Homeबुन्देलखण्ड की लोक देवियाँDasharani दशारानी-बुन्देलखण्ड की लोक देवी

Dasharani दशारानी-बुन्देलखण्ड की लोक देवी

यह पूजा बुन्देलखण्ड में अपने मौलिक रूप से होती है । इसमें तिथि और मास का कोई विचार नहीं है । दशारानी Dasharani की पूजा से धनधान्य की वृद्धि होती है, ऐसी लोक मानस में आस्था हैं। दशारानी की उपासना का प्रारम्भ ‘सूत के गड़े’ द्वारा होता है। गड़ा लेने की भी एक विधि है- जब किसी गाय, घोड़ी अथवा स्त्री के पहला बच्चा होता है अथवा तुलसी के पौधे में जब प्रथम मंजरी निकले, तब गड़ा लिया जाता है ।

स्त्री के गड़ा लेने में एक और प्रतिबन्ध है। उस स्त्री का गर्भ किसी तंत्र-मंत्र या अन्य साधन द्वारा न रहा हो। गड़ा दस सूत्र का बनाया जाता है। नौ सूत्र धागे के और एक सूत्र जो गड़ा लेने वाली स्त्री होती है, उसके आँचल (साड़ी का दाहिना छोर) के धागे का होता है । जितनी स्त्रियाँ गड़ा लेती हैं, वे सब उस दिन से एकत्रित होकर दशारानी की कहानियाँ कहती हैं । दसवें दिन अपने-अपने घर पर गड़ा का पूजन करती हैं। पूजन के दिन उपवास करती हैं।

घर को गाय के गोबर से लीप-पोत कर स्वच्छ करती हैं, भोग के लिए दस फरा बनाती हैं (पानी में उबली हुई पूड़ी)। चौक पूरकर एक टे पर चन्दन की दस पुतरियाँ बनाती हैं अथवा मिट्टी की दस डेलियाँ रखकर उनकी हरदी अक्षत् से पूजा करती हैं। गड़ा को दूध में धोकर पटा पर रखकर हल्दी अक्षत से पूजती हैं। पूजन समाप्त होने पर परिवार की वृद्धा महिला दशारानी की कथा-कहानी कहती है। दस दिन अलग-अलग तरह की दस कहानियाँ कही जाती हैं । एक कथा निम्नवत

वर पै चढ़ीं दसारानी ।
वर सें उतरी पीपर पै चढ़ीं मोरी दसारानीं ।
धन धान्य देय मोरी दसारानीं । जै होवै दसारानी ।

इसकी पूजा की सामग्री कुँए में सिराई जाती है। जैसा कि है इस पूजा का सम्बन्ध शिशु जन्म से है । शिशु के जन्म के बाद पहले दस दिन पहली बार गर्भधारण करने वाली स्त्री एवं नवजात शिशु दोनों ही स्वास्थ्य की दृष्टि से बहुत नाजुक होते हैं । चूँकि स्त्री पहली बार गर्भधारण करती है, इसलिए और भी चिन्ता रहती है । जच्चा-बच्चा के ये दस दिन ठीक से निकल जायें, इसके लिए दस सूत्रों का गण्डा लेकर दशारानी से मनौती मानी जाती है।

गण्डे के दस सूत्र दस दिन के प्रतीक हैं। दसवें दिन दशारानी की पूजा कर पूजन सामग्री कुँए में विसर्जित कर यह प्रार्थना करती हैं कि कुँए की भाँति ही जच्चा के स्तनों से अपने बच्चे के लिए दूध की झिर कभी खत्म न हो और दोनों ही धनधान्य से आपूरित रहें । जनजीवन में गाय, घोड़ी, तुलसी की उपयोगिता विदित ही है, अतः ऐसी कामना इनके लिए भी की जाती है । पर लोक में इस पूजा का मूल उद्देश्य विस्मृत हो गया है और स्त्रियाँ अपनी किसी भी वांछित कामना की पूर्ति हेतु दशारानी का गण्डा लेती हैं। उनकी पूजा करती हैं।

खेरापति – बुन्देलखण्ड के लोक देवता 

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