Ham Pe Bairin Barsa Aai हम पै बैरिन बरसा आई, हमें बचा लेव भाई

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हम पै बैरिन बरसा आई, हमें बचा लेव भाई।
चढ़कें अटा घटा न देखें, पटा देव अगनाई।
बरादरी दौरियन में हो, पवन न जावे पाई।
जै दु्रम कटा छटा फुलबगिया, हटा देव हरयाई।
पिय जस गाय सुनाव न ईसुर, जो जिय चाव भलाई।

नायिका विरह अग्नि में जलती हुई उन सभी परिस्थितियों से आक्रोशित होती है, जो श्रृँगार को उद्दीत्ति करने वाले हैं। वह अपनी दुश्मन वर्षा ऋतु पर क्रोध कर उसे कोसती है। वह उन सभी उद्दीपनों को प्रतिबंधित कर देना चाहती है, जो उसे नायक की स्मृतियों में जलने की पीड़ा देते हैं। ईसुरी नायिका की विरह पीड़ा का वर्णन करते हुए कहते हैं।

बुन्देली लोक गीतों मे संयोग शृंगार 

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