Lok Devta लोक देवता

लोक देवता Lok Devta लोक की रक्षा एवं उनके कल्याणकारी जीवन के लिए हमेशा तत्पर रहने वाले हैं  इसी कारण भारत ही नहीं संपूर्ण विश्व में लोक देवताओं का प्रचलन है भारत में अनेक ऐसे लोक देवता है जो जनमानस मे पूज्यनीय हैं ।

लोकदेवता लोकदेवत्व किसी भूभाग के लोक द्वारा पूजा जाने वाला  देवता है । वह लोक द्वारा मान्य और प्रतिष्ठित होता है  उसके पीछे कोई विशिष्ट मत या सम्प्रदाय नहीं होता और न ही वह किसी सम्प्रदाय या विशिष्ट विचारधारा को खड़ा करता है । लेकिन इतना निश्चित है कि उसके संबंध में कोई न कोई ऐसी कथा या घटना प्रचलित रहती है, जो रहस्य या चमत्कार प्रधान होती है और जिस से एक रहस्यपूर्ण भय की भावना अथवा कुछ प्राप्त करने की लोभमयी छलना स्वतः जग जाती है ।

हर आदमी किसी न किसी अभाव से पीड़ित रहता है और उससे छुटकारा पाने की आशा में वह सभी तरह के प्रयत्न करता है । जब वह थककर हताश हो जाता है, तब देवता की शरण में जाता है और वहाँ कुछ न मिलने पर भी जो एक मानसिक तुष्टि प्राप्त होती है, वह देवता के वरदान या प्रसाद की तरह आनंद की सृष्टि करती है ।

वस्तुतः लोकदेवता लोक की किसी न किसी भावना का प्रतीक है और यह प्रतीक हर युग के लोकमन के अनुसार बदलता रहता है। लोक की रुचि निर्णायक भूमिका अदा करती है, लेकिन वह भी मानसिक जलवायु पर निर्भर करती है । लोकजीवन में उपयोगिता की कसौटी हर कालखंड में मान्य रही है। लोकदेवता के देवत्व की गरिमा का मापन उपयोगिता ही करती है। उपयोगी न होने पर उसका देवत्व घट जाता है और धीरे-धीरे उसकी मान्यता विलुप्त हो जाती है तथा उसकी जगह पर दूसरा देवता प्रतिष्ठित हो जाता है। इस तरह लोकदेवताओं का भी अपना इतिहास है।

लोकमानस बड़ा विचित्र है । वह अच्छों -अच्छों की परवाह नहीं करता। बहुत ऊँचाई पर खड़े, लोक की पहुँच से बाहर होते हैं, इसलिए वे देवता नहीं बन पाते। देवता वही हो पाते हैं, जो लोक के अपने हैं, लोकहित से जुड़े हैं और अपनी शक्ति एवं चमत्कार से लोक को प्रभावित करने में सक्षम हैं।

लोक फल का लोभी होता है। उसके लिए वही देवता है, जो मनवांछित फल दे। चाहे वह फल व्यक्ति की अपनी कमाई हो, पर उसमें देवता की कृपा का भ्रम अवश्य रहता है। साथ ही किसी फल को देवता का मानने में व्यक्ति अपनी व्यक्तिगत जिम्मेदारी से बच जाता है । लोक की यह मानसिकता देवत्व जुटाने में सहायक होती है। 

लोक देवता क्या है
सम्पूर्ण विश्व में लोक देवताओं की परंपरा बहुत ही प्राचीन है सभ्यता के विकास के साथ साथ लोगों के मन में मन में भय जैसे विकार का जन्म हुआ और उस भय को दूर करने के लिए आस्था का जन्म हुआ ।  आस्था ही एक ऐसा साधन है जिससे मनोविकारों Psychotic Disorders को दूर किया जा सकता है। इन मानोविकारों को दूर करने के लिए मनोविज्ञान की प्राचीन पद्धति लोक विज्ञान सहारा लेना पड़ा। आस्था और लोक विज्ञान को मिलाकर लोक देवत्व का निर्माण हुआ।

कुछ लोकदेवता संपूर्ण समाज का  नेतृत्व करते हैं,  कुछ Lok Devta पूरे गांव का  नेतृत्व करते हैं,  कुछ देवता पूरे परिवार एवं खानदान का  नेतृत्व करते हैं और कुछ देवता जो की जाति विशेष लोक देवता होते हैं वह सम्पूर्ण जाति विशेष का  नेतृत्व करते हैं।

लोक देवताओं का क्या काम है
आदिकाल से ईश्वर के बाद लोक देवताओं का समाज में वशिष्ठ योगदान है। समाज विशेष के लोक देवताओं के कारण संपूर्ण समाज में एकता, भाईचारा एवं सौहार्द बनाए रखने में विशेष योगदान है इसी प्रकार जाति विशेष के लोक देवताओं द्वारा संपूर्ण संपूर्ण जाति विशेष को एक सूत्र में बांधने का काम लोकदेवता करते आए हैं ।  अनेक ऐसे लोग देवता हैं जो परिवार एवं संपूर्ण खानदान को एक सूत्र में बांध कर रखते हैं।

अनेक लोक देवताओं में प्रत्येक गांव के अलग-अलग ग्राम देवता है जो पूरे गांव को एक सूत्र में बांध कर रखते हैं। प्राचीन काल से आज तक अनेक प्रचलन गांव में देखे गए हैं जैसे एक गांव के लोग दूसरे गांव में विवाह विशेष हेतु जाते हैं तो गांव के बाहर उन ग्राम देवताओं का पूजन अर्चन करते हैं।  एक दूसरे के ग्राम देवताओं के अर्चन पूजन की परंपरा आज भी दूर-दराज गांव में देखने को मिल जाती है। जो एक सामाजिक समरसता और सौहार्द का जीता जागता उदाहरण है।

भारत में प्राय: हर प्रान्त या क्षेत्र में लोक देवताओं /ग्राम देवताओं की पूजा होती है। जन मानस में श्रीराम, श्रीकृष्ण, श्री शिव, मां दुर्गा, मां काली या श्री हनुमान जी आदि देवताओं की प्रतिष्ठा है। ये देवता लोक की किसी भावना विशेष के प्रतीक है।

लोकदेवताओं को निम्न वर्गों में रखा जा सकता है-

1 – प्रकृतिपरक देवता – वृक्ष, भूमि, पर्वत, नदी, पवन, सूर्य, चंद्र आदि ।

2 – अनिष्टकारी देवता – अग्नि, सर्प, भूत-प्रेत, आँधी, मृत्यु आदि ।

3 – आदिवासियों के देवता – बड़ा देव, ठाकुरदेव, नारायन देव, घमसेन देव आदि ।

4 – स्थलपरक देवता – गाँव की देवी, खेरमाई, मिड़ोइया (खेत की मेड़ के देवता), घटोइया (घाट के देवता), पौंरिया बाबा आदि ।

5 – जातिपरक देवता – कारसदेव, ग्वालबाबा और गुरैयादेव (अहीरों के), मसानबाबा (तेलियों के), भियाराने (काछियों के), गौंड़बाबा आदि ।

6 – अतिप्राकृत देवता – यक्ष, गाधर्व, भूत, राक्षस या दानव, नाग आदि ।

7- स्वास्थ्यपरक देवता – शीतलामाता, मरईमाता, गंगामाई आदि ।

8- अर्थ या समृद्धि – परक देवता – मणिभद्र, कुबेर, लक्ष्मी, नाग आदि ।

9 – विवाहपरक देवता – दूलादेव, हरदौल, पार्वती या गौरी, गणेश आदि ।

10 – शक्तिपरक देवता – शिव, दुर्गा, काली, हनुमान, चंडिका, भैरोंदेव आदि ।
11- वरदायी देवता – शिव, इन्द्र, वासुदेव, राम, शारदामाई, दशारानी आदि ।
12 – कुलदेवता- गोसाईं बाबू, सप्तमातृकाएँ, खुरदेवबाबा आदि ।

13 – संतानरक्षक देवता – रक्कस बाबा, बीजासेन, षष्ठी देवी, बेइया माता आदि ।

14 – विध्नहरण देवता- गणेश, पितृदेव, संकटा देवी आदि ।

15 – जंगल के देवता – वन देवी

16 – पान के खेत के देवता – नाग देवता

राजस्थान के लोक देवता
रामदेव जी, गुसांईजी, गुरु जम्भेश्वर, गोगाजी, जीणमाता, शाकम्भरी माता, सीमल माता, हर्षनाथ जी, केसरिया जी, मल्लीनाथ जी, शिला देवी, कैला देवी, कल्ला देवी, तेजा जी, पाबूजी महाराज, खैरतल जी, करणी माता आदि।

उत्तराखंड के देवी देवता 
कठपुड़िया देवी, कंडारदेव, ऐड़ी, ओवलिया, उल्का देवी, उज्यारी देवी, आछरी/ मातरी/ परिया, अन्यारी देवी, अटरिया देवी, अकितरि, कर्ण देवता, कसार देवी, कलबिष्ट, कलुवावीर, कालसिण, कुमासेण देवी, कैलापीर या कालावीर, कोकरसी, क्यूंसर देवता, गुरना माई, गोगा/ घोगा, गबला, गोलू देवता / गोरिल देवता , घड़ियाल, चंपावती देवी, चोफकिया, छिपुला, छुरमल, जोखई,

जगदेई, जाख देवता, झाली-माली, तिलका देवी, तुरगबलि, थात्याल, दक्षिण काली, धूरा देवी, नकुलेश्वर, नगेला, नाग/ नागर्जा, नरसिंह/ नारसिंग, निरंकार, पांडव या पंडो , पोखू, फैला, भद्राज  देवता, भासर, भूतेर, भैरव, मल्लिकाजुर्न, मणिकनाथ, महासू, मेलिया, देवलाडी, मैदानू-सैदानू, मैमन्दापीर, मोस्टमानु , रंकोची देवी, रक्षा देवी , राजराजेश्वरी नंदा देवी , लाटू देवता , समासणी , हरु सैम, गंगनाथ देवता आदि

संदर्भ-
बुंदेलखंड दर्शन- मोतीलाल त्रिपाठी ‘अशांत’
बुंदेलखंड की संस्कृति और साहित्य- रामचरण हरण ‘मित्र’
बुंदेली लोक साहित्य परंपरा और इतिहास- नर्मदा प्रसाद गुप्त
बुंदेली संस्कृति और साहित्य- नर्मदा प्रसाद गुप्त

बुन्देलखण्ड के लोक देवता 

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Bundeli Jhalak: The Cultural Archive of Bundelkhand. Bundeli Jhalak Tries to Preserve and Promote the Folk Art and Culture of Bundelkhand and to reach out to all the masses so that the basic, Cultural and Aesthetic values and concepts related to Art and Culture can be kept alive in the public mind.
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