Isuri Ki Chaukadiya Fag ईसुरी की चौकड़ियां फाग

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Bundelkhand की बुन्देली भाषा के विख्यात महाकवि ईसुरी ने फाग विधा  मे चौकड़िया फाग की रचना कर बुन्देली साहित्य को एक नई दिशा दी। Isuri Ki Chaukadiya Fag मे जीवन दर्शन, अध्यात्म और लोकसंगत ढंग से लोक की बात कह दी जो जनमानस के मन को छू गई।

जुबना बीते जात लली के, पर गए हात छली के।
मस्कत रात पुरा पाले में,सरकत जात गली के।
कसे रात चोली के भीतर, जैसे फूल कली के।

कात ईसुरी मसकें मोहन, जैसे कोऊ भली के।

जुबना कड़ आए कर गलियां, बेला कैसी कलियां।
न हम देखे जमत जमी पै, ना माली की बनियां।
सोने कैसे तबक चठे हैं, बरछी कैसी भलियां।
ईसुर हात समारे धरियो, फूट ना जावे गदियां।

जुबना छाती फोर दिखाने, मदन बदन उपजाने।
बड़े कठोर फोर छाती खों, निबुआ से गदराने।
शोभा देत बदन गोरे पै, चोली के बंद ताने।
पोंछ-पोंछ के राखे रोजऊ, बारे बलम के लाने।
ईसुर कात देख लो इनको, फिर भए जात पुराने।
तुमसे मिलन कौन विधि होने, परकें एक बिछौने।
बातन-बातन कडे़ जात हैं, जे दिन ऐसे नौने।
प्रानन के घर परी तलफना, नैनन के घर रोने ।
ईसुर कात प्रिया के संग में,कब मिल पाहै सोने।

जुबना कौन यार को दइये, अपने मन में कइये।
हैं बड़ भोल गोद गुरदा से, कांलौ देखे रइये ।
जब सारात सेज के ऊपर, पकर मुठी रै जइये।
हात धरत दुख होत ईसुरी, कालौ पीरा सइये।

लै गओ मजा मिजाजी तनको, छैला बालापन को।
खोलूं खूट दुखूट खोलतन, लूटो सुक्ख मदन को।
घूंघट खोल कपोलन ऊपर, दै गओ दार दसन को।
ईसुर इन बालम के लाने, खाली कोठा धन को।

जुबना धरे ना बांदे राने,ज्वानी में गर्राने।
मस्ती आई इन दोउन पै,टोनन पै साराने।
फैंकें -फैंकें फिरत ओढ़नी, अंगिया नहीं समाने।
मुन्सेलू पा जाने जिदना, पकरत हा-हा खाने।
जांगन में दब जाने ईसुर, राम घरै लौ जानै।

अब न लगत जुबन जे नोने,रजऊ हो आई गौने।
मयके में नीके लागत ते,सुन्दर सुगर सलौने।
बेधरमा ने ऐसे मसके,दए मिटाय निरौने।
चलन लगीं नैचें खां कसियां,हलन लगीं दोई टोने।
सबरे करम करा लए ईसुर, हर के ऐ बिछौने।

जुबना अबै न देती मांगें, पछतेहौ तुम आगें।
कर-कर करुना उदना सोचो, जबै ढरकने लागें।
कछु दिनन में जेई जुबनवां, तुमरौ तन लौ त्यागें।
नाई ना करहौ और जनन खां, सुन-सुन धीरज भागें।
भरन भरी सो इनको ईसुर, उतरी जाती पागें।

जुबना जिय पर हरन जमुरियां, भए ज्वानी की बिरियां।
अब इनके भीतर से लागीं, झिरन दूध की झिरियां।
फौरन चले पताल तरैया, फोरन लगे पसुरियां।
छैल छबीली छुअन ना देती, वे छाती की तिरियां।
जे कोरे मिड़वा कें ईसुर, तनक गम्म खा हिरियां।

छाती लगत जुबनवा नौने, जिनकी कारी टोने।
फारन लगे अबै से फरिया, आंगू कैसो होने।
सीख लली अन्याव अवैसें, कान लगी चल गौने।
करन लगे चिवलौरी चाबै, भर-भर कठिन निरौने।
बचे ईसुरी कांलौ रैइयत, कईइक खौं जो खोने।
जानी हमने तुमने सबने,रजऊ के जुबना जमने।
सोने कलस कुदेरन कैसे, छाती भौंरा भुमने।
जोर करै जब इनकी ज्वानी, किनकी थामी थमने।
निकरत बजैं चैन की बंसी, कईइक पंछी मरने।
जा दिन द्रगन देखबी ईसुर, दान जो देबो बमने।

छाती नोकदार है तोरी, जी से चित्त लगोरी।
एक दार हेरो चित देकें, कईइक दार कहोरी।
होय अधार तनक ई जी खां, लगी बुरत की डोरी।
ओंठ से ओंठ लगे न ईसुर, अधर राप से जोरी।

बालम नओ बगीचा जारी, दिन-दिन पै तैयारी।
बिरछन बेल लतान फैल गई, झुक आई अंधिआरी।
डौंड़ा लोंग लायची लागी, फरीं जिमुरियां भारी ।
ईसुर उजर जान न दइयो, करा देव रखवारी ।
मोरी कही मान गैला रे, दिन डूबें ना जा रे।
आगूं गांव दूर लौ नइयां, नैया चैकी पारे।
देवर हमरे कछू ना जाने, जेठ जनम के न्यारे।
पानी पियो पलंग लटका दों,धर दूं दिया उजारे।
डर ना मानों कछू बात को, पति परदेश हमारे।
ईसुर कात रैन भर रइयो, उठ जइयो भुन्सारे।

हम पै नाहक रंग न डारौ, घरै न पीतम प्यारो।
फीकी लगत फाग बालम बिन, मनमें तुमई विचारो।
अतर-गुलाल अबीर न छिरको, पिचकारी न मारो।
ईसुर सूझत प्रान पति बिन, मोय जग में अंधियारो।

देखो कबहुं न देखो जिन खां, धन्य आज के दिन खां।
जिनकी देह दमक दर्पन सी, देवता लौचें इनका।
तेरो जस रस भरो कात हों, नाम चले पैरन खां।
ऐसे नौने प्रान ईसुरी, करौ निछावर छिन खां।

ससुरे अब नहिं जान बिचारें, बाई ननद के द्वारें।
बखरी बाहर पांव न धरवी, चाहे चले तरवारें।
जाय जो केदो बारे बालम सें, इतै ना डेरा डारें।
ईसुर विदा होन ना पावै, लगवारन के मारें।

तुमरी विदा न देखी जानें, रो-रो तुमे बतानें।
कोसक इनके संगे जाने, भटकत पांव पिरानें।
पल्ली और गदेली जोरो, नए-नए ठन्ना पानें।
जो कउं होते दूर तलक ते, सुनी न जातीं कानें।
रंधे भात जे कहिए ईसुर, काके पेट समानें।

मानुष विरथा राम बनाओ, दावा सब मंझयाओ।
मैं भई ज्वान ललकरई भर-भर, बिरहा जोर जनाओ।
बारे बलम लिलोर गरे से, जान बूझ लजबाओ।
कामदेव ने जोर जनाओ, मदन पसर के धाओ।
दई रूठे को हुई है ईसुर, मिलो न जैसे चाओ।

जो जी नैये देख डरावै, बेर-बेर इत आवे।
ऐसो लगन लगत बेधरमा, कान बिदा की चावे।
बलम के घर की सबरी बातें, आ-आ इतै सुनावे।
ईसुर ई को मौं ना देखूं, मैड़ो ना मझयावै।

जो हम बिदा होत सुन लैबी, मा डारें मर जैबी।
हम देखत को जात लुबाकें, छुड़ा बीच में लैबी।
अपने ऊके प्रान इकट्ठे, एकई करके रैवी।
ईसुर कात लील को टीका, अपने माथे दैवी।

सिर पै गंगा जली धरी ती, दगा दैन ना कईती।
करने हतो तमासो ऐसो,काहे खां बांह गहीती।
दै परमेसुर दोई बीच में, कैसी ठौर परीती।
ईसुर दओ राम रस पैला, फिर बिषबेल बईती।

काती मजा लूटलो नौने, फिर जैयत है गौने।
आसों साल भाव फागुन में, होने कात गलौने।
ऐसे अडे़ विदा के लाने, आ गए श्याम सलौने।
आहैं बरस रोज में छैला, बीच मिलन नहिं होने।
ईसुर कात पराये डोला, छोड़ लए हैं कौने।

सुनतन हात पांव सब थाके, टिया सुने से ताके।
जोर दओ संयोग विधाता, तुम काकी हम काके।
सावन लौके टिया टार दो, राखो पांव उमा के।
अब थोरे दिन रये ईसुरी, अक्ती भोर विदा के।

पंछी भये ना पंखन वारे, इतनी जंगा हारे।
कड़-कड़ जाते सांसन में हो, अड़ते नहीं किनारे।
सब-सब रातन मजा लूटते, परते नहीं नियारे।
ईसुर उड़ प्रीतम सों मिलते, जां है यार हमारे।।

तुम तो भोर सासुरे जातीं, का कए हमसे जातीं।
तुम खां चैन चैगुनी होने, लगौ बलम की छाती।
जो-जो बात गती ती तुमने, किए गहाए जाती।
ईसुर देत अशीषें तुमकों, बनी रहे ऐबाती।

का सुक भओ सासरे मइयां,हमें गए कौ गुइयां।
परवू करैं दूद पीवे कौं, सास के संगें सइयां।
दिन भर बनी रात संकोरन चढें ससुर की कइयां।
भर-भर देबौ करें दूर से, देखत हमें तरइयां।
कटी बज्र की उम्र ईसुरी, लटी होत लरकइयां।

खो रजऊ खां पटियां पारें, सिर सब यार उगारैं।
मोतिन मांग भरी सेंदुर सें, बेंदा देत बहारें।
ठाड़ी हती टिकी चैखट से सहजऊ अपने द्वारें।
काम कमर में सिर कटबे खां, खोंसे दो तरवारें।
मानों रूप कनक कसबे खां, कनक कसौटी धारें।
सोने के गुम्मट पै ईसुर, पंखा काग पसारें।

पतरे सींकों जैसे डोरा, रजऊ तुमारे पोरा ।
बड़ी मुलाम पकरतन धरतन, लगना जाय मरोरा ।
पैरावत में दैया मैया, दाबन परे ददोरा ।
रतन भरे से भारी हो गए, पैरत कंचन बोरा ।
ईसुर कऊ कां देख ऐसे, नर नारी के जोरा।

अखियाँ जब काऊ सें लगतीं, सब-सब रातन जगतीं।
झपती नई झींम न आवै, का उसनीदें भगतीं।
बिन देखे से दरद दिमानी, पके खता सी दगतीं।
ऐसो हाल होत हैं ईसुर पलकन पलतर दबतीं।

ऐसे अलबेली के नैना, मुख से कात बनें ना ।
सामें परै सोउ छिद जैहै, अगल-बगल बरकें ना।
लागत चोट निसानै ऊपर, पंछी उड़त बचैं ना।
जियरा लेत पराये ईसुर, जे निर्दई कसकें ना।

छूटे नैन बान इन खोरन, तिरछी भौंय मरोरन।
इन गलियन जिन जाओ मुसाफिर,हैं अंखियां रनजोरन।
नोकदार बरछी से पैने, चलत करेजे फोरन।
ईसुर हमने तुमसे कैदई, घायल डरे करोरन।

अंखियां पिस्तौलें सीं भरकें, मारत जात समर कें।
दारू दरस लाज की गोली, गजकर देत नज़र सें।
देत लगाय सैन को सूजन, पलकी टोपी धर कें।
ईसुर फैर होत फुरती में, कोउ कहां लो बरकें।

गोरी तोरे नैन उरजैला, छले छबीले छैला।
गैलारन पै चोट करत हैं, बांदें रात चुगैला।
हँस मुस्कान दाउनी सी दयं, करौ गांव दबकैला।
इनसे जस न हुइये ईसुर, आगें अपजस फैला।

हम खां नैनन की संगीनें, हँसके मारी ईनैं।
पूरे लगे दूर नौ भाले, मैया घाव उछीनैं।
नैयां घाव मलम पट्टी के, दवा रकाय खां पीनैं।
हार हकीम गए हिम्मतकर, सिंयत बनेना सीने।
ईसुर श्याम दरद नई जानें, जो लो जग में जीने।

कड़तन मारी नैंन तलवारें, रजऊ ने अपने द्वारें।
आवौ जान गई पैलां सें, ठाड़ी हतीं उबारें।
दुबरी देह दसा के ऊपर, हिलत चलीं गईं धारें।
उत ईसुर को कोउ हतो न, तक लओ पीठ उगारें।

इनके अजब सिकारी नैना, छैल छड़कते रैना।
भौंय कमान बान चितबन सी, लएं रात दिन सैना।
परत दाब चाव न चूकैं, पंछी उड़त बचैना।
छिपे रात घूंघट के भीतर, वे भौंचक उगरैना।
पर हियरा के लेन ईसुरी, वे निरदई कसके ना।

तेरी आलसयुत हँस हेरन, करत मोल बिन चेरन।
चंचल चपल नेत्र तुव लगकर, घायल हो गए ढेरन।
मम तन चोट घालवे को भये, तोरे नैन अहेरन।
ईसुर ई हेरन चितवन पै, घायल भये करोरन।

हम खां बिसरत नहीं बिसारी, हेरन हंसन तुमारी।
जुबन विशाल चाल मतवारी, पतरी कमर इकारी।
भौंह कमान बान से ताने, नजर तिरीछी मारी।
ईसुर कात हमाई कोदों, तनक हेर लो प्यारी।

तुमने नैन कसाई कीने, पाप पुरातन लीने।
बरनी डोर डार के बांदे, काठे में सिर छीने।
वे बेजान जान से मारे, कटा छटा के बीने।
इनके हात काय काजर दै, गवां वगुरदा दीने।
ईसुर जनम जिए जे जखमी, जखम खाय है दीने।

बांके नैन कजरवा आंजौ, बलम बिना ना साजो।
दुलहिन घरै दिखइया को है, वो परदेश बिराजो।
आई बड़ी बड़न कें ब्र्याइं, अपने कुल कौ लाजौ।
साजौ नईं लगत है ईसुर, बे औसर की बाजो।

लख इन नयनन की अरुनाई, रहे सरोज छिपाई।
मृग शिशु निज अलि भयखां, तजके बसे दूर बन जाई।
चंचल अधिक मीन खंजन से, उन नई उपमा आई।
ईसुर इनको कानों बरनों, नयनन सुन्दरताई।

जो कोऊ नयनन को बरकाबै, जियरा में सुक पावैं।
तिरछे नयन चले घूंघट में, चोट चपेट जमावैं।
भीतर पेटे लगी कतन्नी, ऊपर घाव न आवैं।
ईसुर नर से नारी भारी, ऊसुई पेस न पावैं।

बांकी रजऊ तुमारी आंखें, रओ घूंघट में ढाकें।
हमने अबै दूर सैं देखी, कमल फूल सी पाखें।
जिनखां चोट लगत नयनन की, डरे हजारन कांखें।
जैसी राखें रई ईसुरी, ऊसई रइओ राखैं।

बिगरन बारे नयन नसाने, की के नईयां जाने।
हेरन लगे-लगे न बरके, चलत न लगै निशाने।
भरे उमंग उपत के उरझे, बरबस अनुआ ठाने।
अनियानी नोकन ने यारी, कोऊ धरन की हाने।
ईसुर खान जगत अपजस की, कीरत नईं अमाने।

ऐसे अलबेली के नैना, बिना लगे माने ना।
लेती आन उपत के खूदों, मानुष गैल निमै ना।
बाने बांद हार गए इनसे, सोमें कोऊ बरकै ना।
ईसुर प्रान जात नाहक में, लेना एक न देना।

अखियाँ मित्र बिगर ना मानें, मौत कपट की ठाने।
छेकें खोर मित्र के लाने, दो बातें मोय काने।
लम्बी खोर दूर लौ तकती, मिलहैं कौन ठिकाने।
ईसुर कात दरस दो जल्दी, नईं भए जात दिमाने।

चलतन परत पैजना छमके, पांवन गोरी धन के।
सुनतन रोम-रोम उठ आवत, धीरज रहत न तनके।
छूटे फिरत गैल-खोरन में, ये सुख्तार मदन के।
करवे जोग भोग कुछ नाते, लुट गए बालापन के।
ईसुर कौन कसाइन डारे, जे ककरा कसकन के।

 ये दिन गौने के कब आवें, जब हम ससुरे जावें।
बारे बलम लिवौआ होकें, डोला संग सजावें।
गा-गा गुइयां गांठ जोर के, दोरे लौ पौंचावें।
हाते लगा सास ननदी के, चरनन सीस नवावें।
ईसुर कबै फलाने जू की, दुलहिन टेर कहावें।

बनवा लेव पुंगरिया तड़के, आज पिया से अड़के।
ऐसी सखियां कोउ न पैरें, गांव भरे से कड़के।
हीरा-मोती खूब जड़े हों, भई मोल में बढ़के।
कहें ईसुरी प्यारी लाने, धुरी भुंसरा जड़के।

दूर से नौनी लगत ना मुंईयां, भलो पैर लो गुइयां।
गोल गाल गोरे छवि बारे, कऊं बंग है नइयां।
गाड़ी बैठी मोटी डांड़ी, भई पुंगरिया मइयां।
रजऊ रंगीली निकरी ईसुर, अकती खेलत खंइयां।

लै गई प्रान पराये हरकें, मांग में सेन्दुर भरकें।
एक टिबकिया नैचें दैकें, टिकली तरे उतरकें।
तीके बीच सींक मिल बेंड़ी, कै गई भौंह पकरकें।
ईसुर बूंदा दए रजऊ ने, केसर सुधर समरकें।

सांकर कन्नफूल की होते, इन मोतियन की कोते।
बैठत उठत निगत बेरन में, परे गाल पै सोते।
राते लगे मांग के नैंचें, अंग-अंग सब मोते।
ईसुर इनको देख-देख कें, सबरे जेबर जोते।

सैंया बिसा सौत के लाने, अंगिया ल्याये उमाने।
ऐसे और बनक के रेजा, अब ई हाट बिकाने।
उनने करी दूसरी दुल्हिन, जौ जी कैसे माने।
उए पैर दौरे से कड़ने, प्रान हमारे खाने।
मयके से न निंगत ईसुर,जो हम ऐसी जाने।

ऐसी क्या काऊ की गोरी, जैसी प्यारी मोरी ।
दाड़िम दसन सुआ सम नासा, सब उपमा है फोरी।
छू न कड़ी तनक चालाकी, चाल चलन की भोरी।
ईसुर चाउत इन खां ऐसे, जैसे चन्द्र चकोरी।

इनकी बोलन भौतउ साजी, सुने होत मन राजी ।
कड़ते बोल कोकिला कैसे, दवा कौन खां माजी।
रोजउं-रोजउं हँसती रातीं, बोले से कओ आंजी।
ईसुर कभऊं काउ पै ना भई, मौं से ये इतराजी।

ऐसी हँस-हेरन मुनियां की, मौत भई दुनियां की।
बरबस जात मुठन ना पकरी, ना कांधे पनियां की।
डारे जात गरे में फांसी, गगर भरे पनियां की।
ईसुर पाप गठरिया बांधे, सिरजादी बनिया की।

पैरें छूटा कौन तरा के, भौजी संग हरा के।
अस कुसमाने कार विजाने, खुब रए गेर गराके।
डरवाये रेशम के गुरिया, बीच-बीच रह ताके।
ईसुर गरे गरो लेवे खां, गुलूबंद गजरा के।

गोदे गुदनारी ने गुदना, मिली हमारे जिदना।
जबरई बांह पकरकें मोरी, कर दए छिदना-छिदना।
अंसुआ गिरे आग के ऊपर, भीज गए दोउ जुबना।
देखी की दिखनौस बरै वा, घरी आई थी उदना।
गिरी तमारो खाय ईसुरी, रईतन मान की सुदना।

गोदौ गुदनन की गुदनारी,सबरी देय हमारी।
गालन पै गोविन्द गोदवे, कर में कुंज बिहारी।
बइयन भात भरी बरमाला, गरे में गिरवर धारी।
आनन्द कन्द गोद अंगिया में,मांग में भरौ मुरारीं।
करया गोद कन्दइया ईसुर, औठन मदन मुरारी।

देखी पनहारिन की भीरें, कुआं वेर के नीरें।
ऐसी चली आउती जातीं, गैल मिलै न चीरें।
दो-दो जनी एक जोरा सें, घड़ा एंचती धीरें
ईसुर ऐसी-देखी हमनें, दई की खाईं अहीरें।

तुमने नेह का जादू कीन्हा, हिया परायी लींना।
परगओ मंत्र मोहनी मोपै, बातन में पड़ दीना।
गिरदी खात रात दिन औरत,अब कल परत कहीं ना।
ईसुर आप भई मुंदरी हैं, मोखां करी नगीना।

पैरे फिरें लाख परदनियां, परधीली सी धनियां।
जगमगात पोत को गजरा, झिलमिलात दरपनियां।
लगा जोत जरवीली लागी, माथे पै मोहनियां।
ईसुर खात चली गई झोंका, ठनकारें पैजनियां।

जिदना लौट हेरती नइयां, बुरऔ लगत है गुइयां।
सूक जात मौं बात कड़त ना, मन हो जात मरैयां।
दुविदा होत तौन के डारो, तुम ही जान करइयां।
ईसुर पानी भरन चली गई कछवारे की कुइयां।

तिल की तिलन परन में हलकी, बांय गाल पै झलकी।
कै मकरन्द फूल पंकज पैं, उड़ बैठन भई अलकी।
कै चूं गई चन्द के ऊपर, बिन्दी जमुना जलकी।
ऐसी लगी ईसुरी दिल में, कर गई काट कतल की।

दुल्हिन जो नई बेंदी दैहें, छैलन मन लग जै हैं।
अमल अनन्द अनोखे मौंकों, नाका नाक बने हैं।
जाके लगे एक दिन धोकौ, सब खुल कान गमें हैं।
ईसुर भाल लाल रंग देखें, हाल बचन नई पैं है।

जुबना नोकदार प्यारी के, बने बैसबारी के।
इनने रेजा इतने फारे, गोटा और जारी के।
चपेरात चोली के भीतर, नीचे रंग सारी के।
ईसुर कात बचन ना पावें, मसक लेव दारी के।

जुबना दए राम ने तोरें, सबकोई आवत दोरें।
आएं नहीं खांड़ के घुल्ला, पिएं लेत ना घोरें।
का भओ जात हात के फेरें, लएं लेत न टोरें।
पंछी पिए घटी न जातीं, ईसुर समुद्र हिलोरें।

राती बातन में भरमाएं, दबती नइयाँ छाएं।
आउन कातीं आईं नइयां कातीं थीं हम आएं।
किरिया करीं सामने परकें, कौल हजारन खाएं।
इतनी नन्नी रजऊ ईसुरी, बूढ़न कों भरमाएं।

दिन भर देबू करे दिखाई, जामें मन भर जाई।
लागी रहो पौर की चैखट, समझें रहे अबाई।
इन नैनन भर तुम्हें न देखें, हमें न आवे राई।
ईसुर तुम बिन ये जिन्दगानी,अब तो जिई न जाई।

हंसा फिरें विपत के मारे, अपने देश बिनारे।
अबका बैठे ताल तलैंया, छोडे़ समुद किनारे।
चुन चुन मोती उगले उनने, ककरा चुगत विचारे।
ईसुर कात कुटुम्ब अपने सें, मिलबी कौन दिनारे।

बस्ती बसत लोग बहुतेरे, कौन काम के मेरे।
बैठे रात हजारन कोदी, कबहुं न जे दृग हेरे।
गैल चलत गैलारे चरचे, सब दिन सांझ सबेरे।
हाथ दई उन दो आँखन बिन,सब जग लगत अंधेरे।
ईसुर फिर तक लेते उनखां, वे दिन विधना फेरे।

हम पै बैरिन बरसा आई, हमें बचा लेव भाई।
चढ़कें अटा घटा न देखें, पटा देव अगनाई।
बरादरी दौरियन में हो, पवन न जावे पाई।
जै दु्रम कटा छटा फुलबगिया, हटा देव हरयाई।
पिय जस गाय सुनाव न ईसुर, जो जिय चाव भलाई।

जे दिन कटत बैन बज्जुर के, अबै दुपर ना मुरके।
पूरब से सूरज नारायण, पच्छिम खां ना मुरके।
अपने-अपने घरन मजा में, लोग-लुगाई पुर के।
जान जिवावन आन मिलेंगे, कबे यार ईसुर के।

अब के गए कबै तुम आ हौ, वो दिन हमें बताओ।
होय आधार तनक ई जी खां, ऐसी स्यात धरायो।
जल्दी खबर लियौ जो जानों, इन प्रानन खां चाओ।
ईसुर नेंक चलत की बिरिया, कण्ठ से कण्ठ लगाओ।

देखो नइयां आँखें भरके, जब से गए निकरकें।
आपन ज्वान फारकत हो गए, मोय फकीरन करकें।
अपने संगै ले गए प्यारे, प्रान पराए हरकें।
ऐसे मानस मिलने नैंया, मानस कौ तन धरकें।
खपरा भओ सूख तन ईसुर, खाक करेजो जरकें।
पीतम बिलम विदेश रहे री, नैनन नीर बहे री।
मोय अकेले निबल पिय बिन, लख अंग अनंग दहे री।
बागन-बगन बंगलन बेलन, कोयल सबद करे री।
ईसुर ऐसी विकल वाम भई, सब सुख बिसर गए री।
तुमने मोह टोर दओ सैंयां, खबर हमारी नैंयां।
कोचन में हो निबकन लागीं, चुरियन छोड़ी बइयां।
सूकी देह छिपुरिया हो गई, हो गए प्रान चलैयां।
जे पापिन ना सूखी अंखियां, भर-भर भरी तलैयां।
उन्हें मिलादो हमें ईसुरी, लाग लाग कें पैयां।

हड़रा घुन हो गए हमारे,सोचन रजऊ तुमारे।
दौरी देह दूबरी हो गई,करकें देख उगारे।
गोरे अंग हतै सब जानत,लगन लगे अब कारे।
ना रये मांस रकत के बूंदा, निकरत नई निकारे।
इतनउ पै हम रजऊ को ईसुर, बने रात कुपियारे।

हींसा परे आगले मेरे, रजऊ नैन दुई तेरे।
जां हम होवें मईखां हेरो, अन्त जाय ना फेरे।
जब देखों तब हम खां देखो, दिन में सांज सबेरे।
ईसुर चित्त चलन ना पावे, कबहुं दायने डेरे।

विधना करी देह न मेरी, रजऊ के घर की देरी।
आवत जात चरन की धूरा, लगत जाय हरबेरी।
लागी आन कान के ऐंगर, बजन लगी बजनेरी।
उठन चात अब हाट ईसुरी, वाट बहुत दिन हैरी।

पंछी भए न पंखनवारे, इतनी जांगा हारे।
कड़-कड़ जाते सांसन में हो, अड़ते नहीं किनारे।
सब-सब रातन मजा लूटते, परते नहीं नियारे।
ईसुर उड़ प्रीतम से मिलते, जां होंय यार हमारे।

सूजै इन आँखन अनवेली, जग में रजऊ अकेली।
भरके मूठ गुलाल धन्य वे, जिनके ऊपर मेली।
भाग्यवान जिन में पिचकारी, रजऊ के ऊपर ठेली।
ई मइना की आउन हम पै, झिली मस्त की झेली
अब की बेरें उनने ईसुर, फाग सासुरे खेली।

हम पै इक मुख जात न बरनी, रजऊ तुमारी करनी।
जा ठाड़ी हो जाती जाके, दिपन लगत वा धरनी।
हते नक्षत्र नई पुक्खन में, नई भद्रा नई भरनी।
आई हो औतार मांग भव, तीन ताप की हरनी।
धन्य तुमारे भाग ईसुरी, कैउ करी बैतरनी।

मोरी रजऊ सासरे जातीं, हमें लगा लो छातीं।
कै नई सकत गरौ भर देतीं,अंसुवन अखियां बातीं।
ऊसेई चित्र लिखि सी रैगईं, मां से कछु न कातीं।
हमने करी हमई जानत हैं,अब पीछू पछतातीं।
ईसुर कौन कसाइन डारी,विकल विदा की पाती।

नीको नई रजऊ मन लगवौ, एई से कठिन हटकवौ।
मन लागै लग जात जनम कौ, रोमई रोम कसकवौ।
सुनती तुमे सओ न जैहै, सब-सब रातन जगवौ।
कछु दिनन में होत कछु मन, लगत-लगत लै भगवौ।
ईसुर जे आसान नई हैं, प्रान पराये हरवौ।

जो जी रजऊ-रजऊ के लाने, का काउ सें का काने।
जौ लौ जीने जियत ज़िन्दगी, रजऊ के होके राने।
पहले भोजन करै रजऊआ, पीछे मो खां खाने।
रजऊ-रजऊ कौ नाम ईसुरी, लेत-लेत मर जाने।

हम खां रजऊ की बिछुरन व्यापी,कड़त नई जी पापी।
भरमरात जे प्रान फिरत हैं, थर-थर देइयां कापी ।
को जाने लएं जात प्रान कों, सिर पै मौत अलापी।
उनके ऐंगर रए ईसुरी, वे मानस पिरतापी।

करकें प्रीति मरे बहुतेरे, असल न पीछूं हेरे।
फुदकत रहे परेवा बन के, बिरह की झार झरेरे।
ऐसे नर थोरे या जग में, डारन नाई फरेरे।
नीत तकन ईसुर की ताकन, ने ही खूब तरेरे।

खबरें आदी रात को आवैं, कांलौ मन बिसरावें।
निस दिन चर्चा करें तुमारी, सोउत में बर्रावें।
जो तन हो गओ सूख ठठेरो, न्यारे हाड़ दिखावें।
ईसुर कात तुमारो होकंे, कओ कीकौ हो जावैं।

करके प्रीत करे सौ जाने, कात की कोउ न माने।
दाबन लगे दूर से नकुआ, लासुन भरे बसाने।
काने कछू-कछू कै आवै, ना रए बुद्धि ठिकाने।
बिगरे कैउ आ दिन से ईसुर, हम वे तरे निसाने।

तुम बिन तड़प रहे हम दोऊ, आन मिलो निर्मेही।
सोने की जा बनी देईया, कंचन जुबना दोई।
जबसे बिछुरन तुमसे हो गई, नहीं नींद भर सोई।
कात ईसुरी बिना तुम्हारे, हिलक-हिलक कै रोई।

तलफन बिन बालम जौ जीरा, तनक बंधत न धीरा।
बोलन लागे सैर पपीरा, बरसन लागो नीरा।
आदी रात पलंग के ऊपर, उठत मदन की पीरा।
ईसुर कात बता दो प्यारी, कबै मिलै जे जीरा।

अब न होवी यार किसी के, जनम-जनम खां सीके।
यारी करे में बड़ी बिबूचन, बिना यार के नीके।
निठुआं ज्वाब दओ है उनने, हते न जीके नीके।
मानुष जनम करौ ना ईसुर, ककरा करो नदी के।
जा नई मिटत प्रीति की यारी,जिगर भरी मतवारी।
मन चल जात सुरत आंगना,से बिना वदन पैड़ारी।
कारे परे करेजे भीतर, मारी नैन कटारी।
ईसुर कात तुमारे लाने, हैं तन त्याग हमारी।

प्रीतम बिलग विदेश रहे री, ते दृगनीर बहे री।
निपट अकेल निबल पियबिन, बिनलख अंग अनंग दहेरी।
बागन और द्रुमन वन बेलन, कोयल सबद कहेरी ।
कात ईसुर विकल बाम भई,सब सुख बिसर गएरी।

नैहा निरमोही हो डारे, तनक न दर्द बिचारे।
प्रीत लगाय प्रान तलफाये, विष दे काय न मारे।
जाके पठई सोच ना करिये, और जरे पै जारे।
हम तो हेत लगायो जो तन, वे पूरब में हारे।
कहें ईसुरी काये सजनी,रैन बिछोहा पारे।

तुमने मोह टोर दए सैंया, खबर हमारी नइयां।
कौंचन में हो निबकन लागीं, चुरियन छोड़ें बैंया।
सूकी देह छिपुरिया हो रई, हो गए प्रान चलैयां।
जे पापिन न सूखी अँंखियां, भर-भर र्रइं तलैंया।
उन्हें मिला दो हमें ईसुरी, लागों तोरी पैंया।

जब से रजऊ से नैन लगाए, बडे़ कसाले खाए।
तरवन तरे फलक पर आए, उप नए पावन धाए।
भए अधमरे प्रेम के बस में, प्रान निकर न पाए।
ककरा गड़े कसक गए कांटे, सेरन खून बहाए।
ईसुर भौत भुगतना भुगती, तऊं न भले कहाए।

हम पे नाहक रंग न डारौ, घरै न प्रीतम प्यारौ।
फीकी फाग लगत बालम बिन, मन में तुमई बिचारौ।
अतर गुलाब अबीर ना छिरकौ,पिचकारी ना मारौ ।
ईसुर प्रान पति बिन सूझे, सारौ जग अंधियारौ।

तुमरी बिदा न देखी जाने, रो-रो तुम्हें बताने।
कोसक इनके संगे जाने,भटकत पांव पिराने।
पल्ली और गदेली जोरै, नये-नये ठन्ना पाने।
जो कऊं होते दूर तलक वे, सुनी न जाती काने।
रंधे भात जे कहिए ईसुर, कीके पेट समाने।

जो जी बेदर्दिन खां दओ तो, जब मन ऐसो भओ तो।
बिगरी जात पराई बातन, जब तौ फिरत भओ तो
टूटो नेह नाव धरवाओ, निगओ सवई ने कओ तो।
आई नहीं ध्यानतर एकऊ, हर-हर तरा सिकओ तो।
समझ के सुपरस करो ईसुरी, हटक पैल से दओ तो।

रस्ता आधी रात लौ हेरी, छैल बेदरदी तेरी।

तलफत रही पपीहा जैसी, कहां लगाई देरी।
भीतर से बाहर हो आई, दै-दै आई फेरी।
उठ-उठ भगी सेज सूनी से, आंख लगी न मेरी।
तड़प-तड़प सो गई ईसुरी, तीतुर बिना बटेरी।

जो हम विदा होत सुनलैवी, माडारें मर जैबू।
हम देखत को जात लुबे, छुड़ा बीच में लैबू।
अपने ऊके प्रान इकट्ठे, एकई करके रैबू।
ईसुर कात लील को टीका, अपने माथे दैबू।

हमसें काये छरकतीं राती, औरन खां पतयातीं।
औरैं आंय तनक दै-दै के, दौर-दौर के जातीं ।
हमतौ कहैं प्रेम की बाते, अपुन जहर सौ खातीं।
जो मिल जायें गली खोरन में, काट किनारौ जातीं।
अटके प्रान ईसुरी तुममें, हमें लगा लो छाती।

तुमसे हमने कीन्हीं यारी, गई मति भूल हमारी।
पीछूं से सब हाथ हिलाके, हँसी करे संसारी।
भये बर्बाद असाद कहाए, ऐसी शान बिगारी ।
गओ मौ लौट जानके खा गए, खांड के धोखे खारी।
अपने हातन मारी ईसुर, अपने हाथ कुलारी।
अबकी बेर बिछुरतन मरने, का जाने तोय करने।
तुम सुख चाओ हमे दुख दैकें, तोरौ जनम बिगरने।
मोरी कौन ख़बर राने जब, तोय खसम संग परने।
दूर से लखें रजऊ आवत हैं, पांव पुरा पर परने।
रै जै बिसर ईसुरी तुम खां, तुमना हमें बिसरने।

मैने तोरे घर के लाजें, बाहर नीरे काजें।
जितने की जा भाव भगत न, बजत फूट गई झाजें
भए नटखटा दास के लाने, छिन में नीचे छाजें
हे परमेसुर मोरे ऊपर, गिरी गरज के गाजे।
वे न मिली सरम गई ईसुर, धरती फटे समाजें।

जो तुम जुड़ी बनी रई हमसे, माने बुरओ जनम सें।
प्रीति की रीति निभावत आये, हम तो अपनी गम से।
राजी बुरी तई सिर ऊपर, भई सो भई करम सें।
दुबिधा एक दिया ना जावै, दगाबाज की दम से।
ईसुर मोरी कोद रजऊआ, हुए भलाई तुम सें।

तुम खां रटत रात भर रौवो, और बिछुर गए सोवो।
भींजत रात बिछौना अंसुवन, सब दिन करत निचोवो।
कांलों कहे तुमें समझावे, नाहक बचपन खोवो।
ईसुर बैठ रहे घर अपने, सओ डीलन कौ ढोवो।

हो गई देह दूबरी सोसन, बीच परगओ कोसन।
सरबर दओ बिगार स्यानी, कर-कर शील सकोचन।
इतनी बिछुरन जानत नई ते, भूले रये भरोसन।
भई अदेखे देखवे खैंयां, अबका पूंछत मोसन।
ईसुर हुए कछु ई जीखां, तुमई खां आवे दोसन।

जानै कौन बाज दिन खाई, मित्र न देत दिखाई।
दीनी छोड़ लाज परिजन की, कुल की शान गमाई।
सास-ससुर छोड़े ससुरे में, चली मायके आई।
बरै भाग कोऊ अपनो न भओ, भुगतौ मौत सवाई।
का दिन अपने आए ईसुर, कोऊ न होत सहाई।

नैयां कोउ को कोउ सहाई, सब दुनिया मजयाई।

गीता अर्थ कृष्ण कर लाने, पिता सो जाने माई।
जा दई देह आपदा अपने, कीखों पीर पराई ।
विपत परे में एक राम बिन, कोउ न होत सहाई।
अपने मरैं बिना ना ईसुर, देवै सुरग दिखाई।

ऐसो अवगुन करो न मैने, खबर बिसारी तैने।
सारी बुरी मरे के ऊपर, सब लोगन की कैंने।
जस अपजस की बांध पुटरिया, ऐई हाथ में रैने।
माता उठ आमाता दोहैं, दाता दया अदैनें।
इस बस्ती में बसे ईसुरी, कुमत-सुमत दोऊ बैनें।

चाहो तुम सिवाय ना औरे, और पै दिल ना दौरे।
तुम सिवाह कोऊ मनै ना आवै, जेहि बांधे सिर मौरें।
जी के संग में परी भांवरे, परी न एकऊ रोरे।
हमें सनेही ऐसे सूझत, ज्ये सूझत शिव गौरे ।
हाल दिनन में रहे ईसुरी, बसती बसत बगौरें।

मोरे तुम सिवाह न दूजौ, तुम ना और की हूजो।
तुम सिवाह ई संसारी में, इन आंखिन ना सूझो ।
जो प्रन होवै पतिव्रता को, प्रान त्याग तन भूजो।
मन मरदन पै कौन चलावै, नहीं बालकन बूझो।
ईसुर अपने जनम भरे में, एक देवता पूजो।

कैसे मिटै लगी कौ घाओ, ई की दवा बताओ।
दिन या रात चियारें परतीं, ज्वर ना खाए चाओ।
गुनिया और नावते हारे, खेल-खेल के माओ।
कात ईसुरी कैसे करिए, चलत न एक उपाओ।

सब कोउ होत प्रीत से न्यारो, ऊंचे गरे पुकारें।
यही प्रीति की ऐसी बिगरन साहूकार बिगारे।
राज बादशाह छोड़ प्रीति से, बेई जोग पग धारे।
ऐई प्रीति से लैला पीछूं, मंजनू सो तन गारे।
ऐई प्रीति से ईसुरी हो गए, ऐसे हाल हमारे।

कीसो कहें प्रीति की रीति, कयें से होत अनीति।
मरम ना जाने ई बातन कौ, को मानत परतीती।
सही ना जात मिलन को हारी, बिछुरन जात न जीती।
साजी बुरई लई सिर ऊपर, भई जो भाग बदीती।
परबीती नहीं कहत ईसुरी, कात जो हम पर बीती।

यारी सदा निवाए रइयो, बीच बिसर न जइयो।
जैसो दिन है हाल दिनन में, ऐसेऊं राखीं रइयो।
सुनके बात जिया मोरे की, अपने जिउकी कईयो।
अबै कछू ना बिगरो ईसुर, बांय समर के गइयो।

करके नेह टोर जिन दइयो, दिन-दिन और बड़इयो।
जैसे मिलै दूद में पानी, ऊसई मनै मिलइयो।
हमरो और तुमारौ जो जिऊ, एकई जानौ रइयो।
कएं ईसुरी बांय गए की, खबर बिसर जिन जइयो।

बेला आदी रात पै फूला, घर में नईयां दूला।
अपनी छोड़ और की कलियन, भलौ भंवरला भूला।
जौ गजरा की खां पैराऊं, उठत करेजे सूला।
छूटन लागी पुहुप परागे, दृगन कन्हैया झूला।
ईसुर सुनत डगर धर आवें, नगर देह रमतूला।

मोरे मन की हरन मुनैया, आज दिखानी नइयां।
कै कऊं हुए लाल के संगै, पकरी पिंजरा मइयां।
पत्तन-पत्तन ढूढ फिरे हैं, बैठी कौन डरइयां।
ईसुर उनके लाने हमने, टोरी सरग तरैंयां।

अब ना लगै गाँव में नीको, मित्र बिछुरगओ जीकौ।
आवौ-जावौ करे रातते, अब मौं देखों कीकौ।
कर और बार पुरा पाले में, लगत मुहल्ला फीकौ।
सौने कैसो पानी ईसुर, गओ उतर मों ईकौ।

होने जबई करेजो ओरौ, मिलै मिलनिया मौरौ।
परचत रए बिरह के अंगरा, छनकत रत रओ थोरौ।
जल के परत भवूका छूटत, कितनऊ सपरौ खोरौ।
और-और परचत है ईसुर, पंखन पवन झकोरौ।

जबसे भई प्रीत की पीरा, खुशी नई जो जीरा ।
कूरा-माटी भओ फिरत है, इतै उतै मन हीरा।
कमती आ गई रकत-मांस की, बहै दृगन से नीरा।
फूकत जात बिरह की आगी, सूकत जात सरीरा।
ओई नीम में मानत ईसुर, ओई नीम कौ कीरा।

 

बुन्देली झलक (बुन्देलखण्ड की लोक कला, संस्कृति और साहित्य)

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