बुन्देलखण्ड की खड़ी फाग का उद्भव चौकड़िया फाग से ही हुआ है । चैकड़िया फाग के प्रत्येक चरण में परार्द्ध में दो मात्राएँ और बढ़ा देने से 30 मात्रा की खड़ी फाग Khadi Fag बनती है। प्रथम चरण में चैकड़िया की तरह 16 मात्रा पर यति होती है, इस तरह 16*14 मात्राएँ होती हैं। चरणों के अन्त में दीर्घ अवश्य रहता है।
खड़ी फाग के जन्मदाता महाकवि ईसुरी के समकालीन स्व. श्री गंगाधर व्यास हैं, जो रीति कालीन प्रवृत्ति से प्रभावित होकर फागों में चमत्कार का समावेश करने में सफल हुए। खड़ी फाग में रीतिशास्त्रीय उपकरण और उनका बंधान विशेष रूप में दिखाई देता है। खड़ी फाग मे चौकड़िया फाग का परिष्कृत रूप दिखाई पड़ता है ।
एक तो उनमें नायक-नायिका-भेद के प्रति एक अप्रत्यक्ष झुकाव है, दूसरे फागों की फड़बाजी से प्रेरित चमत्कार मूलक दृष्टि का आग्रह है। इन फागों की गायन शैली चैकड़िया से मिलती जुलती होने पर भी उससे कुछ भिन्न है।
दिन ललित बसंती आन लगे,
हरे पात पियरान लगे।
घटन लगी सजनी अब रजनी,
रवि के रथ ठहरान लगे।
उड़न लगे चहूँ ओर पताका,
पीरे पट फहरान लगे।
बोलत मौर कोकला कूकैं,
आमन मौर दिखान लगे।
गंगाधर ऐसे में मोहन किन,
सौतन के कान लगे।।
फाग दादरा ताल
स्थायी
सा – – सा – रे म – – ग रे रे
दि न ऽ ऽ ऽ ल लि त ब सं ऽ ऽ
ग – – सा – – रे रे ऩि सा रे रे
ती ऽ ऽ आ ऽ न ल गे ऽ दि न ऽ
रे रे – रे – – सा – – सा – –
ल लि त ब सं ऽ ती ऽ ऽ ऽ ऽ ऽ
ऩि निं ऩि सा – – आ ऽ न ल गे ऽ
रे म म म ग रे ग ग ग सा – –
ह रे ऽ पा ऽ त पि य ऽ रा ऽ न
रे रे ऩि सा रे रे ल गे ऽ दि न ऽ
अन्तरा
ऩि – – ऩि सा सा सा ऩि सा सा – –
घ न ल गी ऽ ऽ स ज ऽ ऽ ऽ
रे ग रे सा रे ऩि ऩि सा सा सा – –
नी ऽ अ ब र ज ऽ ऩि ऽ ऽ ऽ ऽ
रे म म म ग रे ग ग ग सा ऽ न
र वि के ऽ र थ ठ ह ऽ रा ऽ न
रे रे ऩि नि सा रे ल गे ऽ ऽ दि न
नोट: शेष अन्तरे इसी प्रकार बजाए जाएँ।
संदर्भ-
बुंदेली लोक साहित्य परंपरा और इतिहास – डॉ. नर्मदा प्रसाद गुप्त
बुंदेली लोक संस्कृति और साहित्य – डॉ. नर्मदा प्रसाद गुप्त
बुन्देलखंड की संस्कृति और साहित्य – श्री राम चरण हयारण “मित्र”
बुन्देलखंड दर्शन – मोतीलाल त्रिपाठी “अशांत”
बुंदेली लोक काव्य – डॉ. बलभद्र तिवारी
बुंदेली काव्य परंपरा – डॉ. बलभद्र तिवारी
बुन्देली का भाषाशास्त्रीय अध्ययन -रामेश्वर प्रसाद अग्रवाल