चन्दा मामा पास के
चन्दामामा पास के। कहने को आकाश के।।
मम्मी के लगते हैं भैया नाते इनसे खास के।।
चन्द्रयान से जाकर उनके दर्शन किये निवास के।।
भूमि और जलवायु देखी चेहरे देखे घास के।।
बहुरंगी हैं रूप आपके जैसे पत्ते ताश के।।
नानी जी से सुनते आये तेरे किस्से हास के।।
स्वर्ण अक्षरों में देखे हैं पृष्ठ नये इतिहास के।।
जग को शीतलता देने में तुम हो पुंज प्रकाश के।।
बेटे हम
माँ सरस्वती के बेटे हम। नहीं किसी से हेटे हम।।
सुबह शाम आरती करते, भोग लगाते पेठे हम।।
शाला रोज समय पर जाते, बस्ता साथ चपेटे हम।
शीत लहर से बचने को, मफलर कान लपेटे हम।
मेरा भैया कुंअर कन्हैया, हैं बलदाऊ जेठे हम।
मित्रों के संग खेला करते, था-था थैया ठेठे हम।
मोनू है स्वभाव से नैनू, हैं मक्खन सपरेटे हम।
छुट्टी के दिन आये भैया, पाँव पसारे लेटे हम।
भारत रत्न
बहुत बड़ा सम्मान, भारत रत्न है।
देश भक्ति की शान, भारत रत्न है।।
पीपल के पत्ते सा काँसे में ढला
सूर्य का प्रतिमान, भारत रत्न है।।
‘सत्यमेव जयते’ का अंकन पृष्ठभाग में
भारत की पहचान, भारत रत्न है।।
राजगोपाला, राधाकृष्णन, नेहरू, टंडन, पंत
यह रत्नों की खान, भारत रत्न है।।
शिक्षाशास्त्री लेखक कुलपति
विज्ञानी, विद्वान, भारत रत्न है।।
शहीदों की चिताओं पर गई जानें
उन पर बना विधान, भारत रत्न है।।
स्वतंत्रता संग्राम में जो चल बसे
उनका दिया बलिदान, भारत रत्न है।।
यह सर्वोच्च शिखर की पद्वी
जिससे राष्ट्र महान, भारत रत्न है।।
विज्ञान के राज
आधा कप पानी से धोलो अनगिन कपड़े आप।
मिट जायेगी पूर्ण गंदगी है मशीन में ताप।।
आधा किलो वजन की है यह एक डिवाइस मशीन ।
पुस्तक पढ़कर बतलायेगी नेत्रहीन को चीन।।
सौर ऊर्जा ने प्रस्तुत की एक चार्जर टाई।
जिसमे चार्ज मोबाईल होते अनगिन मेरे भाई।।
मेरे तेरे मन में क्या है करे खुलासा राज।
कम्प्यूटर स्क्रीन सुनाये सबके छुपे मिजाज।।
हों बूढ़े या बाल
गेट ऑफ इंडिया स्थित बम्बई बना हुआ।
कुल्लू घाटी दिखे हिमालय ऊँचा तना हुआ।।
गंगादेव के हाथ हुआ था जगन्नाथ निर्माण।
उसके श्रम कण से ही निर्मित जागे उसमें प्राण।।
आज विश्व की लंबी नदियाँ नील नदी कहलाती।
भारत की लंबी नदिया तो गंगाजी कहलाती ।।
मंगल ग्रह को सभी जानते है वह रंग से लाल।
इससे परिचित सारा जग है हों बूढ़े या बाल।।
तोता – कौआ
तोता मीठे फल खाता है। पेट भरे में मुस्काता है।।
अपनी मैना से मिलने को, धीरे से वह उड़ जाता है।।
हाल पूछने आता कौआ, तोता मन में गुर्राता है।।
बात नहीं करता है उससे, सुंदरता का मद भाता है।
एक दिवस आँधी आते ही पेड़ खाई में गिर जाता है।।
सारे फल दूषित होने पर, तोता मँखा चिल्लाता है।
ताजे फल लाता है कौआ, तोते को वह खिलवाता है।
दोनों गले प्रेम से मिलते, मित्रवरों से मिलवाता है।।
छुट्टी
खेलें था-था थैया। आ जा मेरे भैया।।
बंशी काका तूं भी आजा कर ले पूरी दैया।।
नहीं किसी से कुट्टी। घंटी बज गई छुट्टी।।
खेलें चांई – मांई। संगें मामा – मांई।।
भैया हाथ पकड़ के खीचें भाभी करे न नॉई।।
खाऐं ज्वार की भुट्टी । घंटी।। मस्ती में सब भूले।
फिर रए फूले – फूले।। भाग रहे हैं आगे – पीछे।
कोई हमें न छूले ।। पियें भाँग की घुट्टी। घंटी।।
अपना देश महान
जग में अपनी शान है। अपना देश महान है।।
जात पाँत का भेद नहीं, ना धर्म मर्म उन्माद।।
सब अपने मन के मनमौजी, है ना कोई विषाद।।
जय हो कवि तुलसी कबीर की, सब कुछ यहाँ समान है।
अपना देश महान है।।
जल प्रपात नदियाँ है इसमें, अनगिन हिमगिरि राज।
ताजमहल है यहाँ सुशोभित, यहीं अमर मुमताज।।
ऊँची है मीनार कुतुब की, दिल्ली की पहचान है।
अपना देश महान है।
पुस्तक मेला
विविध विषय की विविध पुस्तकें, विविध प्रकाशक लगा झमेला।
बालक, लेखक, नर-नारी सब देख रहें हैं पुस्तक मेला।।
बिकते देखे शब्दकोष बहु, कोई ताकता कहीं अकेला।
कोई सोचता क्या लें, ना लें, भीड़ भेड़ सी पेलम पेला।।
बिकते देखे चंदामामा, चंपक, गुड़िया बाल वाटिका में देखा बच्चों का मेला।
बाबा तुमको क्या लेना है जल्दी ले लो वरना आने वाला है शिशुओं का रेला।।
छोटी छोटी दिखें किताबें मूल्य बढ़े पर, बच्चे कैसे इन्हें खरीदें पास नहीं धेला।
बहुरंगी पोषाकों में आये हैं पाठक, कोई पहने अचकन कोई बांधे सेला ।।
उल्लू
उल्लू अँधियारे का राजा. फोकस करता है।
उसकी आँखे देख-देख के, दर्शक डरता है।।
कुछ कहते हैं अशुभ उसे तो, कुछ शुभ कहते हैं।
अंधियारे के हैं आदी, पेड़ों पर रहते हैं।।
कोई मानता ज्ञान प्रदाता, लोग लगाते भोग।
शोर मचाते दूर भगाते, देखे अनगिन लोग।।
खेती और किसानी में ये, बड़े सहायक हैं।
चूहों को यह मार भगाने, ये खलनायक हैं।।
रेल
छुक-छुक रेल चली, यात्रा रहे सफल। पहुँचेंगे घर कल।।
हम बचें हादसा से, है यात्रा तभी भली। छुक-छुक रेल चली।
चढ़ते और उतरते सब । कोई मुकाम पर पहुँचे कब।।
अपना-अपना अलग ठिकाना कहाँ हैं घर, कहाँ गली।
छुक-छुक रेल चली। सबका मालिक एक। उस का निर्णय नेक।।
उसके आगे सब बौने हैं, जय बजरंग बली। छुक छुक रेल चली।
मिलता उसे सलाम
घर में मेरे मम्मी-पापा. मैं और मेरी बहना।।
छोटा सा परिवार हमारा, हमको सुख से रहना।।
हम दो हैं बस इसीलिए ही, दो हैं लक्ष्य हमारे ।
मात-पिता औ गुरूजनों के, बनें आँख के तारे ।।
हम ही कल के कर्णधार हैं, हैं जग के उजियारे ।
हम ही इन्दिरा, लाल, बहादुर, दुश्मन हम से हारे ।।
अर्थयुगी संसार साथियो, चले दाम ही दाम ।
जिसके पास दाम होता है, मिलता उसे सलाम ।।
तितली
तितली रंग बिरंगी, फूलों पर इतराती है।
मीठा गाना गाती है।।
तितली सीधी साधी है, तन से है बहुरंगी।।
तितली रंग बिरंगी। फुदक-फुदक कर उड़ती।
नहीं किसी से कुढ़ती।।
नन्हें-नन्हें पौधों पर करती बैठी कंगी। तितली रंग बिरंगी।
लेती रहती गंध वह। शीतल मंद सुगंध वह।।
गुमसुम गुमसुम डाली पर करे प्रदर्शन जंगी।
तितली रंग-बिरंगी ।।
मच्छर
भिन-भिन करते हैं मच्छर. कानों तक आते है।
उनमें अगर तमाचा मारो, तो भग जाते हैं।।
छिन-छिन कानों में आकर, अपने बन जाते हैं।
सा रे गा मा पा धा नी सा, राग सुनाते हैं।।
मम्मी-पापा से ज्यादा, मच्छर से डरता हूँ।
कभी कभी मैं हाथापाई, उनसे करता हूँ।।
लड़ते वर्षों बीत गये अब, लगता संधि करूँ।
एक बार फिर सोच रहा हूँ, मारूं या कि मरूँ।।
नाक
तरह तरह की नाक है, चौड़ी, चपटी, गोल।
इस दुनिया में नाक का, अलग – अलग है मोल।।
नाक से ही साँस चलती, तापक्रम अनुकूल बनता।
धमनियाँ चलती निरंतर, तंतु रूकता और तनता।।
किसी की तोते जैसी नाक, किसी की है गजानन सी।
प्रतिष्ठा में सहायक नाक, नाक है आबरू जन की।।
तुमको कसम है मित्र, रखना तुम हमेशा धाक।
जीतने का ठानना प्रण, तब ही बचेगी नाक।।
जीभ
जीभ स्वाद की संरक्षक है, अच्छा बुरा बताती।
जो खाना है खाओ प्रेम से, सब कुछ यही पचाती।।
जीभ लार का श्रोत बनाती, दाँतो तले उगलती।
मुख के सारे तंतु सुकोमल, उन सबको यह मलती।।
घुलनशील तत्व है इसमें, शीत ताप नियंत्रित रहते।
ऐसी क्रिया बनाई विधि ने, सभी पदारथ इसमें बहते।।
जीभ दिलाती हमें प्रतिष्ठा, जीभ जेल तक पहुँचाती है।
दोस्त जीभ मत अधिक चलाना, जीभ बड़ी प्राण खाती है।।
पर्यावरण
पर्यावरण बचाएं, आओ। र घर घर पेड़ लगायें, आओ।।
वृक्ष नहीं काटें हम कोई, पौधे नये उगायें, आओ।
पीना सदा छान कर पानी, सबसे मिलें बतायें, आओ।।
लड़ें नहीं हम कभी किसी से, सबको गले लगायें आओ।
व्यर्थ जलाओ मत बिजली को, सबको यहीं सुझाऐं आओ।।
सरकारी संसाधन खोजें, सोये तंतु जगायें, आओ।
मिलजुल कर श्रम करें साथियों, मैला ढोएँ उठायें, आओ।।
वायु प्रदूषण से बच निकलें, शुद्ध हवा को पायें, आओ।।
पापा के संग
पापा गर पीकर आयेगें। गुस्से में हम भग जायेगें।।
मम्मी लड़ना मत तुम उनसे, ताऊ सब कुछ समझायेंगे ।।
रोटी नहीं परसना उनको। कुछ तो पड़े तरसना उनको।
उनको सीख मिलेगी कुछ तो, धीरे धीरे कसना उनको।।
बंद करो यह भुंजना जलना हाथों को बैठे बस मलना।
पापा तुम्हें कसम मत पीना आज घूमने संग निकलना।।
नये विटामिन हम खायेगें। बड़ी – बड़ी चीजें लायेगें।।
पापा संग करेगें शॉपिंग नैनो गाड़ी ले आयेगें।।
बादल
हमको बादल कहते हैं। धरती पर आता हूँ। उसको सहलाता हूँ।।
प्यासे लोगों का, मन बहलाता हूँ।।
हम नित-नित बहते हैं। हमने ही ताल भरे । खेतों में माल भरे।।
अपने ही दम पर, लोगों के गाल भरे।। दुख सब का सहते हैं।
हुड़दंग मचाता हूँ। हँसता गाता हूं।।
पानी बरसा कर, सबको हर्षाता हैं।।
हम तो नभ में रहते हैं।।
मैं इक ताला हूँ
मैं इक ताला हूँ। चाहे दिन हो, रात हो।
सन्ध्या हो, या प्रात हो।।
गर्मी हो, बरसात हो।
मैं रखवाला हूँ।
मैं इक ताला हूँ।।
भला हो चाहे, चोर हो।
चुप्पी हो या शोर हो।।
घर हो, चाहे फ्लोर हो।
बरछी भाला हूं।
मैं इक ताला हूँ।।
जो भी साहस करता है।
छूने हमको डरता है।।
बिना मौत के मरता है। मैं
दिल वाला हूँ। मैं इक ताला हूँ।