Buddhism in Mauryan Period
Mauryakal Me Baudha Dharma में अशोक के शासनकाल में सर्वाधिक प्रभावशाली रहा। हालाँकि अशोक से पूर्व भी बौद्ध धर्म समाज में आदर के साथ प्रचलित था किन्तु अशोक ने स्वयं राजकीय प्रश्रय प्रदान करके बौद्ध धर्म को अधिक प्रभावशाली बना दिया था। अशोक ने धम्म (बौद्ध धर्म) के प्रसार – प्रचार के लिए ठोस नीतिगत फैसले लिए। इसके लिए अशोक ने प्रशासनिक मशीनरी का भरपूर उपयोग किया। साथ ही, स्वयं ने भी आगे बढ़कर सक्रिय रूप से धम्म के प्रसार – प्रचार का झण्डा अपने हाथों में थाम लिया था।
अशोक ने बौद्ध धर्म के प्रचार – प्रसार के लिए सार्वजनिक रूप से बौद्ध धर्म में आस्था प्रगट की। बौद्ध धर्म से संबंधित स्थलों की तीर्थ यात्रा की तथा बौद्ध धर्म को चोट पहुँचाने वालों को वह प्रत्यक्षतः चेतावनी देता है। अशोक ने प्रशासन मे फेरबदल करते हुए प्रशासनिक अधिकारियों को अतिरिक्त जिम्मेदारी सौंपी। अशोक ने अपने राज्याभिषेक (269 ईसवी पूर्व ) के बारहवें वर्ष (258 ईसवी पूर्व ) ‘धम्मानुशासन‘ धर्म की शिक्षा प्रकाशित करवाया एवं प्रचार के लिए पदाधिकारियों की नियुक्ति की।
अशोक के तीसरे शिलालेख में वर्णित है कि, उसने राजुकों, युक्तों, एवं प्रादेशिकों को प्रति पाँचवे वर्ष धर्म प्रचार हेतु नियुक्त कर यात्रा करने का आदेश दिया। अशोक अभिलेखों मे इसे ‘अनुसंधान‘ की संज्ञा दी गयी है। साथ ही, अशोक ने धर्म की वृद्धि एवं प्रज्ञा के नैतिक तथा आध्यात्मिक उत्थान के लिए राज्याभिषेक (269 ईसवी पूर्व ) में चौदहवे वर्ष (256 ईसवी पूर्व) में नवीन अधिकारियों के रूप में ‘धर्ममहामात्रों की नियुक्ति की। पाँचवे शिलालेख से स्पष्ट है कि, ‘‘धर्ममहामात्रों का मुख्य कार्य प्रजा की आध्यात्मिक आवश्यक्ताओं की पूर्ति करना था।‘‘
अशोक स्वयं भी प्रत्यक्ष रूप से बौद्ध धर्म में आस्था प्रगट करता है। अशोक मास्की लघु शिलालेख मे स्वयं को ‘बुद्ध शाक्य‘ कहता है। भब्रु लघु शिलालेख (बैराट, राजस्थान) में अशोक बौद्ध त्रिरत्नों बुद्ध, धम्म, संघ में आस्था प्रगट करता है। अशोक ने बौद्ध धर्म में आस्था प्रकट करते हुए बौद्ध धर्म स्थलों की तीर्थ यात्रा की थी।
ये धार्मिक यात्राएँ 10 वर्षों में होती थीं, प्रथम धर्म यात्रा (बौद्ध स्थल तीर्थ यात्रा) राज्यभिषेक के 10 वें वर्ष (260 ईसवी पूर्व ) में ‘बोध गया‘ की की। द्वितीय, राज्यभिषेक के 20 वर्ष (250 ई पू) लुम्बिनी की की। लुम्बिनी (रूम्मिनदेई) अभिलेख में वर्णित है कि, अशोक ने भूमि कर आधा आर्थात् 1/8 कर दिया। अशोक, लुम्बिनी के पास स्थित निगाली सागर की भी यात्रा की। निगाली सागर स्तम्भ लेख में उत्कीर्ण है कि, अशोक ने राज्याभिषेक (269 ईसवी पूर्व) के चौदहवे वर्ष (256 ईसवी पूर्व ), कनकमुनि बुद्ध के स्तूप को बढ़ाकर दो गुना करवाया तथा राज्याभिषेक के 20 वें वर्ष यहाँ की यात्रा की थी।
यह तथ्य उल्लेखनीय है कि, कनकमुनि प्रत्येक बुद्ध थे। ‘प्रत्येक बुद्ध उसे कहते हैं, जो स्वयं तो ज्ञान प्राप्त कर लेता है किन्तु दूसरों को उसका उपदेश नहीं देता।‘ अशोक अपने आठवें शिलालेख में विहार यात्रा के स्थान पर धर्म यात्रा करने का उल्लेख करता है। अशोक ने बौद्ध धर्म के प्रसार – प्रचार के तारतम्य में बुद्ध के अवशेषों (मूल 8 स्तूपों को खुदवाकर प्राप्त अवशेष) पर 84 हजार स्तूपों का निर्माण करवाया। बुद्ध के अवशेषों पर स्तूप बनवाने की सूचना ‘अहरौरा अभिलेख‘ (मिर्जापुर, जिला, उत्तर प्रदेश ) देता है और यह संभवत् बुद्ध के अवशेषों पर अशोक द्वारा स्तूप बनाये जाने प्रथम उल्लेख करता है।
अशोक धम्म के प्रसार – प्रचार के साथ – साथ धम्म को चोट पहुँचाने वाले लोगों को सख्त लहजे में चेतावनी देने में पीछे नहीं हटता। अशोक साँची, सारनाथ एवं कौशाम्बी के अभिलेखों में संघ में फूट डालने वाले भिक्षुकों को चेतावनी देता है कि, यदि वे दोषी पाये गये, तो उन्हें श्वेत वस्त्र पहना कर संघ से बाहर निकाल दिया जायेगा। इस प्रकार अशोक बौद्ध धर्म के संगठनकर्ता की मुख्य भूमिका भी धारण कर लेता है।
अशोक ने बौद्ध धर्म को अपने जीवन एवं प्रशासनिक नीतियों में अधिक समाहित करते हुए अनेक कार्यों को संपादित किया। वह अब जनता को धर्म श्रावण अर्थात् धर्म संदेश देने लगा, जैसाकि सातवे स्तम्भ लेख से ज्ञात होता है। उसने आम जनता के हितों को दृष्टिगत रखते हुए अनेक कार्य किये। जैसे, कुँए खुदवाना, वृक्ष लगाना, चिकित्सालयों तथा औषधियों की व्यवस्था करना, सड़कें बनवाना आदि। जिनका विस्तृत वर्णन सातवें स्तम्भ लेख एवं दूसरे शिलालेख में मिलता है।
अशोक अपने सम्पूर्ण क्रियाकलापों में अहिंसा के सिद्धान्त को प्रमुख स्थान प्रदान करता है। हिंसा का परित्याग करते हुए घोषणा करता है कि, अब वह शस्त्र – विजय का त्यागकर ‘धर्म विजय‘ करेगा, जैसाकि तेरहवे शिलालेाख में उल्लेखित है। चौथे शिलालेख में वर्णित है कि, अशोक राज्य में ‘भेरी घोष‘ (युद्ध का शंखनाद) के स्थान पर सभी तरफ ‘धर्म घोष‘ (धार्मिक वातावरण का बोलवाला) गूंज रहा है, अर्थात् ‘‘युद्ध का त्याग कर धर्मिक कृत्यों की सारे राज्य बाढ़ सी आ गई ।
अशोक ने अहिंसा की नीति को तार्किक परिणति प्रदान करते हुए के अपने राज्याभिषेक (269 ईसवी पूर्व ) के छब्बीसवें वर्ष (244 ईसवी पूर्व) में ‘हिंसा निषेध‘ लागू किया। प्रथम शिलालेख में वर्णित है कि, उसने समाजों (उत्सवों) पर प्रतिबंध लगा दिया। इन समाजों (उत्सवों) में मनोरंजन के लिए पशु – पक्षियों की लड़ाई होती थी तथा नृत्य संगीत के साथ भोजन के लिए पशु – पक्षियों का वध किया जाता था। पाँचवे शिलालेख में अशोक ने उन पशुओं के नाम दिये हैं, जिनका वध दण्डनीय है।
अशोक ने प्रशासनिक व्यवस्था में जन कल्याण हेतु सुधार किये। अशोक ने दण्ड विधि में नरमता बरतते हुए कुछ सार्थक कदम उठाये। अशोक प्रतिवर्ष अपने ‘राज्याभिषेक – दिवस‘ पर कैदियों की सजा माफ करते हुए जेलों से मुक्त करता था, जैसाकि पाँचवे स्तम्भ लेख में उल्लेखित है। विद्वानों का मानना है कि, अशोक ने अपने शासनकाल में कुल 26 बार सामूहिक रूप से कैदियों (अपराधियों) को आम माफी दी थी। इसके साथ ही, अशोक ने मृत्यु दण्ड पाये अपराधियों के प्रति नरमता बरतते हुए मृत्यु दण्ड से पूर्व ‘तीन दिन‘ का अतिरिक्त समय देने का आदेश दिया, जैसाकि चौथे स्तम्भ लेख में उल्लेख है।
अशोक ने धम्म की वृद्धि एवं प्रसार – प्रचार के लिये तथा धम्म में अपनी आस्था को प्रगट करते हुए 250 ईसवी पूर्व में ‘तृतीय बौद्ध संगीति‘ का आयोजन किया। यह संगीति पाटलिपुत्र के अशोक विहार में ‘मोग्गलिपुत्र तिस्स’ की अध्यक्षता में हुई। संगीति में ‘अभिधम्मपिटक‘ का सृजन किया गया। ज्ञातव्य रहे कि, इस तृतीय बौद्ध संगीति का उल्लेख मात्र दीपवंश एवं एवं महावंश करते हैं। अशोक के किसी भी अभिलेख में इसका उल्लेख नहीं आया है। दीपवंश – महावंश में वर्णित है कि, अशोक ने राज्याभिषेक का सत्रहवें तथा महात्मा बुद्ध के महापरिनिर्माण के 236 वर्ष बाद पाटलिपुत्र में ‘मोग्गलिपुत्र तिस्स’ की अध्यक्षता में एक ‘बौद्ध संगीति‘ आयोजित की गयी।
विद्वानों का मानना है कि, अशोक का भब्रू (वैराट, राजस्थान) अभिलेख ‘तृतीय बौद्ध संगीति‘ के प्रमाण देता है। इस संगीति में आये बौद्ध भिक्षुओं को अपना परिचय देता है तथा भिक्षुओं को धर्म ग्रंथों के अध्ययन की सलाह देता है तथा धम्म की दीर्घकालीन होने की कामना करता है।
अशोक ने तृतीय बौद्ध संगीति के बाद विदेशों में बौद्ध धर्म प्रचार को भेजा। अशोक का दूसरा, पाँचवाँ, तेरहवाँ शिलालेाख एवं सातवाँ स्तम्भ लेख तथा दीपवंश, महावंश, सामंतपासादिका धर्म प्रचार का उल्लेाख करते हैं। साथ ही, साँची स्तूप (जिला रायसेन, मध्य प्रदेश) से प्राप्त एक पट्टिका पर दस धर्म प्रचारकों का नाम लिखा मिला है।
तेरहवें शिलालेख में यवन (यूनानी) राजाओं का उल्लेख में, तुरमाय (मिस्त्र का यूनानी राजा टालमी द्वितीय फिलाडेल्फस), अंतिकिनी (मेसीडोनिया का यूनानी राजा ऐण्टीगोनस), मग (सीरिया का यूनानी राजा मगा, मैगस), अंतियोक (सीरिया का यूनानी राजा एण्टियोकस द्वितीय थियोस), अलिकसुन्दर (एपिरस का एलेग्जेण्डर) धर्म प्रचार भेजे। इसके अतिरिक्त अनेक स्थानों तथा देशों में अशोक ने धर्म प्रचार को भेजे।
स्थान (देश) प्रचारक
1- कश्मीर, गंधार – मज्झन्तिक
2- यवन देश (यूनानी राज्य) – महारक्षित
3- मैजू (और मांधाता) – महादेव
4- अपरान्तक – धर्मरक्षित
5- हिमालय प्रदेश – मज्झिम
6- महाराष्ट्र – महाधर्मरक्षित
7- बनवासी (उत्तर कनारा) – रक्षित
8- सुवर्ण भूमि (पेगू, वर्मा) – सोन एवं उत्तरा
9- श्रीलंका – महेन्द्र, संघमित्र, सम्बल, भद्रसाल
इस प्रकार अशोक ने दक्षिणी एवं पश्चिमी देशों में धम्म मिशनों (धर्म शिष्टाचार प्रतिनिधी मण्डल) के द्वारा संपर्क स्थापित किया। इन मिशनों की तुलना आधुनिक सद्भावना मिशनों से की जा सकती है।