चित्रकूट जनपद में राजापुर नामक कस्बा यमुना नदी के तट पर स्थित है। यहाँ आत्माराम दुबे नामक प्रतिष्ठित सरयूपारीण ब्राह्मण रहते थे। उनकी धर्मपत्नी का नाम हुलसी था। सम्वत् 1554 विक्रमी की श्रावण सप्तमी के दिन इसी दम्पति की कोख से अभुक्त मूल नक्षत्र में रामबोला (तुलसीदास) Goswami Tulsidas का जन्म हुआ।
माता का देहान्त दूसरे दिन हो गया, चुनिया नामक दासी ने साढ़े पाँच वर्ष तक आयु तक उन्हें पाला। भगवान शंकर की प्रेरणा से रामशैल्य पर रहने वाले श्री अनन्तानन्द जी के प्रिय शिष्य श्री नरहर्यानन्द जी ने इस बालक को राम बोला नाम दिया। यज्ञोपवीत संस्कार कर राम मंत्र की दीक्षा दी।
सं. 1583 वि. जेष्ठ शुक्ल 13 को भरद्वाज गोत्र की सुन्दरी कन्या रत्नावली से उनका विवाह हुआ। पत्नी द्वारा प्रोमाधिक्य धिक्कारे जाने पर गृह त्याग दिया और साधू वेश ग्रहण किया। विभिन्न स्थानों पर भ्रमण करते हुए अयोध्या पहुँचे। चैत्र शुक्ल नौमी रामजन्त तिथि सं. 1631 वि. में रामचरित मानस की रचना प्रारम्भ की और मार्ग शीर्ष शुक्ल पक्ष में राम विवाह के दिन अर्थात 2 वर्ष 7 माह 26 दिन में सातों काण्ड रामचरित मानस के पूर्ण किये। अवधी और ब्रजभाषा में तथा विभिन्न कवित्व शैलियों में उन्होंने दोहावली कवितावली, बरवै रामायण, रामलला नहछू, तथा विनयपत्रिका के पदों की रचना की।
रामचरित मानस ने तत्कालीन हिन्दू जाति के नैराश्य को समाप्त किया। उनमें भक्ति भाव जगाये। शैव और वैष्णव सम्प्रदाय की कटुता को समाप्त कर हिन्दू विचारधारा को उदारमना बनाया। हिन्दुओं को अत्याचार, अनाचार के समाप्ति की किरण दिखाई। गोस्वामी तुलसीदास हिन्दी साहित्य के श्रेष्ठतम कवि और रचनाकार हैं।
सं. 1680 वि. श्रावण कृष्ण तृतीया शनिवार को असीघाट वाराणसी पर राम राम कहते हुए अपना भौतिक शरीर परित्याग किया। उनके ग्रन्थों का अनुवाद भारत की समस्त भाषाओं में तथा विश्व के अनेकानेक भाषाओं में सम्पन्न हो चुका है। गोस्वामी तुलसीदास जी की जीवनी और साहित्य पर अनेकानेक शोध-प्रबन्ध देश और विदेश में प्रस्तुत किये गये हैं। तुलसीदास शोध पीठ अयोध्या तथा चित्रकूट में स्थापित हैं। मध्य प्रदेश शासन “तुलसी पुरस्कार समारोह’ आयोजित करती है।
गोस्वामी तुलसीदास सत्य, शील, सौन्दर्य के अप्रतिभ कवि हैं। विनय पत्रिका भक्तों के गले का हार है। गीतावली अपनी संगीतात्मकता के साथ माधुरी एवं सरस प्रसंगों के लिए लोकप्रिय है। रामचरित-मानस लोकमानस का अमर काव्य है। गोस्वामी तुलसीदास जी ने भारत में ही नहीं विश्व को अपनी महनीयता से प्रभावित कया है तथा भविष्य में भी मानस समाज को सत्प्रेरणा देते रहेंगे।