Bhartiya Sanskriti Me Sangeet भारतीय संस्कृति में संगीत

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Bhartiya Sanskriti Me Sangeet,Vaddhy, Niritya भारतीय संस्कृति में संगीत, वाद्य, नृत्य
Bhartiya Sanskriti Me Sangeet,Vaddhy, Niritya भारतीय संस्कृति में संगीत, वाद्य, नृत्य

कुछ प्रमाण मिलता है ,जिससे ज्ञात होता है कि आर्य लोग सप्त स्वरों (सरगम) से परिचित थे और सामवेद की ऋचाओं के गायन के निर्देश यह बताते हैं कि वैदिक काल में भक्ति संबन्धी गायन शैली मध्यकालीन सरल स्त्रोत पाठ शैली की भांति थी। इन सब से ज्ञात होता है की  Bhartiya Sanskriti Me Sangeet,Vaddhy, Niritya का प्रचालन अनादिकाल से है।

भारतीय संस्कृति में संगीत, वाद्य, नृत्य
Music, Instruments, Dance in Indian Culture

 ’’स्त्री-पुरुष दोनों ही झांझ- मजीरे के वाद्यों के साथ नृत्य में भाग लेते थे। उस समय तीनों ही प्रकार के वाद्यों का आविष्कार हो चुका था- अवनद्ध वाद्य जैसे दुन्दुभि, तंतुवाद्य जैसे कर्करि अथवा वाण या वीणा, जिसके सप्त स्वरों की ठीक पहचान हो चुकी थी और सुषिर वाद्य जिसे नाव्ठी कहा जाता था ।

भरतमुनि के नाट्यशास्त्र में तीस से ऊपर रागों का उल्लेख है। प्रमुख वाद्य यंत्र वीणा था। गुप्त काल के अन्त तक इस वाद्य यंत्र का प्रचलन समाप्त होना प्रारंभ हो गया और उसका स्थान एक नारंगी के आकार की सारंगी ने ले लिया जो या तो उंगलियों से अथवा गज से बजाई जाती थी। इसका स्थान क्रमशः आठवीं शताब्दी में वर्तमान वीणा के प्रारंभिक रूप ने लिया, जिसमें एक लम्बा अंगुलीय पट तथा छोटी गोलाकार आकृति होती थी , जो प्रायः सूखी लौकी से बनाई जाती थी।

विभिन्न प्रकार की बांसुरी तथा नरकुल के वाद्ययंत्रों का प्रचार था परंतु तुरही के यन्त्रों का प्रयोग संदेशोंएवं घोषणाओं के अतिरिक्त प्रायः नहीं होता था। सबसे अधिक वर्णन शंख का प्राप्त होता है, जो युद्ध से पूर्व घिसे हुए सिरे द्वारा देवता के आह्वान के रूप में और प्रायः आवश्यक अवसरों पर बजाया जाता था। संगीत की भांति भारतीय नृत्य का भी नाट्य से घनिष्ठ संबन्ध था। नृत्य और नाट्य एक ही कला अर्थात अभिनय के रूप हैं।

नाट्य ने मुख्यतः शब्द एवं मुद्रा का प्रयोग किया, जबकि नृत्य ने मुख्यतः संगीत एवं मुद्रा का।बाघ के गुफा चित्र में एक दृश्य नृत्य समाज का है, जिसमें नर्तकी मंडल बांधकर छोटे- छोटे डंडे लड़ाकर नृत्य कर रही है।

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