तुम खां रटत रात भर रौवो, और बिछुर गए सोवो।
भींजत रात बिछौना अंसुवन, सब दिन करत निचोवो।
कांलों कहे तुमें समझावे, नाहक बचपन खोवो।
ईसुर बैठ रहे घर अपने, सओ डीलन कौ ढोवो।
हो गई देह दूबरी सोसन, बीच परगओ कोसन।
सरबर दओ बिगार स्यानी, कर-कर शील सकोचन।
इतनी बिछुरन जानत नई ते, भूले रये भरोसन।
भई अदेखे देखवे खैंयां, अबका पूंछत मोसन।
ईसुर हुए कछु ई जीखां, तुमई खां आवे दोसन।
सच्चा कवि वही है जो संसार की हर होनी-अनहोनी का आकलन कर उसे कविता का रूप दे सके। कवि की मौलिकता का प्रमाण भी वही होता है कि वह जो देखता है, जो सुनता है और जो अनुभव करता है, उसी को अपनी कविता में कह देता है। महाकवि ईसुरी की कविताओं में यह गुण प्रधानता भरपूर देखने को मिलती है। वे विछोह की जलन से तड़पते प्रेमियों की दशा का जिस तरह वर्णन कर रहे हैं।