Bundelkhand ke Patra- Pandulipi बुन्देलखंड की पत्र-पांडुलिपियाँ

Bundelkhand ke Patra- Pandulipi बुन्देलखंड की पत्र-पांडुलिपियाँ

इतिहास पिछली घटनाओं का विवरण है इतिहास का निर्माण करने वाली घटनाओं का संबंध व्यक्तियों, कालखंडों तथा स्थानों से रहता है। बुंदेलखंड की पर्व-रियासतों में सर्वेक्षण के अतंर्गत् उपलब्ध Bundelkhand ke Patra- Pandulipi और उन पत्र-पांडुलिपियों में जहाँ-जहाँ इतिहास से संबंधित सूचनायें हैं, वे महत्वपूर्ण हैं।

इतिहास को प्रमाणित करती बुंदेलखंड की पत्रपांडुलिपियाँ उपलब्ध पत्र-पांडुलिपियाँ संवत 1612 वि० से 2000 विक्रमी के मध्य अंकित की गई हैं। यह समयावधि 4 सदियों को अपने में समेटे हुए हैं। उपलब्ध पत्र-पाडुलिपियों में जन-सामान्य से लेकर रियासतों के अधिकारियों, ओहदेदारों, कार्य-कर्ताओं, सहायकों, राजपरिवार के सदस्यों, शासको के साथ बादशाहों तक के नामों का उल्लेख है ।

इसी से इन पत्र-पांडुलिपियों में ही गई इतिहास से संबधित जानकारियाँ मूल स्त्रोत-सामग्री हैं और बुंदेलखंड की पत्र-पाडुलिपियाँ, इतिहास को प्रमाणित करती हैं।  राजकाज से संबंधित अर्जी, इश्तहार, जागीरनामे, तोपमुचलका लेख, दुर्गलेख, तामपत्र, परवाने, माफी नामे, हाजिर नामे, हुकुम नामे और शिलालेख तत्कालीन इतिहास के लिए समर्थ और प्रामाणिक सूचक है।

शाशक – बुंदेलखंड में उपलब्ध पत्र-पाडुलिपियों में अकबर, जहाँगीर, शाहजहाँ, औरंगजेब, मुहम्मद शाह गाँजी और शाह आलम का उल्लेख है। बुंदेलखंड की रियासतों में राजा महाराजा शिलालेखों, बीजको, ताम्पत्रों, दुर्गलेखों और पदमुद्राओं में अपने नाम और विरुद के पहले बादशाह का नाम और विरुद भी उत्कीर्ण करवाते थे। मधुकरशाह, वीरसिंह, पहारसिंह, जुझारसिंह, भगवानराय, शुभकरन, दलपतराय, रामचन्द्र, पृथ्वीसिंह, इन्द्रजीत, शत्रुजीत, विजय बहादुर, भवानी सिंह, गोविंदसिंह ओरछा और दतिया के शासक के रूप में उपलब्ध पत्र-पांडुलिपियों में हैं।

गोहद के जाट राजा कीरतसिंह, अटेर के भदौरिया राजा बदनसिंह, रवतसिंह, सिरनेतासिंह, धौकलसिंह, अनिरुद्धसिंह, कछवायघार के अंतर्गत् रामपुरा के राजा माधौसिंह, लहार के राजा हिरहेशाह, समथर के राजा हिन्दूपत, पन्ना के महाराजा छत्रसाल, जगतराज हिरदेशाह, ग्वालियर के सिंधिया महादजी, दौलतराव के उल्लेख पत्र-पांडुलिपियों में हैं। पेशवा बाजीराव, मुहम्मद-खा बंगश, दुर्जनसिंह, चेतासिंह, जवाहर सिंह जाट, छत्रसिंह, गंगाधर राव, मर्दनसिंह, लड़ई सरकार, लक्ष्मीबाई आदि शासकों से संबंधित सूचनायें बुंदेलखंड की पत्र पाडुलिपियों में हैं।

विरुद शासको के सुयश का बोध कराने के लिये उनके नाम से पहले अंकित किये जाने वाले विरुद, विशेषण की तरह अर्थ देते हैं । महाराजाधिराज श्री राजा, श्री महाराज श्री राव, श्री महारानी, श्री रानी, श्री महारानी श्रीमंत राजेश्री श्री राज साहब, राजश्री महाराज महेन्द्र,  श्री महाराज कोमार, श्री दीवान इन विरुदों में राजा और रानी तथा राजकुमार का अंतर स्पष्ट है।

शासक परिवार बुंदेलखंड की पत्र-पांडुलिपियों में रियासत प्रमुख के साथ उसके परिवार के सदस्यों का उल्लेख है। विजय नाम की तोप पर लेख उत्कीर्ण करवाते समय सेंवढ़ा के शासक पृथ्वीसिंह ने अपने पिता श्री महाराजाधिराज श्री महाराज श्री राव दलपतराव जू देव का नाम भी उत्कीर्ण करवाया है। तोप के ऊपर यह लेख सोमवार पुष्य नक्षत्र प्रथम चैत सुदी 7 संवत् 1793 को उत्कीर्ण कराया गया था।

तोप के ऊपर उकेरा गया लेख – संवत् 1793 प्रथम चैत्र सुदि 7 सोमवासरे पुख नछित्रे ता दिन श्री महाराजाधिराज श्री महाराजा श्रीराव दलपति रावजू देव के सुत श्री श्री महाराजाधिराज श्री महाराजा श्री राजा पृथ्वीसिंह जू देव की सरकार कन्हरगढ़ में विजय नाम तोप तैयार भई दरोगा साहनी जगन्नाथ कारीगर उद्दे। तोप के ऊपर यह लेख सोमवार पुष्य नक्षत्र प्रथम चैत सुही 7 संवत् 1793 को उत्कीर्ण कराया गया था।

इस लेख में दरोगा साहनी जगन्नाथ के साथ तोप ढालने वाले कारीगर उद्दे का भी नाम है। महाराजा छत्रसाल द्वारा पुत्र पद्मसिंह को जिगनी की जागीर और बैठकराव की पदवी सहित प्रदान की थी। कवकाजू, बड़े महाराज, बब्बाजू, मातुश्री, बड़ी फुआजू और कक्को जू संबोधन राज-परिवार से संबंधित हैं जो क्रमशः छत्रसाल, दलपतराव, जगतराज, अहिल्याबाई और लड़ई सरकार को संबोधित करके लिखे गये हैं। राजा के साथ राजकुमार के उल्लेख दिवान के रूप में हुए है। पत्र-पाडुलिपियों में शासक परिवार के युवराज, रानी, भाई, काकी, बाबा, बुआ और माँ हैं।

पत्र ।। श्री ।। राज श्री महाराज महेन्द्र रुद्र प्रताप सींघ जू देव सब स्थान पन्ना लक्ष्मी  अलंकत राज मान्य श्री तुकोजी राव होलकर राम राम विनती निरी के समाचार श्री परमेश्वर कृपा से खुशी हैं आपके तरफ के हमेस खशीक लिखते रहे आपका खत मिला मिती सावन वदी 7 संवत् 1937 का दाखल हुआ और इहाँ से लिखे मूजवमात अहिल्या बाई साहेब ने चित्र श्रीरामजी का मंदिर बंधाया है उसके खरच के वारते आपके इहां से मौजेसी से जमीन बीघे 50 माफी में देकर संवत् 1839 के साल में सनद दीबी उसका  दाखिला दफ्तरों में देखने की आपने बहुत फिकर से तावीद रखके आव्यान: व वरस का दाखला निकलाया और उसकी नकल नायब अमीन आलमपर दूनोने भेजी इसलिए हम आपके बड़े सुकरगुजार है और नायब अमीन आलम आपके तरफ के खुशी के समाचार कहे उस परसे बहुत खुसी हासिल भई और हमारा घरोवा आपके बडीलों से चला आया है सो हमेसा के वास्ते समझना चाहिए इंदौर को आपका आना हुआ उस वक्त मुलाकात नहीं भई इसलिए कर अफसोस होता है हमेशा खुशी मिजाज की खबर लिखते रहना चाहिए दो लकीरें मोढ़ी नें।

अधिकारी जिस प्रकार राजकाज में शासक परिवार की भूमिका प्रमुख रहती थी, उसी तरह रियासतों के अधिकारी और कार्यकर्ता भी व्यवस्था के महत्वपूर्ण अंग रहे हैं। रियासतों की सत्ता में राजा-महाराजा का अधिकार सर्वोपरि रहा है और सत्ता का विकेन्द्रीकरण दीवान, वख्शी तथा मुस्तोफी के कार्यालयों में कर दिया जाता था। आर्थिक मामलों पर निगरानी रखने का कार्य भी दीवान के अधिकार क्षेत्र में था।

दीवान रियासतों में राजा के बाद दीवान के अधिकार सर्वाधिक थे। कोश में इसे वजीर कहा जाता है। इसके कार्य क्षेत्र में अर्थ, न्याय तथा कचहरी से संबंधित संपूर्ण क्रिया-कलाप आते थे।
वख्शी राजस्व और व्यवस्था पर निगरानी रखने वाला यह अधिकारी गाँव में से कर बसूल करने और वेतन वितरण करने का काम करता था। रियासतों की अर्थव्यवस्था वख्शी के हाथ में थी।
फौजदार सेनानायक का अर्थ देने वाला यह पद रियासतों की व्यवस्था में महत्वपूर्ण रहा है। .
अमीन सत्यनिष्ठ, ईमानदार, न्यासधारी और अमानतधारी यह अधिकारी रियासत की व्यवस्था में प्रमुख है।
चौधरी रियासत की आर्थिक सुद्दढ़ता, गाँव की राजस्व वसूली पर आधारित रहती थी। इसी से गाँव की राजस्व वसूली करने में सहायक चौधरी रियासतों में शासन-व्यवस्था का प्रमुख अंग है।
प्रधान एवं जमींदार प्रधान पद लेखक का अर्थ देता है। जमींदार रियासत के द्वारा कृषि भूमि का मौरूसी हकदार होता था और किसान शिकमी के रूप में जमीन जोतते थे।

अन्य पद और पदवियाँ दरोगा, कानूनगो, साहनी, महते, महाजन, साहूकार, दफैदार, नाकेदार, मालगुजार, चौकीदार, लंबरदार, किलेदार, जमादार, कामदार, माफीदार, सिरस्तेदार, खजांची, जागीरदार, मोहर्रिर, नायक, मुख्तियार, मुसाहिब, सूबेदार, फड़नीस, इजारदार, सिपाही, नानकार, भट्टाचार्य, रेजीडेट, तहसीलदार, एंजेट, थानेदार, लेफ्टीनेट, नायवअमीन काजी, डिप्टीकमिश्नर, मीर, काजी, पद और पदवियाँ रियासतों की शासन व्यवस्था में सहायक रही हैं। बुदेलखंड की पत्र-पांडुलिपियों में यह पद पदवियाँ उपलब्ध हैं।

पदमुद्रायें पद मुद्रायें उर्दू और 1857 ई० के बाद आंशिक रूप से अंग्रेजी में हैं। पद-मुद्राओं में अकबर, मुहम्मदशाह गाजी जैसे मुगल सम्राटों के उल्लेख हैं। पद-मुद्राओं में गाजी, बादशाह, राजा, महाराजा विरुद सहित पृथ्वीसिंह, बाजीराव, हिम्मत बहादुर, कीरत सिंह, माधौसिंह, मर्दनसिंह, हिन्दुपत, तुकोजीराव, विजैवहादुर, भवानीसिंह, सुपरडेंट जालौन शासकों के नामों का उल्लेख हैं।

इतिहास घटनाओं का संघटन है। इतिहास संबंधी घटनाओं के साथ व्यक्ति, स्थान और समयावधि अनिवार्य है। बुंदेलखंड की पत्र-पाडुलिपियों में इतिहास संबंधी जितनी सूचनायें उपलब्ध हैं, वे इन रियासतों के आपसी संबंधों को सूत्रबद्ध करने में जितनी सहायक हैं, उतनी ही मुगलों, राजपूताने, के राज्यों, जाटशासकों, मराठों, काशीनरेश चेतसिंह और अंग्रेजों के साथ संबंधों को समझने में उपयोगी है।

संवत् 1765 में सेंवढ़ा के शासक पृथ्वीसिंह द्वारा आलमपुर के कवि हरनारायण को दिया गया ताम्रपत्र जिसमें आलमपुर इलाके के टेढ़ा गाँव का नामकरण पृथीपुर किया गया था।

ताम्रपत्र – || श्री कृश्नोभवति।। श्री महाराजाधिराज श्री महाराज श्री राजा पृथ्वीसिंघजूदेव पादारघ करि दयौ पं. हरिनारायन कवि जू कौं श्री कृष्ण प्रति परिगनै सिंहुडौ को मौंजे टेढ़ा मौ : 2 असली 1 दाखिली 1 ताकौ नाव प्रथीपुर करि दयौ है असाढ़ वदि 1 संवत् 1765 कै तै पावै बरकरार बेदखल हर हबूब माफ माफ अपनौ पांय खांय जाँय सदा सर्वदा अपुन चंदा कर दयौ है रुपैया 1 जे परगनै हाल अबै है अरु जे आगे हौइ तिनमें पांइ जाइं परवानगी श्री बगसी छत्रमनि चैत सुदि संवत् 1765 मुकाम दलीपनगर।

बंदेलखंड की पत्र-पाडुलिपियों में एक महत्वपूर्ण ऐतिहामि द्वारा सुराज’ की घोषणा का इस प्रकार है –
श्री राजा श्री राजा मर्दन सिंघ जू देव ऐते श्री महारानी श्री ज देवी के बाँचने आपर अपुन के समाचार भले चाहिजे इहां के सा आपर पाती दिवान गनेस जू लै आये सो पढ़कर खुशी भई आप शाहगढ वा  नाना साहब व तात्याटोपे की सलाह भई तीकै स्वराज भारत अपनौ देश है और अपुन ने तोप गोला ढरवाये है ईबात कौं विदेसियो को जाहिर न भव चाहिजे काये सें टीकमगढ़ वाली रानी लड़ईबाई कवंर का दीवान विदेशियों की मदद में हैं ई बात को ध्यान राखने हैं पाती समाचार देवे मे आवै कुंआर – संवत् 1914 मुहर।

बदेलखंड की रियासतों में सत्ता-संघर्ष जितना पारिवारिक रहा है, उतना ही खंगारों, मुगलों जाटों और मराठों से रहा है। मुहम्मद खां बंगस के हमलों से सुरक्षा चाहने के लिए पेशवा बाजीराव को छत्रसाल ने आज स्वीकार किया और अपने राज्य का तीसरा भाग उसे दे दिया। इसके फलस्वक हमीरपुर, जालौन और बाँदा तथा झाँसी जिले का एक भाग पन्ना, अजयगढ़ छतरपुर के कुछ हिस्से, विजावर, शाहजढ़, सरीला, जिगनी अलीपरा पेशवा के अधिकार में आ गये।

बुंदेलखंड के अतंर्गत् आने वाली रियासतों में से ओरछा दतिया, समथर के शासक मुगल सम्राट से यथा शक्ति मधुर संबंध बनाये रहे। उत्तराधिकार के विवादों पर मुगल सम्राट की सहमति से बंदेलखंड के कुछ उत्तराधिकारियों के मतभेद कहीं-कहीं उभरे हैं।

अबुलफजल जैसे इतिहासकार का आँतरी में वध राज-सिंहासन के लिए संघर्ष का ही परिणाम है। काशी के महाराजा चेतासिंह को लार्ड हेस्टिगज ने जब 50 लाख जुर्माना अदा करने के लिए विवश किया तब वह बुंदेलखंड में आ गये  और महादजी सिंधिया, बालाजी गोविंद पन्ना के अनिरुद्ध सिंह व बेनी हजूरा का अपनी स्थिति दर्शाने के लिए सम्पर्क किया। महादजी सिंधिया ने उन्हें शरण दी  तथा मौ इलाके के दंगिया पूरा, खेरिया जल. गहीसर आदि गाँव उन्हें जागार मे  दिये।

बुन्देली झलक (बुन्देलखण्ड की लोक कला, संस्कृति और साहित्य)

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Bundeli Jhalak: The Cultural Archive of Bundelkhand. Bundeli Jhalak Tries to Preserve and Promote the Folk Art and Culture of Bundelkhand and to reach out to all the masses so that the basic, Cultural and Aesthetic values and concepts related to Art and Culture can be kept alive in the public mind.

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