जीवन श्री जगन्नाथ जाल सों निनोरो और भूलौ ना भली होत, भजन सी दबाई। महाकवि Isuri Ki Prabhati जिन्हें वे नित्य प्रातः गाया करते थे…। एक श्रेष्ठ साहित्यकार की पहचान।
प्रभाती 1
जीवन श्री जगन्नाथ जाल सों निनोरो।
थाके न हाथ-पांव कोऊ ना धरै नाव।
चलत फिरत चलो जांव घोरुआ ना घोरो।
जीवन की जगन्नाथ जाल सौ निनोरो।
बनी रहे बान बात इज्जत के संग सात।
दीन बन्धु दीनानाथ रै गओ दिन थोरो।
जीवन की जगन्नाथ जाल सौ निनोरो।
हाथ जोर चरन परत चरनामृत धोय पियत
जियत राम देखो ना दूसरों को दोरो।
जीवन की जगन्नाथ जाल सौ निनोरो।
ईसुरी परभाती पढ़त आबरदा सोऊ बढ़त।
कीचड़ से सनो भओ नीर ना बिलोरो।
जीवन की जगन्नाथ जाल सौ निनोरो।
प्रभाती 2
भूलौ ना भली होत, भजन सी दबाई।
नाच संग धावत में नाम गान गावत में।
परबतै पढ़ावत में गनका ने खाई।
भूलौ ना भली होत भजन सी दबाई।
ऐसें विद गओ अंग, लागो है भजन चंग।
नाम देव सज संग सीतन में पाई।
भूलौ ना भली होत भजन सी दबाई।
सुफल भओ नरतन सौ सफा देह धरतन।
निज चाम काम करतन रैदास ने लगाई।
भूलौ ना भली होत भजन सी दबाई।
सूत बिनन चीर की तारन तगदीर की।
मरजी रघुवीर की कबीर ने मंगाई।
भूलौ ना भली होत भजन सी दबाई।
ई को इतवार करै रुज कौ ना दोष धरै।
गिरधर के हात धरै मीरा ने चाई।
भूलौ ना भली होत भजन सी दबाई।
हूं खां जा आगूं लऔ मान राख मोंरा दओ।
सोनी स्वर्ग सूदो गओ सदन सौ कसाई।
भूलौ ना भली होत भजन सी दबाई।
जीवन जौन इयै खात हर हमेश खुशी रात।
पीपा के साथ अजामील ने चटाई।
भूलौ ना भली होत भजन सी दबाई।
धन जाट कण्ठ धरत सोरी संग साक भरत।
औखद की मील करै बैजुआ बढ़ाई।
भूलौ ना भली होत भजन सी दबाई।
सबने कही साजी पै बिदुर बनक भाजी पै।
भओ राम राजी पै इतनी रुचि आई।
भूलौ ना भली होत भजन सी दबाई।
धरै गए वामा के मित्र आए रामा के।
तन्दुल सुदामा के खात न अघाई।
भूलौ ना भली होत भजन सी दबाई।
बिना नाम सेवा सुख पावै न देवा।
दुर्योधन की मेवा की खाई ना मिठाई।
भूलौ ना भली होत भजन सी दबाई।
तुलसी ने सत्य कही मलुक टूक टोर दई।
खीचरी बनाय गई करमा करबाई।
भूलौ ना भली होत भजन सी दबाई।
बोलन ना हते मौन जौन काम करौ तौन।
पंछी जौन जतन जान गऔ है जटाई।
भूलौ ना भली होत भजन सी दबाई।
कातन ना बने राम दीनों है आप धाम।
उलट-पलट नाम बाल्मीक की पढ़ाई।
भूलौ ना भली होत भजन सी दबाई।
हरि को भज हरि की कात पूछो ना जात पात।
एक बहन एक गात राखे रघुराई।
भूलौ ना भली होत भजन सी दबाई।
एक जैसे आठ दस कर गए बैकुण्ठ वास।
हिरदै की खुलो खास सुर ने सराई।
भूलो ना भली होत भजन सी दबाई।
जीव जबै बोलै तब हृदै नैन खोलैं।
लै ईसुर परभाती जा भौर समैं गाई।
भूलो ना भली होत भजन सी दबाई।