भारत आस्थाओं का देश, परम्पराओं का देश, विश्वास का देश और उन्ही आस्था और विश्वास से जुड़ी है अनेक किंवदंतियाँ , अनेक लौकिक-अलौकिक काथाएं जो समय -समय पर अपना चमत्कार दिखा कर पुष्टि की मुहर लगाती हैं । और उन्ही आस्थाओं की कड़ी मे एक कड़ी है Kalpi Ki Vankhandi Devi कालपी की वनखंडी देवी।
आषाढ़ का महीना पूजा – पुजापे के लिए जाना जाता है। ग्राम के देवी – देवता, कुल के देवी-देवता आदि की अर्चना पूजा। जगह – जगह भंडारे करते, देवी पूजन के जयकारे लगाते लोकजीवन से जुड़े समाज के मजदूर, कामगार, किसान, चरवाहे, व्यवसायी वर्ग के भक्तगण व कुछ संभ्रांत समाज के लोग देवस्थानों में प्रायः आसानी से बिना ढूँढ़े मिल ही जाते हैं।
मैंने ऐसे पवित्र देव – देवी स्थानों पर तमाम उन नवबुद्धिवादिओं और अनीश्वरवादियों को भी माथा नवाते देखा है जो अपने समाज के बीच में बैठकर अपने भाषणों में, प्रवचनों में इन लोकपरंपराओं का जमकर विरोध करते हैं। खैर..उन्हें तो बस विरोध की भाषा ही आती है। आलोचना शास्त्र का उन्होंने विश्वविद्यालय खोल रखा है। वह उसके स्वघोषित कुलाधिपति भी हैं…। तथापि उन्हें भी नमन है।
सच में, हमारे भारत का आम जनमानस आस्थाओं का हिमालय है। चाहे गाँव हो या शहर, आप कहीं भी जाइए आपको हर जगह छोटी – छोटी मठियाँ/ मड़ियाँ, मठ – मंदिर, शिवालय – देवालय, चबूतरा, थान, धाम, बैठकी आदि – आदि देवताओं और देविओं के पवित्र धाम मिल ही जाएँगे। इन सभी स्थानों में दैवीय सत्ता की अवस्थापनाएँ आस्थावान आम जनमानस को ईश्वर के होने की अनुभूति करातीं हैं।
चलिए आज आपको कालपी स्थित वनखंडी देवी धाम के दर्शन कराता हूँ। वनखंडी देवी मंदिर की बड़ी विचित्र कथा है । वर्तमान में जहाँ पर वनखंडी देवी मंदिर बना हुआ है, वहाँ प्राचीनकाल में घना जंगल हुआ करता था। बड़े – बड़े छायादार पेड़ थे। बरगद, पीपल, आम, नीम, शीशम के अलावा कटीला, खर, बबूल आदि के कटीले पेड़ भी थे। इन पेड़ों की छाँव में बरेदी (चरवाहे ) बैठकर जानवर चराते थे।
यहीं एक पीपल की छाँव में बैठकर बरेदी आपस में किस्से – कहखनियाँ सुनाया करते थे। एक सुबह जब बरेदी अपने जानवर को लेकर जंगल में पहुंचे तब उन्होंने देखा कि विशालकाय पीपल के नीचे की धरती को फाड़कर एक देवी प्रतिमा निकल आयी है। बस फिर क्या था यह खबर खुशबू की तरह फैल गयी।
पूरे आलमपुरा मोहल्ला तथा कालपी के आसपास क्षेत्रों में यह समाचार फैलते देर नहीं लगी। क्या राजा, क्या साहूकार, क्या किसान, बूढ़े, जवान तथा कुछ साधु संत प्रवृत्ति के लोग आकर के यहाँ पूजा करने लगे। उन लोगों ने ही इस देवी प्रतिमा को वनखंडी देवी पुकारना शुरु कर दिया होगा। यह लोक विश्वास है या और भी कुछ कारण हो सकता है।
400 साल पुरानी इस मूर्ति को लेकर अनेक पौराणिक संदर्भ भी जोड़े गए हैं। मंदिर के पूर्व महंत जमुनादास जी महाराज के शिष्य बताते है कि देवी की प्रेरणा से ही मंदिर का विकास हुआ है। मंदिर के परिसर में ही भगवान मृत्युंजय व माता पार्वती के मंदिर की स्थापना कराई गई है। मंदिर में कमरे आदि भी बनवाए गए हैं।
नवरात्रि मे यहाँ पर कानपुर नगर, कानपुर देहातत , झाँसी व मध्य प्रदेश से भी भक्त आते है। भक्त मंदिर में डला ( डाली ) व जवारें चढ़ाते है। यह स्थान अत्यंत महत्वपूर्ण व आस्था केंद्र है। यदि इस शक्तिपीठ को पर्यटन स्थल में शामिल कर लिया जाए तो यहाँ का बहुमुखी विकास हो सकता है। वर्तमान में यह मंदिर अनेकानेक अभावग्रस्त है। संसाधनों की कमी है। मंदिर तक जानेवाली सड़क जर्जर हो चुकी है।
स्थानीय भक्तों में ऐसी मान्यता है कि संकट और आपदाओं में माता वनखंडी देवी सहायता करतीं हैं।तमाम मुसीबतों से छुटकारा दिलातीं हैं। माँ ! सभी का भला करतीं हैं। वर्ष 1995 में जब इस क्षेत्र अकाल की स्थिति उत्पन्न हो गयी। भयानक सूखा पड़ा तो लोग परेशान हो गए। मंदिर के तत्कालीन महंत जमुनादास जी ने सूखा से मुक्ति के लिए मंदिर पर शतचंडी महायज्ञ का आयोजन किया।
यज्ञ समाप्ति पर भंडारा चल रहा था। तभी अचानक बादलों की फौजें आकाश पर चढ़कर गरजने – बरसने लगी। मूसलाधार बारिश होने से जनमानस, पशुओं, पक्षियों, पेड़- पौधों आदि को नवजीवन मिल गया…। लोग देवी मां के जयकारे लगाकर नाचने – गाने लगे। इस घटना के प्रत्यक्षदर्शी आज भी मंदिर पर आते रहते हैं।
इसी प्रकार वर्ष 2001 मे जब यज्ञ हुआ तो भंडारा का भोजन बन रहा था तभी एक कन्या भीषण रूप से जलती हुई भट्टी मे चली गई। जिसके बाद जब उसे निकाला तो उस पर एक खरोंच भी नहीं मिली। कोरोना काल में भी मां वनखण्डी देवी सेवादल ने गरीब व असहाय लोगों को नगर में भोजन वितरण कराया तथा वर्तमान में भी वनखंडी मंदिर से जुड़े समिति के भक्तगण सामाजिक भलाई के कार्य करते रहते हैं। पौराणिक व ऐतिहासिक नगरी कालपी स्थित मां वनखण्डी देवी शक्तिपीठ संकट से लोगों को उबारने के लिए प्रसिद्ध है।
Kalpi Uttar Pradesh कालपी उत्तर प्रदेश
शोध और आलेख – डा. रामशंकर भारती