कवि Naval Kishor Soni ‘Mayus’ का जन्म छतरपुर में श्री ठाकुर दास सोनी ‘करइया’ के यहाँ उनकी धर्मपत्नी श्रीमती मुन्नी देवी की कोख से 5 जुलाई सन् 1941 को हुआ। श्री नवल किशोर सोनी ‘मायूस’ की प्राथमिक, माध्यमिक तथा हाई स्कूल तक की शिक्षा छतरपुर के स्कूलों में ही हुई। हाई स्कूल उत्तीर्ण करने के बाद इनका विवाह चिरगाँव निवासी जानकीदेवी के साथ 1958 में हुआ।
चौकड़ियाँ
सब एक रहें सब नेक रहें, सबरे दुर्भाव मिटें जरसें।
निज भारत देश अखण्ड रहै, निज प्रेम के रंग इतै बरसें।
करनैं है विकास अबै इतनो, बन जाँय बड़े दुनिया भरसें।
अज्ञान मिटै कछु लोगन को, कर जोर करें बिनती हरसें।
हम सब एकता के सूत्र में नेक विचारों से परिपूरित हो समस्त दुर्भावनाओं को जड़ से समाप्त करते हुए बँधे रहें। हमारा भारत देश की अखण्डता बनी रहे। प्रेम का वातावरण बनाने हेतु प्रेम वर्षा यहाँ हो। अब हमें इतना विकास करना है कि विश्व में सर्वश्रेष्ठ बन जायें। मैं प्रसन्नतापूर्वक हाथ जोड़कर विनय करता हूँ कि जो कुछ लोग यहाँ अज्ञानी हैं, उनका अज्ञान समाप्त हो जाये।
जब चौंच मिली चुन सोउ मिलै, इतने न अबै उकताब पिया।
सबरी विपदा कट जैय इतै, कइ मान लो अन्त न जाव पिया।
तुम काम करौ तौ कछू मन सें, सबरे सुख एइ सें पाव पिया।
सबके हित के भए काज शुरू, परमेसुर के गुन गाव पिया।।
विपत्ति से परेशान अपने पति को समझाती हुए उसकी प्रिया कहती है कि प्रिय, जब ईश्वर ने मुँह दिया है तो भोजन भी देगा, अभी इतने अधिक व्यग्र मत हो। सारी विपत्तियाँ यहीं समाप्त हो जायेंगी, मेरा कहना मानो, दूसरे स्थान पर मत जाइये। तुम जो भी काम करो, मन लगाकर करो तो सभी सुख प्राप्त होंगे। सभी लोगों के कल्याणार्थ यहाँ काम प्रारंभ हो गए हैं, अब ईश्वर के गुणों का गायन करो।
सब कोउ जो चाहत है जग में, अपने घर आय सजै पलना।
मचलै ठिनकै अँगना में लली, पलना में परो किलकै ललना।
सबरे सुख चैन मिलें इनखाँ, इनके सँग कोउ करै छलना।
जब दोइ हुयैं तौ मजे में पलैं, कउँ भौत भए तौ मिलैं कल ना।
संसार में सभी लोग चाहते हैं कि उनके घर में पलना सजे अर्थात् नवजात शिशु जन्मे। आँगन में बहू मचले तथा ठनगन करे तथा पालना में लेटा बच्चा किलकारी मारे। सारे सुख व शांति इसी में मिलेगी, इनके साथ कोई छल कपट न करे। जब दो ही बच्चे हों तो उनका लालन-पालन मजे से होता है और यदि अधिक हुए तो फिर चैन नहीं मिलता।
छिन में जरकैं सब राख हुयै, इतनो न गुमान करौ तन को।
इयै जातन में नँइ झेल लगै, विरथा अभिमान करौ धन को।
कछू नेकी बदी को न ध्यान करौ, अबलौ सब काम करो मन को।
अपनी अब चाव भलाइ कछू, तौ जिया न जराव गरीबन को।।
इस शरीर का इतना घमण्ड मत करो, यह कुछ ही क्षणों में जलकर राख हो जाएगा। इस धन का व्यर्थ अभिमान करते हो इसको समाप्त होने में देरी नहीं लगती। हमनें अच्छे-बुरे का ध्यान दिए बिना अभी तक मनमाने काम किए हैं। अब यदि तुम अपनी भलाई चाहते हो तो गरीबों के हृदयों को मत जलाइये।
पइसा बिन काम चलै न कछू, जब आन परै घर में अटका।
कउँ आज करो खरचा सबरो, हम काल बिदैंय फिरैं पटका।।
जिनकैं जुर जैय पुँजी अपनी, उनखाँ नइँ रैय कछू खटका।
मिल एकइ एक हजार हुयैं, और बूँदइ बूँद-भरै मटका।।
पैसों के बिना कोई काम नहीं चलता, जब भी घर में कोई काम रुकता है, तो पैसे से ही चलता है। यदि हमने अपव्यय करके सभी पैसा आज ही खर्च कर दिया तो कल फटेहाल जीवन जीना पड़ेगा। जिनके पास कुछ पूँजी जमा हो जाएगी, तो उन्हें कोई चिन्ता न रहेगी। एक-एक मिलकर एक हजार वैसे ही होते हैं जिस प्रकार बूँद-बूँद पानी से मटका भर जाता है।
घनाक्षरी (आतंकवाद)
फिरकें पधारौ माइ धरती पै एक बेर,
विनय करत हम आज हाँत जोरकें।
अब उग्रवादी हमें सुख सें न रान देत,
माइ धर देव तुम घिचिया मरोर कें
अपुन सबारी जौन सिंह पै करें हौ माइ,
ओइ छोड़ देव इनैं खाबै टोर टोर कें।
नदियाँ रकत को बहाबैं इतै जौन जौन,
लै तौ जाइ माइ उनैं इतै सें बटोर कें।।
माँ फिर से एक बार आप धरती पर पधारिये, आज हम करबद्ध यह प्रार्थना करते हैं, अब आतंकवादी हमें सुख-शांति से नहीं रहने देते, आप इनकी गर्दन मरोड़कर रख दीजिए। माँ, आप जिस सिंह पर सवार हो उसी को छोड़ दीजिए जिससे वह उन्हें खा जाये। जो भी यहाँ रक्त की नदियाँ बहा रहे हैं, उन्हें आप समेट कर ले जाइये।
अब दिन रात ऐंन दौंदरा लगे हैं दैन,
इन उग्रवादियन खौं तौ ललकार दो।
पेरत हैं भौत हमें आनकें जे आँतें रोज,
परया बुखार मोरे देश कौ उतार दो।।
बड़े बड़े पापी माइ तुमनें सँगोए इतै,
जैसे सुदरें जे आकें इनखाँ सुदार दो।
बिनती करें ‘नबल’ माइ तुम हौ सबल,
इनपै अपुन ऐइ शेरै उसकार दो।।
अब ये उग्रवादी दिन रात उपद्रव कर रहे हैं, इन्हें आप ललकार दीजिए। ये मेरे देश भारत को एक दिन छोड़कर प्रतिदिन आने वाले परया बुखार की तरह परेशान कर रहे हैं अतः आप मेरे देश के इस परया बुखार को उतार दीजिए। आपने बड़े-बड़े पापियों का संहार करके उनकी गति को सुधार दिया उसी तरह इन आतंकवादियों को भी सुधार दीजिए। कवि नवल कहते हैं कि हे माँ! तुम शक्ति स्वरूपा हो, इन (आतंकवादियों) पर अपने शेर से हमला करवा दीजिए।
अब लौ न बोले हम तुमसें निचाट कात,
बात जा हमाइ सुन लेव कान खोलकें।
करनी पै अपनी पछाऊँ पसतैव तुम,
कब लौ बचत रैव झूँटी बोल बोल कें।।
भारी है हजारन पै भारत कौ एक वीर
अबकीं सें धर दैहैं बकला सो छोलकें।
बिसरौ न देव ध्यान सीमा पै अबै हैं ज्वान,
कर दैहैं छजना सी छाती कोल कोल कें।।
अब तुम (आतंकवादी) कान खोलकर सुन लीजिए, हम सही कहते हैं कि अभी तक हम (भारतवासी) बोले नहीं, सब कुछ सहते रहे। तुम अपने कर्मों पर बाद में प्रायश्चित करोगे, तुम कब तक झूठ बोलकर बचते रहोगे? भारत का एक वीर, हजारों पर भारी पड़ता है यदि अबकी बार हमला किया तो पेड़ की छाल छोलने की तरह निर्दयतापूर्वक तुम्हारी खाल छील देंगे। यह मत भूल जाओ कि सीमा पर सेना के जवान तैनात हैं जो तुम्हारी छाती में गोली मारकर उसे छलनी कर देंगे।
चौकड़ियाँ (सावन)
आ गओ है सावन को मइना, भइया नें सुध लइ ना।
कौन दिनाँ आहैं ल्वावे खौं, चिठिया लौ तौ दइ ना।।
पौंचीं सब वैनें भइयन कें, मैंइ अवै कौ गइ ना।।
उड़ जाती जब चाय इतै सें, हाय चिरइया भइ ना।।
अब जैसौ ‘मायूस’ लगत है, मौं सें जाबै कइ ना।।
श्रावण मास आ गया है और भाई ने अभी तक सुध नहीं ली है। किस दिन मुझे लेने आ रहे हैं, इसकी सूचना पत्र द्वारा भी नहीं दी है। सभी बहनें अपने भाइयों के पास पहुँच गई हैं, मैं ही मात्र अभी तक नहीं गई हूँ। यदि मैं चिड़िया होती तो उड़कर कहीं भी चली जाती। मायूस कहते हैं कि अब उससे अपनी पीड़ा कही नहीं जाती।
देखौ लाला की बरजोरी, गालन मल दइ रोरी।
उननैं सब गुइँयन के सामूँ, बइयाँ पकरी मोरी।।
जबरइँ गैल रोककैं उननैं, नरम कलाइ मरोरी।
मोरे तन सें तान चुनरिया, जबरइँ रँग में बोरी।।
मोखौं अपने अंग लगाकैं, ऐनइँ खेली होरी।
कात कछू ‘मायूस’ बनै ना, जैसी गत भइ मोरी।।
मेरे देवर ने जबरदस्ती मेरे गालों में अबीर मल दी है। उन्होंने सभी सखियों के सामने मेरी बाँह पकड़ी, जबरन मेरा रास्ता रोककर मेरी कोमल कलाई को मरोड़ दिया है। मेरी चुनरिया को खींचकर उसे जबरन रंग में डुबो दिया है। उन्होंने मुझे अपने अंगों से लगाकर खूब होली खेली। मायूस कवि कहते हैं कि वह (भाभी) कहती है कि मेरी होली खेलने में जो दुर्गति हुई उसको बताया नहीं जा सकता है।
फाग- चेतावनी
जो तन माटी में मिल जैहै, कुल्ल दिनन नँइ रैहै।
तेल फुलेल मलैं का हौनें, जो पानी में बैहै।।
जीनें दओ है जो तन हमखौ, ओइ इयै लै लैहै।।
प्रान निकर हैं जब ई में सें, फूँकौ सब घर कैहै।।
सबरन की आँखन के साँमू, धरती इयै पचैहै।।
रोके सें ‘मायूस’ न रुकहै, ईको जैबो तैहै।।
यह शरीर नश्वर है, जिसे मिट्टी में मिल जाना है, और लम्बे समय तक नहीं रहना है। इत्र, तेल आदि के मलने से कुछ नहीं होगा, सब पानी में ही बह जाएगा। जिसने यह शरीर दिया है वही उसे ले लेगा। जब इसमें से प्राण निकल जाएँगे तो घर के सभी लोग इसे जलाने हेतु कहेंगे। सभी लोगों के देखते-देखते ही धरती माँ इस शरीर को गला देंगी। कवि मायूस कहते हैं कि इसका जाना (मृत्यु होना) सुनिश्चित है, जो किसी के रोके से नहीं रुकेगा।
जीवन चार दिनाँ के लानैं, सबसें मिलकें रानैं।
दो बातन की सुनलो ओजू, गम्म अपुन खौं खानैं।।
घट नँइ मानैं हम औरन खौं, मोल सबइ कों जानैं।।
सुख मिलहै नैंकैं रैवे में, बात हमैं जा कानैं।।
राम रहीम ईशु गुरु नानक, इनखौं एकइ मानैं।
और कछू ‘मायूस’ न माँगैं, प्रेम तनक सो चानैं।।
यह जीवन चार दिन का अर्थात् क्षण भंगुर है जिससे हमें मिल जुलकर रहना है। हमसे कोई दो बात गलत भी कहता है तो हमें उसे सुनकर धैर्य रखना है। हमें सभी का मूल्य समझना चाहिए, किसी को कम नहीं आँकना चाहिए। हमें यह बात कहना है कि झुककर रहने में सुख मिलता है। राम, रहीम, यीशु तथा गुरु नानक सभी को एक मानना चाहिए। कवि मायूस कहते हैं कि उन्हें और कुछ नहीं चाहिए सिर्फ थोड़ा सा प्रेम चाहिए है।
नवल किशोर सोनी ‘मायूस’ का जीवन परिचय
शोध एवं आलेख -डॉ.बहादुर सिंह परमार
महाराजा छत्रसाल बुंदेलखंड विश्वविद्यालय छतरपुर (म.प्र.)