Homeबुन्देलखण्ड का इतिहास -गोरेलाल तिवारीBundelkhand Me Angrejo Se Sandhiyan बुन्देलखण्ड में अंग्रेजों से संधियाँ

Bundelkhand Me Angrejo Se Sandhiyan बुन्देलखण्ड में अंग्रेजों से संधियाँ

अंग्रेजों को पूना की संधि से बुंदेलखंड में प्रवेश मिल ही गया था और अली बहादुर की मृत्यु के पश्चात्‌ इन्होंने हिम्मतबहाहुर और शमशेरबहादुर से संधियाँ भी कर ली  थीं। इस समय झाँसी में रघुनाधराव नेवालकर के छोटे भाई शिवराव भाऊ सूबेदार थे। इनसे भी सं०1860  विक्रमीय ( 18-11-1803 ) मे संधि हो गई। इस प्रकार Bundelkhand Me Angrejo Se Sandhiyan अनेक राजे -रियासत से हो गई थी ।

अलीबहादुर और पेशवा से संधि हो गई थी। इससे इसके मरने पर अलीबहादुर का जीता हुआ सारा प्रदेश पेशवा के अधिकार में आ गया। यह वि० सं० 1856 में कालिंजर की चढ़ाई के समय मरा। इसके शमशेरबहादुर और जुल्फिकारअली ये दो लड़के थे। पर इसकी मृत्यु के समय शमशेरहादुर पूना ही में था।

अंग्रेजों और पेशवा से वि स 1859 ( 1 -1- 1802) में बसीन में संधि हुई थी पर इसके कुछ समय के बाद  वि० सं० 1860 ( सन्‌ 1803 ) में बसीन की शर्तों मे कुछ फेरबदल  कर पूना में फिर से संधि हुई । इस संधि से अंग्रेजों को अन्य लाभों के अलावा एक विशेष यह हुआ कि इन्हें बुंदेलखंड में 36,16,000 की रियासत अचानक  मिल  गई। अव इन लोगों ने दौलतराव सिंधिया और बरार के भोंसलों  पर चढ़ाई करने की घोषणा कर दी और  वे गुप्त रूप से यशवंतराव होल्कर पर भी चढ़ाई करने की तैयारी करने लगे।

हिम्मतबहादुर ने सिंघिया की नोकरी छोड़कर अलीवहादुर के यहाँ सेनापति की नौकरी कर ली थी। अलीबहादुर की मृत्यु के पश्चात्‌ यद्यपि यह उसी के यहाँ था पर मन ही मन अपना स्वतंत्र राज्य जमाने की चिंता में लगा हुआ था। इसी समय अंग्रेजों ने बुंदेलखंड के भीतर से सेना भेजने का प्रबंध किया ।

हिम्मतबहादुर तो यह चाहता ही था। इसने बात की बात  में अलीबहादुर  की नौकरी छोड़कर शाहपुर जाकर अंग्रेजों से विक्रम संवत्‌ 1860 ( 4-6- 1803) में संधि कर ली । इस संधि से अंग्रेजों ने इसे अपनी सहायता के लिये सेना रखने को 20 लाख रुपए की जागीर देने का वादा किया और कुछ इलाका भी इसकी जागीर में छोड़ दिया। इससे इसका राज्य इलाहाबाद से कालपी तक हो गया।

इस संधि के  समय शमशेरबहादुर भी पूना से आ गया था। इसने भी अंग्रेजों से मिलकर रहना उचित समझा और वि० सं० 1860 ( 12-1-1804  ) में संधि कर ली  । अंग्रेजों ने इसे चार लाख रुपए की जागीर दी और बाँदा रहने के लिए  दिया । इस समय कालपी और जालौन गेविंद गंगाधर उर्फ नाना साहब के पास  थे। अब  होल्कर पर चढ़ाई करने के समय अंग्रेजों के आड़े  आनेवाले सिर्फ  होल्कर के हितैषी राजा ही रह गए।

इससे अंग्रेजों ने पश्चिमी बुंदेलखंड के राजाओं  से भी संधि कर अपना रास्ता साफ कर लेना उचित समझा । इस समय बुंदेलखंड में छोटी बड़ी कुल 43   रियास्ततें और  जागीरें थीं। इनमें से 12   जालौन, झांसी , जैतपुर, खुद्दी, चिरगाँव, पुरवा, चौबियाने की दो  जागीरें, तरोंहा , विजयराधोगढ़, शाहगढ़ और  बानपुर  तो सरकारी राज्य में मिला ली गई, शेष अधिकारियों में से 3 के  साथ संधियाँ हुई हैं, बाकी लोगों को सनदें दी गई हैं।

अंग्रेजों का पूना की संधि से बुंदेलखंड मिल ही गया था और अली बहादुर की मृत्यु के पश्चात्‌ इन्होंने हिम्मतबहाहुर और शमशेरबहादुर से संधियाँ भी कर ली  थीं। इस समय झाँसी में रघुनाधराव नेवालकर के छोटे भाई शिवराव भाऊ सूबेदार थे। इनसे भी सं० 1860  विक्रमीय ( 18-11-1803 ) मे संधि हो गई।

झांसी के सूबेदार शिवराव भाऊ ने अंग्रेजों के साथ संधि कर ली थी । इस संधि के अनुसार ये अंग्रेजों के मित्र हो गए थे । इसी समय कालपी  के सूबेदार गोविंद गंगाघर और शिवराव भाऊ में अनबन हो गई। पर शिवराव भाऊ संधि के अनुसार अंग्रेजों के मित्र थे। इससे गोविंद गंगाधघर और अंग्रेजों मे भी अनबन सी हो  गई और ये ही अकेले इनके विरुद्ध रह गए। इसलिये इन्होंने भी अंग्रेजों के साथ वि० सं० 1863  ( 23-10-1806 ) में संधि कर ली।   इस संधि में अंग्रेजों की ओर  से जान बेली और गोविद गंगाधर की ओर  से भास्करराव अन्ना ने दस्तखत किए। इस संधि की शर्ते निम्नलिखित थीं–

1 – नाना साहब और  इस्ट इंडिया कंपनी की सरकार एक दूसरे से मित्रता का बर्ताव करे और  एक दूसरे के दुश्मनों को कभी सहायता न दे।
2 – नाना साहब कालपी और रायपुर का इलाका हमेशा के लिये अंग्रेजों को दें ।
3 – यदि अंग्रेजों का कोई अपराधी नाना साहब के राज्य में आये तो  नाना साहब उसे अंग्रेजों के हवाले कर ।
4 – बेतवा नदी के पूर्व का भाग और कोंच जिला नाना साहब के अधिकार मे रहे और  इस प्रदेश मे से जो अंग्रेजों की फौज निकले  उसकी सहायता नाना साहब करें।
5 – नाना साहब पर अंग्रेजों का कोई दावा न रहे और कोई हक उपयुक्त शर्तों के सिवा अँगरेज लोग नाना साहब से न माँगें।
6 – नाना साहब के विरुद्ध किसी भी शिकायत का फैसला अंग्रेज न करें।
7 – पन्ना के हीरें का तीसरा भाग नाना साहब पूर्वत लेते रहेंगे ।  उसमें अंग्रेज कुछ हस्तक्षेप न करें। यदि हीरों की खान का कोई भाग अंग्रेजों के अधिकार में आ  जाये तो  भी हीरे की आमदनी का तीसरा भाग नाना साहब को मिलता रहे।
8 – नाना साहब की जो  निजी संपत्ति अर्थात बाग, मकान या हवेलियाँ कालपी  और बनारस  में हो उस पर अँगरेज अधिकार न करें।
9 – नाना साहब के बुंदेलखंड के राज्य-प्रबंध में अंग्रेज हस्तक्षेप न करें।
उपयुक्त संधि के अनुसार जालौन नाना साहब के,अधिकार में रहा।

अमृतराव रघुनाथराव पेशवा का लड़का था।  जब बाजीराव बसीन से भाग गया तब होल्कर ने इसका भागना अनुचित समझकर अमृतराव को ही उत्तराधिकारी भान लिया । यह अंग्रेजों के न भाया और  इन्होंने पूना पर चढ़ाई कर दी। इससे होल्कर निष्फल  हो गये । अंत में अमृतराव ने अंग्रेजों से संधि कर ली । इससे इसके और इसकी संतान के भरण-पोषण के लिये 7  लाख रुपए की पेंशन नियत कर दी गई। इसने वरोंहा ( बाँदा जिले मे ) में रहना पसंद किया । इससे उसे 4647  रुपए की जागीर और भी दी गई। यह संवत्‌ 1881  ई० मरा और विनायकराव जागीर का अधिकारी हुआ। विनायकराव के मरने पर पेंशन बंद कर दो गई।

विनायकराव को जो पेंशन मिलती थी वह तो बंद हो ही गई थी । इधर इसने नारायणराव और माधवराव को गोद ले  लिया था। पर इन्हें पेंशन नहीं मिली । ये संवत्‌ 1914 को सिपाही विद्रोह मे मिल  गए । इससे इनकी खानदानी जागीर जब्त कर ली गई और देनें कैद कर लिए गए। नारायणराव ने  सन्‌ 1860  में हजारीबाग मे मर गया और  साधवराव ने माफी मांग  ली। इससे यह बरेली  में रखकर पढ़ाया गया। यह संवत्‌ 1823  में राज्याघिकार करने के लायक  हो गया था। इससे उसे तीस हजार रुपए वार्षिक पेंशन मिलने लगी ।

बुन्देली झलक (बुन्देलखण्ड की लोक कला, संस्कृति और साहित्य)

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