होली को बुन्देलखण्ड मे होरी बोलते है। Bundelkhand ki Holi रंग,उमंग और तरंग का त्यौहार है। जो फाल्गुन महीने में पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। तेज संगीत और ढोल के बीच एक दूसरे पर रंग और पानी फेंका जाता है। भारत के अन्य त्यौहारों की भांति होली का त्योहार भी बुराई पर अच्छाई की जीत का ही प्रतीक है।
बुन्देलखण्ड की होली/होरी/फाग
Bundelkhand ki Holi/Hori/Faag
बुन्देलखण्ड की होली
Bundelkhand ki Holi फाग नाम से प्रचलित है। बुन्देलखण्ड मे जगह- जगह फागुन के महीने में ऋतुराज वसंत के आते ही पलास के पेड़ लाल सुर्ख फूलों से लद जाते हैं तब वातावरण में मादकता छा जाती है और पूरा वातावरण रोमांच से भर जाता है।
बुन्देलखण्ड में फागुन के महीने में गांव की चौपालों में फाग की फड जमती है जिसमें अबीर- गुलाल साथ रंगों की बौछार के संग होली गीत फाग की फुहार बरसती है ऐसा लगता है कि श्रृंगार रस की बारिश हो रही हो।बच्चे, बूढ़े और जवान क्या महिलाएं क्या पुरूष सब के सब झूम उठते हैं। बुंदेलखंड में फाग की मस्ती का नजारा कहीं और नहीं देखने को मिलता। ढोलक की थाप और मजीरे की झंकार के साथ उड़ते हुए अबीर गुलाल को देख मस्ती में नाचने को मजबूर हो जाते हैं। प्राचीन
पौराणिक कथा के अनुसार
According to ancient legend
1 – नरसिंह रूप में भगवान विष्णु इसी दिन प्रकट हुए थे और हिरण्यकश्यप नामक असुर का वध कर प्रहलाद को दर्शन दिए थे।
2- हिन्दू पंचांग के अनुसार होली के दिन से नए संवतसर (नये साल ) की शुरुआत होती है।
3- ऐसा माना जाता है कि चैत्र कृष्ण प्रतिपदा के दिन धरती पर प्रथम मानव मनु का अवतरण हुआ था।
4 – पौराणिक ग्रंथो के अनुसार इसी दिन कामदेव का भी पुनर्जन्म हुआ था। इन सभी खुशियों को व्यक्त करने के लिए रंगोत्सव (मदनोत्सव) मनाया जाता है।
5 – पौराणिक ग्रंथो के अनुसार त्रेतायुग में विष्णु के आठवें अवतार भगवान श्री कृष्ण और राधारानी के गांव बरसाने जाकर राधा और गोपियों के साथ होली खेलते थे।
सामाजिक मान्यता
Social Recognition
होली बसंत ऋतु का त्यौहार है बसंत के आने पर सर्दी ख़त्म होने लगती है। भारत के कुछ हिस्सों में इस त्यौहार का संमंध बसंत ऋतु की फसल पकने से भी है। किसान अपनी अच्छी फसल पैदा होने की खुसी में होली का त्योहार मानते है। होली को बसंतोत्सव या कामोत्सव भी कहते हैं।
बुन्देलखण्ड की होली के अपने अलग ही रीति-रिवाज है। जो रंगो के साथ-साथ फाग गायन के साथ इस होली के रंगो को चार-चांद लगा देता है। बुन्देलखण्ड में होली उत्सव की बात ही अलग है। यहां होली में केवल रंग ही नहीं बल्कि चौकडिय़ां फाग इस उत्सव को और भी मजेदार बना देती है। साथ ही होली के दिन बढ़े और बच्चे एक साथ फाग गीतो का आनंद लेते है जो यंहा कि होली को यादगार बना देता है।
होली पर सब लोग बुराइयों को भूल कर कर एक दूसरे के गले मिलते हैं और इस त्योहार की खुशी को सबके साथ मनाते हैं। होली का त्योहार आते ही टेसू (पलास ) के फूल खिलने के बाद बुन्देलखण्ड की धरा में फागों के सुरों से माहौल में उत्साह और उमंग घोल देते हैं। वैसे भी बुंदेलखंड में सभी त्योहारों को बहुत ही आत्मीयता के साथ श्रद्धा पूर्वक मनाया जाता है। खुशी और उमंग के इस पर्व में लोग अपनी-अपनी टोली के साथ गांव भर में घूम-घूम कर नाच गाने के साथ अबीर गुलाल उड़ाते हैं।
होली मे महिलाए भी फाग गायन और ढोलक की थाप पर थिरकती नजर आती है। अधिकतर गांव में फागो की टोलियां अपने साज-बाज और फागों का गायन कर वर्षों पुरानी परम्परा का निर्वाह करते हुए होली मनाने निकल पडते हैं।भारत के इतिहास में देखा जाए तो होली का त्योहार इसलिए भी खास है क्योंकि ऐसा माना जाता है कि होली के इस त्योहार के आने से ही पेड़ में वापस हरियाली आनी शुरू होती है।
पौराणिक कथाओं के अनुसार
According to Mythology
हिरण्यकश्यप अपने पुत्र प्रह्लाद की भगवान के प्रति भक्ति से बहुत परेशान था। उसने प्रह्लाद का ध्यान ईश्वर से हटाने के लिए हर संभव कोशिश की लेकिन उसे सफलता नहीं मिली। अंततः हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद को जान से मार डालाने का फैसला किया। उसने इसके लिए अपनी बहन होलिका से आग्रह किया। ऐसा माना जाता है कि होलिका को भगवान भोलेनाथ ने यह वरदान में एक चादर (शाल) दी थी जिसे ओढने से वो कभी भी आग में नहीं जलेगी।
इस लिये होलिका ने सोचा कि वह प्रह्लाद को आग में ले जाएगी और खुद चादर ओढ़ लेगी। इस तरह प्रह्लाद की जलने से मृत्यु हो जाएगी । लेकिन हुआ इसके ठीक विपरीत…जैसे ही आग की लपटें तेज हुई तो उसी समय भगवान विष्णु ने तेज हवा चला दी हवा के झोके ने शाल को उडा कर प्रहलाद के ऊपर डाल दी ।
भगवान ने प्रह्लाद की रक्षा की और होलिका का दहन हो गया। इस तरह सभी ने असत्य पर सत्य की जीत … के प्रतीक स्वरूप आपस मे मिठाइयां बांटी और होली के त्योहार की शुरुआत हुई। होली के दिन लोग गिले शिकवे भुलाकर सभी एक दुसरे को रंग लगाकर और मिठाई खिलाकर इस त्योहार को मनाते हैं। यह त्योहार किसानों के रबी की फसल के तैयार होने के कारण भी मनाया जाता है। होली को मनाने का मुख्य उद्देश्य केवल एक दूसरे से अच्छे संबंध बनाना और प्रेम और भाईचारे के साथ रहना है।
बुन्देली फाग काव्य
Bundeli Fag Poetry
फाग काव्य लोक का ऐसा काव्य है जो बुन्देलखण्ड अंचल के घर घर में नमक की तरह मिलता है। भले ही इसका स्वरूप मौखिक हो लेकिन बुन्देलखण्ड का हर व्यक्ति फाग काव्य से परिचित है। कई फगवारे जब फाग गाते हैं तो वह किसी भी क्षेत्र में प्रवेश कर जाये चाहे वह महाभारत, रामायण या फिर हास्यव्यंग या हास परिहास का क्षेत्र हो वह दिन दिन भर किसी एक विषय पर ही फागें गाता रहता है। तब ऐसा लगता है कि फाग काव्य का क्षेत्र विस्तृत है।
तभी तो लोग इतनी सारी फागें याद किए रहते हैं। जिनमें अनेक विद्वान रचयिताओं की फागें होती है।जिनमें से कुछ फागों के रचियताओं का पता भी नहीं है लेकिन फागों की जो लोकप्रियता है वह अद्भुत है। जिस प्रकार साहित्य मे अन्य काव्य मानव मन को प्रसन्न करता है उसी प्रकार फाग काव्य लोकमन को प्रसन्न करता है। ताकि फाग काव्य लोकमन के अधिक समीप है।
अन्य लोक काव्य इसके सामने बौना नजर आता है।फाग काव्य के प्रमुख रचनाकारों में ईसुरी, गंगाधर व्यास, ख्यालीराम और भीअनेक नाम शामिल है जिन्होंने बुन्दले खण्डी फाग काव्य की रचना कर जनमानस को एक अनोखी विधा से रूवरू कराया। इसके बाद अनेक फाग काव्य रचयिता ने भी एक से बढ़कर एक फागों की रचनाएँ की जिनमें से कुछ रचयिता गुमनामी के अंधकार मे चले गये।
लोक जीवन में फागों का अपना विशिष्ट स्थान है। फाग काव्य में अन्य काव्य विधा की भाँति सभी रसों का सुन्दर चित्रण मिलता है। जो फाग काव्य को रोचकता प्रदान करते है। फाग काव्य का बहुत पुराना इतिहास रहा है।
बुन्देलखण्ड मे 19वीं शती के उत्तरार्द्ध से लकेर 20वीं शती के पर्वार्द्ध तक एक नयी चेतना जाग्रत करने में सफल हुआ है। इसमें नीखरा बधुओं, भग्गी दाऊजू, ईसुरी, गंगाधर व्यास, ख्याली आदि लोककवियों ने एक नई क्रांति उपस्थित की थी।फागों के क्षेत्र में ईसुरी को अग्रणी कहा जाता है। लेकिन ईसुरी के पूर्व भी फाग की रचना हुई है।
फाग ईसुरी पूर्व भी लिखी गई जिनका अपना अलग स्वरूप है। वह ईसुरी की फाग रचना के स्तर तक नहीं पहुँच सका वह अलग बात है। कोई भी काव्य रचना हो उसमें भाव न हो तो वह काव्य अधूरा और खाली लगता है। बुन्देली फाग काव्य एक ऐसी विधा है जो भावों से भरपूर है। सचमुच जो मन में आग दे वही फाग है। क्योंकि जब फागें गायी जाती है या फाग खेली जाती है तो जन मानस के दिलों में, अंग-अंग में, रोम-रोम मे आग सुलगने लगती है।
फाग काव्य को अनेक रूपों में स्पष्ट किया है जो कि इस प्रकार है… ।
1 – चैकड़िया या टहूका की फागें Chaukadiya ya Tahuka ki Faagen
2 – छंदयाऊ या लावनी की फागें Chhandyau ya Lavni ki Faagen
3 – सखयाऊ या साखी की फागें Sakhyau yaa Saakhi ki Faagen
4 – खड़ी फागें Khadi Faagen
5 – ढप्प की फागें Dhapp ki Faagen
6 – डिडखुयाऊ डेढ़ पदों की फागें Didkhuyau Dedh pado ki Faagen
7 – फाग गुप्तार्थ दुअंग भरी हुई पचकड़िया Faag Guptharth Duang Bhari Pachkadiya
8 – फाग सिंहावलोकन Faag Singhavlokan
9 – झूला झूर या झूलना की फागें Jhula Jhoor ya Jhulana ki Faagen
इन फागों में से कुछ फागों का प्रचलन अधिक है, चैकड़ियाँ फाग को गाने का प्रचलन ईसुरी के समय से हुआ है। चैकड़िया फाग का अपना स्थान है। जो चार कडी में पूर्ण हो जाती है। चैकड़िया फाग में ईसुरी की कला को जो ख्याति मिली वही ख्याती छन्दयाऊ फागों में भुजवत सिंह ठाकुर को प्राप्त हुई है। इनकी पुस्तक फाग रसायन में लोक जीवन का सुन्दर चित्रण हुआ है कई सुन्दर झाँकियों के मनोरम स्थान है।
टेक-लड़का बैठे पढत़ किताबें गुरू खां सबक सुनाव।
संगीत-बैठे मुंशी जी उस्ताद लड़का की सुनते फरयाद।
उनकी करते तहकीकात जो चाल करें।
लरका पढने में हुस्यार पोथी लीन्हें चार चार।
तिनकी गाथा रहे उचार सब निकट धरें।
भूल जात जहां मास्टर लरकन को समझावें।
लाल नम्बर अपने से सकल, गुरू को सबक सुनावें।
चार चार पोथी लिये बांच लगावे सीस।
एक एक हर ग्रंथ में पन्ना है चालीस।
टेक- पांच गिरह के लम्बे चैडे कागज खेत सुहावें।
छदं पढ़ रहे बाल है खुशी हाल पोथन पै लाल पूठा लागे।
रहे एक संग दिल हो उमंग सी दमे तंग नीचर धागे।।
फाग काव्य में फड़ लगाकर गाने का अधिकतर प्रचलन है। इन फागों में अनेक प्रकार की फागें गायी जाती है। फाग काव्य में भ्रमर गीतों का भी प्रयोग हुआ है। यहाँ बुन्देली के रससिक्त रससिद्ध कवि नाथूराम माहौर ने सुन्दर फाग काव्य की रचना की है। नाथूराम माहौर बुन्दली फड़ साहित्य के प्रर्वतकों मे से एक है।
संदर्भ-
बुंदेली लोक साहित्य परंपरा और इतिहास – डॉ. नर्मदा प्रसाद गुप्त
बुंदेली लोक संस्कृति और साहित्य – डॉ. नर्मदा प्रसाद गुप्त
बुन्देलखंड की संस्कृति और साहित्य – श्री राम चरण हयारण “मित्र”
बुन्देलखंड दर्शन – मोतीलाल त्रिपाठी “अशांत”
बुंदेली लोक काव्य – डॉ. बलभद्र तिवारी
बुंदेली काव्य परंपरा – डॉ. बलभद्र तिवारी
बुन्देली का भाषाशास्त्रीय अध्ययन -रामेश्वर प्रसाद अग्रवाल
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