Homeबनाफ़री लोक कथाएंPandit panditain पंडित पंडिताइन-बनाफरी लोक कथा

Pandit panditain पंडित पंडिताइन-बनाफरी लोक कथा

किस्सा सी झूठी न बात सी मीठी। घड़ी घड़ी कौ विश्राम, को जाने सीताराम। न कहय बाले  को दोष, न सुनय  बाले का दोष। दोष तो वहय जौन किस्सा बनाकर खड़ी किहिस  और दोष उसी का भी नहीं। । शक्कर को घोड़ा सकल पारे के  लगाम।

छोड़ दो दरिया के बीच, चला जाय छमाछम छमाछम। इस पार घोड़ा, उस पार घास। न घास घोड़ा को खाय, न घोड़ा घास को खाय। …. जों इन बातन का झूठी जाने तो राजा को डॉड़ देय।. .. . . कहता तो ठीक पर सुनता सावधान चाहिए। . . . . .।  

ऐसे ऐसे एक रहय  पंडित एक रहय  पंडिताइन। पंडित दिन भर भिक्षा मांगते थे फिर भी दिन भर के लिए खाने को नही ला पाते थे। तो एक दिन पंडिताइन ने कहा कि पंडित तुम दिन भर मांगते हो फिर भी एक समय का खाना नहीं मिल पाता है। तो पंडित ने कहा कि बताओ पंडिताइन फिर क्‍या किया जाय?

तब पंडिताइन बोली, होय न होय किसी दूसरे गाव चलें। मतलब यहाँ खाने को पूरा नहीं मिल पाता। पंडित ने कहा, ठीक है चलो और दोनों ने अपना बोरी-बिस्तर बॉधा और पैदल चल दिए। पंडिताइन कभी पैदल तो चली नहीं थी। इधर वह गर्भवती भी  थी।

जब चलते-चलते जंगल मिला, जंगल में एक जगह पानी भरा था तो पंडित ने कहा कि पंडिताइन मैं स्नान कर लूँ और स्नान करके थोड़ा पूजा-पाठ कर लूँ। फिर आगे चले, क्योकि न जाने किस देश में रुके।  पंडित स्नान करके समाधि लगाकर बैठ गये। उधर पंडिताइन का पेट दर्द करने लगा।

जब पेट दर्द करने लगा तो अब पंडिताइन क्‍या करे? क्योंकि पंडित की समाधि तो बीच में नहीं खुल सकती थी, चाहे जो भी हो। थोड़ी देर बाद पंडिताइन के बच्चा हुआ और जब पंडित की समाधि खुली तो पंडित ने कहा, चलो पंडिताइन चलें। तो पंडिताइन बोली, तुम पंडित कैसे हो? थोड़ा देखा-सुना करो। तो पंडित बोले, क्‍या देखूँ सुनूँ? पंडिताइन ने कहा, देखो इसे बच्चा को तुम्हीं लीजिए। पंडित बोले , मैं तो इसे बारह दिन तक नहीं छुऊेँगा, तुम्ही लो।

पंडिताइन ने कहा, परदेश-कलेश में सब करना पड़ता है, ले लो। पंडित बोले, मैं नहीं लूँगा, चाहे तू इसे यही छोड़ दे। तो पंडिताइन भी गुस्से में, अपने बच्चे को वही लिटा दिया और चल दिया। चलते-चलते वे दूर निकल गये, न जाने किस देश में पहुँच गये।

इधर जब रात हुई तो बालक रात में रोया और उसी दिन शंकर और पार्वती को देश घूमने की चिन्ता हुई। गौरा पार्वती ने शंकर जी से कहा, चलो आज देश घूमा जाय, देखे | देश में कहां क्या हाल-चाल है। और शंकर व पार्वती घुमने चल पड़े, जब उस जंगल में पहुँचे तो उन्हें रोने की आवाज सुनाई पड़ी।

गौरा पार्वती ने कहा , देखो शंकर जी आज का जन्म लिया कोई बालक रो रहा है। तो शंकर जी बोले कि इस तरह तो संसार में तमाम लोग रोते-हँसते हैं।  कोई हंसता है तो कोई रोता है तो कोई गाता है, कोई कुछ करता है, ये ससार-सागर है, ये क्या देख रही हो।

लेकिन गौरा पार्वती ने कहा, नहीं तुम्हें देखना पड़ेगा, यह आज का हुआ बालक रो रहा है। तो शंकर जी बोले, ठीक है, चलो देखते हैं। जब दोनों उस जगह में पहुँचे तो शंकर जी ने कहा कि ये पंडितों का लड़का है, इसे छोड़कर चले गये हैं।

तो गौरा जी ने कहा, शंकर जी अब क्‍या किया जाय? तो शंकर जी बोले, देखो पार्वती, जो मुझमें जितने गुण हैं, मैं दिए देता हैँ और जितने तुममें गुण हो तुम दे दो। तो गौरा जी बोली, तुममें क्या गुण है? तुम क्‍या दोगे?

शंकर जी बोले, देखो गौरा, में अपना डमरू बजाये देता हूँ और जहाँ तक डमरू की आवाज जायेगी, वहाँ तक इसके पास कुछ भी नहीं आयेगा, न कूड़ा,न करकट ,न कीड़ा,न पतिंगा,न सिंयार ,न शेर कुछ भी नहीं आयेगा।

अब शंकर जी ने गौरा पार्वती से कहा कि तुम क्या  करोगी, तुममें क्या गुण हैं? तो पार्वती जी ने कहा कि मैं अपने बायें हाथ की अंगुली काटकर इसके अंगूठे में लगाये देती हूँ और इसके अँगूठे से दूध निकलने लगेगा और अंगूठा इसके मुंह  में लगाये देते हैं, जिसे पीकर यह साल भर तक जीवित रह सकेगा।

अब पार्वती जी ने कहा कि अब शंकर जी, साल भर के बाद यह क्‍या करेगा, साल भर तो दूध पियेगा, इसके बाद क्‍या खायेगा? तो शंकर जी ने कहा कि ऐसा करें, इस जंगल में सभी चीजों के पड़-पौधे लगा दूँ यानि किसमिस, चिरोौंजी, गरी, छुआरा, बादाम सब के पेड़ लगा दूँ।   

जब तक यह परवस्त होगा, बड़ा होगा तब तक साल भर बाद ये पेड़-पौधे फलै-फूलै लगेंगे  तो ये अपना तोड़-तोड़कर खाया करेगा। पार्वती जी ने कहा, ठीक है, इसकी जिन्दगी की गुजर-बसर होती रहेगी और इस तरह से जब बालक कुछ बड़ा हुआ और पेड़-पौधे भी फलने-फूलने लगे तो वह फल-फूल तोड़-तोड़कर खाने लगा।

एक दिन क्या हुआ कि एक राजा की बारात आयी तो वह कुछ देर के लिए उसी जंगल में रुकी। राजा की उस बारात में दूल्हा काना था। लड़के ने आदमियों को देखा तो डर गया और एक पेड़ पर चढ़ गया। क्योंकि उसने कभी आदमी तो देखे नहीं थे अतः वह डर गया था तथा लोगों के साथ न रहने के कारण वह गूगा भी था, कुछ बोल भी नहीं पाता था।

इसलिए वह बिना कुछ कहे-सुने पेड़ पर छिपकर बैठ गया था। उस बारात में जो सबसे बड़ा मुखिया था उसने लड़के को देख लिया था। उसने राजा से कहा, राजा जी मेरी एक बात मानोगे? राजा ने कहा, कहिए मंत्री जी, क्यों नहीं? मुखिया ने कहा कि राजा साहब उस पेड़ में रस्सी लेकर जाओ, देखो कौन बैठा है? चोर है, डाकू है या कोई बालक है? पता नहीं कौन है?

अब रस्सी लेकर उसको सब बरातियों ने बॉध लिया और साथ में बारात में ले चले। अब वह लड़का बार-बार इधर-उधर झाक रहा था कि मुझे मौका मिले तो मैं भाग जाऊँ। बाराती भी समझ गये कि यह भागना चाहता है, इसलिए उसको बांधे ही रहे। अब सब बारातियों ने सोचा कि लड़का तो अच्छा है, होय न होय! दूल्हे को वापस करके इसी के साथ शादी करा ली जाय, अपने लड़के के साथ गौना करा लिया जायेगा।

राजा ने कहा ठीक है, उन्होंने दूल्हे को वापस कर दिया।अब साथ में नऊवा (नाई) ने उस लड़के के बाल काटे, नहला-धुलाकर कपड़े पहनाये तथा कंकन बॉधकर जामा पहना दिया, मतलब उस लड़के को दूल्हे की तरह सजा-संवारकर साथ में लेकर चल दिए परन्तु अब भी उसे बांधे हुए थे कि कहीं भाग न जाय। अब जब बारात टीका द्वारचार पर पहुँची तो सभी ने कहा कि लड़का तो अच्छा है लेकिन इसे बांधे क्यों है?

राजा से भी पूछा गया तो राजा ने कहा कि मेरा लड़का शादी के लिए अभी तैयार नहीं था, कह रहा था कि मैं अभी पढ़ेंगा, अभी शादी नही करूँगा इसलिए हम इसे जबरन बॉधकर लाये हैं। सभी ने कहा, चलो ठीक है, कौन अभी हमें लड़की बिदा करनी है,तीन साल बाद गौना हो जायेगा। परन्तु लड़की की सखी-सहेलियों को शंका हुईं, इसलिए उन्होंने लड़की से बता दिया कि दूल्हा तो अच्छा हैं पर बंधा है। लड़की भी हैरान रह गयी, उसे भी कुछ शंका हुई कि होय न होय कुछ बात जरूर है तभी बांधे है।

कुछ देर बाद टीका-चढ़ाव व भाँवर सब कुछ हो गया। अब रात को चित्रुसारी का बुलावा आया तो चारो कहार लड़के को पालकी में बिठाकर घर के अंदर रख गये। कुछ देर बार लड़की आरती सजाकर आयी तो उसने देखा कि अब भी बंधे हुए हैं। उसने नौकरानी से कहा, इन्हें बांधे क्यों है? इन्हें छोर दो। नौकरानी ने उसे छोर दिया तथा ले जाकर कमरे में बैठा दिया।

अब वह लड़की आरती लिए खड़ी है, वह सोच रही है कि ये कुछ बोले। अब स्थिति ऐसी थी कि न लड़की कुछ बोल रही थी न लड़का ही। लड़का बोले भी कैसे क्योंकि वह तो बऊरा (गूंगा)| था। इसी सोच में लड़की काफी देर खड़ी रही कि ये कुछ बोले तो मैं बोलूँ, इस तरह काफी देर हो गयी तो वह फिर आरती सजाने चली गयी। अब लड़का खड़ा हुआ और वहाँ पर लगे चित्र पोछने लगा और जब देखा कि वह आ रही है तो फिर बैठ गया।

अब लड़की आयी और फिर भी वह कुछ नहीं बोला तो लड़की ने सोचा, है भगवान। और तो सब ठीक है, आपने इन्हें बोल क्‍यों नही दिया है? आप इन्हें बोल दे दीजिए और लड़की भगवान की प्रार्था करने के लिए एक पैर के बल खड़ी हो गयी, प्रार्थना करने लगी। उधर गौरा जी ने यह सब देखकर शंकर जी से कहा कि भोलेनाथ अब तो गड़बड़ हो रही है, लड़की एक पैर के बल खड़ी आपकी प्रार्थना  कर रही है।

भगवान जी इस बालक के बोल नहीं है, आप इसे बोल दीजिए। तो भगवान जी जोर से चिल्लाये जिससे लड़के की बोली निकल आयी और वह लड़की से बोला,  देख तू सब कुछ बाद में करना पहले मुझे ,खाना ले आ, मुझे बहुत जोर की भूख लगी है। मुझे खाना नहीं दिया गया तथा ऐसे ही बॉधे यहाँ लाये हैं। अब लड़की ने सोचा , इस समय खाना कहाँ से लाऊँ, क्योंकि सब जगह के दरवाजे बंद है, घर के सभी लोग सो रहे हैं।

फिर लड़की ने सोचा, मेरे ,कोछ़ें (साड़ी का ऑचल) में ढाई चावल बंधे हैं, होय न होय उसी की खीर बना दूँ। और फिर उसने उन चावलों की खीर बनाई तथा लड़के को खिलाया। जब वह खा चुका तो लड़की ने उसकी आरती उतारी और बोली कि मैं इतनी देर से खड़ी हूँ आप बोल नहीं रहे थे, क्या आपके बोल नहीं था?, तब लड़के ने कहा, नहीं मैं बोल नहीं पाता था, जब आपने प्रार्थना की तब मेरे बोल निकला और दोनों बातचीत करते रहे।

जब सुबह हुई तो कहार उसे ले जाने के लिए आये, लड़का पालकी में बैठ गया तब कहारों ने कहा कि इसे बांध दो। तो लड़के ने कहा, क्यों मुझे क्‍यों बॉध रहे हो, क्‍या मैं भाग जाऊँगा क्या? तब सब कहारों को शंका हुई कि सारी बारात में कुछ नहीं बोला, अब कैसे बोलने लगा? लगता है लड़की ने कुछ कर दिया है इसलिए बोलने लगा हैं और उसे लेकर बारात में चले गये।

अब नास्ता-पानी होने के बाद बारात बिदा हो गयी, लड़की को कौन बिदा होना था। जब बारात उसी जंगल में पहुँची तो उससे कहा गया कि अब तुम अपने जंगल में रहो तथा उससे जामा उतरा लिया गया और उससे कहा गया कि तुम्हें जो घोड़ा सबसे अच्छा लग रहा हो, उसे ले लो। लड़के ने एक घोड़ा छॉट लिया, बरातियों ने उसे खाना-दाना सब कुछ देकर वही छोड़कर चल दिए क्योंकि उनका काम तो पूरा हो गया था।

अब जब लड़का सब कुछ जानने लगा तो उसने अपना घोड़ा लिया और सवार होकर घूमने के लिए निकल पड़ा। वह एक शहर में पहुँचा, वहाँ पर एक तालाब में कुछ सखियाँ नहा रही थी। उन्हीं में एक राजा की लड़की थी, जो सोने का हार पहने थी और नहाने जाने से पहले उसने हार को उतारकर अपने कपड़ों के ऊपर रख दिया।

इतने में एक चील आई और वह हार उठा ले गयी। इसी समय वह लड़का घोड़े पर सवार वहाँ से गुजरा । अब राजा की लड़की ने सोचा कि होय न होय यही लड़का मेरा हार लिए है और उसने अपनी सखियों को भेजा कि जाओ उसे पकड़ो ।

अब सब सखियो ने जाकर उसे घेर लिया और थोड़ी देर बाद राजा की लड़की भी कपड़ा पहनकर आ गयी, उसने कहा कि तुम्हीं ने भेरा हार लिया है। तो लड़के ने कहा, नहीं बहिन, मैंने आपका हार नहीं लिया है। इस तरह दोनों में वाद-विवाद बढ़ने लगा तो लड़के ने कहा, जाओ तुम अपने पिता जी को बुलाकर लाओ हम उन्हीं से बात करेंगे।

राजा साहब आये तो लड़के ने बताया कि आपकी लड़की मुझे चोर कह रही है। तब राजा साहब ने अपनी बिटिया से कहा कि जब तुम्हें दूसरा हार बन जायेगा तो तुम क्‍यों परदेसी लड़के को परेशान कर रही हो। उसने अपनी लड़की को खूब डाटा लेकिन लड़की ने कहा, नहीं पिताजी इसी ने मेरा हार लिया है।

इस तरह जब लड़की हठ करने लगी तब लड़के ने कहा ठीक है, अगर मैने तुम्हारा हार लिया है तो मैं उसे लाऊँगा। लेकिन एक शर्त है कि तुम इसी तालाब में तब तक खड़ी रहना जब तक मैं हार लेकर न आ जाऊँ, अगर तुम असली राजा की लड़की हो तो मेरे आने तक यही खड़ी रहना।

इसके बाद लड़के ने राजा से कहा, देखो राजा साहब, वह चील  हार लिए है, राजा ने भी देखा तथा कहा , हॉ लिए है। तब लड़के ने कहा, मैं हार लेने जा रहा हूँ और वह पेड़ पर चढ़ने लगा तोचील ने हार को जाकर समुद्र में गिरा दिया।

लड़के ने राजा से कहा कि आप जाइए, मैं हार लेकर ही आऊँगा तथा वह समुद्र के किनारे पहुँचकर ज्यों ही पानी मे कूदने को तैयार हुआ,तुरन्‍त शंकर जी की आवाज आई, रूक, जब मैं आ जाऊँ तब कूदना। अब शंकर जी आकर बोले, अब कूद जा, मुझे बार-बार परेशान करता है, जा कूद के मर जा, तुझसे पिड छूटे , जब दुख होता है तभी मुझे परेशान करता है।

लड़का समुद्र में कूद पड़ा तथा ज्यों ही हार हाथों में लेकर आने लगा त्यों ही उसे एक मछली निगल गयी। अब वह मछली ऐसे राज्य के समीप पहुँची, जहाँ के राजा की लड़की ने प्रण कर रखा था कि जो लड़का मछली के पेट से पैदा होगा मैं उसी से शादी करूँगी। वह राजा इसी में परेशान था, वह सभी मछुआरों से मछलियाँ पकड़वाता और मछलियों का पेट चिरवाता।

एक दिन वह मछली जाल में फंस गयी और जब उसका पेट चीरा गया तो उसी से लड़का निकला, जिसकी शादी राजा की लड़की से कर दी गयी। जब शादी हो गयी तो उस लड़के ने राजा से कहा कि राजा साहब अब मैं जा रहा हूँ। राजा ने पूँछा, क्यों? लड़के ने कहा कि में एक राजा की लड़की को हार देने का वादा करके चला आया हूँ, वह लड़की तालाब में पानी में खड़ी होगी, इसलिए मैं जाऊँगा।

इधर साल – दो- साल बीत जाने पर वह लड़की तालाब में खड़ी बिल्कुल सूखकर लकड़ी हो गयी थी। अब जब वह लड़का हार लेकर पहुँचा और लड़की को दिया तो वह बोली कि तुम मेरे पीछे इतना परेशान हुए हो इस लिए  अब मै तुमसे शादी करूँगी, मैं अभी पिता जी को बुला रही हूँ। लड़का बोला, नहीं, मैं शादी तो नहीं करूँगा। लेकिन लड़की नहीं मानी और उसने अपने पिता को बुला लिया तो लड़का भी शादी के लिए राजी हो गया।

लड़की ने अपने पिता से कहा, पिताजी मैं इसी से शादी करूँगी। राजा ने कहा, ठीक है, तुम अपनी मर्जी  से कर रही हो, कर लो, मुझे क्या परेशानी है तथा राजा ने उसकी शादी की तैयारी कर दी। जब भोवरें पड़ने का संमय आया तो राजा ने कहा कि तुम किस कुल के लड़के हो? तो लड़के ने कहा कि पता नही, वैसे हम आपसे ऊंचे कुल के ही होंगे, क्योकि लड़के को इसका कुछ पता तो था नहीं।

राजा ने कोई ऐतराज नहीं किया, उन्होंने लड़की का कन्यादान कर दिया, शादी सम्पन्न की तथा लड़के को अपना आधा राज-पाट दे दिया और विदा करके उसी जंगल में मकान बनवा दिया, पहरेदार-चौकीदार-सिपाही नियुक्त कर दिए।

अब लड़का अपने सिपाहियों के साथ शिकार करने जाया करता था। एक दिन शिकार करते-करते वह उसी जगह में पहुँच गया, जहाँ पहले वाली शादी में बारात पड़ी थी और वह गूंगा बनकर गया था। अब उसे थोड़ा-थोड़ा ध्यान आया तो उसने सिपाहियों से कहा कि लगता है, मैं यहाँ घूम गया हूँ। उधर तीन साल बीत जाने के बाद वही काना लड़का उसी लड़की का गौना लेने आया जिसकी शादी उस गूंगे लड़के के साथ हुई थी।

अब लड़की तो उसे पहचान नहीं सकी, क्योंकि उसकी शादी तो उससे नहीं हुई थी। अत लड़की उसकाने लड़के से पूछने लगी कि अच्छा बताओ, जब मेरी शादी हुई थो तो तुमने खाना क्या खाया था? अब लड़का क्‍या जबाब देता, क्योंकि उसे तो पता था नहीं, अत उसने कहा कि क्‍या खाया था, सब कुछ तो खाया था। तो लड़की बोली,चल भाग यहाँ से, नहीं एक लात दूँगी, कह रहा है सब कुछ खाया था और उसे भगा दिया।

अब गौने की बारात लौट गयी। काने लड़के ने कहा,भाई लड़की तो बहुत खराब है, सभी को लात मारने की धमकी देती है और भगा देती है। अब लड़की के घर वाले भी परेशान हो गये क्‍योंकि लड़की ने कहा कि मेरी शादी जिसके साथ हुई है , मैं उसी के साथ जाऊँगी , नहीं तो मैं जिन्दगी ऐसे ही गुजार दूँगी।

अब उसी जगह जहाँ पहले वाला लड़का खड़ा था, एक नाऊन कुंए में पानी भरने के लिए आयी तो उसने तो लड़के को देखा ही था अत: वह उसे पहचान गयी और लौटकर के राजा से बताया कि राजा जी आपने अपनी बिटिया की शादी जिस लड़के से की थी, वह लड़का कुआ पर चार सिपाहियों के साथ बैठा है।

अब राजा ने अपना घोड़ा ताना और वहाँ पहुँच गये। लड़का भी अपने घोड़े पर सवार होकर आगे बढ़ आया तथा राजा उसे मेहमान बनाकर घर ले अये। जैसे-जैसे वह लड़का घर की ओर जा रहा था, वह कहता जा रहा था, लगता है मैं यहाँ घूम गया हूँ। धीरे-धीरे लड़के को सब याद आने लगा और फिर उसने उस लड़की को भी देखा, लड़की ने भी उसे देखा , दोनों एक दूसरे को पहचान गये।

लड़के ने उस जगह को भी देखा जहाँ खीर खायी थी और बोला, मैंने यही पर खाना खाया था, तुमने ढाई चावल की खीर बनाकर खिलाई थी। तब लड़की बोली, हाँ , अब आपको याद आया है, इतने दिन कहॉ रहे। फिर दोनों बातें करते रहे और एक रात वहीं गुजारी।

जब वह दूसरे दिन चलने लगा तो लड़की बोली कहाँ जा रहे हो मुझे भी ले चलो। अब लड़का बोला नहीं, आज नहीं ले जाऊँगा। फिर कभी ले जाऊँगा। आज तो शिकार खेलने निकला था और यहाँ तक आ पहुँचा। इस तरह वह वहाँ से चला आया ।  

जब अपने घर  मे पहुँचा तो रानी ने पूछा, राजा साहब, आप रात में कहाँ रूक गये थे, आज आप उदास-उदास क्‍यों दिख रहे हैं? तब उस राजा ने अर्थात उस लड़के ने उसे पूरी कहानी बतायी कि कैसे-कैसे मेरी पहली शादी हुई और मेरी रानी भी है।

तब वह रानी बोली, तो क्‍या, इससे अच्छा क्‍या, आप उसे लिवा लाइए, हम दो लोग हो जायेंगे और रहेंगे। राजा ने कहा, अच्छा लड़ोगी तो नहीं। रानी ने कहा, नहीं, हम लोग नहीं लड़ेगी, प्रेम से रहगी। उसने कहा, ठीक है और उसे भी लिवा लाया।

अब कुछ दिन बाद उसे मछली के पेट से निकलने के बाद हुई शादी वाली बात याद आयी और वह फिर उदास-उदास रहने लगा तो दोनों रानियों ने पूछा राजा साहब, अब क्यों उदास हो? तब उसने अपनी दूसरी शादी की बात बतायी कि कैसे-कैसे मछली के पेट से निकलकर मेरी शादी की गयी।

तब दोनों रानियों ने कहा कि इससे अच्छा क्या, उसे भी लिवा लाओ। राजा ने कहा कि तुम तीनों लोग लड़ोगी तो नहीं। उन्होंने कहा नहीं लड़ेगी। अब तीन लोग हो गयी और साथ-साथ रहने लगी।अब एक दिन फिर राजा ,अनमन-अनमन हो गया और सोचने लगा कि पता नहीं मैं किस कुल का लड़का हूँ ? ये तो तीनों रानियाँ राजा की लड़की हैं।

अब शंकर जी का फिर सिंहासन डोला , वे फिर प्रकट हुए तो लड़के ने कहा, शंकर जी, आप मुझे बता दीजिए मैं किसका लड़का हूँ, न मेरे बाप का पता है न कुल का, बस पैदा हो गया हूँ ।तो शंकर जी बोले, सुन, तू ब्राह्मण का लड़का है और तेरे मॉ-बाप इधर से ही गुजरेंगे।   

अपने पहरेदारों से कह दे कि उन्हें रोके ना उधर उसके मा-बाप बुड़ढ़े हो गये थे और जब वापस आते समय उसी जगह पहुँचे तो माँ को याद आ गयी कि यही पर मैंने अपना लड़का छोड़ा था उसकी ममता जाग उठी। इधर राजा ने भी पहरेदारों से कह रखा था कि अगर इधर से कोई बुढ़ढा-बुढ़्ढी आये तो मुझे तुरन्त बताना।

जब वे दोनों आये और उस जगह को देखकर रोने लगे । राजा ने अपने महल से उन्हें देख लिया और उसने अपनी तीनों रानियों को भेजा और कहा कि जाओ उनके पैर छुओ, वे मेरे माता-पिता हैं, उन्हें लिवा लाओ। तीनों रानियों ने जाकर बुढ़ढा-बुढढी के पैर छुए तो वे बोले, बिटिया, तुम लोग हमारे पैर क्‍यों छू रहे हो? उन तीनों ने कहा कि हम लोग आपकी बहुएं हैं।

इतने मे राजा भी आ गये और उन्हें महल लिवा ले गये। लड़के ने अपने बाप की सेवा की और तीनों रानियों ने माता की सेवा करनी शुरू कर दी। थोड़े दिन बाद राजा ने तीनों रानियों से कहा कि तुम लोग बारी-बारी से मेरी व मेरे मॉ-बाप की एक-एक लोग सेवा करो। इस तरह तीनों रानियोँ उसकी सेवा करने लगी और प्रेम से रहने लगी। किस्सा थी सो हो गया ।

बुन्देली लोक कथाएं -परिचय 

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