सादे भोले भैया रत्ते। उनके नन्ना तौ हल्कई में चल बसे ते। मताई ने जैसे-तैसे डाना घोर-घोर कैं पाल पोस कैं ठाँढ़ो कर पाव तो। भोले ने जईसैं तनक सुर्त समारी, सोऊ सब बातें  उनकी समज में आवन लगीं। अपनी मताई पै दया आउन लगी। सोसन लगे कैं मताई हमें कन्नों खोवाऊत-पियाऊत रैय। अब हम बड़े हो गये, हमें सोऊ कछून कछू करो चइये।

एक दिनां भोले अपनी मताई सैं बोले कैं ओरी अब हम बैठे-बैठे का करें। तुमाई बसकी अब कामनई रओ। हम परदेशै जाकैं कमाई करन चाऊत, जीसैं अपन दोई जनन कौ अच्छी तरा सै गुजारौ होंन लगै। लरका की बातें सुन-सुन कैं मताई सन्न होकैं रै गई। उर अपनें लरका के मौ कुदाँव हेर कैं कन लगी कैं बेटा इतै अकेलै हमाओ कैसे मन लगे। अबै तौ हड्डी घोर-घोर कैं जैसे बनो सो अपनौ गुजारौ चलाऊत रये।

जिदनाँ तुम ई घर में नई रैव सो हमाओ जीबो मुश्कल हो जेय। ईसैं जो बने सो मैन्त मजूरी इतै करत रबूँ। नाँय माँय जाबे की बात नई करो। कन लगत कै घर की आदी भलीं। ईसै नौन रोटी खाकैं गुजारौ करत रैबूँ। भोले भइया बोले कैं मताई तुम फिकर नई करो हम चारई-छै मइना में थोरौ कमा धमा कैं लौट आँय। अपनौ घर छोड़ कै क्याऊँ अच्छौ लगतई नइयाँ परदेश में रैकैं का करें। तुमाये बिना तौ हम रैई नईं सकत?

हमें कछू दिना खौं चलो जानदों हम उलायते लौट कै आ जैय। सुनतनई मताई की आँखन में डबरियाँ भर आई उर बोली कैं अच्छी बात है तुम कछू दिना खौं हो आव नईंतर तुमाये मन में लगी रैय अकेलै भौतई जल्दी लौट कैं जा जइयौ। रात कैं हम तुमें गैल के लानै कलेवा बना दैंय। क्याऊँ गैल में छायरे में बिलम कै थौरौ भौत खा लिइयौ।

उतै जातनई खाबे कौ इंतजाम कैसें हो पैय, कन लगत कै बगल में तोसा तौ दम कौ भरोसा। मताई खौ चिन्ता के मारैं रात भर नींद नई आ पाई। क्याऊँ सैं तेल मँगा ल्आई उर क्याऊँ सै सेर भर कनक। बड़े प्रेम सै सात ठौवा मोटी-मोटी लुचई बनाकै उन पैं चार ठौवा अमियाँ की कली धरकैं एक छन्ना में बाँध दई। एक छोल्ला में लुटिया डोर उर कलेवा धर कैं बड़े भुन्सराँ भइया खौं गहा दओ।

वे झोल्ला खों कदा पै टाँग कैं लठिया हाँत में लैकैं डगयात आगे खौं चल दये। चलत-चलत पाँच-छै कोस कड़ गये। हराँ-हराँ दुपर हो गये। घामौ तेज हो गओ उर उनें भूक-प्यास सतावन लगी। उनें दूर सै घने पेड़न के छाँयरे में एक लम्मी चौरी बावरी दिखा परी। चांरई तरपै जंगल उर उतै चिरइया तक नई दिखा रई ती। भोले ने सोसी कै ईसै अच्छी जगा और का हो सकत। अच्छौ घनों छाँयरौ है बैठबै खौं पटेलैं डरी पानी सै बावरी भरी।

वे हारे-थके सो हतेई। अपनी लठिया उर छोल्ला धरकै अच्छी तरा सैं मौ हाँत धोए उर एक लोटा भर पानी पीबे खौं धरकै आराम सै बैठ गये। फिर झोल्ला मे सै कलेवा काड़ो उर गल्ला में बँधी लुचई छोर कै गिनी सोवे सात लुचई कड़ी। वे बैठ कैं जोर-जोर सै कन लगे कै एक खाँऊ कै दो खाऊँ कै तीन खाऊँ कै सातई खाऊँ। जा बात उन्नै मस्ती में कैऊदार दुहराई।

ऊ बावरी में सात ठौआ परियाँ रत्तीं। उन्नें जई सै सुनी कै कुआँ की पाट पै कोनऊ हमसै जादाँ तागतवर आ ग़ओ है उर वौ हम औरन खौं खाबे की बिदी लगा रओ है। कजन हम ऊकी सेवा खुशामद नई करें तौ वौ तौ हमन खौं खाई जैय। लगत कैं कोनऊ भौत बड़ो दानौ आ गओ।

उनन ने सला करी चलों अपुन उयै मना लिइयै नईतर अपुन सातई जनीं मर जाँबू। भोले नें लुचई खाई नई पाई ती। वे इत्ती कै ई रये ते। इतेकई में वे सातई परियाँ बावरी सें कड़कै भोले के सामैं हाँत जोर कैं ठाँढ़ी हो गई। भोले उनें देखतनई भौचक्के से रै गये। पैलाँ तौ वे तनक डरा से गये फिर तनक साहस बाँध कै उनन की बातें सुनन लगे। उनन ने कई कै देखौ तुम हमें खाव नई हम तुमें एक भौत अच्छी चीज दै रये जीसैं तुमाव दालुद्दुर दूर हो जैय। उर तुम मालामाल हो जैव।

परियँन की बात सुनकै भोले फूलकैं कुप्पा हो गये उर सोसन लगे कै जौ अच्छौ धुआँ में लट्ठ घलो। कैतौ रये ते हम लुचई खाबै की उर कड़ कै आ गई जे परी। भगवान नें अच्छी सुनी अब परदेश जाकैं का करनें। वे परियाँ बावरी में सैं एक छिरिया ल्आकैं भोले के सामने ठाँढ़ी कर दई उर कन लगी कै देखौ हम तुमें जा छिरिया दै रये हैं। तुम इयै अपने घरैं लै जाव। अच्छी तरासै लीपपोत कै इयैं चौकमें ठाँढ़ों करकै कइयौ कै जय मोरी छिरिया देव हमें सोनें की लेंड़ी। इत्ती कतन वा सोने की लेड़ी छेरमारै।  हराँ-हराँ तुमाओ घर भर जैय सोने की लेंड़ियन सैं।

इत्ती कैकैं उर उनें छिरिया सौंप कैं सातई परी जाँ की ताँ बावरी में घुस गई। पैलाँ तौ भोले नें अच्छी तरा सें लुचई मसकीं। लोटा भर पानी पियो उर उतै दुपरिया बिलमाई। अब उयै परदेशैं जाकैं का करने तौ। छिरिया लैकैं मौगे चाले अपने घरैं लौट आये उर लौलईया लगै अपने घरै पौंच कै किवार भड़के। मताई तौ अकेली उदास तौ बैठअई हतीं। उतंई सैं कई कै कोआ है भइया। भोले नें  बायरै हुन कई कै मताई जल्दी किवार खोलौ हम लौट कैं आ गये।

मताई नें अपने लरका की अवाज पैचान लई उर अकबका कै जल्दी सैं किवार खोले। उरकन लगी कैं काय बेटा। तुम तौ जल्दी लौट कैं आ गये। भोले कन लगे कै अब हमें परदेशैं जाबे की जरूरत नइयाँ। भगवान ने गैलई में  हमाये दिन सूदे कर दये। मताई ने पूछी कैं तुम जा छिरिया कायखौ लै आये। भोले कन लगे कैं मताई ई छिरिया कौ कमाल देखियौ। ऐईसै तौ अपनौ दालुद्दुर दूर होनें।

आँगन में  अच्छी तरा सैं लीपा पोती कर दो। मताई ने लीपचोत कैं चौक में छिरिया खौ ठाँढ़ी कर दई। भोले नें कई कें जय मोई छिरिया देव सोने की लेंड़ी। इत्ती कई कैं छिरिया ने ढेरन सोने की लेंड़ी छेर मारीं। मताई देख कैं रै गई उर वे लेंड़ी घर के एक कोने में कुड़ेर दई। छिरिया खौ चराबे भोले अच्छी-अच्छी हरी पत्ती ल्याउन लगे। उन कौ जौ काम कैऊ रोज नौ चलत रओ उर भोले माला-माल हो गये। उनकौ ठाट बाट देख कै पुरा परोस में घैरा घूँसा होंन लगे।

जे कछू करत तौ हैं नइयाँ उर खात पियत काँसै हैं। लगत कैं कछू गोदन पिण्डी इनें क्याऊँ सै मिल गई है, तबई तौ इनके भाव बढ़ गये, काऊ सैं सूदें बात करत नइयाँ। एक दिनाँ भोले की मताई ने सोसी कैं हमाये इतै घर में तौ ढेरन सोने की लेंड़ी हो गई तनक पैलाँ कै नाँपकैं देखते कै वे कै पैलाँ हो गई। वे परोसन के नाँसै पैला माँगबे चली गई।

परोसन ने सोसी कैं अबै तौ मताई बेटा भूँकन मरत ते अब इन्नो ऐसों का आ गओ कैं जीखौं पैलाँ सै नापबे की जरूरत पर गई। लगत कैं कछू गड़बड़ी जरूरई है। परोसन ने पैला देत में ऊकी तरी में लीटा गुर चिपका कैं उयै पैला गोआ दओ। ऊनें पैला सैं नाप-नाप कैं सोने की लेंड़ी घर में धर लई उर पैला परोसन खौं  वापिस दैबे चली गई। परोसन ने पैला की तरी में दो चार सोने की लेंड़ी चिपकी देखीं। सोऊ वा सनाकौ खाकै रै गई। उर सोसन लगी कै ईनौ इत्ती जादाँ सोने की लेंड़ी काँसैं आई।

ऊनें एक तक्का में हुन ऊ छिरिया कौ खेल देखौ सोऊ सब समज गई। ऊनें अपने घरवारे खौं  पूरी बातें बता दई। ऊकौ घरवारौ ऊ छिरिया कौ चुराबे के चक्कर में फिरन लगो। वौ आदी राते उठौ उर ऊने देखौ कै वे दोई मताई बेटा घुर्राटौ दये सो रये हैं। वौ परदिया पै हुन भीतर घुस गओ उर पौर की साँकर खोल कैं किवार खोल दये। भीतर सैं छिरिया छोर कै अपनै घरैं लै आये उर ऊकी जगा पै औरई छिरिया बाँद दई। उर फिर आराम सें अपने घरै सो गये।

भुन्सराँ उठतनई परोसी ने लीप पोत कै छिरिया ठाँढ़ी करी उर कन लगे कैं जय मोरे छिरिया देव सोने की लेंड़ी। कैऊदार कत रये अकेलैं ऊ छिरिया ने एकऊ लेंड़ी नई दई। परोसी मूँढ़ पटक कै रै गओ। उर उतै भोले नाँ वा छिरिया ऊतई ठाँढ़ी-ठाँढ़ी मूतत रई। भोले जान गये कै हमाये संगै भौत बड़ौ धोकौ हो गओ।

दो-तीन दिनाँ परोसी वा छिरिया बाँदै रओ उर फिर निराश हो कै उयै जाँकी ताँ बाँद दई। कछू दिनन में वा छिरिया परियँन नौ जाँकी ताँ पौंच गई। अकेलैं भोले खौं खूबई माला माल कर गई। जौ हौत भाग कौ खेल। जियै देत भगवान सो छप्पर फार कै देत। बाढ़ई नेबनाई टिकटी उर हमाई किस्सा  निपटी।

गहनई लोक कथा 

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