Dhandu Bhagat Gatha धाँदू भगत गाथा

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 बुन्देलखण्ड की लोक गाथा Dhandu Bhagat Gatha ढाँदू भगत माता हिंगलाज की अद्भुत भक्ति की गाथा है । भोले भाले भक्त ढाँदू के निश्छल प्रेम और समर्पण का सुंदर चित्रण किया गया है । वो किन विषम परस्थियों मे माता हिंगलाज के दर्शन करने जाता है और अपना सिर भेंट करता है । माता हिंगलाज प्रसन्न हो उसे फिर से जीवित कर देती है। इस गाथा में भोले भाले ग्रामीण लोक मानस के वहकती-भाव, त्याग और समर्पण का ताना-बाना है ।

धाँदू भगत- बुन्देली लोक गाथा

तुलसी बिरवा बाग के माया, सींचत में कुमलाँय माँ ।

/> राम भरोसे वें रहे माया, पर्वत पै हरयाँय माँ ।
हाँत लयें लोटा बगल लयें धोती, करन चली अस्नान माँ ।
नगर बुलौवा हो रये माई, सकियाँ लइयों जगाय माँ ।
चलो सकी सब सपरन चलिये, गंगा जयन के घाट माँ ।
चली- चली जहनों गई माई, सात समंद के घाट माँ ।
चीर उतार धरे धरनी में, बैठी समद हिलोर माँ।
समद हिलोर बढ़ गई माई, लै गई चीर बहाय माँ ।

समद हमारो भैया लगत है, कैसो रब बुलयाय माँ।
बैठी बिसूरें मोरी आद भुवानी, काहो पैर घर जाँय माँ ।
गंगा के ऐले जमन के पैले, रयें मनयारे साँप माँ ।
ओई साँप के काँचरी उतारो, ओई पैर घर जाय माँ ।
कचनी अंग लगाई जगतारन हो गये कुसम रंग चीर माँ ।
माई के भुवन में तिरिया रोवे, अंसुवन भींजे गुलसार माँ ।
कै तोरी सास ननद दुख दीनी, कै तुम कुल की हीन माँ ।
नें मोरी सास ननद दुख दीनी, नें कुल की हम हीन माँ ।

घरई के सैयाँ बाँज कहत हैं, जो दुख सहो न जाय माँ ।
जाव- जाव तिरिया घर अपने, तोरें बालक होय माँ ।
ऐसे दान हम नें लयें माया अपने करहो देव माँ।
जो तोरी कुखियो बालक हुइयें कहो चढ़ेहों भैंट माँ ।
जो मोरी कुखियो बालक हुइयें सेवक तुमारे होय माँ ।
एक कली चंपा की लेजा लेजा आँचर छोर माँ ।
दूजी कली बेला की लेजा शीश नवाय माँ ।
जाव – जाव तिरिया घरे अपने धाँदू से बालक होय माँ ।

पैले मास लगे मोरी माय मन घबराने जाँय माँ।
दूजे मास जब लगे मोरी माई मन बैठी अलसाय माँ ।
तीजे मास लगे मोरी माई मन बेरों पे जाय माँ ।
चौथे मास जब लगो मोरी माई मन अमियो पै जाय माँ ।
पाँचो मास लगे मोरी माई मन निबुओ पै जाय माँ ।
छटे मास जब लगे मोरी माई मन केरो पै जाय माँ ।
सातये मास लगे मोरी माई मन पेड़ों पै जाय माँ ।
आठये मास लगे मोरी आई धो-धो पियत कपूर ।  

आठ मास चंदन गाले माया नमय कंथ की पौर माँ।
नमये मास लालन भये माई धाँदू लये औतार माँ ।
जेदिन धाँदू जनमन लयेहैं डलनो आई हरी दूब माँ ।
घर कुड़वारे भर गये माई अंगना आई हरी दूब माँ ।
काहे छूरा नरा छीनियो माई काहो खपर अस्नान माँ।
सुन्ने छुरा नरा छीनियों माई रूपे खपर अस्नान माँ।
काहेके सूपा पौड़ये माई धाँदू काहेके आरवत डार माँ ।
हरे बाँस सूपा पौड़ाये मुतियन आखत डार माँ।

सुरहन गउके गोबर मँगाये ढिगधर भुवन लियाये माँ।
गजमुतियन चौक पुराये कंचन कलश धराये माँ।
टेरो नगर की नाइन बिटिया नगर बुलौवा देव माँ।
भीतर बैठी घर गोतनी माया बाहर सातउ जात माँ।
भीतर बांटे तिलचाँवरी भाया बाहर बटत कमोद माँ ।
काशीपुरी सें पंडत बुलाये देखों पोथी पुराने माँ।
कैसी घड़ी बालक भये मामा कैसे भुगत राज माँ।
अच्छी घरी बालक भये माया अच्छे भुगत राज माँ।

बारा बरस के धाँदू हुइयें देवी जवारों जाय माँ।
पैले मास के जब भये धाँदू पिये कटोरन दूद माँ ।
दूजे मास के जब भये धाँदू ओंदे सूदे होय माँ ।
तीजे मास के जब भये धाँदू डलन हुकारी लये माँ ।
चौथे मास के जब भये धाँदू चले घुटैयो चाल माँ।
पाँचये मास के जब भये धाँदू चीने मतारी-बाप माँ ।
सातये मास के भये धाँदू पढ़न लगे चटसार ।
आठये मास के जब भये धाँदू खेले तीरकमान माँ।

नमये मास के भये धाँदू गैयां चराबे जाँय माँ ।
गइयें चराबे सुख मुरली बजावै केवल के जस गाँय माँ ।
दसय मासे के जब भये धाँदू राखे फूलों के बाग माँ ।
फुलवारों से गजरा बनावें लै दुरगा पैराय माँ ।
ग्यारा मास के जब भये धाँदू राखें चनो के खेत माँ ।
घेंटी टोरे देउल बनावै केवल भोग लगायँ माँ ।
कातक मास धरम के मईना खेलों सुरहन गाय माँ।
घर-घर गोदन पूजें मोरी माई जेई धरम की राय माँ।

मौन चरावै मौनियाँ भाई घर अंगना ने सुहाय माँ ।
अगन मास आगन रित आई हर के उठ गये नेत माँ ।
पूस मास तोरी होय ने सेवा माव महत्तम होय माँ।
फागुन में हर होरी खेलें आंगे सिंग दहाय माँ।
भर बैशाख कुहलिया बोले बैठे ढडका होय माँ।
जेठमास बतियो गये माई छाकत गली गये असढ़ामाँ।
साहुन मेहा झुमकि झमकें भदवा गहर गम्भीर माँ ।
उतर भदवा लागत कुँवरवा धाँदू धनुष संजाय माँ ।

बारा बरस के भये धाँदू देवी जुवारों जाँय माँ ।
जाव- जाव रे मोरे वीरा लंगड़ना धाँदू उभय ले जाव माँ ।
कहाँ रहे तोरे धाँदू भगतिया कहाँ उभय लै आँव माँ ।
गढ़खजरी में धाँदू हिंगलाज लै आव माँ।
पाँव खों नैयाँ मोरे पानही सिरखों भरेयी पाग माँ।
बैठवे खों नैयाँ मोरे पानही सिरखों भेरमी पाग माँ ।
गठिया दाम खरच खों नई माया नयाँ ढाल तरवार माँ।
पाँव खों देहे पानही माया सिरे भरैमी पाग माँ।

बैढवे देहों हरे घोड़ला मारग देहों साथ माँ।
गठिया दाम खरचवे दें हे माया देहों ढाल तरवार माँ ।
खोरन फिरें लगड़ला धाँदू के मिहल बताव माँ।
ऊँची अटरियाँ लाल किवरियाँ धरम धुजा फर्राय माँ ।
धाँदू सोवें कदम की छैयाँ लंगड़े बीन बजाँय माँ ।
सोवे के जागे मोरे धाँदू तोम केवल बुलवाई माँ ।
कहाँ रहत तोरी देवी जालपा कहाँ उमय बुलवाई माँ ।
हिंगलाज में देवी उतई उमय बुलवाई माँ ।

धाँदू दुलहन बड़ी सियानी बारा मास बिलमाय माँ ।
कातक धरम के मईना तुलसा दियला धराव माँ ।
अगन मास अगनोही मईना खेलें गोपी ग्वाल माँ।
पूस मास पुसवलियाँ निकरी सुवा बाल ले जाँय माँ ।
भाव मास मथरा के मईना पूजे गोपी ग्वाल माँ।
फागुन मास रंगीले मईना धूर उठा ब्रज खोर माँ ।
चैत मास में फूलों केतकी को गजरा गो लियाव माँ ।
गजरा गोवे सुगर मलनियां लै दुरगा पैराव माँ।

बैशाख मास अम्मा गदराने कोहल करत किलोर माँ।
जेठ मास बातों गये माया छाउत गये अषाढ़ माँ।
साहुन झुमकियों बरसे भादों गिरत घुमेड़ माँ।
जब दुर लागे कुवाँर के मईना धाँदू ने धुजा सजोई माँ।
पैली भगत धाँदू ने कबूली, जै बोलो हिंगलाज माँ ।
माता हटके पिता समजावे, हिंगलाज नें जाव माँ ।
नदिया नारे भौत पारत हैं सिंगा बाग धर खाय माँ।
नदिया नारे का करें माया सिंहा करे बेहाल माँ।
भोर भये भुनसारे मोरी भाई माय कलेवा ल्याई माँ।

कौना निदिया हरलई माई कौना हरी तोरी भूक माँ ।
भूक हमारी हर लई माई प्यास नयी कुमलाय माँ ।
कौना की उरिया सोहो बारे धाँदू रेहो कौन साथ माँ।
भैया उरिया सोहो बारी माया रेहो लंगरवा साथमाँ।
इकलख धाँदू सबालख पंडा झांझे बजे असरार माँ।
मिलले धाँदू पिता आपने जिनके कैये लाल माँ।
मिलले धाँदू माता आपनी गख रहे नौ मास माँ।
मिलले धाँदू भैया अपने कईये दायनी बाँय माँ ।
मिलले धाँदू बिहन आपनी कै कै झुलाये वीर माँ ।

मिलले धाँदू सखा सहेली जिनके खेले साथ माँ।
मिलले धाँदू गाँव के ठाकुर जिनके बसिये गाँव माँ।
धाँदू उमहये सब जग उमहव उमहये जहान माँ।
हर हाँकत हखाये उमहये गैयें चरावत ग्वाल माँ।
गागर उमहये कुडर माई कुलव पनहार माँ।
वन की उमहई वन खड़ी माई उर कजलीवन की मोर माँ।
लाल डोला पीरे धुजों के ऐई दल धाँदू के आयमाँ ।
पैली उड़ान भरी धाँदू नें कुअलों पै परे मिलान माँ।

नद सतलज आड़ी डरी है किस विद उतरे पार माँ।
कोउ दल मेलो टीलो कोउ दल फैलो कछार माँ।
धाँदू मेले माँझ के टिलुवो धरम धुजा फैराय माँ ।
कोउ चढ़ावे धुजा नारियल कोउ सुपारी पान माँ
राजा चंद्रसा भेंट चढ़ाई एक, हीरा दोउ लाल माँ।
एक लाल जब दुर जाये भाई, हो गये चंदन रूख माँ।
चंदन विरछा लहलहे भाई इनखों काहो होय माँ ।
बैठे तरवत पै अकबर बोलें पौवा कहाँ खों जाये माँ ।

गढ़खजरी को धाँदू भगतिया सो, हिंगलाज खों जाय माँ ।
हाँतो में डारो हतकड़ी, पाँव तोंक जंजीर माँ ।
लोहें किवरियाँ हनदे माया, हनदे बजर किवार माँ।
जब धाँदू ने भगत कबूली, जै बोलों हिंगलाज माँ ।
हाँतों की टूटी हतकड़ी गरे तोंक जंजीर माँ ।
लोहे किवरियाँ खुल गईं माया खुल गये बजर किवार माँ।
निकर कें धाँदू बाहर हो गये जै बोलो हिंगलाज माँ।
तीजी उड़ान भरी धाँदू ने सतलज परे मिलाने माँ।

सतलज नदी अपरबल पानी धार वहे बिकराल माँ ।
सतलज को कठन घटोइया डोड़ा लगे ने नाव माँ।
जब धाँदू ने भगत कबूली सतलज घुटनों होय माँ ।
उतर के धाँदू पैलें हो गये जै बोलो हिंगलाज माँ ।
धरमी पार उतर गये पापी रहे मजधार माँ।
कोउ-कोउ मेलो झीलों झापटों कोउ-कोउ गैल कछार माँ।
पांचव उड़ान भरी धाँदू ने पौंचे भुबन मझार माँ।
धाँदू भगतिया भोरे भारे मेले भुवन मझार माँ ।

कोड-कोउ चढ़ावे धुजा नारियल कोउ लोगों के हार माँ।
धाँदू भगतिया भारे भारे धाँदू कछू नें देंय माँ ।
हँस-हँस पूछे देवी जालपा काहो भैंट ले आये माँ।
ऐच खरग जब शीश उतारे जाले हमारी भेंट माँ।
सबरे भगतिया घरखों लौटे धाँदू के डरे लोथ माँ।
घर पूछे धाँदू की दुलहन मोरे पत कोनें बिलमाय माँ ।
सब कोउ मेले झीलों झापटों कोउ गैल कछार माँ ।
कोउ चढ़ाये धजा नारियल कोउ लोगों के हार माँ।

धाँदू भगतिया भोरे भारे सो दे दये शीश चढ़ाय माँ ।
सपर खोर धाँदू की दुल्हन सोने थार सँजोय माँ ।
घर सें डगरी धाँदू की दुल्हन डग होंम लगाय माँ ।
डेरो भुवन दायनों कर लव ले गई ढोल घुमाय माँ ।
आवत देखीं धाँदू की दुल्हन देवी रही मुस्काय माँ ।
भोंत दिनों में आई दुल्हन काहों भेंट ले आई माँ ।
पेंली भेंट मोरे पति की लीनी दूजी हमारी लेव माँ।
मन में चिंता जिन करो राज अटल कर देव माँ।

आठ दिनां नौ रातें हो गईं लोथ गये कुमलाय माँ ।
रूंड सें मुंड मिलाये जालपा उपर पिछोरा तान माँ।
बायें उंगरियों से इमरत छिरके धाँदू उठे भर्राय माँ ।
गांठ जोर कें पूजी जालपा जै बोलो हिंगराल माँ।
पंचा भगत भाई तोरे जस गावें, तोरे बानें की लाज माँ ॥

स्रोत- दौलत पटेल-केवलारी, नरेश चौरसिया – पुरव्याउ,
राजेन्द्र चौबे-धनगुवाँ, महेन्द्र सिंह – रजवाँस, देवेन्द्र रजक – कृष्णगंज, राजेश ताम्रकार – बड़ा बाजार

शोध एवं शब्द विन्यास – डॉ. ओमप्रकाश चौबे 
 
डॉ. ओमप्रकाश चौबे का जीवन परिचय

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