अलीबहादुर ने जब राजा बखतसिंह को हरा दिया और अजयगढ़ पर अधिकार कर लिया तब वे उसी के यहाँ नौकर हो गए। वि० सं० 1860 में Ajaygadh – Angrejo Se Sandhi हुई और अंग्रेजों ने बुन्देलखण्ड पर अपना अधिकार जमाया तब इन्होंने राजा वखतसिंदह को 3000 रुपये गौहरशाही प्रतिमास देना नियत कर दिया ।
पर बाद मे वि० सं 1864 ( 8-6-1807) में राजा बखतसिंह को अजयगढ़ रियासत का कुछ भाग दिया और उस पर राज्य करने की सनद भी दे दी किंतु जो गौहरशाही 3000 रुपए राजा बखतसिंह को प्रतिमास मिलते थे वे बंद कर दिए गए।
अजयगढ़ रियासत का जो भाग शेष था उसे लछमन दौआ किलेदार अपने कब्जे मे कर बैठा। इससे अंग्रेज सरकार ने इसे भी राजा माना। इसके बदले में लछमन दौआ ने कंपनी की सरकार को 4000 रुपए प्रतिवर्ष कर देने का वादा और दो वर्ष के वाद राजा बखतसिंह के अजयगढ़ का किला वापस कर देने का करार किया।
यह बड़े ही उद्दंड स्वभाव का था। इससे अंग्रेज लोग नाराज हो इसे जो 3000 रुपए मासिक पेंशन मिलती थी वह वि० सं० 1866 (13 -2 -1809 ) में बंद कर दी गई और इसका राज्य छीनकर राजा बखतसिंह को दे दिया गया। कर्नल मार्टिन ने इसे युद्ध में हराया था।
वखतसिंह सं० 1894 (21-6-1837) मे मरे। उनके बाद उनके ज्येष्ट पुत्र माधवसिंह गद्दी पर बैठे। ये भी वि० से० 1906 में परलोक सिधारे और इनके भाई महिपतिसिंह गद्दी पर बैठे। यद्यपि इन्हें गद्दी न देने का प्रश्न उठा पर इन्हीं के पक्ष में निर्णय हुआ। ये वि० सं० 1910 (22-6-1853) में परलोक सिधारे। इससे इनका पुत्र विजयसिंह राजा हुआ किंतु यह केवल दो वर्ष राज्य कर वि० स० 1912 (22-9 -१८५५ ) में मर गया।
इसके मरने पर इसकी माँ ने रनजोरासिंह को गद्दी देनी चाही पर कंपनी की सरकार ने रनजोरासिंह को गद्दी देने के पूर्व स्वर्गवासी राजा बखतसिंह के कुटुंब के किसी अन्य व्यक्ति का पता लगाकर गोद लेने की तजवीज की । इतने मे विद्रोह हो गया और फ़रज़ंद अली नाम के एक विद्रोही ने महीपतिसिंह के पुत्र लोकपाल सिंह को गद्दी पर बैठा दिया ।
राजा महीपतिसिंह की विधवा रानी सरकार के पक्ष में बनी रही। इससे अंग्रेजों ने डसे रनजोरसिंह को ही गोद लेकर गद्दी पर बिठाने की इजाजत दे दी। उस समय ये छोटे थे। अतः राज्य-प्रबंध रानी ही करती रही। यह विक्रम-संवत् १९२५ मे परलोकवासिनी हुई।