Bundeli Bal-Geet बुन्देली बाल-गीत

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Bundeli Bal-Geet बुन्देली बाल-गीत

स्त्री-पुरुष की भांति बालकों में भी गीत गाने की प्रवृत्ति परिलक्षित होती है। दो-चार बालक इकदटूठे .होते हैं, कोई न कोई खेल खेलना शुरू कर देते हैं और साथ ही कुछ न कुछ बुन्देली बाल-गीत Bundeli Bal-Geet गाने लगते हैं। उनकी तोतली जबान से कभी-कभी ऐसी भी बातें निकल आती हैं जिन्हें सुनकर बडे दांतों तले उंगली दबा लेते हैं। अवस्था के साथ उनके गीतों में अर्थवत्ता आने लगती हैं, माताएं बालकों को झूला झूलाते समय जो गीत गाती हैं, उन्हें ‘झूला’ या पालने का गीत कहा जाता है।

इसी प्रकार बच्चों के रूठने-मनाने, खिलाने-सजाने, सुलाने-नज़र से बचाने, हंसने, हंसाने फसलाने आदि से संबंधित गीतों को मां या उसके भाई बहन गाते हैं। अतएव उन गीतों पर यहां विचार अनपेक्षित है। जब बालक थोड़ा बड़ा होता है। समहबद्ध होकर खेलने-कूदने लगता है। उन खेलों के समय वो गीतों को गाता जैसे – कबडडी खेलते समय-‘कबडडी-कबडडी’ या ‘चल कबड्डी आल-ताल, लड़ने वाले  होशियार’ अथवा कोड़ा जमाल शाही खेल के साथ कोडा जमाल शाही, पीछे देखे मार खाई’ आदि-आदि ।

अटकन-चटकन का खेल खेलते समय व कहते हैं
अटकन-चटकन दहीं चटाकन, बाबा लाए सात कटोरी ।
एक कटोरी फटी, मामा की बहू रूठी।
कौन बात पै रूठी, मुंस के बैठी कैंसी बैठी।
ठाई ठक्‍का ठाई ठक्का, चिन्टी की चिन्टा
चिटा के चिंटी ………चिन्टी ।।
चिटा के चिंटी……… चिन्टां ॥

अल्ल में गई, दल्ल में गइ, दल्ल में से लाकड़ ल्‍याई।
लाकड़ मैंने डुक्को दीनीं, डुक्को मोय को कुचिया दीनीं।
कचिया मैंने कुमरा दीनीं, कुमरा मोय मटकी दीनीं।
मटकी मैंने अहीरी दीनीं, अहीर मोय भैंस दीनीं।
सैंस मैंने राजा खों दई, राजा ने मोय रानी दई।
रानी मैंने बसोरे दई, बसोर नें मोय ढुलकिया द्ई |
बाज मोरी ढुलकिया टम्मक दूं, रानी के बदले में आई तू।

प्रकार अटटा-चट्टा खेल में बच्चों को खिलाने वाला कहता है…. । 
अट्टा चटटा मोर को चढ्टा, करई गाजर मीठो मूरा।
एक चना की सोरा रोटीं, गोहूं की बत्तीस।
जौ गइया को खूंटा, जौ बच्छा कौ, जौ भइया को।
ककक्‍का कौ, डंडा बैल आउत है, …. कुत….  कुत….. कुत…..।

इस प्रकार कुआ पाट, अंधा पाड़ा, चुन-चुन मनिया, लुका-छिपी ऐसे अनेक खेल हैं जिन्हें वे गीत गाकर खेलते हैं । किशोरावस्था में बालक टेसू के गीत, होली में चंदा मांगने के तथा किशोरियां मामुलिया, झिंझिया, नौरता, साहुन, झूला, भुजरियां आदि से संबंधित गीतों को गाती हैं, कोमल हृदय तथा बाल सुलभ चेष्टाओं, भावनाओं से पूरित इन गीतों को सुनने में आनन्द उत्पन्न होता है और बालपन की यादें मन को आहलादित कर देती हैं।

बुन्देलखण्ड की लोक नाट्य परंपरा