Vindyakokil Bhaiyalal Vyas ‘विन्ध्यकोकिल’ भैयालाल व्यास

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‘विन्ध्यकोकिल’ पं० भैयालाल व्यास हिंदी और बुंदेली भाषा के एक लोकप्रिय साहित्यकार रहे हैं। Vindyakokil Bhaiyalal Vyas का जन्म मध्यप्रदेश के दतिया जिले में 7 सितंबर 1918 को हुआ था।  वे वह सरस्वती के सच्चे साधक थे और उन्होंने बुंदेली भाषा में देशभक्ति और प्रकृति से संबंधित कविताओं की रचना शुरू की ।

“विंध्यकोकिल” की उपाधि सरकार द्वारा उनके मीठे और ओजपूर्ण स्वर के लिए मिली थी

विशेष विवरण- इनके पिता जी का नाम बालकृष्ण व्यास था। भैयालाल व्यास जी का जीवन बचपन से ही बड़ा संघर्षपूर्ण रहा हैं, इनका संघर्ष तब शुरू हुआ जब इनके बचपन में ही इनके पिता बालकृष्ण व्यास जी की मृत्यु हो गई। इनकी माता जी ने इन्हें बड़ी ही कठनाइयों से पाला। बचपन में पिता की मृत्यु के उपरान्त, युवावस्था तक विषम यातनाओं में जीवन बीता। स्कूल में आठवीं तक पढ़ के जीविकोपार्जन भी किया। सन् 1936-37- से हिन्दी काव्य के क्षेत्र में प्रवेश किया।

 भैयालाल व्यास जी के प्रेरणा स्रोत थे मा० चतुरेशजी, गोस्वामी वासुदेव जी, भैया बलवीर सिंह जी। इन्हीं की प्रेरणा से आपने हिन्दी परीक्षायें दीं। बी०ए० आगरा से अंग्रेजी, हिन्दी विषय लेकर किया । दीर्घकाल के बाद सागर विश्वविद्यालय से निजी स्वाध्याय से एम०ए० हिन्दी से किया। पी० एच-डी० के लिए पंजीकृत होने पर भी पदोन्नति हो जाने से कार्य न कर सके ।

मुंशी अजमेरी जी के बाद बुंदेली को साहित्य आयाम देने वाले कवियों में कविंद्र नाथूराम माहौर रामचरण हयारण ‘मित्र’ और भैया लाल व्यास के नाम सदा लिए जाते रहेंगे उनमें व्यास जी अग्रगण्य हैं। 95 वर्ष की आयु में भी रचनात्मक रूप से सक्रिय रहते हुए उन्होंने विदा ली। भैया लाल व्यास की मृत्यु 12 दिसंबर 2012 को हुई।

वे हिंदी भाषा के प्रतिषिठित कवि थे जिन्होने बुंदेली में रचनाये करके उसे  भी समृद्ध किया । हरदौल उनकी सर्वाधिक लोकप्रिय रचना है। हज़ारों लोग फफक-फफक कर रो पडते थे  जब वे  मंच से हरदौल पढ़ते थे। ये उनकी वाणी में यूट्यूब पर भी उपल्ब्ध है।

संस्मरण… पं. श्री गुणसागर शर्मा “सत्यार्थी”
“बात उन दिनों की है जब विंध्यकोकिल आदरणीय भैया लाल व्यास टीकमगढ़ रहा करते थे एक बार कुंडेश्वर में श्री वियोगी हरि जी पधारे व्यास जी ने मुझे बुलाया और कहां अपनी भाभी जी को ले जाओ इन्हें वियोगी हरि जी के दर्शन करवा दो मैंने आदेश का पालन किया कुंती भाभी को कुंडेश्वर ले गया वियोगी हरि जी कुछ अस्वस्थ से लेटे हुए थे मैंने भाभी जी का परिचय कराया उन्होंने लेटे हुए पूछा आप क्या करती हैं मैं कोई उत्तर देता उससे पहले भाभी जी बोली मुझे क्या करना बस कवियों की सेवा करती हूं सुनते ही वियोगी हरि उठ कर बैठ गए और भाभी जी को विनम्र प्रणाम किया कहा बेशक आप महान हैं कवियों की सेवा करना सरल नहीं है कवि लोग अपनी कविता जबरन सुनाते हैं चाय आपको सुनने का समय हो या ना हो उन्हें तो सुनाने से मतलब।

भैया लाल व्यास जी की कुछ प्रमुख रचनाएँ –
विजयादशमी (खंड काव्य), जीवन के क्रम, आग – पानी (पुस्तक), सांझ – सकारे, पूण्यभूमि बुंदेलखंड, देश के देवता, जागा मेरा देश, तुम मत रोना, गीतों मे चार ऋतुएँ, रस वृन्दावन (महाकाव्य), सीता सत्यम (प्रबंध काव्य ), चोर के छंद, महाबली छत्रसाल, ओनामासी, रघुवंशम, माँ ममतामयी, चिंतन का छण, अपना देश अपना संगीत (रेडियो रूपक)

उपलब्धियाँ: भैया लाल व्यास जी को मिले सम्मान (AWARDS )
1- हिन्दी साहित्य सम्मेलन प्रयाग (इलाहाबाद) की सर्वोच्च मानद उपाधि ‘साहित्य महोपाध्याय’।
2- अ.भा. भाषा साहित्य सम्मेलन, बेंगलोर अधिवेशन में भारत भाषा भूषण से सम्मानित।
3- उत्तरप्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा मैथिलीशरण गुप्त पुरस्कार।
4- मध्यप्रदेश हिन्दी साहित्य सम्मेलन भोपाल द्वारा सम्मानित।
5- मध्यप्रदेश लेखक संघ द्वारा ‘अक्षर आदित्य’ अलंकरण।
6- म.प्र.आंचलिक साहित्यकार परिषद जबलपुर द्वारा सम्मानित।
7- लक्ष्मी व्यायाम मन्दिर झाँसी के स्वतंत्रता शताब्दी समारोह में सम्मानित।
8- मैहर की प्राचीन संस्था ‘अंकुर’ द्वारा नागरिक अभिनन्दन।
9- ‘मानस मृगेश’ सम्मान अक्षर अनन्य नगरी सैवड़ा (दतिया)
10- दतिया (म.प्र.) में विराट नागरिक अभिनन्दन सम्मानिका प्रकाशित, नाम से पुरस्कार स्थापित, भूमि का नामकरण प्रस्तावित।
11- बुन्देलखण्ड अकादमी छतरपुर द्वारा स्वामी प्रणवानन्द पुरस्कार।
12- अ.भा. बुन्देली उत्सव पर्यटक ग्राम बसारी में स्व. राव बहादुर बुन्देला स्मृति सम्मान बसारी (म.प्र.)
13- पूर्व विध्यप्रदेश शासन द्वारा पुस्तकें पुरस्कृत।।
14- आकाशवाणी से सन् 1952 से सम्बद्ध सलाहकार समिति सदस्य, अनुबंधित गीतकार।
15- भारत शासन साहित्य अकादमी और एशियन राइटर्स द्वारा “Who is Who” में स्थान।
16- अनेकों राज्य संभागों स्थानीय निकायों साहित्यिक संस्थाओं द्वारा एवं महाविद्यालयों में सम्मान प्राप्त।
17- सीता सत्यम’ (प्रबन्ध) पर डॉ.चन्द्रप्रकाशवमा अ.भा.पुरस्कार से सम्मानित।
18- अनामिका प्रसिद्ध साहित्य संस्थान मऊरानीपुर द्वारा नागरिक सम्मान। 19- सन् 2004 राजभाषा मास में भारतीय स्टेट बैंक की तीनों शाखाओं द्वारा जीवन उपलब्धिसम्मान।
20- अमर शहीद नारायण दास खरे जन जागरण समिति टीकमगढ़ द्वारा ‘बुन्देलगौरव’ उपाधि से अलंकृत।
21- विदर्भ हिन्दी साहित्य सम्मेलन नागपुर से सम्मानित।
22.मध्यप्रदेश शासन संस्कृत परिषद-साहित्य अकादमी, भोपाल द्वारा सारस्वत सम्मान।
23- विंध्यकोकिल भैयालाल व्यास अभिनन्दन समिति द्वारा अभिनन्दन ग्रंथ से अभिनन्दन।
24- नागरी प्रचारणी सभा आगरा के स्थापना दिवस पर बसन्त पंचमी 31-01-09 को सम्मानित।

मैयन सैं
झिलमिल-झिलकत तारै तुम,
आँखन के उजियारे तुम,
सांचै हितू हमारे तुम,
धरतो के गुन गाइयो,
सौनौ नित उपजाईयो । भैया….॥
ओट आंसरें मैया के,
वाय बली तुम मैया के,
धुरा देश के पैया के,
सबकों पार लगाईयो। मझधार कड़ जाइयो । भैया….।।
खेतन में आंसें फूलें,
वाले झूला सी झूलें,
फूल बनें सबरी शूलें,
पुन्न पलें – पापे भूलें,
प्रेय – प्रीत अपनाईयो।
भेदें दूर भगाइयो । भैया….॥
आसें पुज हैं जब जी को,
नदियां बैयें दूध – घी की,
गौऊं सरसौं – अरसी की,
किलकै क्यारी धरती को,
भूम संग मुस्क्याइयो,
फूले नई समाईयौ । भैया….॥
पर हित जौ तन गारियो,
धीरज मन में धारियो,
मैनत मोती पारियो,
किन हिम्मत नैक न हारियो,
सौय भाग जगाईयो।
राग भैरवी गाईयो । भैया..।।
छिटकी चाय चुनैया होय,
चन्दा की लौ लइया होय,
सूरज सजी उरईया होय,
रमैं रुख को छैया होय,
तनक न तुम बिलमाईयो।
आगै कदम बढ़ाईयो । भैया….॥
पांच पांच डग धरियो तुम,
दुःख समय के हरियो तुम,
वि… फरियो तुम,
सबको स्वाद चखाईयो,
जुग की प्यास बुझाईयो । भैया….।।
अपनौई जौ गांव है,
नौनौ सबकौ नाव है,
बड़े सबई जौ चाव है,
लगौ आखरी दाव है,
सब – कछु भेंट चढ़ाईयो,
स्वारथ सब बिसराइयो । भैया….।।
अपनै जा गणराज पै,
भारत भू के ताज पै,
बैरी घात लगाएँ है,
अपनै सुखी – समाज पै,
उनकौं मजा चखाईयो।
विजय धुजा फहराईयो ।।
भैया रे ! भैया रे !! भैया रे, भैया रे ।।

बुन्देली-वसन्त
गेंदा फूल रये बागन में आ गऔ बसन्त ।
गेंदा फूल रये रागन में गा रऔ बसन्त ।।गैंदा…
हरदी ने आज रंगे सरसों के अंग ।
अरसी पै आसमान छोड़ गऔ रंग ।।
मनुआ फूल गयेमनुआ फूल गये-आंगन में आ गऔं वसन्त ॥गैंदा…

होस गमा बैठे हैं बौराये आम।
कोयलिया कूक करे निदिया हराम ।।
जनवा फूल गये’जनवा फूल गये-अ में आ गऔं वसन्त ।।गैंदा…

टेसू के झूल उठे फूल लाल-लाल ।
धरती की मुइयाँ पै ऊग रऔ गुलाल ॥
दिनवा फूल गये दिनवा फूल गये- में आ गऔ वसन्त ।। गैंदा०

महकी करौंदिया है-बहके हैं बेर ।
महआ की मन्द-गन्ध उड़ी है सबेर ।
सगुना फूल गयेसगुना फूल गये- में आ गऔ वसन्त ।। गैंदा०

गंगा पै चन्दा ने डार दऔ अबीर ।
जमुना में साँवरे नै रंगौ है सरीर ।।
सजना फूल गयेसजना फूल गये-कुंजन में आ गऔ वसन्त ।। गैंदा०

मौसमी मसोस भरें केसरिया जोस ।
चूम उठी बालन कौं भुनसरा की ओस ।
म विधवा फूल गयेविधवा फूल गये- में आ गऔ बसन्त ।। गेंदा०

गोरी की अंगिया में आये हैं निखार।
नैनन को रमौ रात को खुमार।
(बदना) मदना फूल गये(बदना) मदना फूल गये-भावन में आ गऔं वसन्त ।। गैंदा०

राग भरे रसिया के छिड़े हैं धमार।
बरिया के बोल भरै पीपर की डार ॥
फगुना फूल गये। फगुना फूल गये-खेतन में आ गऔ बसन्त ।
गेंदा फूल रये–बागन में आ गऔ बसन्त ॥

बदल गये रंग सबई बगिया के
काया बदली-माया बदली, बदले जोर जिया के ।। बदल…

नई कौंप-नये ल्याई संदेसे, बौराये अमिया के।
नई-नई बात सुहात सबै अस होरये हाल हिया के । बदल….

पाप झरे पीरे पातन में- के
पुन्न पखेरू गावन लागे–फाग-राग रसिया के ॥ बदल..

धानी धुतिया ओड़ -बंद केसर अंगिया के।
फूली नई समायें धरनी पाकै प्यार पिया के ॥ बदल….

पौन-मौन सी हंसी हंसी जब पैठी ठौर ठिया के ।
चटकी कली-अली के आंगे छल भूली छलिया के ॥ बदल….

टेसू की बांकी झांकी में जग गई जोत दिया के।
चैत काटबे या पूजा भई रोरी लगी हंसिया के ॥ बदल…..

थिरक उठीं बाल-बेलै सून-सरगम कोईलिया के।
ताल देत पीपर के पातर-बोल परै बरिया के ॥ बदल….

फूल फूल गये सरसों के संग–अरसी की किरिया के।
लीली कोर कड़ी मन भाये-पीरी चूनरिया के ॥ बदल….

बेर फरे-महुआ गदरानै मनई–मन मिठिया के।
लाल-गुलाल हाल भये मानौ होरी में हुरिया के ॥ बदल….

बदले मोर-मरोर अथयें के दिन के दोफरिया के।
सान्ति मिलै तबई पै बदलै बैरी जब दुनिया के ॥
बदल गये रंग सबई बगिया के ।

मोरे गाँवन के भैया रे
मोर गांवन के भैया रे
मोरे भांवन के भैया रे,
जागो भैया भोर चले आज संग-संग,

मिटी अंधियारी रात,
करें भुनसरा की बात,
नई किरनन के हात,
भरे सूरज ने रंग ॥ मोरे० ॥

जगी बाल—जगे खेत,
सौंधी सांस के समेत,
गई धरनी अब चैत,
भलें निदिया भई भंग ॥ मोरे॥

लीले अरसी के फूल,
रए सागर से झूल,
फोर मैंडेन के कूल,
बही जात है उमंग ॥ मोरे० ।।

फैले सरसों के जाल,
भरे केसर के ताल,
पौन प्रति पाल-पाल,
लगी है तरंग ।। मोरे० ।।

मिली हारके हैं जीत,
नये फूट परै गीत,
बड़े बिरछन के मीत,
उड़े ऊपरै विहंग ॥ मोरे० ।।

फरे आमन को जान,
छिड़ी कोईल की तान,
जिया लेत है उड़ान,
खिलै कमलन के अंग ॥ मोरे०॥

फूले टेसू हैं लाल,
लगौ भूम के गुलाल,
चली एक नई चाल,
झरत मऊअन से गंग ॥ मोरे० ॥

नए काम रए टेर,
करी काए है अवेर,
भई चेतवे की बैर,
बदल रोज रए ढंग ॥
मोर गांवन के भैया रे

शरद-गीत
बरखा के बीते दिना चार
सरद की आउन भई।
चन्दा चमकौ समुन्दुर पार
सरद की आऊन भई।

उठ गये परदा कारे-कारे।
हौन लगे अब तौ उजयारे।
पंछिन नै पाये भुनसारे
उड़ गये पाँख पसार ।
सरद की आउन भई । बरखा०

ऊग उठी आकासै तरइयाँ।
फूलन सैं नये ताल भरैयाँ ॥
धरती पै ओसें उतरैया।
मोतिन के लै थार।
सरद की आउन भई । बरखा०

की आस फली जग-जाती।
पावस की भई प्रीत पुरानी।
हियरा में सरदी हरियानी
वर्षा के घर-द्वार ।
सरद को आऊन भई । बरखा०

न रै गये नैकऊ गीले,
तन गये पाल-चदेवा-लीले,
धरती नै अब रंग-रंगीले,
बाँदै बन्दनवार,
सरद की आऊन भई । बिरखा०

छिटकी घर-घर जोत जुनइया ।
जमना तट पर कुँवर-कन्हैया ॥
रास के रास एक जुनइया-राधा स
सरद की आऊन भई।

‘हरदौल का विष पान’
‘बम-बड़ी-बम’ बजत नगाड़े हते उत तौ खुसयाली हो रई ती।।
इते विष के भोजन थार सजा रानी मन ई मन रो रई ती॥

थारी विष के पकवान भरी लख अंखिया डब-डब-डब रोवै ।।
मानौ करए ।पर भावै बे अंसुआ-निर्मल जल से धोवै ॥

मन में वे सोच करै महलों दई बुर औ समऔ अब आन परौ।
राजा ने कठिन परिच्छा को छातो पै पथरा तान धरौ ॥

है इतै बावरी-कुआ उतै विपता में मैं पर गई दैया।
इत पती-हुकुम उत देवर की हत्या को पाप-मरी मैया ।

देवरह ऐसे ऊसौ नई-बाँकी सपूत बुन्देला है।
साचौ सुदेस को सेवक है साक्षात् धरम को हेला है ।।

री कुलदेवी ते बचा-बचा मैं पर गई भारी आफत में ।
नारी की लाज बचावे खौं नारी के तन-मन कोंपत हैं ।।

हिरदो क रऔ है मेरौ तौ जौ पाप कमाऊँ मैं कैसे?
जौ नई करौ–तौ पतिब्रता को धरम गमाऊँ मैं कैसे ?

बौ धरम-सती को धरम बड़ी जाके लैं होत हते जौहर ।
जाके लानै मेरी कि तकई मातायें मर गईं कस के कमर ।।

दाऊजू की सु? में कारौंच नहीं पुतवैहौं मैं ।
मर जैहों पै? जू की नई कूख में दाग लगैहौं मैं ॥

आ गऔ छत्रानी खौं छिन में बुन्देलवंस को जोस खरौ।
अंग अंग मैं आभा फूट परी–मुख पै लालामी तेज भरौ ।

झट उठा लऔ बौ थार हात चड़ चलीं अटा पै छम-छम-छम् ।
हरदौल की मूरत आंखन में आ गई-ठिठक गईं ठम्-ठम्-ठम् ॥

वे लौट परी धर दऔ थार-चौका में धम सैं बैठ गईं।
आँखन के मारग सैं हिरदै हरदौल की मूरत पैठ गई ।।

मन में वे सोच लगीं करने जो कैसौ हुकुम-अजब धुन है।
निरदोषी की हत्या हू है दुनिया मन में का-का गुन है ।।

महराज आज हैं अपनी पै पर गये हैं बे तो गुरगन में ।।
घर को सब नास कहा मैं जो मनमानी कर हैं छिन-छिन में ।

पै ऐसौ हौन न दै हौं मैं चाए लाज जाय सबरी मेरी।
आ गए ‘जुझार’ कर नेत्र लाल बोले “कैसी हो रई देरी ?

रानी कंप गईं-लऔ थार उठा चड़ गई महलन पै मन मारे।
हरदौल उठे-हँस पाँव छिये—रानी के बोल भये भारे॥

आसीस नई निकरी मौं मैं डब्-डब्-डब् आँखें भर आईं।
‘मेरी भौजी-मेरी भौजी, हरदौल से कैसी निठुराई ?

आसीस काये नई दई तुमनै मेने कसूर है कौन करौ ?
हो गई देर है लगी भूख तुम लये काये इत थार धरौ ?

लै लऔ थार रानी कर से भोजन की बिरिया जो आई।
कप–चौंक-रोक रोई रानी चिल्याई पै धुन भर्राई ।।

गिर परी मुर्छा खा के वे हरदौल कयें “मैया।
मैया !!” कछु देर में आंखें खोल उठीं बोली “भैया-मेरौ भैया !!”

हो गई मौन-रुक गऔ बोल छिन छिन पै फिर हिचकी आई।
“बोलौ-बोलौ-कछु बोलौ तौ” हरदौल की आँखें भर आईं।

“का विपता पर गई है तुम पै का बात रोक लई मन-आई ?
सेवा में तन-मन हाजिर है कओ साफ काये खौं सकुचाईं ??”

रो-रो रानी नै भरौ गरौ कै दई बिथा अपनी सारी।
बोले हँस के हरदौल “बस्स ! इतनै कौं रोऊत बेचारी ॥

परमात्मा जानत है जौ तौ-तुम मेरी धरम की माता हो।
तुम मेरी पालन कर्ता हौ-तुन मेरी जीवन-दाता हो ।

मों तेरी लाज बचावे खौं हौं धन्य आज जो मर जाऊँ।
बुन्देलखण्ड के बुन्देलन को माथी ऊँचौ कर जाऊँ।”

हरदौल लगे भोजन करने देखतई रै गई भौजाई !
हात-पाँव भौजी के देवर कौं मूरछा सी आई ॥

बोले हँस के “भौजी तुल नई चिन्ता करियो जो काम हतौ।
जई में अपने कुल को सबरौ बुन्देल वंस को नाँव हतौ ॥”

थक गऔ बोल कह “जय बँदेल” जय-जय भौजी-मेरी भौजी।
उतनई में नैचै मैं ‘जुझार’ की भर्राई बोली गूंजी ।।

“मैं भूल गऔ कोऊ बचा-बचा भइया मैं आऔ भैया मैं।
अब भेद खुलौ है आँख खोल ठाँडो “हाँ तेरौ भैया मैं ।”

आ गई मूर्छा राजा खौं बायन पै लै लये महरानी।
“मेरी रानी-मेरी रा-रा’ टूटी सी निकल परी वानी ॥

हरदौल देह पै दम्पत नै अंसुआ मुकता कर-कर संचय।
खा-खा पछार रो-रो छिन में महलन में मचा दई पिरलय।

रो-रो के ओरछे को रैयत के रई ती “रानी की जय हो।
जय पुन्य भूम बुन्देलखण्ड-हरदौल वीर जय हो जय हो ॥”

कवि गंगाधर व्यास का जीवन परिचय 

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