बसीन की संधि के पूर्व दतिया राज्य मराठों के अधीन था। यहां के राजा पारीछत मराठों के आश्रित थे किंतु वि० सं० 1844 ( 1 -1-1802 ) में बसीन नामक स्थान पर Datiya – Angrejo Se Sandhi हुईं थी उसके अनुसार दतिया का राज्य अंग्रेजों के अधिकार में हो गया। इससे यहाँ के राजा पारीछत ने वि० सं० 1861 ( 14-3 -1804 ) मे अँगरेजों के साथ संधि की। यह संधि कुंजनघाट पर हुई थी । इसमें सरकार की ओर से कप्तान बेली साहब ने दस्तखत किए थे।
दतिया के राजा पारीक्षत ओड़छे (ओरछा ) के महाराजा वीरसिंह देव के वंशज हैं। वे वि० सं० 1886 मे उनका स्वर्गवास हुआ किन्तु इन्होंने अपनी मृत्यु के पूर्व ही विजयबहादुर को गोद ले लिया था। इसकी सूचना भी उन्होंने अंग्रेज सरकार को दे दी थी जिसकी मंजूरी भी आ गई थी। इधर विजय बहादुर को युवराज घोषित कर उसे राज्य का उत्तराधिकारी बनाना था।
बड़ौनी के दीवान मर्दनसिंह ने इस गोद का विरोध किया, लेकिन मंजूरी तो सरकार ने पहले ही दे दी थी। इससे उनका दावा खारिज कर दिया गया। इसके बाद मर्दनसिंह ने कंपनी की सरकार से बड़ौनी जागीर की अलग सनद चाही परंतु यह भी नही दी गई। विजयबहादुर वि० सं० 1896 में गद्दी पर बैठे थे । राजा विजयबहादुर की मृत्यु वि० सं० 1914 में हुई ।