पन्ना में इस समय राजा किशोरसिंह का राज्य था। बाँदा के नवाब की हार के पश्चात् Panna – Angrejo Se Sandhi हो गई और राज्य अंग्रेजों के अधीन हो गया । इससे इन्होंने राजा किशोरसिंह को वि० सं० 1864 ( 14-5-1807 ) मे पहली सनद दी। पर सनद मिलने के समय राजा किशोरसिंह स्वत: न जा सके। इन्हेंने अपनी ओर से अपने मंत्री राजधर गंगासिंह को भेजा
वि० सं० 1864 की सनद लेने के लिये महाराज किशोरसिह की तरफ से उनका मंत्री राजधर गंगासिह गया था। यह बड़ा ही चालाक और स्वार्थी था इसने मौका मिलते ही कंपनी की सरकार को धोखा दे कर पबई और खटोला नाम के दोनों परगने अपने नाम करा लिए और उनकी सनद भी ले ली । बाद मे इस बात की खबर महाराज को लगी तब वे स्वतः गए और कंपनी की सरकार को दूसरा इकरारनामा लिखा। इससे उन्हें वि० से० 1868 ( 22-3-1811 ) में पूरे राज्य की दूसरी सनद मिली ।
राजा किशोरसिह अंग्रेजों के बड़े मित्र रहे। वे हमेशा उन्हें सहायता देते रहे । परंतु इनका प्रबंध अच्छा नही था। इससे अंग्रेजों ने राज्य-प्रबंध करने के लिये छतरपुर के राजा कुँवर प्रतापसिंह को 4 वर्ष के लिये नियुक्त किया था। परंतु यह बीच ही मे अलग कर दिया गया। किशारसिंह वि० सं० 1881 में मरे और उनके पुत्र हरवंशराय राजा हुए ।
हरवंशराय के कोई संतान नही थी। ये संबत् 1606 में परलोक को सिधारे। इससे इनके भाई नृपतसिंह राज्य के अधिकारी हुए । परंतु पन्ना राज्य मे सती की प्रथा अब तक बंद नही हुई थी। यही कारण बतलाकर अंग्रेजों ने राजा नृपतिसिंह का गद्दी पर बैठना मंजूर न किया। अंत में राजा ने बाध्य होकर अपने राज्य से भी सती होने की प्रथा बंद करने की घोषणा कर दी।
संवत् 1814 मे राजा नृपतिसिंह ने अंग्रेजों की बहुत सहायता की थी। इससे इन्हें गोद लेने की सनद दी गई और बहुमूल्य सिरोपाव (खिलअत) तथा 20000 हजार रुपए नगद दिए गए। किंतु इसी साल एक सरहदी झगड़े में इन्होंने सरकारी हुक्म की अवहेलना की जिससे इनका ध्यान इकरारनामे की ओर दिलाया गया। संवत्त् 1827 में इन्हें फौजदारी के अधिकार मिले और संवत् 1924 में महेंद्र की पदवी दी गई। ये विक्रम-संवत् 1927 में स्वर्ग को सिधारे।