Akhar Uttar Pradesh आखर उत्तर प्रदेश में बुंदेलखंडी लोक जीवन और साहित्य के सोपान

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Akhar Uttar Pradesh आखर उत्तर प्रदेश

प्रभा खेतान फाउंडेशन द्वारा आयोजित Akhar Uttar Pradesh आखर उत्तर प्रदेश महोत्सव (अपनी भाषा अपने लोग ) 23 और 24 सितंबर 2023 लखनऊ मैं अवधी, बुंदेली और बृज की लोक कला संस्कृति और साहित्य के विषय में दो दिवसीय सेमिनार में बुंदेली के सशक्त हस्ताक्षर डॉ बहादुर सिंह परमार, बुंदेली विश्वकोश की संयोजिका डॉ सरोज गुप्ता , बुंदेली संस्कृति के रखवारे श्री सुमित दुबे एवं बुन्देली झलक के संस्थापक श्री गौरीशंकर रंजन नें बुंदेलखंड की लोक कला, संस्कृति का प्रतिनिधित्व किया ।

बुंदेलखंड के लोक जीवन में कला, संस्कृति और साहित्य का समावेश एवं बुन्देली संस्कृति की सुंदरता और उनकी जीवन शैली के साथ बुंदेलखंड के लोक जीवन में सामाजिक समरसता पर चर्चा, समाज के हर वर्ग का व्यक्ति पूरे समाज के लिए एक दूसरे का पूरक होता है। चाहे विवाह संस्कार हो , जन्म संस्कार हो या अन्य धार्मिक अनुष्ठान । 

बुंदेलखंड में जन्म से लेकर मृत्यु तक हर ऐसे मौके पर समाज के हर वर्ग का एक दूसरे के प्रति परस्पर प्रेम, सौहार्द और एक दूसरे की मदद करना जीवन का अभिन्न अंग है।  बुंदेलखंड के लोक जीवन में ग्राम देवताओं और लोक देवताओं में आस्था । बुन्देलखण्ड में हरदौल तथा कारसदेव आदि के व्यक्तित्व पर प्रकाश डाला गया की ऐसे महामानव जो मनुष्य होकर भी देवताओं की तरह पूजे जाते है।

बुंदेलखंड उत्सवों का प्रदेश है यहां हर उत्सव में लोकगीत और लोकनृत्य समाहित हो जाता है । बुंदेलखंड के लोग जीवन में लोकगीत और लोकनृत्य का महत्व, जातिगत लोक गीत एवं लोक नृत्य राई, धुबियायी, रावला, कछियाई जनमानस को कैसे जोड़ते हैं ? बुंदेलखंड के लोक जीवन में लोक कथायें – लोक गाथायें अपनी लोक संस्कृति की परिचायक है उनकी रचनात्मकता कैसे पूरे समाज को एक सूत्र में बांधती हैं।

बुंदेलखंड के लोक जीवन में खानपान की चर्चा करते हुए विद्वानों ने बताया, यूं तो पूरे भारत के अलग-अलग भागों में अलग-अलग प्रदेशों में खानपान में भी विविधता है लेकिन बुंदेलखंड के खानपान में क्या विशेषता है ?

आवें इतै पाहुनें तौ पलकन पै पारे जावें ।
जौ लौ कछू न खा लें तौ लौ खालें उतर न पावें ।।

मुरका देत स्वाद कछु मुरका खट्टी कढ़ी करी है।
अरु बुंदेली बरा – बरी की नहिं कउँ बराबरी है ।।

Akhar Uttar Pradesh में बुंदेली के लोक साहित्य की अगर बात करें तो बुंदेली के महाकवि ईसुरी के बारे में अगर चर्चा ना हो तो बहुत कुछ अधूरा सा लगता है। बुंदेली साहित्य में फाग  साहित्य का एक युग रहा है जिसे ईसुरी की चौकड़िया फाग से जाना जाता है। श्री सुमित दुबे ने ईसुरी की चौकड़िया गाकर दर्शक श्रोताओं का मन मोह लिया ।
चलती बेर नजर भर हेरो,
मन भर जाबे मेरो
मिला लेब आंखन से आँखें,
घूँघट तना उकेरो,
टप टप अन्सुआ गिरे नैन सो,
चिते चिते मुख तेरो
इसुर कात बिदा की बेला होत विधाता डेरो
चलती बेर नजर भर हेरो,
मन भर जाबे मेरो । 

  बुन्देली लोक गीत परंपरा