एक सच्चे सिपाही का सबसे बड़ा धर्म और कर्म होता है अपने शासक की रक्षा करना हर हाल मे उसका उत्तरदायित्व होता है। Jhalkaribai Ek Uttardayitva है झाँसी की रानी लक्ष्मी बाई की रक्षा का !!! झलकारी बाई ने अपने उत्तरदायित्व का निर्वाह किया । झलकारीबाई ने ही रानी लक्ष्मीबाई को झाँसी से सुरक्षित भांडेर पहुंचाया था। भांडेर में डावर से झलकारीबाई की मुठभेड़ एक सत्य और एतिहासिक घटना है।
लक्ष्मीबाई के झाँसी से भांडेर पहुँचने के कई विवरण मिलते हैं । अधिकांश का मत है कि रानी के साथ उनकें सैकड़ों पठान बाडीगार्ड सैनिक भी 5 अप्रेल,1858 को किले से निकले थे । O.T.Burne is of the opinion that in the evening (4thApril), the Rani , accompanied by 300 valaities and 25 troopers, left the fort and fled towards Kalpi.(Sir O.T.Burne, “Clyde and Strathairn”) युद्धनीति के अनुसार यह विचार ही हास्यास्पद लगता है।
लक्ष्मी बाई किसी अभियान में नही जा रही थीं। वह जान बचा कर झाँसी से निकलने की कोशिश कर रही थी। चारो तरफ दुश्मन सैनिक मौजूद थे। इस प्रस्थान में गोपनीयता बरतना बहुत महत्वपूर्ण था । यह गोपनीयता तभी हो सकती थी जब रानी के साथ जाने वालों की संख्या कम से कम हो । तो क्या झलकारीबाई ने जिसने लक्ष्मीबाई को सुरक्षित कालपी पहुँचाने की महती जिम्मेदारी अपने सिर पर ली थी उसने इस विषय पर ध्यान नही दिया होगा। इतिहासकारों ने भी इस पर समुचित ध्यान नही दिया और जिसने जो चाहा वह संख्या लिख दी ।
तो क्या झलकारीबाई की युद्धनीति कि कम से कम लोग रानी के साथ किले से निकलें का प्रमाण कहीं मिलता है। लोक गाथाओं में तो सैकड़ो पठान सैनिकों के रानी के साथ निकलने की बात कही जाती है । सच क्या था यह बात तो वही बता सकता है जो उस समय झाँसी में रहा हो और उसने इस विषय पर कुछ लिखा भी हो साथ ही लिखित सामग्री उपलब्ध हो जाय और ऐसा व्यक्ति जिम्मेदार भी हो । ह्यू रोज की सेन्ट्रल इंडिया फील्ड फोर्स के साथ एक महत्वपूर्ण अंग्रेज अधिकारी राबर्ट हेमिल्टन भी था ।
उसका पद नाम था “एजेंट टू गवर्नर जनरल फार सेन्ट्रल इंडिया “ इनके पास बहुत ज्यादा अधिकार थे । रोज को मिलिट्री आपरेशन को छोड़ कर बाकी सब बाते हेमिल्टन की ही मानना था। इसका प्रमाण तब देखने को मिला जब रोज झाँसी का घेरा डाल रहा था। उसी समय रोज को भारत के कमांडर इन चीफ सर कोलिन केम्पबेल का पत्र मिलता है जिसमे रोज को आदेश मिलता है कि वह झाँसी अभियान के पहले चरखारी के राजा रतनसिंह की सहायता के लिए चरखारी जाय जिसको तात्या टोपे ने घेर रखा था ।
लेकिन हेमिल्टन ने कमांडर इन चीफ के आदेश की अवहेलना करके रोज को झाँसी पर आक्रमण करने को कहा और जनरल रोज को हेमिल्टन की बात माननी पड़ी । अतः लक्ष्मीबाई के झाँसी से पलायन के बारे में हेमिल्टन की क्या राय थी इससे सचाई का पता चल सकता था । हेमिल्टन द्वारा भेजे गया एक टेलीग्राम उपलब्ध है ।मूल तार इस प्रकार है | Telegraphic message from Robert Hamiltan, Jhansi, to Governor Genera Allahabad, dated 7th April1858.
“The Fort of Jhansi was occupied this morning(fifth). The Rani went of on horseback with five attendant towards Jaloun. Cavalery gone in pursuit.”(Original telegrams sent to E.A.Reade, 1858 State archive .Lucknow)
यह तार हेमिल्टन ने पुरे दो दिन की खोजबीन और इन्क्वारी के बाद पूरी जिम्मेदारी से ही भेजा होगा क्योंकि रानी उनकी जिम्मेदारी थी। झाँसी को फतेह करना जनरल रोज का काम था। रानी युद्ध में मरी जाती है, पकड़ी जाती है, मुकदमा चलता है, सजा मिलती है, या फिर उसको माफ़ कर दिया जाता है इससे रोज को कुछ भी लेना देना नही था। उसको लक्ष्य मिला था कि मार्ग के सब किलों, शहरों जिन पर क्रांतिकारियो ने अधिकार कर लिया है उन पर विजय प्राप्त करते हुए कालपी पहुंचे। कालपी विजय के बाद सेन्ट्रल इंडिया फील्ड फोर्स को भंग कर दिया जाना था।
लक्ष्मीबाई के साथ क्या करना है यह गवर्नर जनरल लार्ड केनिंग ने ११फरवरी,१८५८ को इलाहबाद से प्रेषित पत्र से पहले ही हैमिल्टन को बता दिया था । पत्र इस प्रकार है- प्रिय राबर्ट- यदि नर्मदा फील्ड फोर्स झाँसी जाती है और अगर रानी उसके द्वारा कैद कर ली जाती है , तो कोर्ट मार्शल नही, एक कमीशन नियुक्त कर उस पर मुकदमा चलाया जायगा।
रानी को आपके पास भेजने के लिए ह्यूरोज को निर्देश दिया जायगा एवं आप निश्चय ही एक श्रेष्ठतम कमीशन की नियुक्ति करना नहीं भूलेंगे । यदि किसी कारण से रानी के संबंध में जल्द ही कुछ करना संभव न हो एवं उसको झाँसी में या किसी पास के स्थान में कैद करके रखने में असुविधा हो, तो उनको यहाँ (इलाहबाद) भेजा जा सकता है । लेकिन उनके संबंध में शुरू में ही जाँच करके यह निश्चय करना होगा कि प्रारंभ में विचार करने की कोई जरूरत है भी या नही ।
यह प्रारंभिक जाँच –पड़ताल उसके यहाँ आने के पहले ही पूरी कर लेना ठीक रहेगा ।उस पर विचार करना आवश्यक है या नही, इस विषय में किसी तरह के सन्देह के साथ उनको यहाँ न लाया जाय । मुझे विश्वास है की आप घटनास्थल पर ही उस पर विचार कर अन्तिम निर्णय कर सकते है । मुकदमे के बाद उसका क्या करना है यह आपकी राय पर निर्भर रहेगा।
इस पत्र से यह स्पस्ट हो जाता है कि रानी के बारे में पूरी जिम्मेदारी हैमिल्टन की ही थी। अतः पूरी तरह अस्वस्त होने के बाद ही उनको रानी के पलायन की रिपोर्ट भेजनी थी। अतः उन्होंने इस विषय में भांडेर के तहसीलदार से भी सुचना मांगी ।
भांडेर के तहसीलदार वंशीधर ने बतलाया – 5 अप्रेल को झाँसी की रानी 5 सवारो के साथ 9 बजे सुबह यहाँ पहुंची । वे तीन दिन से भूखे रह कर व्रत कर रहीं है। शरवत पीकर वे आराम करतीं तभी सुचना मिली की अंग्रजी सेना पीछा करती हुई आ रही है। बिना कोई समय नष्ट किए वे तुरन्त ही जालौन के रास्तें कालपी के लिए चल दीं (एस.ए.ए.रिजवी- फ्रीडम इस्त्ररागिल इन उत्तर प्रदेश,भाग तीन ,पेज,355 ) तार और तहसीलदार की रिपोर्ट से एक बात निश्चित हो जाती है की रानी पांच लोगों के साथ ही भांडेर पहुंची, न की 300 -400 सवारो के साथ जैसा की अधिकतर लोगों ने लिखा है ।
अब प्रश्न यह उठता है की वे कौन से लोग थे जिन पर झलकारीबाई ने इतना भरोसा किया और इनका रानी के साथ जाना बहुत आवश्यक था। प्राप्त विवरणों के अनुसार छह लोग रानी के साथ खंडेरावगेट के पास गनपत खिडकी से निकल कर झलकारी के गाँव भोजला की तरफ चलते है। पहले घोड़े पर आगे –आगे झलकारीबाई, दुसरे घोड़े पर रानी और पीठ पर दामोदरराव, तीसरे पर सुंदर जो दामोदर की धाय थी, चौथे पर मुन्दर जो रानी की सेविका और सहायक की भूमिका में रहती थी, पांचवे पर गुल मोहम्मद, और छठवे पर जवाहरसिंह कटीलीवाले।
मुन्दर का रानी के साथ ग्वालिअर में 17 जून को मारे जाने का उल्लेख सभी इतिहासकारों ने किया है। गुल मोहम्मद ग्वालियर के युद्ध में रानी के साथ अंतिम समय तक रहा था। झाँसी से छह लोग निकले लेकिन भांडेर पांच के पहुंचने की बात ही सब रिपोर्टों में कही गई है । तो एक कौन था जो भांडेर नही पहुंचा। सरकारी दस्तावेजों में गुप्तचरों की रिपोर्ट के अनुसार जवाहरसिंह भांडेर नही पहुंचे थे ।
Abstract of Intelligence,9th, April 1858(९अप्रेल१८५८,की इंटेलिजेंस रिपोर्ट का सार संक्षेप) में कहा गया है –Jawahir Singh of Katailee who ran away from Jhansi with the Ranee, followed her to some distance(Ari), then departing from her has gone to some place……..his destination being not known.
अर्थात-कटीली के जवाहर सिंह जो झाँसी से रानी के साथ भागे थे कुछ दूर तक तो उनके साथ रहे फिर उनसे अलग हो कर किसी अन्य स्थान की तरफ चले गए …..वह कहाँ गए इसका पता नही है(एक स्थान पर आरी गाँव का उल्लेख मिलता है) । इस रिपोर्ट से इतना तो पता चळ ही जाता है की जवाहरसिंह भी रानी के साथ ही झाँसी से भागे थे।
भांडेर पहुंचते ही झलकारीबाई को यह एहसास होना स्वाभाविक ही था कि उनके पास रानी की सुरक्षा के लिए पर्याप्त आदमी नही हैं। अतः जरा भी देर न करके वह रानी को विश्राम करने के लिए कह कर तुरन्त भांडेर में अपने बिरादरी के लोंगों के पास जाती है जिनसे उसके परिवार के वर्षों से व्यापारिक संबंध थे। १० -१५ लोगों को रानी की सुरक्षा के लिए लेकर वह जहाँ रानी रुकी थी वहाँ के लिए वह वापस लौटती है। इन आदमियों के पास हथियार के नाम पर केवल लाठी, डंडा, बल्लम, और तलवार ही थी । इधर कचेहरी में जहाँ रानी रुकी थी में घटनाएँ अप्रत्याशित घटने लगती है।
रानी को पता चलता है की अंग्रेजी फ़ौज भांडेर तक आ गई है। अब रानी क्या करती यदि झलकारीबाई का इंतजार करती है तो पकड़े जाने की संभावना थी । भागने में इतनी जल्दी करनी पड़ी की रानी के घोड़े पर जीन कसने तक का तक का समय भी नही था। रानी ने दामोदरराव को पीठ में बांधा और अपने साथियों के साथ कोंच की तरफ घोडा दौड़ा दिया ।
भारतीय इतिहासकारो के अनुसार रानी लक्ष्मीबाई ने तलवार के वार से Dowker को घायल किया था । लेकिन इसके प्रमाण नही मिलते हैं। Dowker की रिपोर्ट के अनुसार घटनाक्रम इस प्रकार है- वह भागती हुई रानी का का पीछा करते हुए घोड़े को दौड़ाता चला जा रहा था तभी एक या कुछ लोगों द्वारा अचानक उसको बीच में ही बाधा पहुंचा कर तेग के वार से घायल करके घोड़े से गिरा दिया।
अंग्रेज इतिहासकारों के अनुसार- What probably happened is that, while he was pursuing the Rani he himself was intercepted and brought down by sabre of one or more of the rebel cavalry who came up upon him unawares. His account mearly states that he “ was gaining fast on the Rani”. इस विवरण से यह निष्कर्ष निकलता है कि वह रानी के पास तक नही पहुंच पाया था तभी उसको तलवार की मार करके घोड़े से गिरा दिया गया। कौन थी वह स्त्री जिसके वार से घायल होकर Dowker घोड़े से जीन सहित धरासायी हो गया था। यह झलकारीबाई थी ।
अंग्रेज इतिहासकार Coronet Combe के अनुसार- The sharp engagement between the rebel and British cavalry, which had continued during the chase, ended in the death of all the rebels. “Her (the Rani) escort made a hard fight of it”, reported with grudging admiration, “and though our fellows did their utmost and killed every man she got away”.
अब प्रश्न यह उठता है कि ये और सवार कौन थे जिन्होंने रानी के भागने में मदद की और अपने प्राण न्योछावर कर दीये । रानी के साथ तो केवल चार या पांच लोग ही भांडेर आये थे। मै पहले ही कह चुका हूँ की भांडेर पहुचते ही झलकारीबाई को रानी की सुरक्षा की चिंता हुई क्योंकि उनके पास केवल चार अंगरक्षक थे और कालपी अभी बहुत दूर थी । अतः वह रानी को नास्ता करते छोड़ कर भांडेर में अपने बिरादरी के लोंगों के पास कुछ लोंगों को रानी की रक्षा के लिए लेने गई थी।
ये वही झलकारी के कोरी साथी थे जो सबके सब इस घटना में मारे गये। अब भांडेर की पूरी घटना इस प्रकार से सामने आती है। झलकारीबाई, लक्ष्मीबाई को झाँसी से सुरक्षापूर्वक निकाल कर भांडेर पहुंचती है। उसके साथ केवल चार पांच लोग ही थे अतः वह भांडेर में अपने बिरादरी के कुछ लोंगो के पास जाकर कुछ सुरक्षाकर्मियों की व्यवस्था करती है। इधर घटनाक्रम तेजी से नया रूप लेता है। रानी को पता चलता है कि अंग्रेजी सेना की एक टुकड़ी उनका पीछा करती हुई भांडेर आ पहुंची है।
यह सब इतना अचानक हुआ की रानी के पास इतना भी समय नही था की घोड़े में जीन कसी जा सकती झलकारीबाई का इंतजार करने का तो प्रश्न ही नही था। रानी, सुंदर, मुन्दर, गुलमोहम्मद कोंच की तरफ अपने घोंड़ो को सरपट दौड़ा देते है। Dowker इस दल को भागते देखता है। इनका पीछा करता है । इसी समय झलकारीबाई वहाँ पर अपनी नई भर्ती किए गए साथियों के साथ पहुंचती है। वह क्षण भर की देर नही करती और अपना घोडा Dowker के घोड़े के पीछे दौड़ा देती है । उसके साथी Dowker के सैनिकों से भिड़ जाते है।
रानी खुद अच्छी घुड़सवार थी लेकिन घोड़े में जीन कसी न होने के कारण और पीठ में दामोदरराव को बांधें रहने की वजह से घोडा तेजी से नही दौड़ पा रहा था। Dowker का घोडा किसी भी क्षण रानी के पास पहुच सकता था। झलकारीबाई तेजी से अपने घोड़े को दौड़ाती हुई Dowker के बगल में आ जाती है | Dowker का पुरा ध्यान सामने रानी पर था तभी झलकारीबाई की तलवार का वार उसके कमर पर होता है ।
इस वार से उसके घोड़े की जीन कट जाती है और वह जमीन पर गिर जाता है। उसकी किस्मत अच्छी थी जो तलवार के वार को कमर में खुसी पिस्तौल ने रोक लिया था। झलकारीबाई, रानी और उनका दल कोंच की तरफ सरपट घोड़े दौडाते चला गया। इधर झलकारी के सब साथी मारे गए। उनसे निपट कर जब अंग्रेज सैनिक Dowker के पास पहुंचे तो घायल अवस्था में उसको देख कर रानी का पीछा करने का विचार त्याग कर डोली में लाद कर झाँसी लौटे।
अधिकांश भारतीय इतिहासकारों का मानना है कि Dowker रानी लक्ष्मीबाई के वार से घायल हुआ था। लेकिन इसका कोई गवाह नही है | लेकिन घटनाक्रम का जो विवरण मिलता है वह इससे मेल नही खाता क्योंकि Dowker का कथन है कि “He was gaining fast on Ranee”. लेकिन वह रानी तक पहुचा नही कि घायल कर दिया गया(intercepted and brought down by sabre of one or more of the rebel cavalry who came up upon him unawares) लेकिन यह गलत है क्योंकि रानी कि रक्षा के लिए जितने लोगों को झलकारी ने एकत्रित किया था वे सब अंग्रेजी सेना कि टुकड़ी को रोके रहने के लिए पीछे ही युद्ध करके उनको रोके रहे और उनमे से एक भी जीवित नही बचा जो इस बारे में बतलाता।
तो क्या Dowker घोड़े से गिरते समय देख लिया था कि उसको घायल करके घोड़े से गिराने वाली एक स्त्री थी और शर्म से बचने के लिए उसने कहा कि वह rebel cavalry के द्वारा घोड़े से गिराया गया। E.J.Paul अपनी पुस्तक “Rani of Jhansi Lakshmi Bai” के पेज १३३ में इस कथन कि पुष्टि करता है और लिखा – Dowker wanted to hide his embarrassment at having been knocked out of his saddle by a woman”.
रानी के पीछे केवल झलकारी बाई ही थी जिसने अपने साथियों जिनको उसने भांडेर में साथ लिया था से कहा कि वे अंग्रेज सैनिकों को रोकें और खुद रानी कि रक्षा के लिए आगे बढ़ गई क्योंकि उसने देख लिया था कि एक अंग्रेज घोड़े से रानी का पीछा कर रहा है और किसी भी क्षण रानी के पास पहुच सकता है । Dowker के बगल में आते ही उसने वार करके उसको घोड़े से गिरा दिया । अत: इसमें कोई संदेह नही होना चाहिए कि झलकारी बाई ने रानी को झाँसी से निकलने में मदद ही नही कि बल्कि भांडेर में उसकी रक्षा भी कि और उनको कालपी में पहुचाया और उसकी मृत्य झाँसी में नही हुई थी।