Gahnai Lok Gatha  गहनई -लोक गाथा परिचय

Gahnai Lok-gatha  गहनई लोक-गाथा

बुन्देलखंड की Gahnai Lok-gatha कुछ क्षेत्रों में गोचारण के लिए जाते समय या गोचारण के बाद लौटते समय अहीरों द्वारा गाया जाता है। अहीरों के समूह अपने-अपने खिरकों से गायें लाकर कालिंजर जाते हैं और चार माह बाद गायें चराकर लौटते हैं, जिसे चारमास कहा जाता है। गोचारण की यह गाथा मूलतः गाय चराने से सम्बन्धित है।

बुन्देलखंड की गहनई लोक-गाथा  

 

गहनाई मूल कथा
बुन्देलखंड

की  यह Gahnai Lok-gatha  कृष्ण के गोपालक और गोरक्षक होने से वह उनसे जुड़ गई है। प्रस्तुत गाथा में कन्हैया का व्यक्तित्व एक अहीर का है, जो युद्ध में पत्थर का हो जाता है। उसमें देवत्व और अतिप्राकृत शक्ति का आरोपण नहीं है, इस कारण उसका चरित्र मध्ययुग के भगवान कृष्ण से सर्वथा भिन्न है। इस आधार पर यह गाथा मध्ययुग के पूर्व 13वीं -14वीं शती की लगती है।

मुख्य घटना कन्हैया से राजा गंग्यावल का कालिंजर घाटी में लड़ा गया युद्ध है, जो इस पाठ में वर्णित नहीं है। युद्ध में गुमान बैल और नाचनी गाय को छोड़कर सभी पत्थर के हो गए थे। उन दोनों ने घटना का हाल गौरा को सुनाया और गौरा ने कन्हैया की साथिन ग्वालिन या पत्नी को।

गौरा ने उससे अपने पति या साथी, अन्य चरवाहे और गायों तथा पशुधन जीवित करने के लिए कहा। देवों के वरदान से ग्वालिन ने अपनी छिंगुरी चीरकर पत्थरों पर छिड़क दी, जिससे वे सब जीवित होकर सुखपूर्वक रहने लगे।

गाथा का पाठ बीच-बीच में छूटने और अर्पूणता के कारण कथानक में कोई तारतम्य नहीं बनता। बिखरे सूत्र जोड़ने से यह निष्कर्ष निकलता है कि एक ग्वालिन अपने पति के वियोग में पहले प्रलाप करती है और उसे पाने के लिए तत्पर है। उसका ननदोई कन्हैया उसे भैरव, गुमान बैल, नाचनी गाय को पूजने के लिए कहता है और इस प्रकार चरागाही संस्कृति का संवाद शुरू हो जाता है।

वस्तुतः इस गाथा में गोचारणी लोकसंस्कृति की तस्वीर सीधी-सादी रेखाओं द्वारा अंकित की गई है। उसमें देवत्व और जादू के चमत्कारों का दबाव नहीं है। किसी विशेष अमीरी समस्या का उल्लेख नहीं है।

घाटी के राजा और घाटी के चरवाहों के बीच युद्ध और युद्ध के परिणामस्वरूप वैधव्य की करुण वेदना की धारा के किनारे उगी चरागाही लोकसंस्कृति से जुड़ी उक्तियाँ ही इस गाथा की प्राण हैं।

संदर्भ-
बुंदेलखंड दर्शन- मोतीलाल त्रिपाठी ‘अशांत’
बुंदेली लोक काव्य – डॉ. बलभद्र तिवारी
बुंदेलखंड की संस्कृति और साहित्य- रामचरण हरण ‘मित्र’
बुंदेली लोक साहित्य परंपरा और इतिहास- नर्मदा प्रसाद गुप्त
बुंदेली संस्कृति और साहित्य- नर्मदा प्रसाद गुप्त
मार्गदर्शन-
श्री गुणसागर शर्मा ‘सत्यार्थी’
डॉ सुरेश द्विवेदी ‘पराग’

बुन्देली झलक (बुन्देलखण्ड की लोक कला, संस्कृति और साहित्य)

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