कुछ बच्चे जंगल में पहाड़ पर चढ़ने का आनंद लेते हए घूम रहे थे । इतने में हिरणों का झुण्ड आया और हरी-हरी घास चरने लगा। कुछ लड़के हिरणों के पीछे दौड़े गगन और गौरव दोनों ही हिरणों से पीछे पहाडी तक पहुंच गये। वहाँ जंगल में एक पहाड़ पर शानदार Hawa Mahal हवा महल था। महल के पीछे पहाड़ की गुफा में महात्मा चेतनदास जी पड़े रहते थे। महल बड़ा ही सुंदर ऊंचाई पर होने से भव्य दिखता था। यहाँ पर आकर ऐसा लगता था कि यहीं पर आनंद लेते रहें।
“बेटी के घुढ़ला आओ”
दोनों बच्चों ने सोचा कि अब यहाँ तक तो आये ही हैं थोड़ी देर और हो जाएगी चलो इसे भी घूम लें । दोनों बच्चे सभी जगह घूमे । महल के तीसरे आँगन में किसी की प्यार भरी ध्वनि सामने वाले कमरे को पार कर आ रही थी। गगन ने कहा गौरव ! इसमें जरुर कोई रहता है, गौरव बोला कमरों में कहीं भी फाटक नहीं है, न रहने जैसी कमरों की हालत दिखती है, न पर्दा, न डेकोरेशन यानि कुछ भी रहने जैसी बात नहीं है, फिर ये आवाजें कहाँ से आ रही हैं।
दोनों कमरों के बाहर जाते हैं, एक सुदर युवती गीत गा रही थी गायन के बाद वह गगन से बोली तुम्हारा क्या नाम है ? उसने कहा मेरा नाम गगन है और यह मेरा प्यारा मित्र गौरव है । वह गायिका युवती जिसका नाम सुश्री मनोरमा पाठक था बच्चों से बोला तुम नियत स्थान पर कब पहुचोगे । रूक जाओ वरना तुम्हें रात हो जाएगी । दोनों ने कहा नहीं हम तो चले जाएगे।
गायिका मनोरमा ने कहा मैं तुम्हें एक घोड़ा देती हूँ। उसने एक घोड़ा दिया और कहा तुम दोनों इससे कहो कि घर पहुंचा दो तो यह घोड़ा तुम्हें घर छोड़ देगा और यह घोड़ा वापिस लौट आएगा। जब भी तुम यह कहकर पुकारोगे कि “बेटी के घुढ़ला आओ” तो वह फिर तुम्हारे पास आ जाएगा फिर जहां चाहो तुम्हें पहुचा देगा। दोनो को घोड़े ने गगन के आँगन में उतार दिया घर पर सभी साथी आ गये और दोनों से बोले तुम कहाँ गए थे ? हम सब जगह तुम्हें देख आए और इतनी जल्दी यहाँ कैसे आ गये
दूसरे दिन गगन और गौरव फिर घूमने निकले एक बगीचे के सामने गौरव ने कहा बेटी के घुड़ला आओ। थोड़ी हो देर में घोडा आ गया। दोनों मित्रों ने कहा हमें हवा महल पहुंचा दो घोड पर बैठते ही दोनों हवा महल पहुचे । दोनों उतरे और घोड़ा चला गया। दोनों ने देखा एक बुढ़िया लकड़ियों का गट्ठा बार-बार उठाने का प्रयत्न करती, पर उठा नहीं पा रही थी। गौरव ने कहा-गगन ! तुम यहीं रुको ! मैं बुढ़िया के पास जाकर उस गटठा उसके घर तक पहुंचा दू । गगन ने उसका गटठा अपने सिर पर रखा और बुढ़िया से कहा चलो, इस कहाँ ले चलना बढ़िया बेचारी आगे-आगे और पोछे-पोछ गगन । थोडी दूर जाकर बिहारी जी के मदिर में पहुच कर उसने गटठा उतार दिया।
गौरव ने मंदिर में जाकर साक्षात जगदम्बा के दर्शन किये । जगदम्बा माँ ने कहा लो यह शंख अपनी जेब में रखो और यह अंगूठो अपनी ऊगली में पहन लो यदि तुम्हें कहीं भी दिक्कत दिखे तो अंगूठी से कहना तू अन्तर्धान हा जा। फिर तुम्हें कहीं भी कोई न दखेगा और तुम सभी का देख सकोगे। मदिर में जगदम्बा माँ से विदा माँग कर वह हवा महल में पहुंचा और वहाँ पर जाकर बड़ी जोर से गगन को पुकारने लगा। आँगन में जाकर देखा तो झूले पर गगन और एक राजकुमारी साथ-साथ झूल रहे थे।
गौरव को देखते ही गगन ने झ ले को रोका । गौरव ने गगन से कहा-बताओ ! मैं तुम्हारे लिये क्या लाया हूँ । गगन ने कहा मुझे क्या मालूम । गौरव ने कहा गगन अच्छा तुम अपनी आंखे बन्द करो और गगन ने अपनी आँखे बन्द कर ली वह राजकुमारी जो गगन के पास बैठी थी, वह नहीं समझ पाई इतने अबोध बच्चे भी कुछ चमत्कार कर सकेगे उसने आंखे बंद कर ली।
गगन ने शंख राजकुमारी के मुह से लगा दिया । शंख में जाने क्या चमत्कार था । थोड़ी ही देर में बड़ी जोर की आवाज के साथ झूला टूटा और दोनों नीचे गिर गए। राजकुमारी झूले से गिरते ही परिवर्तित हो गई । अपने राजश्री वेश में पीली पोशाक पहने और मूकूट बाँधे एक विमान में बैठकर जाती हुई बोली गगन ! मैं तेरी ऋिणी हूँ मैं तुझसे कभी उरिण नहीं हो पाऊगी। जब अकाल के कारण दो दिन तक भुखे प्यासे लोग हो जाए तब तुम आकर मेरे इस हवा महल के तीसरे खण्ड का सामान सभी को बाँट देना।
गगन और गौरव राजकुमारी की बातों को सुनकर उसी मंदिर पहुंचे जहाँ गौरव पहले जगदम्बा मां के साक्षात दर्शन कर चुका था। दोनों को जगदम्बा माँ ने दर्शन दिये और आकाशवाणी की कि तुम यह शंख शहरी मंदिर में रख दो और अंगूठी को उगली में पहने रहो । जब भी कोई संकट तुम्हारे सिर पर आए तुम दोनों की रक्षा के लिए यह अंगूठी काम आएगी गगन और गौरव दोनों ने जगदम्बा माँ को प्रणाम किया और सुख से रहने लगे।
बुन्देली झलक (बुन्देलखण्ड की लोक कला, संस्कृति और साहित्य)
लेखक -डॉ.राज गोस्वामी