Lal Ki Khoj लाल  की खोज

Lal Ki Khoj लाल  की खोज एक शिक्षाप्रद कथा है । पंचशील नगर में सुप्रसिद्ध आचार्य हरिहर देब संस्कृत के प्रकाण्ड बिद्वान थे । एक वार मित्र के साथ जंगल में घूमने गये । वहाँ एक नदी में एक लाल बहता हुआ देख आचार्य जी ने उसे उठा लिया । लाल एक दुर्लभ और अत्यन्त कीमती रत्न होता है, जो हर जगह नहीं मिलता। आचार्य जी ने विचार किया कि राजा ही इसका उपयोग कर सकता है अतः जाकर राजा को भेंट किया । राजा ने प्रसन्न होकर आचार्य जी को एक दुशाला और पाँच हजार रु० थाल में रखकर बिदाई की।

राजा ने वह लाल रानी को दिया तो वह रत्न रानी को बहुत पसन्द आया । रानी ने राजा से प्रार्थना की कि इस लाल के जोड़ का दूसरा लाल मगाईयेगा । राजा ने डुडी पिटवाई जो कोई इस लाल का जोड़े मिला देगा, उसे महामत्री का पद दिया जायेगा। बहत से लोग लाल का जोड़ मिलाने के विचार से उसी नदी तरफ गये । वहाँ उन्हे एक मंदिर दिखा, वे अन्दर जाकर वहाँ शिव की स्तति करने लगे यकायक साक्षात शंकर भगवान उन्हें सामने खडे दिखे ,गद-गद आचार्य जी ने प्रणाम किया । भगवान शंकर कहने लगे श्रेष्ठ ब्राम्हण तुम्हारा अंता:करण  अत्यंत पवित्र है ।

बर माँगों आचार्य जी खुश हो गये पर उनका गला रुंध गया यह देख शंकर जी ने डमरु आचार्य के मुंह से लगा दिया आचार्य ने कहा मैं अपने लक्ष्य में सफल रहूँ और मेरा मन सदैव ही आपके चरणों में लगा रहे । शंकर भगवान ने कहा- डमरु तथास्तु ! शंकर जी ने अपना डमरु और त्रिशूल देते हुए कहा-ये दोनों चीजें ले जाओ, मेरी डमरु मोहनी है यह सभी जीवों को नचाती है और यह त्रिशूल बड़ी भारी सेना को भी नष्ट कर तुम्हारे ही हाथ में आ जावेगा शून्य स्थान में जब कहीं राह न मिले तो इस त्रिशूल के गाड देने से राह मिल जाएगी । अग्नि, पानी, हवा, तूफान इसे दिखाते ही सब नष्ट हो जावेंगे। इतना कहकर वे अन्तध्यान हो गए।

आचार्य जी वहाँ से चल कर नदी के किनारे-किनारे उपर  की ओर बढ़ तो कुछ ही देर में न जाने कहां से साँप ही साँप और रीछ, बाघ, चीता, और भी जंगली जीव आकर आचार्य जी की और बढ़ते दिखाई दिये आचार्य जी डमरु निकालकर बजाने लगे। सभी जीव नाचने लगे और बहुत देर बाद थक कर गिरने लगे तब आचार्य जी आगे बढ़े।

आचार्य जी ऊपर की ओर चलने लगे । यकायक एक राक्षस आया और उसने इतनी अग्नि फैला दी कि बदी-बडी  लपटो में पेड व सबके बदन झुलसने लगे। तब आचार्य ने त्रिशूल निकालकर लपटों की ओर दिखाया तो सभी  अग्नि समाप्त हो गई तभी  राक्षस ने पानी बरसाया  पानी इतना बरसा कि आचार्य जी  उसमें बहकर राक्षस की ओर खिसकने लगे। आगे किनारा मिला तो वे उतर गये । आचार्य जी को देखकर वह राक्षस डर गया। आचार्य जी भी चकित थे।

राक्षस भागकर अपने अदृश्य महल में सो गया। पानी से निकलकर त्रिशूल की सहायता से रास्ता खोजकर आचार्य जी भी जीने के रास्ते से इस गुप्त महल में पहुचे और कमरे के किवाड बोले तो एक लड़की को वहाँ सोते पाया, वे पास में पड़ी कुर्सी पर बैठ गये। लड़की ने करवट बदलते ही आचार्य जी को देखा तो उठ कर प्रणाम किया। लड़की ने उनसे परिचय पूछा ? और कहा कि एक बार राक्षस बतला रहा था कि इस अदश्य महल में कभी भी कोई नहीं आ सकता है। यदि कहीं किसी वक्त कोई आयेगा तो मेरा ही काल आ गया समझो, ऐसा मुझ से कहा था।

मैं आपके ही चरणों की दासी बनकर आपकी सेवा करुंगी आप मुझे इसके जाल से छुड़ाइये। मैं अपनी व्यथा कथा सुनाती हूँ। मैं एक ब्राहम्ण कन्या हूं जब मैं पाँच वर्ष की थी तब पिताजी एवं माता जी के साथ मामा जी के यहाँ जाते हए इस दुष्ट राक्षस ने मेरे मां बाप को मार डाला और मुझे विमान में बिठाकर लाया मुझे पन्द्रह वर्ष हो गये है तभी से मैं इसका सिर दबाती व पाँव दबाती रोज सेवा करती हूं।

आप मुझे  इससे छुड़ा लीजियेगा। आचार्य जी ने कहा कि जब यह बाहर जाता है तो तुम भागती क्यों नहीं तो लड़की बोली कि ये राक्षस जब भी कहीं जाता है तो मेरा सिर काटकर टांग जाता है जिससे मेरी खून की बूदे लाल बनकर बहती हैं और ये अपना काम सुख पूर्वक करता रहता है।

अच्छा अभी वह कहाँ है” वह नीचे सो रहा  है … चलो  फिर उससे तुम्हें मुक्ति दिलायें”। लड़की ने बाहर राक्षस के पास  जानेवाला रास्ता बताया और कहा मैं चलती हूँ  आप भी वहां आ जाना यह लडकी राक्षस के पास पहुंचकर सिर दबाने लगी और  उसी समय  आचार्य जी आ गए। आचार्य जी बोले अरे दुष्ट तुझे कल से तलाश रहा हूँ तू यहाँ लेटा आराम कर रहा है  निर्लज्ज लड़ाई से भाग कर यहाँ पड़ा हुआ है। यदि तुझमे बल नहीं तो भाग जा, मेरे सामने से भागे हुए पर मैं अस्त्र चलाता ।

राक्षस उस त्रिशूल का प्रभाव समझता था। इस लिये वह चुप था और इसी लिए वो किसी तरह इसे छीनना चाहता था। मौका पाकर बातो ही बातो में इसने एक ऐसा झटका कि त्रिशूल जाकर एक कोने में अलग गिरा और राक्षस ने आचार्य जी को दबोच लिया तभी उस लड़की ने जाकर त्रिशूल उठा लिया, याद आई तो आचार्य जय शंकर कहकर डमरु बजाने लगे डमरु सूनकर राक्षस नाचने लगा आचार्य ने उसे खूब नचाया ।

लड़की से त्रिशूल ले लिया फिर डमरु बंद करके कहा अरे दृष्ट अब संभल ले तेरा काल आया है और त्रिशूल छोड़ दिया। अब राक्षस भागा, त्रिशूल उसके पीछे-पीछे जाने लगा वह अनेक जगह गया । लेकिन शंकर भगवान के विपरीत रक्षा करने की सामर्थ किसी में भी नहीं हुई अंत में वह अपने ही महल में आया और त्रिशूल की मार से बड़ी जोर से चीख मारी और जमीन पर गिरकर शरीर त्यागा दिया।

आचार्य जी ने उसका दाह संस्कार करवा दिया और उस लडकी से कहा अब पूर्ण स्वतंत्र हो, यदि आप कह ता आप के मामा जी के यहाँ मैं आपको भेज आऊ । स्वामी जी मुझे अपनी सेविका समझ चरणों में स्थान दीजिये आचार्य जी ने कहा चलो । आचार्य जी एव ब्राम्हण पुत्री पंचशील नगर के लिए चल पड़ते हैं । राजा के पास पहुचकर बोले कि हम लाल ले आये हैं।

राजमाता अपना लाल लाई, आचार्य जी ने कहा एक बडी परात में पानी मंगवाईयगा । एक परात पानी की आई आचार्य जी ने इशारा किया तो वह लड़की वहां आ गई । आचार्य के इशारे पर तुरन्त ही उस लड़की ने अपनी उंगली काट ली । राजा और रानी ने कहा आचार्य जी ये आपने क्या किया । लड़की के खून से परात में लाल ही लाल भर गये।

आचार्य जी ने कहा राजमाता अपने लाल से ये सभी लाल के जोड़ मिलाती जाइये । राजा ने दरबार लगवाया और उसमें सभी के सामने कहा – मेरे आदेश के मुताबिक आचार्य जी ने तो हीरों की खान ही लाकर रख दी है। आज से आचार्य हरिहर देव को महामंत्री पद का भार सौंपा जाता है।

बुन्देली झलक (बुन्देलखण्ड की लोक कला, संस्कृति और साहित्य)

डॉ. राज गोस्वामी

admin
adminhttps://bundeliijhalak.com
Bundeli Jhalak: The Cultural Archive of Bundelkhand. Bundeli Jhalak Tries to Preserve and Promote the Folk Art and Culture of Bundelkhand and to reach out to all the masses so that the basic, Cultural and Aesthetic values and concepts related to Art and Culture can be kept alive in the public mind.
RELATED ARTICLES

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Most Popular

error: Content is protected !!