पितामह श्री कृष्ण दत्त मिश्र तथा पिता आचार्य काशी नाथ जी ओरछा दरबार के प्रतिष्ठित विद्वान थे। इसी परिवार में Kavi Keshav Das का जन्म बेतवा नदी के तट पर तुंगारण्य (ओरछा) में रामनवमी तिथि सं. 1618 वि. में हुआ। ओरछा नरेश महाराज रामसिंह के राजपंडित पद पर प्रतिष्ठित, सभा चतुर एवं वाकपटु थे।
महाराज के छोटे भाई इन्द्रजीत सिंह का उन पर गुरुवत आदर भाव था। राजा बीरबल, टोडरमल, अब्दुर्ररहीम खानखाना स्नेही थे। उनके प्रसिद्ध ग्रन्थ रसिक-प्रिया सं. 1648 वि. कवि प्रिया सं. 1658 वि. रस-ज्ञान, अलंकार-समीक्षा के श्रेष्ठतम ग्रन्थ हैं।
महाकाव्य रामचन्द्रिका में नाटकीय शैली का समावेश कर प्रतिभा तथा मौलिकता का परिचय दिया। वीरसिंहदेव चरित्र, जहांगीर जसचन्द्रिका, रतनबाउनी में तत्कालीन संस्कृति तथा ऐतिहासिक घटनाओं की झलक प्राप्त है। नखशिख तथा छंदमाला में काव्याचार्य की प्रतिभा प्रतिबिम्बित है।
“रामालंकृत मंजरी‘ पिंगल शास्र का ग्रन्थ है। विज्ञान गीता अध्यात्मक विषयक अनूठा ग्रन्थ है। आचार्य केशवदास मिश्र काव्य रीति की एक विशिष्ट प्रणाली के प्रवर्तक हैं। अलंकार संबन्धी समीक्षा में उनका स्थान अद्वितीय है। उनकी कृतियों में तत्कालीन वृत्तियों का चित्रण प्राप्त है।
हिन्दी साहित्य के प्रथम आचार्य का निधन सं. 1674 वि. में हुआ। रामचन्द्र शुक्ल के अनुसार उनका जन्म सं. 1612 वि. है। श्री भगवानदीन के अनुसार जन्म सं. 1618 वि. है।
कवि केशव दास का जीवन युग के अनुरुप रंगीनी रसिकता अनेकपता तथा रोचकता से परिपूर्ण है। उनकी समस्त कृतियों का आधार संस्कृत ग्रन्थ माने जाते हैं। रीति भक्तिकाल में केशव सर्वप्रमुख कवि हैं जिन्होंने बुन्देली साहित्य को ही नहीं हिन्दी के रीतिकाव्य को भी महत्वपूर्ण देन दी है।