बुन्देलखण्ड के फाग साहित्य मे श्री जगन्नाथ प्रसाद भानु ने अपने ‘काव्य प्रभाकर’ में अनन्त का लक्षण बताते हुए लिखा है कि “मात्रा रहित वर्णों की रचना को अर्थात जिस छन्द में इ, उ, ए, ओ इत्यादि स्वरों का प्रयोग न हो तथा जिसमें समस्त वर्ण लघु हो उसे Amatta Ki Fagen कहते हैं।
बिन मत्ता वरणाहि इचे इ उ ए ओ कहु नाहि ।
ताहि अमत्त बखानिए समझो निज मन माहि।।