Isuri Ki Chaukadiya  ईसुरी की चौकड़ियां

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Bundelkhand की बुन्देली भाषा के विख्यात महाकवि ईसुरी ने फाग विधा  मे चौकड़िया फाग की रचना कर बुन्देली साहित्य को एक नई दिशा दी। Isuri Ki Chaukadiya मे  जीवन दर्शन और अध्यात्म और लोकसंगत ढंग से लोक की बात कह दी जो जनमानस के मन को छू गई।

सुन आए सुख होई, दई देवता मोई।
इन फागन पै फाग न आवै, कइयक करौ अनोई।
भोर भखन कौ उगलत रैगओ, कली-कली में गोई।
बस भर ईसुर एक बचो ना, सब रस लओ निचोई।

ईसुरी ने ऋतु वर्णन में एक से बढ़कर एक फागें कहीं है….।
अब रितु आई बसंत बहारन, पान फूल फल डारन।
हानन हद्द पहारन पारन, धाम धवल जल धारन।
कहटी कुटिल कदरन छाई, गई बैराग बिगारन।
चाहत हती प्रीत प्यारे की, हा-हा करत हजारन।
जिनके कन्त अन्त घर से हैं, तिने देख दुख दारन।
ईसुर मौर झौंर के ऊपर, लगे मौर गुंजारन।
अब दिन आए बसंती नीरे, खलित और रंग मीरे।
टेसू और कदम फूले हैं, कालिन्दी के तीरे।
बसते रात नदी नद तट पै, मजे में पण्डा धीरे।
ईसुर कात नार बिरहन पै, पिउ-पिउ रटत पपीरे।
पर गए हर सालन में ओरे, कउं भौत कउं थोरे।
आगे सुनत परत ते दिन के, अब दिन रात चबोरे।
कौनऊ ठीक कायदा ना रए, धरै बिधाता तोरे।
कैसे जियत गरीब गुसा में, छिके अंत के दौरे।
ईसुर कैद करे हैं ऐसे, कंगाली के कोरे।
आसों दै गओ साल कटोरा, करो खाव सब खौंहा।
गोऊं-पिसी खां गिरूआ लग गओ, मउअन लग गओ लौंका।
ककना दौरी सब धर खाए, रै गओ भकत अनौंटा।
कहत ईसुरी बांदे रइओ, जबर गांठ कौ घौंटा।
आसों हाल सबई के भूले, कइयक काखें कूलें।
कच्चे बोर बचे हैं नइयां, कंगारिन ने रूले।
फांके परत दिना दो-दो के, परचत नइया चूले।
मरे जात भूकन के मारे, अंदरा-कनवा लूले।
मारे-मारे फिरें ईसुरी, बडे़-बड़े दिन दूले।
उनके दूर दलद्दुर भिनकें, बैलई ती जिन चिनकें।
ऐसी भई बड़ानी नइयां, ढोई रात ना दिन कें।
बम्बई चलो-चलो कलकत्ता, गिरे कड़ोरन गिनकें।
सन उन्नीस सौ छप्पन मइयां, बुधे परे ते रिन कें।
जनम-जनम के रिन चुकवा दए,परी फादली उनके।
बडे़ अभागे आसों ईसुर, तिली भई ना जिनकें।
तुखां काय लगत हैं जाडे़, बरसा के दिन आडे़।
ई अषाढ़ में चूके कब-कब, कीनें भर लए भांडे़।
ई बरसा सें सब कोउ लागो, जोगी राजा पांडे़।
ईसुर कात हमें का करने, रोज करें रओ ठांडे़।

बालम बेअनुआ ना मारो, ऊसई चाय निकारो।
संकरी खोर गैल सो कड़ गओ, काटत गओ किनारो।
ना मानो तो कौल करा लेव, होय यकीन हमारो।
ईसुर बैठो गम्म खाय कें,है बदनाम तुमारो।

आ गई नगन नगन पियराई,रजऊ के मौपे छाई।
कै तो तबक लगे सोने के, कै केसर की खाई।
कै घूंघट के रए छांहरे, धूप गई बरकाई।
कै संयोग वियोग विथा में, कै आधान अबाई।
कै धों ईसुर छटा भोर की, उगत भान की छाई।

हो गओ फनगुनियां को फोरा, पैंला हता ददोरा।
एक के ऐंगर भओ दूसरौ, दो के भए कई जोरा।
गदिया तरें हतेली सूजी, सूज गए सब पोरा।
दवा होत रई दर्द गओ न, एक मास दिन सोरा।
फोरा से भओ खता ईसुरी, जौ रओ आन विलोरा।

हौ वे गंदो रोग तिजारी, जा भारी बेजारी।
अपनों ऊधम दए फिरत हैं, बिच-बिच बज्जुर पारी।
बंगालन जा बात ले आई, हन गई देह हमारी।
मरज भओ तिरदोष बीत गए, कर ल्याई कफ जारी।
ईसुर जान परत है ऐसी, येई में मौत हमारी।

गांजो पियो न प्रीतम प्यारे, जर जैं कमल तुमारे।
जारत काम बिगारत सूरत, सूखत रकत नियारे।
जौ तो आय साधु सन्तन कौ, अपुन गिरस्ती बारे।
ईसुर कात छोड़ दो ईकों, अबै उमर के वारे।

इन पै लगें कुलरियां घालन, मउआ मानस पालन।
इने काटवो ना चइयत तो, काट देत जे कालन।
ऐसे रूख भूख के लाने, लगवा दये नंद लालन।
देख कर देत नई सी ईसुरी, मरी मराई खालन।

कारी लगत प्रान से प्यारी,जीवन मूर हमारी।
कहा चीज कारी कें कमती, का गोरी का कारी।
कारिन की कउं देखीं नइयां, बसी बसीकत न्यारी।

ईसुर कात बसी मन मोरे, श्यामलिया रंगवारी।
कारी से कारी का काने, जिये ताव भर जाने।
कारी के तुम सोच दूबरे, होत काय के लाने।
कारी से नफरत न करिया,कारी प्रान समाने।
कारी बंदी करे ईसुरी, और के छोर निभाने।

जब से दार उरद की खाई, कफ ने दई दिखाई।
कफ के मारें फटी पसुरियां, ताप सोउ चढ़ आई।
धीरे पण्डा रोन लगे संग, हमें न आई राई।
लिखके पाती दई बगौरा, उत सै आई लुगाई।
राम नगर में परे ईसुरी, कर रए वैद दवाई।

करलो प्रीत खुलासा गोरी, जा मनसा है मोरी।
ऐसी करलो ठोक तारिया, फिर ना टूटे टोरी।
देह धरे के मजा उड़ा लो, जा उम्मर है थोरी।
ईसुर कात होत है नइयां, ऊंट की न्योरें चोरी।

कुण्डलियाँ
स्वामी से सेवक सकुच, विनय करत करजोर।
मरजी माफक फर्द की, लगै सौ अरजी मोर।
लगै सौ अरजी मोर, सुतर आगे को धावें।
नाय माय की खबर, खुशी खातिर की ल्यावें।
लगी फिरै दिखनौस, एक कौतल का जोड़ा।
अच्छे से असवार, उडे़ हाथी संग घोड़ा।
छड़ी चैर पंखा हरकारा, दो सोटा वरदार।
वान लपेटी झंडिया, बल्लम बारे चार।।
बल्लम बारे चार, ऊंट पै नौबद बाजै।
सुख को शुभ दिन होंय, सजन जब द्वारें साजे।
डंका संग निसान, जरी-पटका के लाले।
ढोलक टामक बजे, हलें राजक के भाले।

दोहा –
ढपला रमतूला तुरइ, अलगोजा की टेक।
मिलके बजै कसावरी, सब बाजन में एक।।

सब बाजन में एक पालकी पीनस आवै ।
गांव के नायकन कीनों सुख सम्बन्द ।।
थोरौ थोरौ सबइ बहत को रूप दिखावै ।
सानैयां संग ढोल झाँझ सगै हो ठोकी ।
बजे सुबा औ सांज सूहावन रोसनचौकी।
जितने हैं सामान सूनत साजन में साजे ।
चलन चाल चल गई चहत अंग्रेजी बाजे ।
गांव में परवीन एज रंडी को डेरा।
रथ के सगे बहल चाहिये मिल कर बेरा ।
गाड़ी पन्द्रा-बीस भार बरदारी एती।
मिहरबानगी होय सदा मोऊ पै जेती ।
एक थार में खांय एकसैएक बिरादर।
ऐसौ आवौ चहत होय मंडप में आदर ।
इससे जुदे नतैत होंय हेती बेबारी।
ईसे बाहर होंय लोग सब खिजमतगारी ।
फूखन की फुल वाद अजूबा आतिसबाजी।
तेज मसालौ घलत लगै सबऊ खां साजी ।
जगर मगर हो रहे जरब जेबर की जोतें।
रवि से मारें होड़ होत भोरइ के होते।
दोहा-
हौ भण्डार के मिसर जू पूरन दुज कुलचन्द
लौर कीनों सुख मम्बन्द समझ के करी सगाई।
विश्वनाथ जहं भूप बाई भूधर की ब्याही।
दीनों कन्यादान कहत कवि कीरत ताकी।
काहों दैवे लाक कहा दैवे में बाकी।
चरनोदक लै ईसुरी धर चरनन पै सीस ।
होय बरदान बरात को नर छैसो छत्तीस ।
है भड़ार के मिसर जू, पूरन दुज कुलचन्द्र ।
लौट गांव के नायकन, कीनो सुख सम्बन्ध।।
महाकवि ईसुरी की एक रचना ऐसी भी प्राप्त हुई है जो घनाक्षरी जैसी है…।

बातन से राजा इतराज करैं बसुधा पै।
बातन से करतब नाटक लगायबौ।
बातन से जाय परै नरक के कचरा में।
बातन से होत बैकुण्ठ लोक पायबो।
बातन से ईसुर जौ बनौ ठनो बिकरजात।
बातन में बिगरे कौ बनता बनायबौ।
राखियो जा बात ख़्याल खूब खबरदारी में।
राख लेत बात जात बातन बतायबौ।
महाकवि ईसुरी की लिखी दो प्रभातियाँ भी मिली हैं जिन्हें वे नित्य प्रातः गाया करते थे…।
जीवन श्री जगन्नाथ जाल सों निनोरो।
थाके न हाथ-पांव कोऊ ना धरै नाव।
चलत फिरत चलो जांव घोरुआ ना घोरो।
जीवन की जगन्नाथ जाल सौ निनोरो।
बनी रहे बान बात इज्जत के संग सात।
दीन बन्धु दीनानाथ रै गओ दिन थोरो।
जीवन की जगन्नाथ जाल सौ निनोरो।
हाथ जोर चरन परत चरनामृत धोय पियत
जियत राम देखो ना दूसरों को दोरो।
जीवन की जगन्नाथ जाल सौ निनोरो।
ईसुरी परभाती पढ़त आबरदा सोऊ बढ़त।
कीचड़ से सनो भओ नीर ना बिलोरो।
जीवन की जगन्नाथ जाल सौ निनोरो।

भूलौ ना भली होत, भजन सी दबाई।
नाच संग धावत में नाम गान गावत में।
परबतै पढ़ावत में गनका ने खाई।
भूलौ ना भली होत भजन सी दबाई।
ऐसें विद गओ अंग, लागो है भजन चंग।
नाम देव सज संग सीतन में पाई।
भूलौ ना भली होत भजन सी दबाई।
सुफल भओ नरतन सौ सफा देह धरतन।
निज चाम काम करतन रैदास ने लगाई।
भूलौ ना भली होत भजन सी दबाई।
सूत बिनन चीर की तारन तगदीर की।
मरजी रघुवीर की कबीर ने मंगाई।
भूलौ ना भली होत भजन सी दबाई।
ई को इतवार करै रुज कौ ना दोष धरै।
गिरधर के हात धरै मीरा ने चाई।
भूलौ ना भली होत भजन सी दबाई।
हूं खां जा आगूं लऔ मान राख मोंरा दओ।
सोनी स्वर्ग सूदो गओ सदन सौ कसाई।
भूलौ ना भली होत भजन सी दबाई।
जीवन जौन इयै खात हर हमेश खुशी रात।
पीपा के साथ अजामील ने चटाई।
भूलौ ना भली होत भजन सी दबाई।
धन जाट कण्ठ धरत सोरी संग साक भरत।
औखद की मील करै बैजुआ बढ़ाई।
भूलौ ना भली होत भजन सी दबाई।
सबने कही साजी पै बिदुर बनक भाजी पै।
भओ राम राजी पै इतनी रुचि आई।
भूलौ ना भली होत भजन सी दबाई।
धरै गए वामा के मित्र आए रामा के।
तन्दुल सुदामा के खात न अघाई।
भूलौ ना भली होत भजन सी दबाई।
बिना नाम सेवा सुख पावै न देवा।
दुर्योधन की मेवा की खाई ना मिठाई।
भूलौ ना भली होत भजन सी दबाई।
तुलसी ने सत्य कही मलुक टूक टोर दई।
खीचरी बनाय गई करमा करबाई।
भूलौ ना भली होत भजन सी दबाई।
बोलन ना हते मौन जौन काम करौ तौन।
पंछी जौन जतन जान गऔ है जटाई।
भूलौ ना भली होत भजन सी दबाई।
कातन ना बने राम दीनों है आप धाम।
उलट-पलट नाम बाल्मीक की पढ़ाई।
भूलौ ना भली होत भजन सी दबाई।
हरि को भज हरि की कात पूछो ना जात पात।
एक बहन एक गात राखे रघुराई।
भूलौ ना भली होत भजन सी दबाई।
एक जैसे आठ दस कर गए बैकुण्ठ वास।
हिरदै की खुलो खास सुर ने सराई।
भूलो ना भली होत भजन सी दबाई।
जीव जबै बोलै तब हृदै नैन खोलैं।
लै ईसुर परभाती जा भौर समैं गाई।
भूलो ना भली होत भजन सी दबाई।

मिथ्या नहीं कविन की बानी, जीभ पै रात भुमानी।
छत पै छाई छतरपुर मैया, धरम बेल हरयानी।
दौरे आय दच्छिना पावत, विमुख जात न प्रानी।
ईसुर हुए काम करबे खां, ई गादी की रानी।

यारो इतनो जस कर लीजौ, चिता अन्त न कीजौ।
चल तन श्रम से बहे पसीना, भसम पै अन्तस भीजौ।
निगतन खुर्द चेटका लातन, उन लातन मन रीझौ।
वे सुस्ती ना होय रात-दिन, जिनके ऊपर सीजौ।
गंगा जू लौ मरें ईसुरी, दाग बगौरे दीजौ।

दोई कर परमेसुर से जौरैं, करौ कृपा की कौरें।
हम ना हुए दिखैया देखें, हितन-हितन की डौरें।
उदना जान परै अन्तस की, जब वे अंसुआ ढौरें।
बंदा की ठठरी करे रवानी, रजउ कोद की खौरें।
बना चैतरा देंय चतुर्भुज, इतनी खातिर मोरें।
होवै कउं पै मरे ईसुरी, किलेदार के दौरें।

लैलो सीताराम हमारी, चलती बेरा प्यारीं।
ऐसी निगा राखियो हम पै, नजर न होय दुआरी।
मिलकें कोऊ बिछुरत नैयां, जितने हैं जिउधारी।
ईसुर हंस उड़त की बेरां, झुकआई अंधियारी।

मोरी राम राम सब खैंया, चाना करी गुसैयां।
दै दो दान बुलाकें बामन, करौ संकलप गैयां ।
हाथ दोक जागा लिपवा दो, गौ के गोबर मैयां।
हारै खेत जाव ना ईसुर, अब हम ठैरत नैयां।

पण्डा धीरे इतै लौ आहें, हमें मरो सुन पाहैं।
समझा दैयो सोच करैं ना, हो तब पै बस काहैं।
जितने मिलें चिनारी मोरे, राम-राम सब खांहैं ।
सबर करैं उदना जे ईसुर, जिदना फागें गाहैं।

मोरी सब खां राधावर, की भई तैयारी घर की।
रातै आज भीड़ भई भारी, घर के नारी नर की।
बिछरत संग लगत है ऐसा छूटत नारी कर की।
मिहरबांनगी मोरे ऊपर, सूधी रहै नजर की।
बंदी भेंट फिर हूहैं ईसुर, आगे इच्छा हर की।

बखरी रैयत हैं भारे की, र्दइं पिया प्यारे की।
कच्ची भीत उठी माटी की, छबी फूस चारे की।
बे बन्देज बड़ी बेबाड़ा जेई, में दस द्वारे की।
बिना किबार-किबरियां वालीं,बिना कुची तारे की।
ईसुर चाय जौन दिन लैलो, हमें कौन वारे की।
रहना होनहार के डरते, पल में परलै परते।
पल में राजा रंक होत है, पल में बने बिगरते।
पल में धरती बूंद न आवै, पल में सागर भरते।
पल-पल की को जानै ईसुर, पल में प्रान निकरते।
ईसुरी जीवन की निरर्थकता पर प्रकाश डालते हुए कहते हैं…।

ऐंगर बैठ लेव कछु काने, काम जनम भर राने।
बिना काम को कोऊ नइयां, कामें सब खां जाने।
जौन काम खां करने नैंयां, कईयक होत बहाने।
जौ जंजाल जगत कौ ईसुर,करत-करत मर जाने।

अब दिन गौने के लग आये, हमने कईती काए।
सुसते नई काम के मारें, ऐंगर बैठ न पाए।
आसों साल वियाब भये ते, परकी साल चलाए।
तेवरस साल विदा की बातें, नाऊ संदेशा लाए।
सब सेवा विरथा गई ईसुर, आशा जीव जिवाए।

बाहर रेजा पैर कड़े गए, नैचैं मूंड़ करैं गए।
जीसे नाम धरै ना कोऊ, ऐसी चाल चलैं गए।
हवा चलें उड़ जाय कंदेला, घूंघट हाथ धरैं गए।
ईसुर इन गलियन में बिन्नू, धीरें पांव धरैं गए।

मानुस कबै-कबै फिर होने, रजऊ बोल लो नौनें।
चलती बैरां प्रान छोड़ दए, की के संगे कौनें।
जियत-जियत को सबकोउ, सबको मरे घरी भर रौनें ।
होजें और जनम खां बातें, पाव न ऐसी जोनें।
हंड़िया हात परत न ईसुर, आवै सीत टटौनें।

तन को कौन भरोसो करने, आखिर इक दिन मरने।
जो संसार ओस का बूंदा, पवन लगें सें ढरने।
जो लौ जीकी जियन जोरिया, जीखां जै दिन भरने।
ईसुर ई संसारे आकें, बुरे काम खां डरने।

अब न होबी यार किसी के,जनम-जनम खां सीके।
यार करे की बड़ी बिबूचन, बिना यार के नीके ।
नेकी करतन समझें रइओ, जे फल पाये बदी के
ये ई मान से भले ईसुरी, पथरा राम नदी के।

सबसे बोलें मीठी बानी, थोड़ी है ज़िदगानी।
येई बानी हाथी चढ़बावै, येई उतारै पानी।
येई बानी सुरलोक पठावै, येई नरक निशानी।
येई बानी सें तरैं ईसुरी, बडे़-बडे़ मुनि ज्ञानी।

जग में जौलो राम जिवावै, जे बातें बरकावै।
हाथ-पांव दृग-दांत बतीसऊ, सदा ओई तन रावै।
रिन ग्रेही ना बने काऊ को, ना घर बनों मिटावें।
इतनी बातें रहें ईसुरी, कुलै दाग ना आवे ।

भज मन राम सिया भगवानें, संग कछु नहिं जाने।
धन सम्पत्त सब माल खजानों, रेजै ए ई ठिकाने।
भाई बन्धु अरु कुटुम्ब कबीला, जे स्वारथ सब जाने।
कैंड़ा कैसो छोर ईसुरी, हंसा हुए रवाने।

राखे मन पंक्षी ना राने, एक दिन सब खां जाने।
खालो-पीलो लै लो-दै लो, एही लगे ठिकाने।
करलो धरम कछु बा दिन खां, जादिन होत रमाने।
ईसुर कई मान लो मोरी, लगी हाट उठ जाने।

आओ को अमरौती खाकें, ई दुनियां में आकें।
नंगे गैल पकर गए धर गए, का करतूत कमाकें।
जर गए बर गए धुन्धक लकरिया, धर गए लोग जराके।
बार-बार नई जनमत ईसुर, कूंख आपनी मांके।

अपने मन मानिक के लाने, सुघर जौहरी चाने।
नर तन रतन खान से उपजे, चढ़ो प्रेम खरसाने।
बेंचो आई दुकाने चायै, जो कीमत पहचाने।
ईसुर कैउ जगां धर हारे, कोउ धरत न गानै।

एक दिन होत सबई कौ गौनों, होनों और अन्होंने ।
जाने परत सासरे सांसउ, बुरौ लगे चाय नौनों।
जा ना बात काउ के बस की, हँसी लगे चाय रोनों।
राखौ चायें जौ नौ ईसुर, दयें इनई भर सोनो।

नइयां ठीक जिन्दगानी को, बनो पिण्ड पानी को।
चोला और दूसरो नइयां, मानुस की सानी को।
जोगी जती तपी सन्यासी, का राजा रानी को।
जब चायें लै लेव ईसुरी, का बस है प्रानी को।

जो कोउ जोग जुगत कर जानें, चढ़-चढ़ जात विमाने।
ब्रह्मा ने बैकुण्ठ रचो है, उन्हीं नरन के लाने।
होन लगत फूलन की बरसा, जिदना होत रमाने।
ईसुर कहत सबई के देखत, ब्रह्म में जात समाने।

करलो ऐंगर हो दो बातें, यार पुराने नातें ।
मोरी कभउं खबर तो लेते, दुख और पीर पिराते।
जो तुम तारि देउ तो टउका, जात न कईये जाते।
ईसुर एक दिन तुम चलि जैहो,देकर पथरा छाते।

करके नेह टोर जिन दईयो, दिन-दिन और बढ़इयो।
जैसे मिले दूध में पानी, उसई मनै मिलइयो।
हमरो और तुम्हारो जो जिउ एकई जाने रइयो।
कात ईसुरी बांह गहे की, खबर बिसर जिन जइयो

करके प्रीत मरे बहुतेरे, असल न पीछू हेरे।
फुदकत रहे परेवा बनकें, बिरह की झार झरेरे।
ऐसे नर थोरे या जग में, डारन नाईं फरेरे।
नीति तकन ईसुर की ताकन, नेही खूब तरेरे ।

तोरो मन पापी तन नौनों, एक भांत में दोनों।
मन से रात अन्देश सबई कोउ, तन को मचो दिखोनों
मत माटी की मोल कदर कर,तन की कीमत सोनों।
ईसुर एक नोन बिन सबरे, लगत व्यंजन रौनों।

दीपक दया धरन को जारौ, सदा रात उजियारौ।
धरम करे बिन करम खुलै ना, जों कुंजी बिन तारौ।
समझा चुके करें न रैयो, दिया तरे अंधियारौ ।
कात ईसुरी सुनलो प्यारी, लग जै पार निवारौ।

जीकौ सेर हवेरे खइए, बदी काउ की कइए।
नौ दस मास गरभ में राखो, तिनके पुत्र कहइए।
सब जग रूठो-रूठो रनदो, राम न रूठो रइए।
ईसुर वे हैं चार भुजा के,का दो भुजा निरइए।

सिर धरो विपत को बोजा, तै परसूदी होजा।
करने नहीं सूम की संगत, दाता कौ घर खोजा।
हिन्दू के तो विरत होत हैं, मुसलमान के रोजा।
घायल परे हजारों तुम पै,जब तुम पैरे मोजा।
ईसुर सात पांच की लाठी, एक जनै का बोझा।

   मौरो मन बिगरौ भओ कांसे, हाल तुमारे नांसे।
रइओ गरई हरई न हुइओ, जुरै ना लोग तमासे।
जानें नहीं जगत में कोऊ, उरै नहीं उर फांसे।
का सबूत झूठ के ऊपर, चलती नैया सांसे।
ईसुर ऐसउ रान देव अब, कांसे को स्वर कांसे।

को नई जानत बुरओ चितैवो,रूखे मन मुस्कैवो।
को बनतीली बात बनाये,अंधरै नैन निरैवो।
मात-पिता की कौन भलाई, सोवत चूमा लैवो।
पर घर गए सो साजौ नइयां, बिन आदर कौ जैवो।
मान-पान ईसुर इज्जत गई, तौ अच्छो मर जैवो।

ले लो सीराम हमारी, चलती बेरा प्यारी।
ऐसी निगा राखियौ हम पै, होय न नज़र दुआरी।
मिलके काउ बिछुरत नईयां, जितने हैं जिउधारी।
ईसुर हंस उड़न की बेरा, झुक आई अंधियारी।

नैया कोउ कौ कोउ सहाई, सब दुनिया मंजियाई।
गीता अर्थ कृष्ण कर लाने पिता सो जाने माई।
जा दई देह आपदा अपने, की खों पीर पराई।
विपत समय में एक राम बिन, कोउ न होत सहाई
अपने मर गए बिना ईसुरी, सुरग न देत दिखाई।

अब दिन गौने के लग आये, हमने कईती काए।
सुसते नई काम के मारें, ऐंगर बैठ न पाए।
आसों साल वियाब भये ते, परकी साल चलाए।
तेवरस साल विदा की बातें, नाऊ संदेशा लाए।
सब सेवा विरथा गई ईसुर, आशा जीव जिवाए।

        बाहर रेजा पैर कड़े गए, नैचैं मूंड़ करैं गए।
जीसे नाम धरै ना कोऊ, ऐसी चाल चलैं गए।
हवा चलें उड़ जाय कंदेला, घूंघट हाथ धरैं गए।
ईसुर इन गलियन में बिन्नू, धीरें पांव धरैं गए।

मानुस कबै-कबै फिर होने, रजऊ बोल लो नौनें।
चलती बैरां प्रान छोड़ दए, की के संगे कौनें।
जियत-जियत को सबकोउ, सबको मरे घरी भर रौनें ।
होजें और जनम खां बातें, पाव न ऐसी जोनें।
हंड़िया हात परत न ईसुर, आवै सीत टटौनें।

तन को कौन भरोसो करने, आखिर इक दिन मरने।
जो संसार ओस का बूंदा, पवन लगें सें ढरने।
जो लौ जीकी जियन जोरिया, जीखां जै दिन भरने।
ईसुर ई संसारे आकें, बुरे काम खां डरने।

अब न होबी यार किसी के,जनम-जनम खां सीके।
यार करे की बड़ी बिबूचन, बिना यार के नीके ।
नेकी करतन समझें रइओ, जे फल पाये बदी के
ये ई मान से भले ईसुरी, पथरा राम नदी के।

सबसे बोलें मीठी बानी, थोड़ी है ज़िदगानी।
येई बानी हाथी चढ़बावै, येई उतारै पानी।
येई बानी सुरलोक पठावै, येई नरक निशानी।
येई बानी सें तरैं ईसुरी, बडे़-बडे़ मुनि ज्ञानी।

जग में जौलो राम जिवावै, जे बातें बरकावै।
हाथ-पांव दृग-दांत बतीसऊ, सदा ओई तन रावै।
रिन ग्रेही ना बने काऊ को, ना घर बनों मिटावें।
इतनी बातें रहें ईसुरी, कुलै दाग ना आवे ।

भज मन राम सिया भगवानें, संग कछु नहिं जाने।
धन सम्पत्त सब माल खजानों, रेजै ए ई ठिकाने।
भाई बन्धु अरु कुटुम्ब कबीला, जे स्वारथ सब जाने।
 कैंड़ा कैसो छोर ईसुरी, हंसा हुए रवाने।।
राखे मन पंक्षी ना राने, एक दिन सब खां जाने।
खालो-पीलो लै लो-दै लो, एही लगे ठिकाने।
करलो धरम कछु बा दिन खां, जादिन होत रमाने।
ईसुर कई मान लो मोरी, लगी हाट उठ जाने।

आओ को अमरौती खाकें, ई दुनियां में आकें।
नंगे गैल पकर गए धर गए, का करतूत कमाकें।
जर गए बर गए धुन्धक लकरिया, धर गए लोग जराके।
बार-बार नई जनमत ईसुर, कूंख आपनी मांके।
अपने मन मानिक के लाने, सुघर जौहरी चाने।
 नर तन रतन खान से उपजे, चढ़ो प्रेम खरसाने।
 बेंचो आई दुकाने चायै, जो कीमत पहचाने।
 ईसुर कैउ जगां धर हारे, कोउ धरत न गानै।

 एक दिन होत सबई कौ गौनों, होनों और अनहोनो।
 जाने परत सासरे सांसउ, बुरौ लगे चाय नौनों।
 जा ना बात काउ के बस की, हँसी लगे चाय रोनों।
 राखौ चायें जौ नौ ईसुर, दयें इनई भर सोनो।

 जीवन की नश्वरता के संबंध में ईसुरी ने कहा है –
 नइयां ठीक जिन्दगानी को, बनो पिण्ड पानी को।
 चोला और दूसरो नइयां, मानुस की सानी को।
जोगी जती तपी सन्यासी, का राजा रानी को।
 जब चायें लै लेव ईसुरी, का बस है प्रानी को।

जो कोउ जोग जुगत कर जानें, चढ़-चढ़ जात विमाने।
ब्रह्मा ने बैकुण्ठ रचो है, उन्हीं नरन के लाने।
होन लगत फूलन की बरसा, जिदना होत रमाने।
ईसुर कहत सबई के देखत, ब्रह्म में जात समाने।

करलो ऐंगर हो दो बातें, यार पुराने नातें ।
मोरी कभउं खबर तो लेते, दुख और पीर पिराते।
जो तुम तारि देउ तो टउका, जात न कईये जाते।
ईसुर एक दिन तुम चलि जैहो,देकर पथरा छाते।

करके नेह टोर जिन दईयो, दिन-दिन और बढ़इयो।
जैसे मिले दूध में पानी, उसई मनै मिलइयो।
हमरो और तुम्हारो जो जिउ एकई जाने रइयो।
कात ईसुरी बांह गहे की, खबर बिसर जिन जइयो

करके प्रीत मरे बहुतेरे, असल न पीछू हेरे।
 फुदकत रहे परेवा बनकें, बिरह की झार झरेरे।
 ऐसे नर थोरे या जग में, डारन नाईं फरेरे।
 नीति तकन ईसुर की ताकन, नेही खूब तरेरे ।

मन से रात अन्देश सबई कोउ, तन को मचो दिखोनों
मत माटी की मोल कदर कर,तन की कीमत सोनों।
ईसुर एक नोन बिन सबरे, लगत व्यंजन रौनों।

 दीपक दया धरन को जारौ, सदा रात उजियारौ।
 धरम करे बिन करम खुलै ना, जों कुंजी बिन तारौ।
 समझा चुके करें न रैयो, दिया तरे अंधियारौ ।
 कात ईसुरी सुनलो प्यारी, लग जै पार निवारौ।

जीकौ सेर हवेरे खइए, बदी काउ की कइए।
नौ दस मास गरभ में राखो, तिनके पुत्र कहइए।
सब जग रूठो-रूठो रनदो, राम न रूठो रइए।
ईसुर वे हैं चार भुजा के,का दो भुजा निरइए।

सिर धरो विपत को बोजा, तै परसूदी होजा।
करने नहीं सूम की संगत, दाता कौ घर खोजा।
हिन्दू के तो विरत होत हैं, मुसलमान के रोजा।
घायल परे हजारों तुम पै,जब तुम पैरे मोजा।
ईसुर सात पांच की लाठी, एक जनै का बोझा।

मौरो मन बिगरौ भओ कांसे, हाल तुमारे नांसे।
रइओ गरई हरई न हुइओ, जुरै ना लोग तमासे।
जानें नहीं जगत में कोऊ, उरै नहीं उर फांसे।
का सबूत झूठ के ऊपर, चलती नैया सांसे।
ईसुर ऐसउ रान देव अब, कांसे को स्वर कांसे।

 को नई जानत बुरओ चितैवो,रूखे मन मुस्कैवो।
को बनतीली बात बनाये,अंधरै नैन निरैवो।
 मात-पिता की कौन भलाई, सोवत चूमा लैवो।
पर घर गए सो साजौ नइयां, बिन आदर कौ जैवो।
मान-पान ईसुर इज्जत गई, तौ अच्छो मर जैवो।

ले लो सीराम हमारी, चलती बेरा प्यारी।
ऐसी निगा राखियौ हम पै, होय न नज़र दुआरी।
मिलके काउ बिछुरत नईयां, जितने हैं जिउधारी।
ईसुर हंस उड़न की बेरा, झुक आई अंधियारी।

नैया कोउ कौ कोउ सहाई, सब दुनिया मंजियाई।
गीता अर्थ कृष्ण कर लाने पिता सो जाने माई।
जा दई देह आपदा अपने, की खों पीर पराई।
विपत समय में एक राम बिन, कोउ न होत सहाई।
अपने मर गए बिना ईसुरी, सुरग न देत दिखाई।

सैयां ऐंगर तनक ना आवैं, बाहर भग-भग जावैं।
हम अपनी सूनी सिजिया पै, जोबन मीड़त रावें।
पारे कौन यार कौं संग में, की खों गरे लगावैं।
भर गओ मदन बदन के ऊपर,किसविधि तपन बुझावैं।
ईसुर इन बारे बालम की, कालों दसा बतावें।

हम धन कबै मायके जायें, जे बालम मर जाएं।
खेलत रात रोज लरकन में, परे रात मौ बायें।
दिन बूडे़ से करत बिछौना, फिर ना जगत जगाएं।
देखी कांछ खोलकर मैंने, पौनी सी चिपुकाएं।
ईसुर कात भली थी क्वांरी, का भओ ब्याव कराएं।

सुख ना कछू सासरे गए कौ, सैंयां नैयां कये कौ।
रस ना लयो रसीले प्यारे,तन सुन्दर जी नये कौ।
स्वाद कछू है नइयां गुइयां, नर देही के लए कौ।
अब पछतावो होत ईसुरी, का करिए जर गए कौ।

जौ जी ऐसे खां दओ जैहै, जी घर सुख में रैहै।
बीस बिसे बिसराए नाईं, खबर बखत पै लैहै।
सुने बात मोरे जियरा की, अपने जी की कैहै।
इतनउ भौत होत है ईसुर, मरे जिऐ पछतैहै।

सैंया बिसा सौत के लाने-अंगिया ल्याए उमाने।
ऐसे और बनक के रेजा, अब ई हाट बिकाने।
उनने करी दूसरी दुलहिन, जौ जी कैसे माने।
उठै पैर दौरे हो कड़ने, प्रान हमारे खाने।
मयके से ना निगते ईसुर, जो हम ऐसी जाने।
ओई घर जाओ मुरलिया वाले, जहां रात रए प्यारे।
अब आबे को काम तुमारो, का है भवन हमारे?
हेरे बाट मुनइयां हुइए, करैं नैन कजरारे।
खासी सेज लगा महलन में, दियला धर उजियारे।
भोर भए आ गए ईसुरी, जरे पै फोरा पारे।

जुबना छुऔ न मोरे कसकें, भरे नहीं रंग रसकें।
छाती के छाती से लगतन, और बैठ जैं गसकें।
छूतन रोम-रोम भए ठांडे़, प्राण छूट जै मसके।
कछुक दिनन की मानों ईसुर, फिर मस्कवाले कसके।

रातै परदेशी संग सोई, छोड़ गओ निरमोई।
अँसुआ ढरक परे गालन पै, जुबन भींज गए दोई।
गोरे तन की चोली भींजी, दो-दो बार निचोई।
ईसुर परी सेज के ऊपर, हिलक-हिलक कैं रोई।

बेला आदी रात को फूला, घर नई है दिल दूला।
अपनी छोड़ और की कलियन, भलौ भंवर ला भूला।
जो गजरा की खां पैराऊं, उठत करेजे सूला।
छूटन लागी पुहुप परागें, दृगन कन्हैया झूला।
ईसुर सुनत डगर घर आवें, नगर देत रमतूला ।

कऔ जू किए लगै ना प्यारे, सखि अपने घरवारे।
ज्वान होंय चाय बूडे़ बैसे, चाय होंय गबवारे।
बडे़ सपूत खेत के जीते, चाय होंय रन हारे।
ईसुर करे गरे कौ कठला, हम खां बालम प्यारे।

भौंरा जात पराये बागैं तनक लाज ना लागै।
घर की कली कौन कम फूली, काये न लेत परागै।
कैसे जात लगाउत हुइयै, और आंग से आंगै।
जूठी-जाठी पातर ईसुर, भावै कूकर कागै।

अपने बालम के संग सोवे, भाग्यवान जो होवे।
लेत जात गालन को चूमा, जुबना जरब टटोवे।
लगी रात छतियों से छतियां, पाव से पांव विदोवो।
पकरे हाथ उंगरियां ठांड़ी, परे मजे मा घोवे ।
परे खुलासा घर में ईसुर, दिये नगारे चोवे।

की से कहे पीति की रीति, कये सें होत अनीति।
मरम ना जाने ई बातन को, को मानत परतीती।
सही ना जात मिलन को हारी, बिछुरन जात न जीती।
साजी बुरी लई सिर ऊपर, भई जो भाग बदी ती।
पर बीती नहिं कहत ईसुरी, कात जो हम पै बीती।

जुबना जिय पर हरन जमुरिया, भये ज्वानी की बिरिया।
अब इनके भीतर से लागी, झिरन दूध की झिरिया।
फौरन चले पताल तरैया, फोरन लगे पसुरिया।
छैल छबीलो छुअन ना देती, वे छाती की तिरिया।
जै कोरे मिड़वा कें ईसुर, तनक गम्म खा हिरिया।

जो घर सौत-सौत के मारें, सौंज बने ना न्यारें।
गारी गुप्ता भीतर करतीं, लगो तमासौ द्वारें।
अपनी-अपनी कोद खां झीकें, खसम कौ फारें डारें।
सके न देख दोउ लड़ती हैं, किये संग लै पारें।
एक म्यान में कैसे पटतीं, ईसुर दो तलवारें।

जिदना तुम से कीनी यारी, गई मत भूल हमारी।
भये बरबाद अफाज कहाए, स्यान बिगार अनारी।
मो गओ लौट जान के खाई, खांड़ के धोखे खारी।
पीछू-पीछू हाथ बजाकें, हँसी करत संसारी।
अपने हातन अपने ईसुर, पांव कुलरिया मारी।

रजऊ हँसती नजर परे सें, नेहा बिना करे सें।
हम तौ मन खौं मारें बैठे, बरके रात अरे सें।
सांसऊं जिदना जिद आ जैहै, बचै न एक धरे सें।
ईसुर मिलौ प्रान मिल जैहैं, कै बन आय मरे सें।

कईयक हो गए छैल दिवाने, रजऊ तुमारे लाने।
भोर-भोर नौं डरे खोर में, घर के जान सियाने।
दोउ जोर कुआं पै ठांड़े, जब तुम जाती पाने।
गुनकर करके गुनिया हारे, का बैरिन से कानें।
ईसुर कात खोल दो प्यारी,मंत्र तुमारे लाने।

जुबना दए राम ने तोरें, सब कोउ आवत दोरें।
आए नहीं खाण्ड के घुल्ला, पिए लेत ना घोरें।
का भओ जात हाथ के फेरें, लए लेत न टोरें।
पंछी पिए घटीं नहिं जातीं, ईसुर समुद हिलौरें।

राती बातन में बरकाएं, दबती नइयां छाएं।
आउन कातीं आईं नइयां, कातीं थी हम आएं।
किरिया करीं सामने परकें, कौल हजारन खायं।
इतनी नन्नी रजऊ ईसुरी, बूढ़न कौं भरमाएं।

दिन भर दैबू करे दिखाई, जामें मन भरजाई।
लागी रहो पौर की चैखट, समझें रहो अवाई।
इन नैनन भर तुम्हें ना देखे, हमें न आवे राई।
प्रीति की रीति सहज ना ईसुर, आखन नहीं निवाई ।
दिल की राम हमारी जाने, मित्र झूठ ना माने।
हम तुम लाल बतात जात ते, आज रात बर्राने।
सा परतीत आज भई बातें, सपनन काए दिखाने।
ना हो-हो तो देख लेत हैं, फूले नई समाने।
भौत दिनन से मोरो ईसुर, तुमें लगो दिल चानें।

तुम खां छोड़न नाहि बिचारें, मरवो लौ अख्त्यारें।
जब न हती कछू कर धर कीं, रए गरे में डारें।
अब को छोडे़ देत प्रान से, प्यारी भई हमारें।
लगियो ना भरमाय काउ के, रइओ सुरत समारें।
ईसुर चाय तूमारे पाछूं, घलें सीस तरवारें।

 

बुन्देली झलक (बुन्देलखण्ड की लोक कला, संस्कृति और साहित्य)

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